मेष लग्न वालों के लिए कौन है मारक ग्रह और उसका जीवन पर प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र में ग्रह और नक्षत्रों का प्रभाव व्यक्ति के जीवन की सभी गतिविधियों पर पड़ता है. इन सभी के अच्छे और खराब फल व्यक्ति पर पड़ते हैं. कुछ न कुछ उतार-चढाव हर व्यक्ति के जीवन को अवश्य प्रभावित करते हैं. सुख और दुख के इन रंगों में कब कौन सा रंग हमें प्रभावित करेगा इसका अनुमान कुंडली में मौजूद ग्रहों की स्थिति से ही पता चल पाता है. व्यक्ति को मिलने वाले इन सभी फलों में एक फल जो कष्ट, दुख या मारक के रुप में जब आता है तो चिंता, कष्ट, दुर्घटना और रोग इत्यादि से ग्रसित कर देने वाला हो सकता है. इसी क्रम में आज हम बात करेम्गे मेष लग्न पर पड़ने वाले मारक ग्रह और उसके प्रभाव पर.
कौन होता है मारक भाव और मारक भाव का स्वामी
ज्योतिष शास्त्र में कुंडली के दूसरे भाव और सातवें भाव को मारक भाव के रुप में जाना जाता है. इनके अतिरिक्त भी कुछ मारक भाव होते हैं किंतु मुख्य रुप से इन दो स्थानों को विशेष रुप से मारक कहा गया है. अब जन्म कुंडली के इन दो भावों में जो भी राशियां मौजूद होती हैं उन्हीं के स्वामी मारकेश कहलाते हैं.
मेष लग्न के लिए मारकेश कौन होता है
मेष लग्न की कुंडली में जब हम दूसरे ओर सातवें घर को देखते हैम तो पाते हैं कि यहां पर दूसरे घर में वृष राशि आती है और सातवें घर में तुला राशि अथान पाती है. ऎसे में मेष लग्न के लिए वृष राशि और तुला राशि मारक की भूमिका निभाती है. अब इन दोनों राशियों के स्वामियों को देखें तो वृष राशि के स्वामी शुक्र ग्रह हैं तथा तुला राशि के स्वामी भी शुक्र ग्रह ही हैं. अत: इन दोनों राशियों का स्वामित्व शुक्र को ही प्राप्त होने से मेष लग्न के लिए शुक्र मारकेश का फल देता है. तो, शुक्र इनका मारक स्वामी या मारक ग्रह बन जाता है.
मारक भाव में ग्रहों का प्रभाव
मारक भाव और मारक भाव के स्वामी को जान लेने के बाद देखना होता है की दूसरे या सातवें घर में यदि कोई ग्रह बैठे हुए हैं तो वह ग्रह भी मारक ग्रह माने जाएंगे क्योंकि उनकी दशाएं भी मारक घरों को सक्रिय करेंगी. जब भी कोई ग्रह किसी भाव में बैठता है तो वह उस भाव के साथ जुड़ कर उस भाव की राशि के साथ जुड़ कर अपना फल देता है. इसलिए मारक भाव में बैठे ग्रहों का भी काफी महत्व होता है ओर इनका असर व्यक्ति को मारक का प्रभाव देने वाला होता है.
मारक ग्रह की प्रकृति
मारक ग्रह को जान लेने के पश्चात ये समझने की भी आवश्यकता होती है की वह किस प्रकार का ग्रह है. ग्रहों की शुभता एवं पाप प्रकृति के अनुसार भी फल की गुणवत्ता में कमी और अधिकता देखने को मिलती है. अब सबसे पहले शुक्र को देखें तो पाते हैं कि यह सभी के लिए सबसे अधिक शुभ एवं लाभकारी ग्रह माना जाता है. जऎसा इसलिए है क्योंकि शुक्र ग्रह मूल प्रकृति शुभ दायक एवं फायदेमंद होती है, शुक्र ग्रह अपनी सबसे खराब स्थिति में भी कुछ लाभ अवश्य प्रदान करने वाला हो सकता है. इसका अर्थ यह भी है कि अगर यह मारक ग्रह होने के कारण अपनी दशा में कष्ट को दिखाता है मृत्युतुल्य कष्ट जैसी परिस्थितियों का कारण बनता है, तब भी व्यक्ति को ऐसी घटनाओं से कुछ लाभ प्राप्त हो सकता है, क्योंकि यह मूल रूप से एक शुभकारी ग्रह है.
शुक्र ग्रह लाभ के रुप में बीमा राशि, विरासत धन आदि को दिखा सकता है. इसके साथ ही शुक्र के फल इस बात पर भी निर्भर करते हैं की वो कहां स्थिति होगा कुंडली में और उसकी स्थिति किस प्रकार की होगी. उसकी शुभता अशुभता का जन्म कु़डली के अनुसार किस प्रकार का असर होगा.
शुक्र की शुभ ग्रह से युति दृष्टि बन रही हो, शुक्र ग्रह की अशुभ ग्रह से युति दृष्टि बन रही है, शुक्र वक्री है या मार्गी है, शुक्र अस्त है या बली है, शुक्र नीचस्थ है या उच्च अवस्था का है. शुक्र वर्ग कुंडलियों में कैसी स्थिति में है ये सब भी ध्यान देने योग्य बाती होती है शुक्र के मारक तत्व को समझने हेतु.
मारक भावों में स्थित ग्रहों की प्रकृति
इसी प्रकार, हमें उन ग्रहों की प्रकृति को देखने की जरूरत होती है जो मारक भावों में बैठे हुए होते हैं. जैसे, यदि वे प्राकृतिक रुप से शुभ या पाप ग्रह है तो उसके अनुसर भी असर देखने को मिलेगा. ये ग्रह जितने अधिक पापी स्वभाव रखते हैं, उतनी ही अधिक संभावना है कि उनकी दशाएं व्यक्ति के लिए कठिन हो सकती हैं और उन्हें इन दशाओं के दौरान अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होती है.
मारकेश का फल
मारकेश सबसे महत्वपूर्ण कारक है जिसमें शुक्र को मेष लग्न में स्थान मिला है क्योंकि यह मेष लग्न की शक्ति और उसके प्रभाव पर भी अपना बहुत अधिक प्रभाव रखने वाला होगा. शुक्र ग्रह के स्वयं की राशि में होने, मित्र राशि में होने, तटस्थ राशि में होने, मूल त्रिकोण राशि में होने, उच्च राशि में स्थिति होने का अर्थ है कि व्यक्ति कुछ सकारात्मक असर दे सकता है. अपनी मारक दशा से प्रभावित हुए व्यक्ति को कुछ सकारात्मक स्थिति या इससे निपटने की शक्ति दे सकता है और अपनी दशा के दौरान भी लाभ प्राप्त कर सकता है. क्योंकि शुक्र अब कुछ लाभकारी ग्रह बना हुआ है और यह इन राशियों में अच्छी स्थिति में है.
इसके विपरित यदि शुक्र शत्रु राशि में हो, नीच अवस्था में हो, पाप कर्तरी योग में हो पाप प्रभाव में तो ये स्थिति ग्रह को और कमजोर बनाने वाली होगी. ऎसे में शुक्र की दशा का समय परेशानी अधिकि दे सकता है. व्यक्ति को शुक्र दशा से निपटने के लिए बहुत अधिक जागरूकता और सावधानी की आवश्यकता होती है. उदाहरण के लिए, यदि शुक्र छठे भाव में कन्या में है, तो यह न केवल मारक स्वामी होने के बाद नीच का होता है, बल्कि स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के घर में भी नीच का होता है. इसका मतलब है कि उन्हें स्वास्थ्य के मामलों के बारे में अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है और उन्हें इस दशा को सुरक्षित रूप से पार करने के लिए मारक दशा शुरू होने से पहले ही इस बात का ध्यान रखना चाहिए.