मंगल सिंह और शनि कुंभ राशि में मिलकर बनाएंगे समस्पतक योग
ज्योतिष शास्त्र कहता है कि मंगल और शनि के योग को अच्छा संकेत नहीं माना जाता है. इन दोनों का संयोग हर किसी के जीवन में कष्ट और संघर्ष लेकर आता है. मंगल ग्रह और शनि योग क अप्रभाव व्यक्ति की कुंडली के साथ साथ विश्व को प्रभावित करता है, इतना ही नहीं यह समाज में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले अचानक बदलावों को भी प्रभावित करती है. मंगल और शनि का समसप्तक तक योग जब जब बनता है इससे देश-दुनिया की सभी राशियों के लोगों के जीवन में निश्चित ही बदलाव देखने को मिलता है.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि और मंगल की युति का प्रभाव
सभी ग्रह समय-समय पर अपनी राशि बदलते रहते हैं. प्रत्येक ग्रह का प्रत्येक राशि पर भ्रमण करने का अलग-अलग समय होता है. कुछ अपना संकेत जल्दी बदल लेते हैं और कुछ लंबे समय तक एक ही स्थान पर बने रहते हैं. नौ ग्रहों में शनि ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जो एक राशि में कई दिनों तक रहता है. इसी प्रकार, वक्री अवस्था में ग्रह किसी न किसी समय एक-दूसरे से संबंधित हो जाते हैं, जिस प्रकार अभी मंगल और शनि युति बना रहे हैं. ज्योतिष के अनुसार मंगल और शनि दोनों को दुष्ट ग्रह कहा जाता है, जबकि मंगल को अहंकारी, क्रोधी और काले स्वभाव वाला माना जाता है.
दूसरी ओर, शनिदेव अपनी धीमी वक्री गति से राशियों पर गहरा प्रभाव डालते हैं, ये दोनों ग्रह अपनी उत्कृष्ट शक्ति से राशियों को अत्यधिक प्रभावित करते हैं. ये ग्रह ऊर्जावान कार्रवाई, अति आत्मविश्वास और अहंकार के नेता हैं. शनि और मंगल वास्तव में एक दूसरे के शत्रु हैं. शनि मृत्यु का सूचक है और मंगल रक्त का सूचक है; इन दोनों ग्रहों का मिलन स्पष्ट रूप से व्यक्ति के जीवन में बहुत सारी परेशानियों को आमंत्रित करता है.
कुंडली के अनुसार शनि-मंगल समस्पतक योग का प्रभाव
कुंडली में शनि और मंगल की स्थिति का बहुत महत्व होता है. जन्म कुंडली में यदि शनि और मंगल एक साथ हों तो यह बिल्कुल भी शुभ संकेत नहीं है. वक्री अवस्था में भी कुछ ऐसे संयोग बनते हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि इनका राशियों पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है. ये प्रतिद्वंद्वी ग्रह हैं और इन्हें किसी भी राशि में एक साथ नहीं दिखना चाहिए. शनि और मंगल समस्पतक योग दुर्घटना और बदलाव की स्थिति पैदा करती है. समस्पतक योग कठिन समय और अलौकिक घटनाएँ लाता है. मंगल, शनि के समस्पतक योग के कारण परेशानियों, आपदाओं और दुर्घटनाओं की स्थिति देखने को मिल सकती है.
मंगल का सिंह राशि में होना और शनि का कुंभ राशि में होना दोनों के बीच समसप्तक नामक योग बनाता है। ज्योतिष शास्त्र में इस योग का प्रभाव विशेष फल देने वाला माना गया है। ग्रहों की समकोणीय स्थिति कई मायनों में खास हो सकती है. इसमें विभिन्न प्रकार के फलों को दर्शाया गया है। समसप्तक योग का अर्थ है जब ग्रह आमने-सामने हों। जब कोई ग्रह जिस स्थान पर स्थित होता है उस स्थान से सातवें भाव में बैठता है तो इस कारण दोनों ग्रहों के बीच परस्पर यह योग बनता है। समसप्तक योग शुभ ग्रहों की स्थिति में बनता हुआ देखा जा सकता है, फिर यह अशुभ ग्रहों की स्थिति में भी बनता है और कभी-कभी यह शुभ और अशुभ ग्रहों के मध्य भी बनता है।
यह योग सभी नौ ग्रहों के बीच बन सकता है, लेकिन जब इसका संबंध कुछ विशेष ग्रहों से हो तो यह अलग-अलग परिणाम देता है। उदाहरण के तौर पर यदि गुरु और चंद्रमा के बीच समसप्तक योग बनता है तो यह भी एक प्रकार का गजकेसरी योग होता है जिसे बहुत ही शुभ योगों में से एक माना जाता है। वहीं जब राहु और चंद्रमा के बीच समसप्तक योग बनता है तो यह ग्रहण नामक अशुभ स्थिति का संकेत होता है।
मंगल का सिंह राशि में बैठना और शनि का कुंभ राशि में होना समसप्तक योग का निर्माण करता है। शनि और मंगल दोनों को अशुभ ग्रहों की श्रेणी में रखा गया है। अब ऐसे में जब दो अशुभ ग्रह आमने-सामने होंगे तो स्वाभाविक है कि उनके परिणाम भी बेहद खास होंगे। जब भी ये दोनों ग्रह युति में या किसी अन्य रूप में एक साथ होते हैं तो अपना प्रभाव अवश्य दिखाते हैं, जिसका असर मन के साथ-साथ स्वभाव पर भी दिखाई देता है। इन आयोजनों का स्वरूप कई प्रकार से देखा जा सकता है। इस समय धार्मिक तौर पर कुछ बदलाव देखने को मिलेंगे। राजनीतिक दृष्टि से संघर्ष अधिक रहेगा। मौसम की कुछ घटनाओं का असर देश-दुनिया पर पड़ेगा, बदलाव स्वाभाविक रूप से देखने को मिलेंगे।
सिंह राशि में मंगल और कुम्भ राशि में शनि का प्रभाव
कोई भी योग किसी एक कारण से अपना प्रभाव नहीं दिखाता बल्कि उसमें कई पहलू काम करते हैं। यह युति विनाशकारी होती है क्योंकि इस मंगल शनि समसप्तक योग के समय बाबरी मस्जिद जैसी अत्यंत विनाशकारी घटना भी घटित होती है, लेकिन यह युति कई अन्य योग राशियों के प्रभाव से अपना प्रभाव कम या ज्यादा कर सकती है। ऐसे में मंगल सिंह राशि है जो कि अग्नि तत्व वाली राशि है और मंगल स्वयं भी अग्नि तत्व वाला ग्रह है तो इस कारण मंगल के गुणों में धर्म की वृद्धि होगी वहीं शनि का कुंभ राशि में होना भी नियंत्रण में रखने का काम करेगा स्थिति। ऐसे में घटनाएं तो घटेंगी ही, लेकिन उनके निपटारे की स्थिति भी सकारात्मक रूप से मददगार बन सकती है.