ज्योतिष शास्त्र मे शनि का संबंध धीमी गति और लम्बे इंतजार से रहा है. शनि को एक पाप ग्रह के रुप में भी चिन्हित किया जाता रहा है. शनि को बुजुर्ग और अलगाववादी ग्रह कहा गया है. शनि मंद गति से चलने वाला ग्रह है और यह एक राशि में ढाई वर्ष तक रहता
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अन्य ग्रहों की तरह शुक्र भी व्यक्ति के निजी जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह शुभ ग्रह प्रेम जीवन में सुख और आनंद प्रदान करने वाला है. शुक्र विवाह, प्रेम संबंधों और व्यभिचार का भी कारक है. व्यक्ति की जन्म कुंडली में शुक्र की स्थिति
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धनु संक्रांति सूर्य का धनु राशि प्रवेश समय है. इस समय पर सूर्य वृश्चिक राशि से निकल कर धनु राशि में प्रवेश करते हैं और एक माह धनु राशि में गोचरस्थ होंगे. इस गोचरकाल के समय को खर मास के नाम से भी जाना जाता रहा है. पौराणिक कथाओं के अनुसार यह
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शनि और चंद्रमा जब भी एक साथ होते है तो इनका युति योग कुछ मामलों में नकारात्मक स्थिति को ही दिखाता है. यह बहुत अनुकूल योग नहीं माना जाता है किंतु इस योग भी अपना सकारात्मक पक्ष होता है. वैसे इन दोनों ग्रहों के मध्य का भेद इनके गुणों में ही
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शनि एक सबसे धीमी गति के ग्रह हैं. यह कर्मों के अनुरुप व्यक्ति को उसका फल प्रदान करते हैं इसलिए इन्हें न्यायकर्ता और दण्डनायक भी कहा जाता है. शनि का जीवन पर प्रभाव व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक, आर्थिक हर तरह से प्रभावित करने वाला होता है. शनि
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कुंभ राशि में बुध ग्रह का होना बहुत सी विशेषताओं को लिए होता है. कुम्भ की विशेषताओं में बुद्धि, रचनात्मकता और परिवर्तन की इच्छा शक्ति शामिल होती है. कुम्भ राशि का दुनिया पर एक बड़ा प्रभाव पड़ता है. यह सुधार की तलाश करने और दूसरों की मदद
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ज्योतिष में कई तरह के योग ऎसे हैं जो जीवन में भाग्य के निर्माण के लिए बाधा का कार्य करने वाले होते हैं इन्ही में से एक अमावस्या दोष के रुप में जाना जाता है. इस दोष का प्रभाव व्यक्ति के भविष्य निर्माण में व्यवधानों का कारक भी बन जाता है. कई
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पंचांग निर्माण में ग्रहों एवं समय गणना के आधार पर कई तरह के योग एवं कालों का विभाजन संभव हो पाता है. इस में एक विशेष काल की गणना बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है जिसे राहुकाल के नाम से जाना जाता है. सामान्य रुप से राहु काल को एक खराब समय के रुप
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साढ़े साती से तात्पर्य साढ़े सात साल की अवधि से है जिसमें शनि तीन राशियों, चंद्र राशि, और एक राशि चंद्रमा से पहले और एक उसके बाद में चलता है. साढ़े साती तब शुरू होती है जब शनि जन्म चंद्र राशि से बारहवीं राशि में प्रवेश करता है और तब समाप्त
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जन्म कुंडली में ग्रह भाव और राशि का प्रभाव काफी महत्वपूर्ण होता है. ग्रहों के क्षेत्र में कारक तत्वों का आधार ही व्यक्ति के लिए विशेष परिणाम देने वाला होता है. ग्रहों में उनका दिशा बल भी बहुत कार्य करता है. कमजोर ग्रह भी जब दिशा बल में
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ज्योतिष में कर्म की अवधारणा काफी गहराई से समाहित है. यह एक कठिन अवधारणा है लेकिन जब कुंडली में इसे देखते हैं, तो पाते हैं की ये जातक के कर्म एवं उससे मिलने वाले परिणामों का विशेष संबंध दर्शाती है. कुंडली का दसवां भाव कर्म का भाव है. जबकि
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राहु की महादशा लोगों के जीवन को कई अलग-अलग तरह से प्रभावित कर सकती है. यह कुछ के लिए अच्छे तो बहुतों के लिए खराब हो सकती है. राहु दशा के फल शुभ होंगे या अशुभ, यह पूरी तरह से राहु के कुंडली में स्थिति के अनुसार तय होता है, इसी के साथ अन्य
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अपने करियर में जब कोई व्यक्ति चिकित्सा से जुड़े कार्य को चुनता है तो ऎसा होना उसकी कुंडली के कुछ विशेष योगों के द्वारा ही संभव हो पाता है. आज के समय में चिकित्सा के क्षेत्र में इतनी अधिक शाखाएं हैं जिन्हें लेकर कई तरह के ज्योतिष नियम काम
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ज्योतिष शास्त्र जन्म कुंडली का विश्लेषण में बहुत सी चीजों पर आधारित होता है. कुंडली में कुछ स्थान शुभ होते हैं तो कुछ स्थान अशुभ माने जाते हैं. शुभता एवं शुभता की कमी के कारण ग्रहों का असर काफी गहरे प्रभाव डालने वाला होता है. जन्म कुंडली
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घर खरीदने का योग कब होगा आपके लिए पूरा घर खरीदने की इच्छा सभी के दिल में होती है, मन में व्यक्ति के विचार अपने आशियाने की इच्छा को दिखाने वाले होते हैं. इस दुनिया में हर व्यक्ति घर का मालिक होने या संपत्ति का मालिक होने की इच्छा रखता है.
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ज्योतिष शास्त्र में शुक्र को प्रेम और विलासिता का ग्रह माना गया है. जबकि पश्चिमी ज्योतिष में शुक्र को एक स्त्री के रूप में चित्रित किया जाता है. वैदिक ज्योतिष अनुसार शुक्र ग्रह का संबंध शुक्राचार्य हैं, जो दैत्यों के गुरु हैं. शुक्र को एक
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सिंह लग्न के लिए दूसरा और सातवां भाव मारक भाव कहलाता है. सिंह लग्न के लिए, द्वितीय भाव में पड़ने वाली राशि कन्या और सातवें भाव में पड़ने वाली कुंभ राशि मारकेश का स्वामित्व पाती है. कन्या राशि का स्वामी बुध और कुंभ राशि का स्वामी शनि मारकेश
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कर्क लग्न के लिए मारक ग्रह और कब होता है मारक का असर कर्क लग्न के लिए यदि मारक ग्रह की बात की जाए तो कर्क लग्न के दूसरे भाव और सातवें भाव स्थान को मारक स्थान कहा जाएगा. अब कुंडली के दूसरे और सातवें भाव के स्वामी इसके लिए मारकेश की भूमिका
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रिश्तों और प्यार में नवग्रहों की भूमिका कैसे करती है सहायता जन्म कुंडली में रिश्तों एवं प्रेम कि स्थिति को जानने के लिए प्रत्येक ग्रह की विशेष भूमिका होती है. किसी व्यक्ति के जन्म के समय आकाश में ग्रहों की स्थिति का जो नक्शा होता है, वही
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जन्म कुंडली में शनि और चंद्र का एक साथ एक भाव में होना विष योग का निर्माण करता है. यह एक घातक योग होता है. इस योग के खराब असर अधिक देखने को मिलते हैं. जिस भाव में इस योग का निर्माण होता है उस भाव से जुड़े शुभ फल कमजोर हो जाते हैं. कुंडली