ज्योतिष के इतिहास में भास्कराचार्य का योगदान
ज्योतिष की इतिहास की पृष्ठभूमि में वराहमिहिर और ब्रह्मागुप्त के बाद भास्कराचार्य के समान प्रभावशाली, सर्वगुणसम्पन्न दूसरा ज्योतिषशास्त्री नहीं हुआ है. इन्होने ज्योतिष की प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता से घर में ही प्राप्त की. भास्कराचार्य भारत के महान विद्वानों की श्रेणी में आते हैं जिनके ज्ञान और योग्यता को उनके कार्यों द्वारा जाना गया. (wccannabis.co)
भारत की विभूतियों में भास्कराचार्य का योगदान अमूल्य निधि की भांति ही है. भास्कराचार्य जी, गणित के विशेषज्ञ थे और साथ ही ज्योतिष के जानकार भी थे. इनके द्वारा बनाए गए नियमों को गणित और ज्योतिषशात्र में समस्याओं के हल करने के लिए उपयोग किया जाता है.
गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को उन्होंने अपने विचारों द्वारा इस प्रकार व्यक्त किया है – पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है, इस कारण आकाशीय पिण्ड पृथ्वी पर गिरते हैं’. इस सिद्धांत से यह स्पष्ट हुआ की पृथ्वी में मौजूद चुम्बकिए शक्ति द्वारा ही घटित होना संभव हो पाता है.
भास्कराचार्य के विषय में उनके द्वारा रचित ग्रंथों से ही महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है. भास्कराचार्य ब्राह्मण थे और इनका गौत्र शांडिल्य बताया गया है. इनका जन्म सह्याद्रि क्षेत्र के विज्जलविड नामक स्थान पर बताया जाता है. भास्कराचार्य से जुड़े शिलालेखों के विषय में भी पता चलता है जिनमें इनके जीवन के बारे में जानकारी मिलती है. इनमें से कुछ शिलालेखों द्वारा पता चलता है की भास्कराचार्य के पिता भी बहुत प्रकाण्ड पंडित और गणित के जानकार थे. अपने पिता से ही इन्हें गणित और ज्योतिष की शिक्षा प्राप्त हुई. भास्कराचार्य जी को भारत के मध्यकालीन समय का एक बहुत ही योग्य एवं श्रेष्ठ गणितज्ञ व ज्योतिषी कहा गया.
भास्काराचार्य रचित ज्योतिष ग्रन्थ
भास्काराचार्य जी ने ब्रह्मास्फूट सिद्धान्त को आधार मानते हुए, एक शास्त्र की रचना की, जो सिद्धान्तशिरोमणि के नाम से जाना जाता है. इनके द्वारा लिखे गए अन्य शास्त्र, लीलावती (Lilavati), बीजगणित, करणकुतूहल (Karana-kutuhala) और सर्वोतोभद्र ग्रन्थ (Sarvatobhadra Granth) है.
इनके द्वारा लिखे गए शस्त्रों से उ़स समय के सभी शास्त्री सहमति रखते थें. प्राचीन शास्त्रियों के साथ गणित के नियमों का संशोधन और बीजसंस्कार नाम की पुस्तक की रचना की. भास्काराचार्य जी न केवल एक प्रसिद्ध ज्योतिषी थें, बल्कि वे उत्तम श्रेणी के कवियों में से एक थे.
ज्योतिष् गणित में इन्होनें जिन मुख्य विषयों का विश्लेषण किया, उसमें सूर्यग्रहण का गणित स्पष्ट, क्रान्ति, चन्द्रकला साधन, मुहूर्तचिन्तामणि (Muhurtha Chintamani) और पीयूषधारा (Piyushdhara) नाम के टीका शास्त्रों में भी इनके द्वारा लिखे गये शास्त्रों का वर्णन मिलता है. यह माना जाता है, कि इन्होनें फलित पर एक पुस्तक की रचना की थी. परन्तु आज वह पुस्तक उपलब्ध नहीं है.
भास्काराचार्य और लीलावती गणित की स्थापना
भास्कराचार्य द्वारा लिखा गगा सिद्धांतशिरोमणी ग्रंथ है जिसका एक भाग लीलावती भी है. कहा जाता है कि इस ग्रंथ का नाम भास्कराचाय जी ने अपनी बेटी लीलावती के नाम पर रखा था. लीलावती गंथ में गणित के बहुत से नियमों और ज्योतिष से संबंधित अनेकों जानकारियों का उल्लेख मिलता है. ज्योतिष का एक महत्त्वपूर्ण भाग होता है गणित अत: इस गणित द्वारा ज्योतिष की अनेक बारीक गूढ़ रहस्यों को समझने में इस ग्रंथ ने बहुत सहायता प्रदान की है. इस महत्वपूर्ण रचना संस्कृत भाषा में मिलती है और काव्यात्मक शैली में श्लोकबद्ध है. सिद्धांतशिरोमणि के चार भाग हैं जिनमें लीलावती, बीजगणित, गोलाध्याय और ग्रहगणित आता है. लीलावती में अंकगणित का उल्लेख मिलता है.
लीलावती के विवाह के संदर्भ की कथा भी मिलती है जिसमें भास्कराचार्य को ज्ञात होता है की पुत्री को विवाह सुख नहीं मिल पाएगा. लेकिन वह अपनेज्ञान के आधार पर एक ऎसे मुहूर्त को प्राप्त करते हैं जिसमें विवाह किए जाने पर विवाह का सुख सदैव बना रहता है. किन्तु शायद भाग्य ने कुछ ओर ही निर्धारित कर रखा था अत: जब विवाह का समय आता है तो शुभ समय का पता नही चल पाता है और शुभ समय निकल जाने के कारण विवाह का सुख बाधित हो जाता है. इस कारण पुत्री के दुख को दूर करने के लिए वह अपनी पुत्री को गणित का ज्ञान देते हैं ओर जिससे प्रेरित हो कर लीलावती की रचना होती है.
भास्काराचार्य का योगदान
भास्कराचार्य ने बीजगणित को बहुत समृद्ध किया. उन्होंने जो संख्याएं नहीं निकाली जा सकती हैं उनके बारे में बताया, वर्ग एवं सारणियों का निर्माण किया. शून्य के विषय में विचार दिए, जिसमें शून्य की प्रकृति क्या होती है और शून्य का गुण क्या है इसके बारे में बताया. भास्कराचार्य ने कहा की जब कोई संख्या शून्य से विभक्त होती है तो अनंत हो जाती है और किसी संख्या और अनंत का जोड़ भी अंनत ही होगा. भास्कराचार्य जी ने दशमलव प्रणाली की विस्तार रुप में व्याख्या की.
गणिताध्याय नामक रचना में इन्होंने ग्रहों की गति को दर्शाया, इसके साथ ही काल गणना, दिशा का ज्ञान और स्थान से संबंधी कई रहस्यों को सुलझाने का प्रयास किया. इस में ग्रहों के उदय और अस्त होने की स्थिति, सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण संबंधित गणित का आधार प्रस्तुत किया. गोलाध्याय नामक रचना में ग्रहों की गति के सिधांत हैं और खगोल से जुड़े बातें हैं. इसके साथ ही ग्रहों के लिए उपयोग होने वाले यंत्रों का भी उल्लेख मिलता है.
कर्ण कौतुहल में ग्रहण के बारे में विचार मिलता है. चंद्र ग्रहण के बारे में कहते हैं कि चंद्रमा की छाया से सूर्य ग्रह होता है और पृथ्वी की छाया से चंद्र ग्रहण होता है. इसी प्रकार के अनेकों ज्योतिषीय और गणितिय नियम और सिद्धांतों को उन्होंने सिद्ध किया.