शनि के साथ बृहस्पति का योग कुंभ राशि में होंगे दूरगामी प्रभाव
ज्योतिष अनुसार खगोलिय एवं ग्रह गोचरीय दोनों दृष्टिकोण से यह घटना क्रम काफी महत्वपूर्ण माने गए हैं. इन दोनों ग्रहों का मेल जब एक साथ होता है तो इसमें ज्ञान के विस्तार के साथ साथ कई चीजों में आगे बढ़ने के मौके मिलते हैं. खगोलीय रूप से एक राशि ग्रह योग तब होता है जब दो ग्रह आकाश में एक दूसरे से मिलते हुए दिखाई देते हैं. बृहस्पति और शनि हर 20 साल में मिलते हैं, ज्योतिषियों के लिए, आश्चर्यजनक रूप से, यह बहुत बड़ा घटना क्रम होता है. बृहस्पति और शनि बाहरी ग्रह हैं, और धीमी गति से चलते हैं. इस प्रकार, उनका व्यापक पैमाने पर प्रभाव भी डालते हैं.
बृहस्पति को आशा, विस्तार, खुशी, विकास और चमत्कार का ग्रह कहा जाता है; शनि, इसके विपरीत, रुकावट, जिम्मेदारी और दीर्घकालिक इंतजार और शिक्षा सबक से जुड़ा है. जब ये ऊर्जाएं गठबंधन करती हैं, तो कुछ नया होने की उम्मीद कर सकते हैं. इन दोनों ग्रहों का मिलना विचारों, संभावनाओं और उनकी अभिव्यक्ति की धारणा को एक नए तरीके से बढ़ने के लिए प्रेरित करता है. कला, संगीत, रंगमंच, साहित्य, मनोरंजन, भोजन, संगीत, गणित, विज्ञान, राजनीति और सरकार इन सभी पर इस योग का असर जरुर पड़ता है.
इन दोनों ग्रहों का प्रभाव जिस भी राशि में होता है उसके अनुसार फल मिलते हैं यह संयोग कुम्भ राशि में होने पर नवाचार, मानवतावाद और स्वतंत्रता का प्रतीक बनता है, जहां ग्रह 1405 के बाद से नहीं मिले हैं इसे हम ठीक पुनर्जागरण की शुरुआत के आसपास देखते हैं. अपने आप में उल्लेखनीय होगा, लेकिन उससे भी ऊपर कुम्भ एक वायु राशि है, जो बौद्धिक, संचार में अनुकूल और आदर्शवादी होने के लिए जानी जाती है. पिछली एक लम्बे समय तक के लिए, बृहस्पति-शनि युति ज्यादातर पृथ्वी तत्व वाली राशियों में हुई है, जो व्यावहारिक और प्रकृति द्वारा आधारित हैं. अब आगे चलकर अगले दो सौ वर्षों तक या इसके आसपास, वे केवल वायु राशियों में मिलेंगे. इस परिवर्तन को किसी बड़े बदलाव के रूप में संदर्भित कर सकते हैं स्थिर पृथ्वी ऊर्जा से आविष्कारशील वायु ऊर्जा तक देखने को मिलेगी.
शनि और बृहस्पति का योग एक लम्बे समय पर होता है. बृहस्पति को लाभ, आशा, विश्वास, विकास और विस्तार का प्राकृतिक सूचक माना गया है. दूसरी ओर, शनि अशुभ होने के कारण प्रतिबंधों, देरी, सीमाओं, रुकावटों और निराशावाद को दर्शाता है. इनके स्वभाव के विपरीत होने से जब एक साथ होते हैं तो एक संघर्ष पैदा होता है. बृहस्पति प्रतिबंधात्मक शनि के प्रभाव में पीड़ित महसूस करता है रूढ़िवादी और प्रतिबंधात्मक शनि के साथ योग में बृहस्पति किसी की पारंपरिक मान्यताओं और धार्मिक झुकाव का कारक होने के नाते एक ऐसे व्यक्ति को दिखा सकता है जो हठधर्मी और कट्टर हो सकता है. शनि बृहस्पति की स्वाभाविक रूप से स्वीकार करने और क्षमा करने की प्रकृति को प्रतिबंधित करता है, एक व्यक्ति को दूसरे के दृष्टिकोण से चीजों को देखने में असमर्थ बनाता है और इसलिए असहिष्णु और कभी-कभी हद तक को पार कर जाता है. यह एक सख्त दमनकारी अनुशासक बना सकता है, जो अपने अधीन लोगों पर अपना अनुशासन थोपता है. व्यक्ति अत्यधिक अंतर्मुखी भी हो सकता है
शनि के साथ बृहस्पति कार्यक्षेत्र को कैसे करता है प्रभावित
शिक्षण, सलाह, परामर्श आदि जैसे बृहस्पति के गुण व्यक्ति को ऎसे ही काम में जोड़ते हैं. इसी प्रकार शनि भी व्यक्ति को जिम्मेदारी और अनुशासन की ओर खिंचता है. इस तरह के व्यवसायों को आगे बढ़ाने के लिए एक सामान्य झुकाव हो सकता है. व्यक्ति इतिहास, पुरातत्व और कानून जैसे कार्यों में रुझान रख सकता है. यह संयोग जब कुंडली में बनता है तो वकील और जज जैसी कार्यवाही दिखाता है. बृहस्पति एक व्यक्ति की बुद्धि और निर्णय होने के साथ-साथ शनि के अनुभव और परिपक्वता को दर्शाता है, व्यक्ति को उसके करियर में एक कुशल न्यायाधीश बना सकता है. इस तरह का संयोजन धार्मिक प्रचारकों में भी देखने को मिल सकता है क्योंकि बृहस्पति धर्म और आध्यात्मिकता का कारक है. कालपुरुष के नवें भाव का स्वामी बृहस्पति है और शनि कर्म भाव कर्म का कारक है. इसलिए दिन-प्रतिदिन की दिनचर्या का घर, धर्म और उपदेश को अपने करियर और दिन-प्रतिदिन की दिनचर्या से जोड़ना इन दोनों के युति योग में देखने को मिल सकता है.
कुंडली के प्रथम भाव में शनि और गुरु की युति
प्रथम भाव में शनि और बृहस्पति की युति व्यक्ति के लिए आर्थिक समस्याओं का कारण बन सकती है. इन दोनों का युति योग व्यक्ति को आध्यात्मिक रुख देता है. व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों के लिए काफी सजग भी रहता है.
कुंडली के दूसरे भाव में शनि और गुरु की युति
दूसरे भाव में शनि और गुरु की युति होने से व्यक्ति विद्वान बनता है पैतृक रुप से अपने पूर्वजों का सहयोग पाता है. व्यक्ति की निर्णय शक्ति कमजोर हो जाती है. खर्चे अधिक हो सकते हैं. करियर में बदलाव आ सकते हैं.
कुंडली के तीसरे भाव में शनि और गुरु की युति
तीसरे भाव में शनि और गुरु की युति होने से व्यक्ति परिश्रम से अधिक बौद्धिक कार्यों की ओर ले जाती है. व्यापार का विस्तार हो सकता है. दिमागी ताकत बढ़ाता है आप बार-बार नौकरी बदल सकते हैं. आप एक आरामदायक जीवन व्यतीत कर सकते हैं.
कुंडली के चौथे भाव में शनि और गुरु की युति
चतुर्थ भाव में शनि और गुरु की युति व्यक्ति को प्रसिद्धि दिला सकती है. धन लाभ और भौतिक लाभ मिल पाते हैं. पारिवारिक सुखों कि पाने के लिए कुछ समय लग सकता है.
कुंडली के पंचम भाव में शनि और गुरु की युति
पंचम भाव में शनि और गुरु की युति होने से जातक को भाग्य का साथ अधिक नहीं मिल पाता है. सरकार से अनबन हो सकती है और मुकदमेबाजी से परेशानी होती है, लेकिन कर्मों के द्वारा कुछ सकारात्मक प्रभाव मिल पाएंगे.
कुंडली के छठे भाव में शनि और गुरु की युति
छठे भाव में शनि और गुरु की युति होने से जातक को पत्नी से पूर्ण सुख प्राप्त होता है. इस दौरान स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो सकती है. शत्रुओं को हराने में व्यक्ति काफी कुशल होता है.
कुंडली के सप्तम भाव में शनि और गुरु की युति
कुंडली के सप्तम भाव में शनि और गुरु की युति से शुभ कार्य किए जा सकते हैं. इस दौरान खर्चों के साथ-साथ धन में वृद्धि होगी. व्यापार में लाभ लेकिन आपसी संबंधों में उतार-चढ़ाव बने रहते हैं.
कुंडली के आठवें भाव में शनि और गुरु की युति
अष्टम भाव में शनि और गुरु की युति होने से जातक की आर्थिक स्थिति अस्थिर रहती है. आयु की अधिकता प्राप्त होती है. व्यक्ति प्रभावशाली और शक्तिशाली होता है.
कुंडली के नवम भाव में शनि और गुरु की युति
नवम भाव में शनि और गुरु की युति व्यक्ति को अच्छी समृद्धि और धन देता है. वरिष्ठ लोगों के साथ सहयोग देता है. आद्यात्मिक रुप से व्यक्ति अधिक मजबूत बनता है.
कुंडली के दशम भाव में शनि और गुरु की युति
दशम भाव में शनि और गुरु की युति व्यक्ति को भाग्य का सहयोग देने वाली होती है. करियर में सफलता मिल पाती है और व्यापार में सफलता भी प्राप्ति होती है.
कुंडली के एकादश भाव में शनि और गुरु की युति
एकादश भाव में शनि और गुरु की युति व्यक्ति के करियर में बदलाव ला सकती है. करियर में सफलता मिलने से व्यक्ति सामाजिक दायरे में आगे बढ़ सकता है. मान सम्मान और प्रसिद्धि प्राप्त होती है.
कुंडली के द्वादश भाव में शनि और गुरु की युति
बारहवें भाव में शनि और गुरु की युति व्यक्ति को बाहरी संपर्क से जोड़ने वाली होती है. धार्मिक स्थान से जुड़ने का मौका मिलता है.