शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष जानें इस खगोलिय घटना के बारे में विस्तार से

हिंदू पंचांग में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष महत्व

हिंदू पंचांग को ज्योतिष फलकथन एवं खगोलिय गणना इत्यादि हेतु उपयोग में लाया जाता है. हिंदू धर्म में मौजूद समस्त व्रत त्यौहार एव्म धार्मिक क्रियाकला पंचांग द्वारा ही निर्धारित किए जाते हैं. इसलिए पंचांग एक अभिन्न अंग भी माना जाता है. पंचांग का अर्थ पांच चीजों के योग से निर्मित होने वाली गणना. इन पांच चीजों में तिथि, वार, योग, नक्षत्र, करण से मिलकर पंचांग का निर्माण होता है.

पंचांग सभी हिंदुओं के बीच बहुत महत्व रखता है, खासकर जब शुभ और अशुभ दिनों की बात हो या फिर किसी भी प्रकार के धर्म कर्म से जुड़े काम, इसके साथ ही ये भौगौलिक घटनाओं इत्यादि को समजने में भी सहायक होता है. पंचांग का क्षेत्र सीमित न होकर असीमित रहा है.  पंचांग पाक्षिक, दैनिक और मासिक, वार्षिक सभी आधार पर विवरण प्रदान करता है. दैनिक पंचांग तिथि (दिन), नक्षत्र, दिन के शुभ और अशुभ समय आदि के बारे में जानकारी प्रदान करता है. मासिक पंचांग तीस दिनों को दर्शाता है, और इन दिनों को मासिक रुप में दो भगओं में बांटा जाता है.  पक्षों में इसे शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में विभाजित किया जाता है. इन दो पक्षों को पंद्रह-पंद्रह  दिनों की अवधि में बांटा जाता रहा है. इन दो पक्षों में एक पक्ष को शुक्ल पक्ष कहा जाता है जबकि शेष को कृष्ण पक्ष के अंतर्गत आते हैं.

शुक्ल और कृष्ण पक्ष का अंतर विश्लेषण 

किसी भी शुभ कार्य एवं आयोजन अनुष्ठान को शुरू करने के लिए वैदिक शास्त्रों में पक्ष को एक महत्वपूर्ण कारक माना गया है. चूंकि पक्ष चंद्रमा पर निर्भर करता तो यह किसी विशेष घटना या कार्य की सफलता या विफलता को भी निर्धारित करती है. इसलिए दोनों पहलुओं पर विचार करके ही शुभ कार्यों के लिए तिथि निर्धारित की जाती है.

शुक्ल पक्ष  और कृष्ण पक्ष के बीच के अंतर को समझना धार्मिक और ज्योतिष दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण है. हिंदू परंपरा के अनुसार, कुछ विशिष्ट तिथियां, जिन्हें तिथि कहा जाता है, को विभिन्न धार्मिक कार्यों को करने के लिए शुभ समय के रूप में उपयोग किया जाता रहा है. शुभ मुहूर्त के संदर्भ में, शुक्ल पक्ष तिथि और कृष्ण पक्ष तिथि अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं.

पक्ष क्या होता है

पंचांग गणना में चंद्रमास सौर मास एवं नक्षत्र मास का वर्णन मिलता है. यहां पक्ष को चंद्रमा से जोड़ा जाता है. चंद्र मास को दो पक्षों में बांटा गया है. एक पक्ष चंद्र 15 दिन का होता है और दूसरा भी 15 दिन का होता है. कुछ गणना में पक्ष यह लगभग 13-14 दिन का भी हो सकता का है. पक्ष को अधंकार एवं रोशनी दो भागों में भी विभाजित किया जाता है. ज्योतिषीय घटनाओं के दृष्टिकोण से, पक्ष महीने के चंद्रमा के सभी चरण को दर्शाता है. प्रत्येक चंद्र चरण 15 दिनों तक रहता है और इस प्रकार हमारे पास एक महीने में दो चंद्र चरण होते हैं. खगोलीय गणनाओं से देखने पर मिलता है कि चंद्रमा एक दिन में 12 डिग्री की यात्रा करता है. यह तीस दिनों में पृथ्वी के चारों ओर एक पूर्ण क्रांति को पार करता है. हर दो सप्ताह में होने वाला यह चंद्र चरण विभिन्न धार्मिक आयोजनों के लिए फायदेमंद होता है.

कृष्ण पक्ष पूर्णिमा से अमावस्या के बीच शुरू होता है और चंद्रमा अपने स्वरुप में घटने लगता है उस समय इसका असर दिखाई देता है. कृष्ण पक्ष का नाम भगवान कृष्ण के नाम पर रखा गया है क्योंकि भगवान कृष्ण के स्वरुप को भी दर्शाता है और इसलिए चंद्रमा के लुप्त होने को कृष्ण पक्ष कहा जाता है. कृष्ण पक्ष पूर्णिमा, प्रतिपदा से शुरू होकर चतुर्दशी तक 15 दिनों तक चलता है.

चंद्रमा के कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष से जुड़ने की कथा 

चंद्रमा के पक्ष में विभाजित होने की कथा पौराणिक ग्रंथों से प्राप्त होती है. इनमें कई कहानियां सुनने को मिलती हैं. शास्त्रों में वर्णित में मुख्य कथा दक्ष से संबम्धित मानी गई है.  दक्ष प्रजापति और चंद्रमा की कहानी इस प्रकार है. दक्ष प्रजापति की सत्ताईस बेटियाँ थीं, जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ था. ये सत्ताईस कन्याएं वास्तव में सत्ताईस नक्षत्र थीं, और इन नक्षत्रों में एक रोहिणी थी जिसे चंद्रमा सबसे अधिक प्रेम करता था. रोहिणी के प्रति चंद्रमा का मोह इतना अधिक रहता था की वे अन्य पत्नियों के प्रति उदासीन था. ऎसे में अन्य पत्नियों के मन में इस का दुख अत्यंत बढ़ जाने पर वह अपने दुख को अपने पइता दक्ष से कहती हैं. पिता दक्ष से चंद्रमा की उनके प्रति उदासीनता के बारे में शिकायत करने पर दक्ष ने चंद्रमा को अपने पास बुलाया और उन्हें अनुरोध किया की वह सभी पर एक समान रुप से ध्यान दे. लेकिन चंद्रमा पर इस बात का कोई असर न होते देख चंद्र पर क्रोधित होते हैं.

चंद्रमा को दूसरों के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलने के लिए कहते हैं. इसके बावजूद चंद्रमा का अपनी अन्य पत्नियों के प्रति रवैया नहीं बदला और वह अन्य पत्नियों की ज्यादा उपेक्षा करने लगाता है. दक्ष के अनुरोध का पालन करने की मनाही की स्थिति को देख दक्ष ने तब चंद्रमा को शाप दिया कि वह अपने आकार और चमक से रहित हो जाएगा. द्क्ष के श्राप के कारण चंद्रमा घटने लगता है वह क्षय रोग से पीड़त हो जाता है और धीरे-धीरे अपने अंत की ओर जाने लगता है. ऎसे में भगवान शिव की भक्ति द्वारा उसे दक्ष के श्राप से राहत मिलती है और चंद्रमा पक्ष में बदल कर शुक्ल पक्ष को पाता है. इस प्रकार कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष का आरंभ होता है. 

हम अमावस्या से पूर्णिमा को शुक्ल पक्ष तक की अवधि कहते हैं. दूसरे शब्दों में, शुक्ल पक्ष की अवधि को शुक्ल पक्ष के रूप में वर्णित किया जाता है. जब शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के पास  होता है, तो चंद्रमा आकाश में सबसे अधिक चमकीला और पूर्ण रुप का चंद्रमा दिखाई देता है. संस्कृत में शुक्ल का अर्थ उज्ज्वल होता है. यह भी भगवान विष्णु के नामों में से एक है. शुक्ल पक्ष 15 दिनों तक चलता है, जिसमें हर एक दिन कोई त्योहार या कार्यक्रम होता है. इन 15 दिनों को अमावस्या, प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी और चतुर्दशी कहा जाता है.

कौन सा पक्ष शुभ माना जाता है?
चंद्र प्रकाश में, शुक्ल पक्ष शुभ मांगलिक कार्यों, धार्मिक कार्यों, अनुष्ठा आयोजनों के लिए अनुकूल समय माना है, जबकि कृष्ण पक्ष प्रतिकूल माना जाता रहा है. इसलिए, कृष्ण पक्ष के दौरान कम ही करयों को करने की बत भी कही जाती रही है. शुक्ल पक्ष के दौरान किया गया कोई भी कार्य सफलतापूर्वक पूरा होता है. इस प्रकार विवाह, गृह प्रवेश, गृह निर्माण आदि के अवसर शुक्ल पक्ष के दौरान किए जाते हैं.ज्योतिष की दृष्टि से शुक्ल पक्ष की दशमी और कृष्ण पक्ष की पंचम तिथि के बीच का समय शुभ होता है. इस समय के दौरान, चंद्रमा की शक्ति ऊर्जा अपने चरम पर होती है, और यह शुभ और अशुभ समय या मुहूर्त की भविष्यवाणी करने में महत्वपूर्ण है.