राहु से बनने वाला लक्ष्मी योग

कुंडली में धनयोग कई तरह से बनता है लेकिन जब बात आती है राहु की तो इसके कारण जब धन योग बनता है, तो उसके मायने काफी अलग दिखाई देते हैं. राहु के साथ गुरु की स्थिति को भी इस योग में देखा जाता है. राहु के साथ गुरु का योग ही बनाता है अष्ट लक्ष्मी योग. धन की अपार स्थिति का एक बेहद ही उत्तम उदाहरण है यह योग. राहु से बनने वाला ये धन योग जीवन में धन की प्राप्ति के हर स्वरुप को दर्शाने वाला होता है. लक्ष्मी प्राप्ति में इस योग में राहु की भूमिका बेहद विशेष रहती है. 

व्यक्ति का योग जीवन में धन से संबंधोत स्थिति से अलग आर्थिक मुद्दों से भी बचाव करता है. भौतिक सुविधाओं की प्राप्ति होती है.  यदि यह धनयोग बनता है तो कई कुंडलियों में व्यक्ति अपने श्रम से ही धनवान बनता है तो कई कुंडली ऐसी भी होती है जिनमें बिना किसी मेहनत के अकस्मात ही धन मिल जाता है. जब परिश्रम से अलग बात हो तो वह राहु से बने अष्ट लक्ष्मी योग को दिखाता है.  

कुंडली में धन योग की स्थिति कब बनती है 

कुण्डली में दूसरे भाव, पंचम भाव, नवम भाव और एकादश भाव का संबंध किसी न किसी रूप में यानी के दृष्टि, स्थिति, स्थान या लग्न के परिवर्तन से आपस में जुड़ा होता है. इसे धनयोग कहते हैं. अगर यह योग अच्छे भाव में बन रहा है तो आपको अच्छे परिणाम मिल पाते हैं. दशमेश और नवमेश का राशि परिवर्तन होने पर भी धनयोग बनता है, बशर्ते कि ये पाप पीड़ित न हों तो ये एक अच्छे धन योग दिखाने वाला होता है. 

जन्म कुंडली में एकादश भाव का स्वामी सूर्य या चंद्र हो तो जातक सरकारी नौकरी से आय प्राप्त कर सकता है. जन्म कुंडली एकादशेश का मजबूत होना अच्छे पद की प्राप्ति से धन योग देता है. कुण्डली में केन्द्र त्रिकोण भी बनाता है धन योग. धन योग गुरु हो तो धार्मिक कार्यों से धन का आगमन हो सकता है. यदि कुंडली में द्वितीय और लग्न के बीच परिवर्तन होता है, तो जीवन में अचानक धन लाभ हो सकता है. 

भाव और ग्रह की धन योग में भूमिका

कुंडली में भाव बताता है कि धन कैसे मिलेगा. दूसरा घर संचित धन को दर्शाता है, जबकि आठवां भाव अज्ञात धन को दर्शाता है. इस अज्ञात धन को प्राप्त करने की आवश्यकता राहु से पूरी होती है. जन्म कुंडली में कुछ योग मूल रूप से धन को प्रदान करने में मदद करते हैं. दूसरा भाव त्रिकोण या केंद्र भाव से जुड़ा होता है. प्रभाव लाभकारी होता है तो कुंडली में यह धन योग मनवांछित फल देता है. यदि दूसरे भाव को अष्टम भाव से शनि की दृष्टि मिल रही हो तो को अपने पूर्वजों से धन प्राप्त होने की प्रबल संभावना होती है. 

चौथा स्वामी पांचवें या नौवें स्वामी के साथ है और तब संबंधित घर में स्थित है. यह एक बहुत अच्छे धन योग को जन्म दे सकता है. यदि चंद्र दूसरे भाव में वृष राशि में स्थित है, तो यह शक्तिशाली धन योग बनाता है. लेकिन उसके लिए इसे शुभ ग्रहों से भी जोड़ा जाना चाहिए. दूसरी ओर, यदि चंद्र दुष्ट भाव के स्वामी में है और पाप ग्रहों से संबंध रखता है, तो खर्च अधिक होगा और आय कम होगी.

ग्रह और भाव धन योग के निर्माण में अपनी भूमिका निभाते हैं. लेकिन इनमें जब छठे और दशम भाव में बैठा राहु बृहस्पति धन योग बनाते हैं तो इसके कारण कई तरह के सकारात्मक परिणाम व्यक्ति को प्राप्त होते हैं. प्रभाव से ऐसे लोग राजनीति में खूब सफलता पाते हैं. साथ ही समाज में इनकी खूब प्रतिष्ठा होती है. 

राहु के साथ बृहस्पति से बना लक्ष्मी योग  

वैदिक ज्योतिष अनुसार इस योग का निर्माण राहु और बृहस्पति के द्वारा होता है. व्यक्ति की जन्म कुंडली में जब राहु कुंडली के छठे भाव में और गुरु दशम भाव में स्थित हों. इन योगों से अष्ट लक्ष्मी योग का निर्माण होता है. राहु के गुरु के साथ इस योग के द्वारा इन दोनों ग्रहों का प्रभाव एक दूसरे पर दृष्टि प्रभव से बनता है. यदि राहु की दृष्टि को देखा जाए तो इससे ये देख पाते हैं की राहु की दृष्टि गुरु पर और गुरु की दृष्टि राहु पर होने से इस योग की प्रबलता जीवन में कई तरह के सकारात्मक देने वाली होती है. 

अब यह योग जब बनता है तो यहां छठा भाव और दशम भाव दोनों ही महत्वपूर्ण होते हैं. इन दोनों का संगम दर्शाता है की व्यत्कि कार्य कुशलता के द्वारा ही अपने लिए अच्छे परिणाम पाने में सफल होता है. व्यक्ति अपने धन की प्राप्ति कई रुपों में कर पाता है. यह उसके कर्म के द्वारा उसे मिलता है. यह उसके प्रारब्ध के फल द्वारा भी उसे प्राप्त होता है. जीवन में उसके द्वारा किए जाने वाले कई शुभ एवं पाप कर्म दोनों ही धन के मार्ग में सहायक बनते हैं. राहु के साथ गुरु का संबंध ही धनवान होने के लिए इतना विशेष बन कर कर्म और जीवन की चुनौतियों को भी शामिल करने वाला होता है. राहु की भूमिका धन के आकस्मिक रुप से पूर्ण होती है. वहीं गुरु उचित एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में धन को लगाने के लिए भी प्रेरित करने वाला होता है. 

इस धन योग में राशियों का प्रभाव एवं अन्य ग्रहों का असर भी देखा जाता है. यदि यह दोनों ग्रह अकेले हैं और मजबूत राशि में स्थित हैं तो धन योग में अपार संतुष्टि भी प्राप्त होती है. वहीं जब यह कमजोर स्थिति या कुछ अन्य पाप ग्रहों के संपर्क में होते हैं तो स्थिति धन पर अलग असर डालती हैं जहां खर्च धन हानि भी होती है. यह मसिक संतोष की कमी को भी अधिक प्रभावित करने वाली स्थिति हो सकती है.