अपनी कुंडली से जानें कौन से अशुभ भाव आपके जीवन में बनते हैं बाधा का कारण
ज्योतिष शास्त्र जन्म कुंडली का विश्लेषण में बहुत सी चीजों पर आधारित होता है. कुंडली में कुछ स्थान शुभ होते हैं तो कुछ स्थान अशुभ माने जाते हैं. शुभता एवं शुभता की कमी के कारण ग्रहों का असर काफी गहरे प्रभाव डालने वाला होता है. जन्म कुंडली के खराब स्थानों को दुस्थान की संज्ञा दी गई है. जन्म कुंडली के केन्द्र त्रिकोण स्थानों को शुभ भाव के रुप में जाना जाता है. शुभ स्थान व्यक्ति के जीवन में प्रगति सुख शांति के लिए विशेष होते हैं तो दुस्थान जीवन में संघर्ष, चुनौतियों के लिए जिम्मेदार होते हैं.
जन्म कुंडली में ग्रह जब इन भावों में बैठते हैं तो होते हैं कमजोर
अपने शत्रुओं और जीवन में आने वाली प्रतिकूलताओं के लिए इन भावों का विशेष असर होता है. दुस्थानों में बैठे ग्रह उनके स्वामी सभी इस के अनुसार फल देने के लिए उत्तरदायी होते हैं. इन ग्रहों का असर चीजों को दोहराने की स्थिति को दर्शाता है. ये भाव हमारे सबसे बड़े शिक्षक भी बनते हैं, हमें जगाते हैं, हमें मजबूत करते हैं और जीवन में अपनी पूरी यात्रा में हमें जमीन पर रखते हैं. अगर सही भावना से इन्हें देखा जाए, तो वे हमें स्पष्ट संदेश भेजते हैं कि कैसे कार्य करना है और जीवन में किन चीजों से बचना है. यह हमारे कर्म का एक हिस्सा है जिसे हमें इस जीवनकाल में आत्मज्ञान का अनुभव करने के लिए संबोधित करने की आवश्यकता है.
कुंडली के ये दुस्थान, जीवन में कठिनाई लाते हैं, हर क्षेत्र में कार्यों और रिश्तों में हस्तक्षेप करते हैं, जागने और आध्यात्मिक शक्तियों पर ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, चेतना के उन्नत स्तरों को प्रोत्साहित करते हैं. वैदिक ज्योतिष में भाव ग्रह व्यक्तियों के जीवन को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. सभी भावों में से प्रत्येक भाव का जीवन की कई परिस्थितियों और स्थितियों का प्रतिनिधित्व करता है. कुंडली में एक विशिष्ट स्थान पर असर डालते हुए यह जीवन को प्रभावित करने वाला होता है.
केंद्र भाव 1, 4, 7 और 10 . होते हैं
त्रिकोण भाव 1,5, और 9 होते हैं
दुःस्थान भाव 6, 8 और 12 होते हैं
उपचय भाव 3, 6 और 11 होते हैं
मारक भाव 2 और 7 होते हैं
दु:स्थान भाव और उनका ज्योतिष में महत्व
वैदिक ज्योतिष में दु:स्थान भाव जीवन के कष्ट उतार-चढ़ावों को दिखाता है. ये भाव जीवन में कष्ट, कठिनाई, पीड़ा लाते हैं. क्रांतिकारी और विनाशकारी प्रभाव डालते हैं. यह भाव चुनौतियों से निपटने के लिए सबसे कठिन मार्ग भी बनते हैं. बीमारियों और दुर्घटनाओं का कारण बन सकते हैं. मृत्यु तुल्य कष्ट को दिखाते हैं. व्यक्ति को इन्हीं भाव एवं भाव स्वामियों के कारण अपने जीवनकाल में कई बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. जीवन में गंभीर हानि और नुकसान झेलना पड़ता है.
छठा भाव
यह भाव व्यक्ति के स्वास्थ्य और बीमारी, भोजन, नौकरी, रोजगार की स्थिति, संबंधों और जीवन के विकास में शुभता को नियंत्रित करता है. क्या खाते हैं और क्या नहीं खाते इसके आधार पर सेहत को प्रभावित कर सकता है. यह पेट की बीमारियों जैसे पाचन समस्याओं, फूड पॉइजनिंग और आंतों के विकारों का कारण बनता है. दूसरे शब्दों में, यह भोजन की आदतों और दैनिक दिनचर्या के आधार पर व्यक्ति के स्वास्थ्य को नियंत्रित करता है. यह व्यक्तिगत मोर्चे पर संदेह, गलतफहमी, विवादों और संघर्षों का कारण बनता है. इस भाव के प्रभाव से व्यक्ति को कर्ज या बीमारी जैसी स्थिति से अधिक गुजरना पड़ सकता है.
आठवां भाव
दु:स्थान की दृष्टि में अन्य महत्वपूर्ण भाव आठवां भाव स्थान है जो व्यक्ति की लंबी उम्र और मृत्यु के प्रकार पर प्रभाव डालता है. यह इस पर भी नियंत्रण रखता है कि व्यक्ति को धीमी या अचानक मौत मिलेगी या नहीं. यह एक अशुभ भाव स्थान है जो मानसिक तनाव, मन की शांति की कमी, पुरानी बीमारी और यौन समस्याओं जैसी स्वास्थ्य बीमारियों का कारण बनता है. आठवां घर दुख और रहस्य का घर होने के लिए प्रसिद्ध है और दुर्भाग्य और मानसिक चिंता लाता है.
बारहवां भाव
दुस्थानों में, बारहवां घर वैराग्य और अकेलेपन एकांत का भाव है. बारहवें भाव को क्लेश मानसिक दुर्बलता, अवैध पदार्थों की लत, अस्पताल में भर्ती होने और अन्य दर्दनाक घटनाओं का कारण माना जाता है. बाधाएं किसी के रास्ते में आ सकती हैं और चिंता, अवसाद और मानसिक असंतुलन का कारण बन सकती हैं. प्रबुद्धता और मोक्ष चाहने वाले व्यक्तियों के लिए यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण भाव स्थान होता है. घर में अपनों से अलगाव, दूरी का कारण बन सकता है. नींद में कमी, अवरोध पैदा कर सकता है. हर मानसिक और मनोवैज्ञानिक विकार बारहवें घर के अशुभ प्रभावों से भी जुड़ा हो सकता है.
वैदिक ज्योतिष में दुःस्थानों के महत्व को सिर्फ इसलिए नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह हानिकारक प्रभाव लाता है. सही ग्रहों के प्रभाव से घर भी अनुकूल परिणाम देने में सक्षम होते हैं. इसलिए प्रत्येक भाव किसी न किसी रुप में अपने विशेष फल को दिखाता अवश्य है.