कई बार प्रश्नकर्त्ता को अपने शत्रुओं से भय रहता है. वह डरते हैं कि क्या शत्रु नुकसान पहुंचाएंगें? आजकल यह प्रश्न किसी भी सन्दर्भ में पूछा जा सकता है. यह प्रश्न प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष शत्रुओं के लिए भी पूछा जा सकता है. इस प्रश्न कुण्डली

पंचम भाव प्रेम भाव है, इसे शिक्षा का भाव भी कहा जाता है. इसके अतिरिक्त इस भाव को पणफर और कोण भाव भी कहा जाता है. पंचम भाव सन्तान, बुद्धिमता, बुद्धिमानी, सट्टेबाजी, प्रसिद्धि, पदवी, बुद्धि, भावनाएं, पहला गर्भाशय, अचानक धन-सम्पति की

कृष्णमूर्ती पद्धति की गणना नक्षत्रों पर आधारित होती है. प्रत्येक भाव के नक्षत्र तथा उपनक्षत्र स्वामी का अध्ययन सूक्ष्मता से किया जाता है. वैदिक ज्योतिष में परम्परागत प्रणली में लग्न भाव अर्थात प्रथम भाव से बहुत सी बातों का विचार किया जाता

27 नक्षत्रों की श्रेणी में रोहीणी नक्षत्र को महत्वपुर्ण स्थान प्राप्त है, क्योंकि इस नक्षत्र को चंद्रमा का सबसे प्रिय नक्षत्र माना गया है. इस नक्षत्र में विचण करते समय चंद्रमा की स्थिति बहुत ही अनुकूल मानी गई है. रोहिणी और चंद्रमा के संबंध

यह यह उपरत्न कई स्थानों पर सेलेस्टाईन के नाम से भी जाना जाता है. सेलेस्टाईट या सेलेस्टाईन दोनों ही शब्द लैटिन शब्द स्वर्ग(Heaven) और आकाश से बने है. कई विद्वान इस उपरत्न के नाम की उत्पत्ति लैटिन शब्द स्वर्ग से मानते हैं तो कई इसे लैटिन

रोग स्थान की जानकारी प्राप्त करने के योग्य होने के लिए यह समझना आवश्यक है कि शरीर के विभिन्न अंग जन्मपत्री में किस प्रकार से निरुपित हैं. दुर्भाग्य से शास्त्रीय ग्रन्थ इस दिशा में अल्प सूचनाएं ही प्रदान करते हैं. सामान्यत: वास्तविक प्रयोग

हिन्दूओं का एक अन्य पवित्र माह माघ मास है, इस माह का महत्व धार्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है. इस माह के दौरान हर दिन किसी न किसी रुप में पूजा, पाठ, जप, तप, दान इत्यादि की महत्ता को विस्तार रुप से बताया गया है. इस माह में आने वाले

इस उपरत्न को हिन्दी में जमुनिया कहा जाता है. कई स्थानों पर इसे बिल्लौर के नाम से भी जाना जाता है. इसे नीलम रत्न के उपरत्न के रुप में धारण किया जा सकता है. प्रकृति में यह उपरत्न प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. यह उपरत्न रंगहीन अवस्था में

मंगल रत्न मूंगा को प्रवाल, विद्रुम, लतामणी, रक्तांग आदि नामों से जाना जाता है. मूंगा धारण करने से व्यक्ति में साहस, पराक्रम, धीरज, शौर्य भाव की वृ्द्धि होती हे. यह रत्न मुकदमा, जेल आदि परेशानियों में भी कमी करने में सहयोग करता है. मूंगा

मथुरा और वृ्न्दावन में भगवान श्री कृ्ष्ण से जुडे अनेक धार्मिक स्थल है. किसी एक का स्मरण करों तो दूसरे का ध्यान स्वत: ही आ जाता है. मथुरा के इन्हीं मुख्य धार्मिक स्थलों में गिरिराज धाम का नाम आता है(Giriraj Dham is one of the main religious

सावन माह व्यक्ति को कई प्रकार के संदेश देता है. सावन के माह में आसमान पर हर समय काली घटाएँ छाई रहती हैं. यह घटाएँ जब बरसती है तब गरमी से मनुष्य को राह्त मिलती है. यह माह हमें जीवन की मुश्किल परिस्थितियों से जूझने का संदेश देता है. बारिश से

उभयचरी योग सूर्यादि योगों में से एक योग है. यह योग शुभ योग है. सूर्यादि योगों की यह विशेषता है, कि इन योगों राहू-केतु और चन्द्र ग्रह को शामिल नहीं किया जाता है. यहां तक की अगर उभयचरी योग बनते समय चन्द्र भी योग बनाने वाले ग्रहों के साथ युति

चन्द्र मास के दोनों पक्षों की छठी तिथि, षष्टी तिथि कहलाती है. शुक्ल पक्ष में आने वाली तिथि शुक्ल पक्ष की षष्टी तथा कृष्ण पक्ष में आने वाली कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि कहलाती है. षष्ठी तिथि के स्वामी भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र स्कन्द

प्रश्न कुण्डली के लग्न में ग्रहों की स्थिति देखी जाती है कि क्या है. शुभ ग्रह लग्न को प्रभावित कर रहें हैं अथवा पाप ग्रहों का प्रभाव लग्न पर अधिक पड़ रहा है. आइए इसे विस्तार से समझें. प्रश्न कुण्डली के लग्न में शुभ ग्रहों का प्रभाव |

यह उपरत्न ताँबा अयस्क के आक्सीकरण से बनता है. समय के साथ यह उपरत्न जैसे-जैसे पानी को अवशोषित करता है, तब यह मैलाकाइट खनिज में बदल जाता है. इस प्रक्रिया के फलस्वरुप एजुराइट तथा मैलाकाइट दोनों ही एक साथ पाए जाते हैं. एजुराइट ताँबे की खानों

नभस योग की श्रेणी में यव नामक योग भी आता है. यव योग भी एक शुभ योगों के अंतर्गत स्थान पाता है. इस योग के प्रभाव का जातक के जीवन में मिला-जुला प्रभाव देखने को मिलता है. यव योग होने पर व्यक्ति की कुण्डली में ग्रह उडते हुए पक्षी की आकृति में

सुनफा योग चन्द्र से बनने वाला योग है. चन्द्र से बनने वाले शुभ- अशुभ योगों में सुनफा योग को शामिल किया जाता है. चन्द से बनने वाले योग इसलिए भी विशेष माने गये है, क्योकि चन्द्र मन का कारक ग्रह है. और अपनी गति के कारण अन्य ग्रहों की तुलना में

इस उपरत्न में कई रंग दिखाई देते हैं. यह एक पारभासी उपरत्न है. यह उपरत्न प्राकृतिक रुप में काले तथा भूरे रंग में पाया जाता है. इसकी आभा इसकी काट पर निर्भर करती है. इसकी काट और छाँट के आधार पर यह एक ओर से हरा तो दूसरी ओर से यह लाल दिखाई देता

फिल्मी जगत में कई कलाकार सफल होते हैं तो कई असफलता का मुँह देखते हैं. जो सफल होते हैं उनकी सफलता का रहस्य उनकी कुण्डली में छिपा होता है. ज्योतिष के संसार में ज्योतिषियों ने फिल्मों में सफलता प्राप्त करने के लिए कुछ नियम निर्धारित किए हैं.

आषाढ माह हिन्दू पंचाग का चौथा माह है. यह बरसात के आगमन और मौसम के बदलाव को दिखाता है. आषाढ़ मास भगवान विष्णु को बहुत प्रिय रहा है. इस माह में अनेकों उत्सव एवं पर्वों का आयोजन होता है. इस माह में भी अन्य माह की भांति दान का विशेष महत्व