यव-वज्र-शकट योग - नभस योग

नभस योग की श्रेणी में यव नामक योग भी आता है. यव योग भी एक शुभ योगों के अंतर्गत स्थान पाता है. इस योग के प्रभाव का जातक के जीवन में मिला-जुला प्रभाव देखने को मिलता है. यव योग होने पर व्यक्ति की कुण्डली में ग्रह उडते हुए पक्षी की आकृति में स्थित होते है. यह योग व्यक्ति को चर प्रकृति देता है. यानि के व्यक्ति को एक स्थान पर टिक कर रहने में असुविधा महसूस होती है. वह जीवन में स्थिरता नहीं चाहता है. जातक के मन में कोई न कोई बात उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती ही रहती है.

कुण्डली में यव योग कैसे बनता है

जिस व्यक्ति की कुण्डली में चतुर्थ भाव और दशम भाव में नैसर्गिक शुभ ग्रह और लग्न भाव व सप्तम भाव में पाप ग्रह हो तो व्यक्ति परोपकारी होता है. इस योग से युक्त व्यक्ति को दान -धर्म के कार्य करने में विशेष रुचि होती है. ऎसा व्यक्ति की सफलता में उसके भाग्य का सहयोग भी होता है. व्यक्ति समृद्धशाली होता है तथा व्यक्ति में कर्तव्य परायणता का भाव पाया जाता है.

यव योग प्रभाव

यव योग के अन्तर्गत जन्म कुण्डली का चौथा भाव शुभ ग्रहों से युक्त होने पर जातक को अपने घर और जीवन का सुख भोगने का मौका मिलता है. माता की ओर से स्नेह और प्रेम भी प्राप्त होता है. व्यक्ति को वाहन का सुख और धन और आभूषण की प्राप्ति भी होती है. जातक की माता एक सम्मानित महिला होंगी. प्रारंभिक शिक्षा का स्वरुप भी बेहतर स्थिति का रहा होगा.

जातक को कार्यक्षेत्र में अच्छे मौके मिल सकते हैं. वह अपनी योग्यता और भाग्य के सहयोग से अपने लिए एक अच्छे काम की तलाश को पूरा कर सकता है. अपने अधिकारियों की ओर से उसे सहयोग मिल सकता है और उसकी बनाई हुई योजनाएं बहुत ही प्रभावशाली होती हैं. काम के क्षेत्र में नाम भी कमाता है.

जातक में बदलाव की चाह अधिक होने के कारण जीवन में स्थिरता मिल पाना मुश्किल होगा. जीवन में रिश्तों में भी एक प्रकार की स्थिरता का अभाव होगा. इस कारण दांपत्य जीवन में कुछ तनाव अधिक रह सकता है. फ्लर्ट करने वाला हो सकता है. जीवन साथी के साथ मन मुटाव भी परेशान कर सकता है.

इस योग के प्रभाव से जातक में क्रोध अधिक हो सकता है और वह अपनी जिद को करने वाला होगा. कई बार दुसाहसिक काम करने के कारण स्वयं के लिए नुकसान भी कर सकता है. व्यर्थ के वाद विवाद में रह सकता है.

वज्र योग - नभस योग

वज्र योग कुण्डली के चार केन्द्रों में बनने वाला योग है. जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग होता है, उसमें विपरीत परिस्थितियों से लडने की विशेष योग्यता होती है. जीवन के कठिन समय में व्यक्ति घबराता नहीं है. इस योग से युक्त व्यक्ति आन्तरिक रुप से मजबूत होता है.

वज्र योग कैसे बनता है

जब लग्न भाव व सप्तम भाव में शुभ ग्रह हों, और चतुर्थ तथा दशम भाव में पाप ग्रह हो तो वज्र योग बनता है. इस योग वाला व्यक्ति साहसी और परिश्रमी होता है. उसका जीवन सामान्य से अधिक संघर्षपूर्ण होता है.

वज्र योग प्रभाव

इस योग के प्रभाव से जातक योग्य और प्रभावशाली व्यक्तित्व का होता है. जातक में प्रतिभा होती है और वह अपने प्रयासों द्वारा जीवन को बेहतर बनाने के लिए संघर्ष भी करता है. परिवार के साथ चलने वाला और अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करने वाला भी होता है. शांत और सौम्य होता है. सभी के साथ प्रेम पूर्वक और सदभाव युक्त व्यवहार करने वाला होता है.

व्यक्ति अपने साथी के प्रति निष्ठा और कर्तव्य बोध के प्रति जागरुक होता है. वह अपने दांपत्य जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश भी करता है. जीवन साथी का सहयोग भी पाता है. रिश्तों में प्रेम भरपूर होता है और परिवार की ओर से भी सहयोग मिलता है.

जातक का सुख प्रभावित हो सकता है. मानसिक रुप से जातक को बेचैनी अधिक रह सकती है. माता के सुख में कमी मिल सकती है अथवा माता का स्वास्थ्य भी प्रभावित रह सकता है. कई कारणों से अपने घर से दूर भी रहना पड़ सकता है. घर पर शांति नहीं मिल पाती है, तनाव के कारण या काम काज के कारण अस्थिरता बनी रहती है.

कार्य क्षेत्र में मेहनत अधिक करनी पड़ती है. अधिकारियों की ओर से अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है. कार्यक्षेत्र में बदलाव भी अधिक रहते हैं. मेहनत अधिक रहती है पर धनार्जन अधिक नहीं हो पाता है.

शकट योग - नभस योग

नभस योग ग्रहों की स्थिति के अनुसार कुण्डली में बन रही आकृति पर आधारित होते है. नभस का शाब्दिक अर्थ आकाश होता है और कुण्डली को ग्रहों का नक्शा कहा जाता है. इन्हीं में से एक योग शकट योग है.

शकट योग कैसे बनता है

जब कुण्डली में सभी ग्रह लग्न भाव और सप्तम भाव, केवल इन दोनों केन्द्रों में होते है. तब शकट योग बनता है. शकट योग लग्न से सप्तम भाव में बनता है. इसलिए इस योग से प्राप्त होने वाले फल विशेष रुप से स्वास्थ्य और व्यापार, साथ ही वैवाहिक जीवन से संबन्धित होते हैं. शकट का अर्थ बैलगाड़ी से लिया जाता है. जीवन में इस योग के प्रभव से उत्तर चढा़व भी बहुत आते हैं.

कुछ अन्य मत के अनुसार इस योग का निर्माण जन्म कुण्डली में चंद्रमा और गुरु की स्थिति से भी निर्धारित होता है. इसमें चन्द्रमा से गुरू जब छठे और आठवें भाव में होता है, तब ये योग बनता है.

शकट योग प्रभाव

सामान्य इस योग को अशुभ योगों में शामिल किया जाता है. इस योग से युक्त व्यक्ति निर्धन होता है. उसका जीवन कष्टमय होता है. आजीविका प्राप्त करने के लिए उसे कठोर परिश्रम करना पडता है. कर्ज का बोझ भी व्यक्ति पर रह सकता है. मानसिक रुप से तनाव अधिक झेलना पड़ता है. जातक की कार्यकुशलता का सही मूल्यांकन नहीं हो पाता है.

विशेष:

जन्म कुण्डली में ग्रहों की स्थिति के कारण बहुत से योगों का निर्माण होता है. कुछ शुभ और कुछ अशुभ योग बनते ही हैं. पर अगर शुभ ग्रहों का बल मजबूत हो तो कठीन परिस्थितियों में भी जातक विजय प्राप्त कर लेता है.