संतान जन्म से संबंधित महत्वपूर्ण ज्योतिष सूत्र

ज्योतिष शास्त्र से जानें संतान सुख में आईवीएफ और दत्तक संतान फल

बच्चों की इच्छा एवं उनके सुख को पाना दंपत्ति का पहला अधिकार होता है. विवाह पश्चात संतान जन्म द्वारा ही जीवन के अगले चरण का आरंभ होता है. विवाह जीवन में एक बहुत ही महत्वपूर्ण बंधन है. लेकिन कहा जाता है कि एक बच्चा परिवार को पूरा करता है.कभी-कभी हमें बच्चे के जन्म में समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. हालांकि चिकित्सा विज्ञान की प्रगति के साथ, ये समस्याएं कुछ हद तक कम हो गई हैं लेकिन फिर भी ऐसे मामले हैं जहां लोगों को चिकित्सा सहायता के बाद भी सफलता नहीं मिलती है. ऐसी स्थिति में ज्योतिष मददगार हो सकता है.

किसी भी व्यक्ति के जीवन में एक बच्चा उसके जीवन का आइना होता है उसका खुद का बचपन होता है बिता हुआ समय होता है. यह उन सबसे एक से सुखद अनुभवों में से एक होता है जो जीवन में उम्र भर साथ रहता है. कई को समय पर बच्चे का सुख मिल जाता है तो बहुत से लोगों को इसके लिए लम्बा इंतजार और संघर्ष भी करना पड़ता है. वहीं कुछ लोग निःसंतान भी रह जाते हैं. पर ये सब जीवन में आखिर क्यों घटित होता है ? इन चीजों को समझने के लिए बाल ज्योतिष का उपयोग अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है. जहां सभी प्रश्नों एवं उलझनों के उत्तर मिल जाते हैं. 

ज्योतिष में अविश्वासी रखने वाला भी संतान सुख के लिए ज्योतिष की मदद लेते देखे जा सकते हैं.  बाल ज्योतिष को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है जो बच्चे के जन्म से पहले और बाद दोनो को ही दर्शाता है. ये संतान के होने तथ औसके बाद उसकी स्थिति और माता पिता को संतान से मिलने वाले सुख-दुख को दिखाती है. 

ज्योतिष में संतान प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण भाव और ग्रह

  • पंचम भाव  संतान का मुख्य घर होता है इसे संतान भाव भी कहा जाता है.
  • ग्यारहवां भाव संतान प्राप्ति और इच्छाओं का प्रतीक होता है.
  • नवम भाव बच्चे के भाग्य और उसके सुख से जुड़ा होता है. पंचम से पंचम होने के कारण विशेष होता है. 
  • बृहस्पति को संतान का कारक माना गया है. इसलिए कुंडली में बृहस्पति की स्थिति को समझना जरूरी होता है. 
  • सूर्य पंचम भाव का कारक स्वामी होता है.
  • मंगल गर्भाधान की स्थिति को दिखाता है स्त्री में रज का कारक बनता है. इसके साथ यह पौरुष ऊर्जा है जो प्रजनन के लिए आवश्यक है.
  • शुक्र वीर्य का कारक होता है जो संतान के लिए महत्वपूर्ण ग्रह है. साथ ही यह स्त्री के यौन अंग को इंगित करता है और साथ ही यह पुरुष में वीर्य को. शुक्र की किसी भी प्रकार की समस्या या कमजोरी संतान के जन्म में कठिनाई का कारण बन सकती है.

अपनी कुंडली से जानिए संतान के जन्म में देरी का कारण

संतान जन्म में देरी के कारणों को व्यक्ति की कुंडली से जान सकते हैं. ज्योतिष में संतान की देरी के लिए,  कुंडली में कुछ विशिष्ट घरों और कुंडली में उन घरों में विशिष्ट ग्रहों की स्थिति को देखते हैं. 

  • कुंडली में संतान का सुख देखने के लिए पंचम भाव मुख्य भाव बनता है.
  • कुंडली का दूसरा घर और ग्यारहवां भाव बच्चों के माध्यम से लाभ और इच्छाओं को दिखाता है. 
  • कुंडली का नौवां भाव भी संतान सुख के लिए देखते हैं. 
  • कुंडली में शुक्र, सूर्य और मंगल के साथ-साथ संतान के लिए मुख्य कारक बृहस्पति की स्थिति को देखा जाता है. 
  • कर्म सिधांत के अंतर्गत पूर्व जन्म में गलत कर्म होना और नाड़ी दोष भी बच्चे के जन्म में देरी के लिए जिम्मेदार होते हैं. 

ज्योतिष आपको बच्चे के जन्म में देरी के ऐसे सभी कारण बता सकता है. इसके बाद आता है कि बच्चे के लिए गर्भधारण की योजना कब बनानी चाहिए. 

आईवीएफ संतान सुख 

संतान के जन्म में देरी परिस्थितियों या ग्रहों की स्थिति के कारण हो सकती है. लेकिन आज के समय में, करियर या यहां तक ​​कि व्यक्तिगत पसंद-नापसंद पर बहुत अधिक ध्यान भी अपनी प्राकृतिक प्रक्रिया में बच्चे के जन्म में देरी का कारण बनता जा रहा है लेकिन यह स्थिति भी ग्रहों द्वारा प्रभावित होती है. कई मामलों में किसी भी कारण से अपने संतान जन्म में दिक्कत आने पर आईवीएफ जैसे तरीकों का सहारा लेना पड़ता है. यहां भी, एक विशेषज्ञ ज्योतिष विश्लेषण आईवीएफ की योजना बनाने के लिए एक उचित समय को बता कर मार्गदर्शन कर सकता है. जन्म कुंडली के अनुसार आईवीएफ के लिए सबसे अच्छी तारीख को जान सकते हैं.

आपकी कुंडली में दत्तक संतान प्राप्ति योग 

लेकिन जब विज्ञान भी सहायक नहीं बन पाता है और बच्चा गोद लेना पड़ सकता क्योंकि  कभी-कभी, बच्चे को गोद लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है. किसी भी कारण से बच्चे को गोद लेना अपने बच्चे को प्राप्त करने में विफलता का कारण हो सकता है. लेकिन किसी को यह समझना चाहिए कि यदि कुंडली के कारकों ने संतान से वंचित करने में अपनी भूमिका निभाई, तो क्या संतान को गोद लेना एक अच्छा निर्णय हो सकता है. ज्योतिष शास्त्र में, यदि हम बच्चे के जन्म की संभावना की समीक्षा करने के लिए पंचम भाव पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो दत्तक संतान की समीक्षा के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, यह देखने के लिए कि क्या बच्चा गोद लेना आपके लिए एक अच्छा विकल्प होगा.

संतान सुख प्राप्ति कारक 

पंचम भाव और पंचम भाव का स्वामी किसी भी प्रकार के पाप प्रभाव से मुक्त होना चाहिए.

राहु, केतु, शनि जैसे पाप ग्रहों को पंचम भाव में नहीं होना चाहिए

बुध को भी संतान प्राप्ति के लिए बहुत शुभ नहीं माना जाता है, इसलिए बुध की स्थिति का आकलन सावधानी से करना चाहिए.

पंचमेश लग्न में या सप्तम में हो तो संतान सुख की भविष्यवाणी की जा सकती है. 

पंचम भाव के स्वामी का दूसरे भाव में होना संतान सुख देता है. 

केंद्र भावों या त्रिकोण भावों में शुभ ग्रहों का होना संतान सुख देता है.