विद्यारंभ संस्कार मुहूर्त : कब करें बच्चे की शिक्षा का आरंभ :
शिक्षा शुरू करने में मुहूर्त का महत्व
शिक्षा का प्रभाव जीवन के विकास और निर्माण दोनों में सहायक होता है. भारतीय संस्कृति में शिक्षा का महत्व प्राचीन काल से ही रहा है. वेदों में वर्णित सूक्तों द्वारा शिक्षा के महत्व को समझा जा सकता है. ज्ञान के बिना विकास की प्रक्रिया में जो चमक है वह शिक्षा के द्वारा ही दूर तक देखने को मिलती है. बच्चे के जन्म के पश्चात उसके लिए एक मूल्यवान संस्कार होता है शिक्षा ग्रहण करना. शिक्षा द्वारा ही बच्चा अपने मूल रहस्य को समझ पाने में भी सफल होता है. विद्या संस्कार हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में से एक है. शिक्षा का आरंभ बच्चे के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण समय होता है. जब बच्चे की उम्र शिक्षा के योग्य हो जाती है, तब उनका स्कूल में प्रवेश कराया जाता है. दूसरी ओर, शिक्षा आरंभ संस्कार के समय पर मंत्रों उच्चारण एवं शुभ मुहूर्त समय का चयन करके इसे किया जाता है.
विद्यारंभ संस्कार
विद्यया लुप्यते पापं विद्ययाडयुः प्रवर्धते।
विद्यया सर्वसिद्धिः स्याद्धिद्ययामृतश्नुते।।
वेद शास्त्रों द्वारा भी शिक्षा के महत्व को बहुत आवश्यक माना गया है जिसके अनुसार विद्या को प्राप्त करके ही पापों का शमन संभव है. आयुष एव्म सिद्धियों की प्राप्ति भी विद्या द्वारा ही होती है. किंतु विद्या का नहीं होना चारों फलों को निष्फल कर देता है. धर्म अर्थ काम मोक्ष को प्राप्त करने हेतु विद्या अत्यंत आवश्यक कार्य माना गया है.
हिंदू धर्म में विद्यारंभ संस्कार काफी विशेष माना गया है यह उपनयन संस्कार की तरह ही समानता रखता प्रतित होता है. उपनयन संस्कार में गुरुकुल का आरंभ होता है और इसके साथ ही बच्चे का वेद अध्ययन शुरु होता है. बच्चा गुरुकुल में जाकर शिक्षा अर्जित करता है.
विद्यारंभ संस्कार हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक है. विद्यारंभ एक संस्कृत शब्द है जो "विद्या" का अर्थ है शिक्षा और "आरंभ" जिसका अर्थ है शुरुआत. यह एक महत्वपूर्ण समय होता है जो एक बच्चे की प्राथमिक शिक्षा की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है. यह आमतौर पर पांच साल की उम्र के बच्चे के बाद आयोजित किया जाता है क्योंकि माना जाता है कि इस समय बच्चे का मस्तिष्क अब शिक्षा ग्रहण करने हेतु तैयार होता है. बच्चा स्कूल जाने और इस उम्र में पढ़ाई शुरू करने के लिए तैयार होता है. विद्यारंभ संस्कार को सही मुहूर्त में करना काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह ज्ञान और शिक्षा के माध्यम से बच्चे के उज्ज्वल भविष्य की नींव रखता है. इस दौरान बच्चों को शिक्षा के महत्व के बारे में बताया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, विद्यारंभ मुहूर्त को बच्चे की जन्म कुंडली के साथ-साथ ग्रह नक्षत्र की स्थिति के आधार पर तय होता है.
विद्यारंभ मुहूर्त के लिए शुभ मानी जाने वाले विशिष्ट तिथियां, महीने और नक्षत्र यहां दिए गए हैं:
नक्षत्र: अश्विनी, मृगशिरा, रोहिणी, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, मूल, रेवती, पूर्वा आषाढ़, उत्तरा आषाढ़, चित्रा, स्वाति, अभिजीत, धनिष्ठा, श्रवण, पूर्व भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और शतभिषा को विद्यारंभ के लिए शुभ माना जाता है.
दिन: विद्यारंभ करने के लिए रविवार, सोमवार, गुरुवार और शुक्रवार सप्ताह के सबसे अच्छे दिन माने जाते हैं.
तिथियाँ: चैत्र-वैशाख के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि, माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि और फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि इस शुभ कार्य के लिए उत्तम मानी जाती हैं
राशि चिन्ह: विद्यारंभ के मुहूर्त को दर्शाते समय वृष, मिथुन, सिंह, कन्या और धनु राशि पर विचार किया जाता है.
मुहूर्त का महत्व बच्चे की शिक्षा पर असर
स्कूली शिक्षा कब शुरू होनी चाहिए और इसके लिए उपयुक्त समय क्या होगा. ज्योतिष के माध्यम से इसे काफी उचित रुप से बताया गया है. शिक्षा एवं अध्ययन शुरू करने के लिए कौन सा समय आदर्श है, यह तय करने के लिए एक गहन अध्ययन किया जाता है. कौन सा शैक्षिक क्षेत्र उपयुक्त होगा इसका भी अध्ययन किया गया है.
शिक्षा शुरू करने का महत्व होता है बच्चे को ज्ञान से परिचित कराना है. बच्चे की जन्म कुंडली, ग्रहों, नक्षत्रों आदि के आधार पर दीक्षा अनुष्ठान के लिए समय चुना जाता है जिसे विद्यारंभ संस्कार मुहूर्त कहा जाता है.अन्य सभी संस्कारों की तरह शुभ मुहूर्त का होना भी बहुत जरूरी है. शिक्षा का ज्ञान बच्चे के जीवन को सफल और श्रेष्ठ बनाता है. इसकी शुरुआत ईष्ट देव, देवताओं और माता-पिता के आशीर्वाद से करनी चाहिए. प्राचीन काल में जब गुरुकुल की परंपरा थी, तब माता-पिता बच्चे को गुरुकुल भेजने से पहले घर में अक्षरों को समझते थे. इसी तरह, आधुनिक समय में, भारतीय ज्योतिष की प्राचीन विरासत बच्चों को उनकी शिक्षा शुरू करने के लिए उत्तम मार्गदर्शन प्रदान कर सकती है,
शिक्षा आरंभ का शुभ समय कैसे देखें
बच्चे के जीवन में किये जाने वाले सभी संस्कार उसकी कुंडली के अनुसार उचित समय पर ही किये जाते हैं, क्योंकि उस विशेष समय में ग्रहों, नक्षत्रों, चन्द्रमा की स्थिति संतान के अनुसार शुभ होती है. जो उस समय किए गए कार्य में सफलता देता है और भविष्य का निर्माण करता है. शिक्षा शुरू करने के लिए मुहूर्त निकालते समय कुछ बातों का ध्यान एवं ज्ञान भी होना चाहिए. बच्चे की कुंडली, ग्रहों, नक्षत्रों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए. जो भी हो, यदि मंगल और शनि को अलग-अलग ग्रहों से सकारात्मक प्रभाव मिलता है, तो ये अच्छी स्थिति होती है
सप्ताह के तीन दिन यानि बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार बच्चे की शिक्षा शुरू करने के लिए शुभ होते हैं.इसके अलावा, रविवार भी उसी के लिए एक शुभ दिन है क्योंकि सूर्य इस दिन का देव हैं और आत्मा का कारक है. शनि एक पाप ग्रह और धीमा ग्रह है और यह शनिवार का अधिपत्य रखता है तो इस दिन को बच्चे की शिक्षा शुरू करने के लिए अशुभ माना जाता है.
पूजा के दौरान भगवान श्री गणेश और देवी सरस्वती का ध्यान एव्म पूजन अवश्य करना चाहिए. भगवान गणेश विज्ञान, कला और बुद्धि के देवता हैं और सरस्वती शिक्षा और ज्ञान की देवी हैं. दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और बच्चे के शैक्षिक जीवन में शुभ फल प्रदान करते हैं. इसके अलावा, पूजा में तुलसी, दावत, लेखनी, स्लेट आदि वस्तुओं को शामिल करते हैं तब विद्यारंभ पूजा को किया जाता है.