ऋक ज्योतिष-पोलिष सिद्धान्त-यजु ज्योतिष । Rika Astrology -History of Rika Astrology | Polish Siddhantha | Arthava Astrology । Yaju Astrology
ज्योतिष के आदिकाल से लेकर वर्तमान काल तक इसके सिद्धान्तों में अनेक परिवर्तन हुए. ऋक ज्योतिष ग्रन्थ में युग, आयन, ऋतु, मास, नक्षत्र आदि के विषय में और मुहूर्त का विस्तार से वर्णन किया गया है. परन्तु इसमें ग्रहों व राशियों का कोई वर्णन नहीं है. ज्योतिष से जुडे कुछ प्रसिद्ध ज्योतिषियों के अनुसार ऋषिपुत्र, भद्रबाहु और कालकाचार्य ने ग्रहों की स्थिति और पृ्थ्वी की गति के विषय में अनेक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया.
Rika Astrology Scripture
ऋक ज्योतिष काल मुख्यता 500 ईं. पूर्व का माना जाता है. इस काल के शास्त्रों में वेदांग ज्योतिष शास्त्र सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. ऋक ज्योतिष में युगसंबन्धी गणना, दिवस, ऋतु, अयन, मास और वर्षेश का उल्लेख् किया गया है.
इस समय के शास्त्रों में पंचवर्षात्मक युग के अयन, नक्षत्र, अयन, मास, अयन-तिथि, ऋतु प्रारम्भ, काल, योग, व्यतिपात, ध्रुवयोग, मुहूर्त प्रमाण, नक्षत्र देवता, उग्र, क्रूर नक्षत्र, अधिमास, दिनमान, प्रत्येक नक्षत्र, का भोग्यकाल, लग्नायन, कलादि का वर्णन मिलता है.
ऋक ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार उत्तरायन का प्रारम्भ आश्लेषा नक्षत्र से होता है. तथा दक्षिणायन का प्रारम्भ धनिष्ठा नक्षत्र में माना गया है. व युग का प्रथम अयन माघ माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में घनिष्ठा नक्षत्र से होता है.
Names of Rika Astrology Nakshatra(Constellations).
ऋक ज्योतिष में नक्षत्रों का नाम निम्न रुप से बताया गया है.
1 अश्चिनी नक्षत्र को "जौ" का नाम दिया गया है.
2. द्रा" आर्द्रा का नाम है.
3.ग: " सम्बोधन पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के लिए किया गया है.
4.खे - विशाखा नक्षत्र है.
5. श्वे- उत्तराषाढा नक्षत्र
6.हि: पूर्वाभाद्रपद
7. रो- रोहिणी
8. षा - आश्लेषा
9. चित-चित्रा
10. मू-मूला
11. शक-शतभिषा
12. ण्ये-भरणी
13 सू-पुनर्वसु
14. मा-उत्तराफाल्गुणी
15. धा- अनुराधा
16. न-श्रवण
17. रे-रेवती
18. मृ-मृ्गशिरा
19. घा-मघा
20. स्वा-स्वाति
21 पा-पूर्वाषाढा
22. अज-पूर्वाभाद्रपद
23. कृ-कृ्तिका
24. ष्य-पुष्य
25 हा-हस्त
26 जे-ज्येष्ठा
27- ष्ठा-घनिष्ठा
Yaju or Atharva Astrology- History of Astrology
यजु ज्योतिष और ऋक ज्योतिष में काफी हद तक समानता है. इन दोनों कालों में लिखे गये शास्त्रों के सिद्धान्तों का मूल आधार लगभग एक समान ही है. यजु ज्योतिष मुख्यता गणित ज्योतिष शास्त्र न होकर फलित ज्योतिष शास्त्रों में से है. इस काल में जो भी ज्योतिष के शास्त्र लिखे गये है, उन सभी में तिथि, नक्षत्र, करण, योग, तारा और चन्द्रमा के बल का निर्धारण यजु ज्योतिष काल में किया गया. इस ग्रन्थ में तारा-सम्पत, विपत्त आदि का वर्गीकरण मिलता है.
Arthava Astrology | Period Astrology Study.
इस काल में लिखे गये शास्त्रों में तिथि, नक्षत्र के चरण, वार भेद, करण के सोलह गुण कहे गये है. योग बतीस बताये गए है. तारा विचार 8, और चन्द्र के सौ भाग किये गये है. इस समय के शास्त्रों के अनुसार सभी ग्रह चन्द्रमा के बल के अनुसार अपना फल देते है.
इसकाल के ज्योतिषियों को वार-वाराधिपति, वर्ष और वर्षेश की जानकारी थी. इन सभी का इस अवधि में सूक्ष्म विवेचन किया गया था. इसके अतिरिक्त ये ज्योतिषि व्यक्ति के जन्म नक्षत्र के आधार पर उसके रुप-रंग और व्यक्तित्व का विश्लेषण करने में कुशल थे.
नक्षत्रों का वर्गीकरण भी एक विशेष प्रकार से किया जाता था. यह कुछ कुछ आज के तारा विचार के समान था. नक्षत्र वर्गीकरण का उल्लेख निम्न किया गया है.
Classification List of Arthava Constellations.(Nakshatra)
जन्म नक्षत्र, संपत्कर नक्षत्र, विपत्कर नक्षत्र, क्षेमकर नक्षत्र, प्रत्वर नक्षत्र, साधक नक्षत्र, निधन नक्षत्र, मित्र नक्षत्र, परममित्र नक्षत्र, कर्म नक्षत्र, संपत्कर नक्षत्र, विपत्कर नक्षत्र, क्षेमकर नक्षत्र, प्रत्वर नक्षत्र, साधक नक्षत्र, निधन नक्षत्र, मित्र नक्षत्र, परममित्र नक्षत्र, आधान नक्षत्र, संपत्कर नक्षत्र, विपत्कर नक्षत्र, क्षेमकर नक्षत्र, प्रत्वर नक्षत्र, साधक नक्षत्र, निधन नक्षत्र, मित्र नक्षत्र, परममित्र नक्षत्र.