चिकित्सा ज्योतिष में ग्रहों की भूमिका | Role of Planets in Medical Astrology | Significance of Planets in Medical Astrology
सभी ग्रह शरीर के किसी न किसी अंग का प्रतिनिधित्व करते हैं. नौ ग्रहों में से जब कोई भी ग्रह पीड़ित होकर लग्न, लग्नेश, षष्ठम भाव अथवा अष्टम भाव से सम्बन्ध बनाता है. तो ग्रह से संबंधित अंग रोग प्रभावित हो सकता है. प्रत्येक ग्रह के पीड़ित रहने पर या कोई ग्रह छठे स्थान का स्वामी होकर लग्न भाव या किसी अन्य भाव में कौन सी बीमारी दे सकता है. आइये समझते हैं,
सूर्य | The Sun
ह्रदय, पेट. पित्त , दायीं आँख, घाव, जलने का घाव, गिरना, रक्त प्रवाह में बाधा आदि.
चंद्र | The Moon
शरीर के तरल पदार्थ, रक्त बायीं आँख, छाती, दिमागी परेशानी, महिलाओं में मासिक चक्र.
मंगल | The Mars
सिर, जानवरों द्वारा काटना, दुर्घटना, जलना, घाव, शल्य क्रिया, आपरेशन, उच्च रक्तचाप, गर्भपात इत्यादि.
बुध | The Mercury
गला, नाक, कान, फेफड़े, आवाज, बुरे सपने
गुरु | The Jupiter
यकृत शरीर में चर्बी, मधुमेह, शुक्र चिरकालीन बीमारियां , कान इत्यादि,
शुक्र | The Venus
मूत्र में जलन, गुप्त रोग, आँख, आंतें , अपेंडिक्स, मधुमेह, मूत्राशय में पथरी;
शनि | The Saturn
पांव, पंजे की नसे, लसीका तंत्र, लकवा, उदासी, थकान.
राहू | The Rahu
हड्डियां , जहर फैलाना, सर्प दंश, क्रानिक बीमारियां, डर आदि.
केतु | The Ketu
हकलाना, पहचानने में दिक्कत, आंत, परजीवी इत्यादि;
किसी भी रोगी जातक की कुंडली का विश्लेषण करते समय सबसे पहले ३, ६, ८ स्थान के ग्रहों की शक्ति का आंकलन करना चाहिए.
यह ज्ञात होने पर की भविष्य में कौन सी बीमारी होने वाली है. यह रोग होने की संभावना है. उससे बचने के उपाय रोगी को बताने चाहिए. साथ ही किसी योग्य चिकित्सक की सलाह से रोग निदान कराने की भी सलाह देनी चाहिए.
चिकित्सा ज्योतिष के में कुछ नियम वेद – पुराणों में भी दिए गए हैं. विष्णु वेद-पुराण में कहा गया है की भोजन करते समय अपना मुख पूर्व दिशा, उतर दिशा में रखना चाहिए. उससे पाचन क्रिया उत्तम रहती है.
जन्म पत्रिका और हस्त रेखाओं का अध्ययन करने के बाद ज्योतिषी यह बताने का प्रयत्न करते हैं की उक्त व्यक्ति को भविष्य में कौन सी बीमारी होने की संभावना है. जैसे जन्म कुण्डली में तुला लग्न या राशि पीड़ित हो तो व्यक्ति कि कमर के निचले वाले भाग में समस्या होने की संभावना रहती है. जन्मपत्रिका में बीमारी का घर छठवां स्थान माना जाता है और अष्टम स्थान आयु स्थान है.
तृतीय स्थान अष्टम से अष्टम होने से यह स्थान भी बीमारी के प्रकार की और इंगित करता है. जैसे तृतीय स्थान में चंद्र पीड़ित हो तो टी.बी. की बीमारी की संभावना रहती है और तृतीय स्थान में शुक्र पीड़ित हो तो मधुमेह की संभावना रहती है.
उपरोक्त ग्रहों में जो ग्रह छठे भाव का स्वामी हो या छठे भाव के स्वामी से युति सम्बन्ध बनाए उस ग्रह की दशा में रोग होने के योग बनते हैं. छठे भाव के स्वामी का सम्बन्ध लग्न भाव लग्नेश या अष्टमेश से होना स्वास्थ्य के पक्ष से शुभ नहीं माना जाता है. (jordan-anwar.com)
जब छठे भाव का स्वामी एकादश भाव में हो तो रोग अधिक होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. इसी प्रकार छठे भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तो व्यक्ति को लंबी अवधि के रोग होने की अधिक संभावनाएं रहती हैं.
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