ज्योतिष के प्रमुख 18 ऋषियों में गर्ग ऋषि का नाम भी आता है. ऋषि गर्ग ने ज्योतिष के क्षेत्र में आयुर्वेद और वास्तुशास्त्र पर महत्वपूर्ण कार्य किया. गर्ग पुराण में ज्योतिष के मुख्य नियमों का उल्लेख मिलता है. ज्योतिष शास्त्र के 6 भागों पर गर्ग

ज्योतिष में सूर्य को पिता का कारक कहा गया है. इसके साथ सूर्य आत्मा के कारक ग्रह है. व्यक्ति की आजीविका में सूर्य सरकारी पद का प्रतिनिधित्व करता है. व्यक्ति को सिद्धान्तवादी बनाता है. इसके अतिरिक्त सूर्य कार्यक्षेत्र में कठोर अनुशासन

जीवन में हर किसी की जिंदगी में किसी न किसी बात को लेकर कोई न कोई परेशानी लगी ही रहती है. परिवार, पैसा, प्यार ऎसे न जाने कितने कारण हैं जो कारण व्यक्ति की लाईफ में लड़ाई झगड़े का कारण बनते हैं. कई बार कुछ विवाद इतने लम्बे खिंच जाते हैं

प्रश्न कुण्डली ज्योतिष शास्त्र का एक महत्वपूर्ण भाग है. यह कुण्डली जातक द्वारा पूछे प्रश्न पर आधारित होती है. जिस समय किसी व्यक्ति विशेष द्वारा कोई प्रश्न किया जाता है उसी समय की एक कुण्डली बना ली जाती है. इसे ही प्रश्न कुण्डली कहा गया है.

ज्योतिष में अनेकों योग हैं और इन योगों की संख्या भी हजारों में है. ऎसे में कोई न कोई शुभ या अशुभ योग जातक की कुण्डली में बनता ही है. ये योग जातक के प्रारब्ध का ही प्रभाव होता हैं जो आने वाले जीवन को भी प्रभावित करते हैं. इन योगों द्वारा

ज्योतिष शास्त्र में 9 ग्रह, 27 नक्षत्र और 12 राशियों को स्थान दिया गया है. ब्रह्माण्ड में एक नई राशि के आगमन की खबर आज सभी की हैरानी का सबब बनी हुई है. राशि परिवार में एक नए सदस्य के बढने पर सभी अधिक आश्चर्य प्राचीन ज्योतिषियों को हो रहा

ऋषि भृगु उन 18 ऋषियों में से एक है. जिन्होने ज्योतिष का प्रादुर्भाव किया था. ऋषि भृ्गु के द्वारा लिखी गई भृ्गु संहिता ज्योतिष के क्षेत्र में माने जाने वाले बहुमूल्य ग्रन्थों में से एक है. भृ्गु संहिता के विषय में यह मान्यता है, कि इस

चतुर्विशांश कुण्डली या D-24 | Chaturvishansha Kundali or D-24 इस कुण्डली का अध्ययन शिक्षा, दीक्षा, विद्या तथा ज्ञान के लिए किया जाता है. शिक्षा में सफलता तथा बाधाओं को देखा जाता है. इस वर्ग को सिद्धांश भी कहते हैं. इस वर्ग कुण्डली में 30

ज्योतिष का आदिकाल ईं. पू़. 501 से लेकर ई़. 500 तक माना जाता है. यह वह काल था, जिसमें वेदांग के छ: अंग अर्थात शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, ज्योतिष और छन्द पर कार्य हुआ. इस समयावधि में ज्योतिष का संम्पूर्ण प्रसार और विकास हुआ. ज्योतिष

कई व्यक्ति विवाह उपरान्त पति-पत्नी में संबंध कैसे रहेंगें, इसके बारे में भी जानना चाहते हैं. वर्तमान समय में बहुत से जातकों का यह प्रश्न अब आम हो गया है कि मेरा विवाहित जीवन कैसा रहेगा अथवा मेरे बच्चे का वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा. इसके लिए

मकर राशि के व्यक्ति पूर्ण रुप से व्यवहारिक होते है. इनके इरादे मजबूते होते है. इस राशि के व्यक्तियों में आगे बढने की उच्च महत्वकांक्षा होती है. मकर राशि के व्यक्ति विश्वसनीय होते है. समझदार, अनुशासन में रहने वाले होते है. कठोर परिश्रम करने

रेड जेस्पर जिसे हिन्दी में लाल सूर्यकान्तमणि भी कहा जाता है. माणिक्य का यह उपरत्न अपारदर्शी होता है. माणिक्य के सभी उपरत्नों में रेड जेस्पर सबसे अधिक बिकता है और सबसे अधिक लाभ प्रदान करने वाला होता है. इस उपरत्न में कुछ दैवीय शक्तियाँ मानी

इस उपरत्न की सर्वप्रथम खोज अमेरीका के कैलीफोर्निया में 1902 में हुई थी. इस उपरत्न का नाम जॉर्ज एफ. कुंज(George F. Kunz) के नाम पर रखा गया है. यह उपरत्न अधिकाँशत: बडे़ आकार में पाया जाता है. यह 8 कैरेट तक पाया जाता है. छोटे आकार में अच्छी

ऋषि नारद भगवान श्री विष्णु के परमभक्त के रुप में जाने जाते है. श्री नारद जी के द्वारा लिखा गया नारदीय ज्योतिष, ज्योतिष के क्षेत्र की कई जिज्ञासा शान्त करता है. इसके अतिरिक्त इन्होने वैष्णव पुराण की भी रचना की. नारद पुराण की विषय में यह

एक पाश्चात्य ज्योतिषी के अनुसार भचक्र में राशियों की संख्या 12 से 13 हों, गई है. पृ्थ्वी के अपनी धूरी में होने वाले बदलाव ने राशियों में एक नई राशि को जोड दिया है. वैदिक ज्योतिष के फलित का आधार प्रारम्भिक काल से सूर्य न होकर चन्द्र रहा है.

हिन्दू मास चन्द्र तिथियों से मिलकर बना होता है और चन्द्र मास के दो पक्ष होते है, एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष, दोनों ही पक्षों में चतुर्थी तिथि आती है. इन दोनों पक्षों की चतुर्थी क्रमश: शुक्ल पक्ष की चतुर्थी व कृ्ष्ण पक्ष की चतुर्थी

जन्म कुण्डली में जब चंद्रमा से दूसरे भाव और बारहवें भाव में कोई ग्रह नहीं होता है तो यह स्थिति केमद्रूम योग बनाती है. केमद्रूम योग खराब योगों की श्रेणी में आता है. इस योग के कारण जातक मानसिक और शारीरिक रुप से दबाव की स्थिति झेलता है. यह

कुण्डली के लग्न भाव से क्रम से गिनने चतुर्थ स्थान में आने वाला भाव चतुर्थ भाव कहलाता है. चतुर्थ भाव माता, घरेलू खुशियां, भू-सम्पति, पैतृ्क भूमि, स्थिर-सम्पति, वाहन, नैतिक सदगुण, ईंमानदारी, निष्ठा, मित्र, शिक्षा, मानसिक शान्ति, सुख-सुविधा,

पिछले अध्याय में आपको बताया गया था कि जैमिनी चर दशा में वृश्चिक तथा कुम्भ राशि दशा की गणना बाकी अन्य राशियों से भिन्न होती है. इन दोनों राशियों की गणना के लिए कुछ विशेष नियम निर्धारित किए गए हैं. जो निम्नलिखित हैं :- वृश्चिक राशि की गणना

प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर के अनुसार लग्न, सूर्य अथवा चन्द्र में जो ग्रह सबसे अधिक बली हों, उस ग्रह से दशम भाव का स्वामी, नवाशं में जिस राशि में स्थित हों, उस राशि की दशा और गोचर में व्यक्ति को धनोपार्जन की प्राप्ति होती है. इसके