जैमिनी ज्योतिष में अनेक दशाओं का प्रयोग किया जाता है. उनमें से एक प्रमुख दशा स्थिर दशा भी है. इस दशा का विश्लेषण अप्रिय घटनाओं, स्वास्थ्य तथा जीवन की नकारात्मक जानकारियों के लिए किया जाता है. यह जैमिनी की बहुत ही सरल दशा है. इस दशा से भी

हिन्दू धर्म में विवाह करने से पूर्व वर-वधू दोनों की कुण्डलियों का मिलान किया जाता है. कुण्डलियों के इस मिलन को अष्टकूट मिलान के नाम से जाना जाता है. कुण्डली मिलान का प्रचलन उत्तरी भारत और दक्षिण भारत दोनों में ही मुख्य रुप से देखा जा सकता

त्रयोदशी तिथि – हिन्दू कैलेण्डर तिथि त्रयोदशी तिथि हिन्दु माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों समय पर आती है. अन्य तिथियों की भांति ही इस तिथि का भी अपना एक अलग महत्व रहा है. इस तिथि का मुहूर्त पंचाग और पर्व इत्यादि सभी में एक स्थान

चन्द्र प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ में सूर्य और चन्द्र दोनों का वर्णन किया गया है. चन्द्र प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ विशेष रुप से "छाया साधना" पर आधारित है. इस ग्रन्थ में 25 प्रकार की छाया बताई गई है. इन छायाओं का विश्लेषण कर व्यक्ति के भविष्य का ज्योतिष

वसुमान योग बुध, गुरु, शुक्र लग्न या चन्द्रमा से तीसरे, छठे, दशवें, ग्यारहवें भाव में हो, तो यह योग बनता है. वसुमान योग व्यक्ति को अत्यधिक धनवान बनाता है. इस योग से युक्त व्यक्ति बुद्धिमान, बौद्धिक रुप से गुणवान होता है. व्यक्ति को अपने

जैमिनी चर दशा में राशि बल के बाद ग्रहों का बल ज्ञात किया जाता है. ग्रह बल में भी तीन प्रकार के बलों का आंकलन किया जाता है. मूल त्रिकोणादि बल, अंश बल तथा केन्द्रादि बल यह तीन प्रकार के ग्रह बल हैं. तीनों बलों के बारे में विस्तार से बताया

11 करणों में तैतिल करण तीसरे क्रम में आता है. तैतिल करण को मिलाकर कुल 11 करण है. ज्योतिष का मुख्य भाग समझने जाने वाले पंचाग ज्ञात करने के लिए करण की गणना कि जाती है. विभिन्न कार्यो के लिए शुभ मुहूर्त निकालने के लिए भी पंचाग प्रयोग किया

दशमाँश कुण्डली या D-10 | Dashmansha Kundali or D-10 यह कुण्डली व्यवसाय की सफलता तथा असफलताओं के लिए देखी जाती है. इस कुण्डली से इस बात का आंकलन किया जाता है कि जातक का व्यवसाय कैसा होगा. वह अधिक समय तक एक ही व्यवसाय में रहेगा या बार-बार

रोग संबंधी प्रश्न |Disease Related Question जब किसी व्यक्ति विशेष की सेहत या स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव चल रहा हो और उसे स्वास्थ्य लाभ ना हो रहा हो तब वह हारकर ज्योतिषी का सहारा लेता है. कई बार रोगी अति कमजोर होता है और उसके स्थान पर

दशम भाव कर्मस्थान है. यह भाव व्यक्ति के जीवनयापन का साधन मात्र है. इस भाव से व्यक्ति की प्रख्याति देखी जाती है. दशम भाव व्यक्ति का व्यवसाय दर्शाता है. दशम भाव में चर राशि होने पर व्यक्ति की महत्वकांक्षाएं प्रकट होती है. उसे आजीविका के

यह उपरत्न जिप्सम की एक किस्म है. प्राचीन समय में मिस्त्र के लोगों द्वारा इसका उपयोग किया जाता था. यह प्रकृति में पाये जाने वाले सबसे अधिक नर्म पत्थरों में से एक है. इसलिए इसे गहनों के साथ मूर्त्तिकला में भी इस्तेमाल किया जाता है. यह

बुध रत्न पन्ना को बुद्धि विकास और सौन्दर्य वृ्द्धि के लिये धारण किया जाता है. इस रत्न के कई नाम है, जिनमें से कुछ नाम मरकत, हरित्मणि, गरूडागीर्ण, सौपर्णी आदि कहा जाता है. इस रत्न को धारण से व्यक्ति की स्मरणशक्ति की वृ्द्धि होती है. बौद्धिक

वैदिक ज्योतिष के अनुसार बुध की विशेषताओं में बुद्धिमता, शिक्षा, मित्र, व्यापार और व्यवसाय, गणित, वैज्ञानिक, ज्ञान प्राप्त करना, निपुणता, वाणी, प्रकाशक, छापने का कार्य, पढाने वाला, फूल, मामा और मामी, लेखविद्या, लिपिक, भतीजे, दत्तक पुत्र,

कर्क राशि भचक्र की चौथी राशि, इस राशि के व्यक्ति स्वभाव से भावुक प्रकृ्ति के होते है. भावनाओं के प्रभाव में बहकर बडे-बडे निर्णय ले लेना इनके लिए कोई कठिन नहीं है. इस राशि के व्यक्ति जिन के मित्र बन जायें, तो मित्रों के लिए जान तक निछावर

गुरुवार का व्रत विशेष रुप से विवाह मार्ग की बाधाओं में कमी करने के लिये किया जाता है. देव गुरु वृ्हस्पति धन के कारक ग्रह है, इसलिये इस दिन माता लक्ष्मी जी की पूजा उपासना करने से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है. जिन व्यक्तियों की

ऋषि कश्यप का नाम, भारत के वैदिक ज्योतिष काल में सम्मान एक साथ लिया जाता है. ऋषि कश्यप नें गौत्र रीति की प्रारम्भ करने वाले आठ ऋषियों में से एक थे. विवाह करते समय वर-वधू का एक ही गौत्र का होने पर दोनों का विवाह करना वर्जित होता है. विवाह के

इस उपरत्न को देखकर कई लोगों को जेड उपरत्न का भ्रम हो जाता है. इसलिए इसका ध्यानपूर्वक अध्ययन आवश्यक है. इसका रंग द्रव्य निकिल है. इस उपरत्न के बडे़ आकार के पत्थर प्राय: कोमल तथा हल्के रंग के होते हैं. इस उपरत्न को गर्म करने पर या अधिक देर

वैदिक ज्योतिष का आधार 9 ग्रह, 12 राशियां व 27 नक्षत्र है. इन्हीं नौ ग्रहों म्रें स्रे एक ग्रह है, जिसे गुरु या वृ्हस्पति ग्रह् के नाम से जाना जाता है. ज्योतिष के 9 ग्रहों में से गुरु ग्रह को सबसे अधिक शुभ ग्रह माना गया है. गुरु की कारक

अमावस्या तिथि अंधेरे पक्ष को दर्शाती है. यह वह समय होता है जब अंधकार बहुत अधिक गहन होता है. इस तिथि के दौरान घर की चौखट, चौराहे, नदी, तलाब इत्यादि स्थानों पर दीपक जला कर प्रकाश का संचार करने की प्रथा प्राचीन काल से ही चली आ रही है. इस

सभी ग्रह शरीर के किसी न किसी अंग का प्रतिनिधित्व करते हैं. नौ ग्रहों में से जब कोई भी ग्रह पीड़ित होकर लग्न, लग्नेश, षष्ठम भाव अथवा अष्टम भाव से सम्बन्ध बनाता है. तो ग्रह से संबंधित अंग रोग प्रभावित हो सकता है. प्रत्येक ग्रह के पीड़ित रहने