राहु की ग्रह युति कब बनती है ग्रहण और कब देती है शुभ फल
राहु - सूर्य
राहु और सूर्य का संबंध कुण्डली में ग्रहण योग का निर्माण करता है. इसके प्रभाव स्वरुप पिता एवं संतान के मध्य वैचारिक मतभेद की स्थिति रह सकती है. संतान की जन्म कुण्डली में यह योग होने पर पिता के व्यवसाय और मान सम्मान में कमी देखने को मिल सकती है. सुख में कम आती है, क्रोध अधिक रहता है, स्वास्थ्य से संबंधित परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं. कार्य क्षेत्र में भी सरकार की ओर से अनुकूलता में कमी आती है.
यह संबंध जिस भाव में भी बनता है उसके फलों में कमी करने वाला होता है. राजनीति के क्षेत्र में आप काम कर सकते हैं. इस स्थिति का प्रभाव स्वरूप स्वास्थ्य पर भी असर देखने को मिलता है, मानसिक रुप से चिंताएं अधिक रहती है. हृदयएवं हडियों से संबंधित रोग परेशान कर सकते हैं. अहम का भाव उभर सकता है. जल्दबाजी के कारण स्वयं को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
राहु - चंद्र
राहु का चंद्रमा के साथ संबंध ग्रहण योग का निर्माण करता है. चंद्रमा का राहु के साथ संबंध मानसिक रुप से अस्थिरता और शंका की स्थिति देने वाला होता है. व्यक्ति में दूसरों पर दोषारोपण करने की प्रवृत्ति भी बहुत अधिक होती है. माता का सुख भी प्रभावित होता है. माता को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से परेशान होना पड़ सकता है. मान सम्मान से संबंधित उचित व्यवहार नहीं मिल पाता है. व्यक्तिगत सफलता, सम्मान की प्राप्ति में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. संतान से संबंधी कष्ट भी झेलने पड़ सकते हैं. व्यक्ति रहस्यमयी विद्याओं में रूचि रखता है, शोध कार्यों में अच्छी सफलता पा सकता है.व्यक्ति में भावनात्मक कमजोरी देखी जा सकती है, व्यवहार में लापरवाही झलक सकती है. किसी भी चीज को याद करने की प्रवृति भी प्रभावित होती है.
राहु - मंगल
मंगल और राहु का संबंध जातक में क्रोध और घमंड की स्थिति दे सकता है. व्यक्ति में क्रोध बहुत होता है, सहनशक्ति की कमी होती है. व्यक्ति में चालबाजियों की स्थिति अधिक होती है. वह किसी भी प्रकार के षडयंत्र में फंस भी सकता है. व्यक्ति विवाद में बहुत जल्दी फंस सकता है. दोनों ग्रहों का स्वरुप शत्रु षड्यंत्र, झगड़े, विवाद, शत्रु एवं साहस, पराक्रम को दर्शाते हैं. यह मंगल और राहु की स्थिति अंगारक योग का निर्माण करती है. राहु और मंगल का संबंध जातक का व्यक्तित्व दुःसाहसिक कार्यों को करने में अग्रीण रहता है.
राहु - बुध
राहु और बुध का संबंध जड़त्व योग का निर्माण करता है. राहु और बुध का संबंध बौधिक भ्रम देने वाला होता है. राहु भ्रम है और बुध बुद्धि को दर्शाता है ऐसे में दोनों का संजोग स्वभाविक है की बुद्धि को प्रभावित करता है और सोच समझने की प्रक्रिया भी इससे प्रभावित होती है. व्यक्ति उचित तथ्यों के प्रति उपेक्षित भाव रख सकता है. यह योग संबंध चातुर्य और कूटनीति भी देने वाला होता है.
राहु - गुरु
राहु के साथ गुरु का संबंध गुरु चंडाल बनाता है. राहु के साथ गुरु का संबंध होने पर व्यक्ति में चंडाल धार्मिक आस्था में कमी हो सकती है. व्यक्ति धर्म से विमुख सा रह सकता है या धर्म को लेकर इसकी अपनी सोच होती है. व्यक्ति सच्चाई और न्याय को ऊपर उठाने की कोशिश करने वाला होता है. लेकिन व्यक्तिगत जीवन में इसके विपरीत व्यवहार करने वाला हो सकता है.
राहु - शनि
राहु - शनि की युति का संबंध नन्दी योग एवं शापित योग का निर्माण होता है. इन दोनों ही योगों के मिश्रित प्रभाव स्वरूप जातक का जीवन प्रभावित रहता है. इस योग का संबंध जिस भी भाव में होता है उस भाव से संबंधित फलों में कमी की स्थिति झेलनी पड़ सकती है. व्यक्ति में क्रोध ओर चिडचिडाहट हो सकती है. वह जल्दी ही दूसरों से घुल-मिल नहीं मिल पाता है. इस योग के फलस्वरूप जातक को सुख, वैभव एवं समृद्धि भी प्राप्त होती है. लेकिन मानसिक रुप से उसमें विरक्ति की स्थिति भी झलकती है. राहु और शनि का संबंध, एक अलग सोच समझ का विकास करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला होता है.
राहु - शुक्र
राहु और शुक्र का संबंध योग व्यक्ति को चमक-धमक के पीछे भागने वाला बना सकता है. व्यक्ति में अधिक पाने की चाह होती है वह भौतिक साधनों से संपन्न रहने की इच्छा रखता है. जातक में क्रोध की अधिकता हो सकती है. वाद विवाद में फंस सकता है. दूसरों के द्वारा फँसाया भी जा सकता है. व्यक्ति के स्वभाव में कटुता और अडियल रुख भी देखने को मिल सकता है. अपने स्वभाव के कारण नुकसान भी उठाने पड़ते सकते हैं.
राहु शांति उपाय
जातक को महामृत्यंजय का पाठ करना चाहिए.
शिवलिंग पर जलाभिषेक करना चाहिए.
चांदी धारण करें
गरीब एवं अस्मर्थ व्यक्ति की सेवा करें.
माता के साथ प्रेम पूर्वक व्यवहार करें तथा भाई बंधुओं से समानता और स्नेह की भावना रखें.
हनुमान जी की अराधना करें
राहु मंत्र
ऊँ कयानश्चित्र आभुवदूतीसदा वृध: सखा । कयाशश्चिष्ठया वृता ।
राहु कवच स्त्रोत
अस्य श्रीराहुकवचस्तोत्रमंत्रस्य चंद्रमा ऋषिः ।
अनुष्टुप छन्दः । रां बीजं I नमः शक्तिः ।
स्वाहा कीलकम्। राहुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।।
प्रणमामि सदा राहुं शूर्पाकारं किरीटिन् ।।
सैन्हिकेयं करालास्यं लोकानाम भयप्रदम् ।। १।।
निलांबरः शिरः पातु ललाटं लोकवन्दितः।
चक्षुषी पातु मे राहुः श्रोत्रे त्वर्धशरीरवान् ।। २ ।।
नासिकां मे धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम।
जिव्हां मे सिंहिकासूनुः कंठं मे कठिनांघ्रीकः ।। ३ ।।
भुजङ्गेशो भुजौ पातु निलमाल्याम्बरः करौ ।
पातु वक्षःस्थलं मंत्री पातु कुक्षिं विधुंतुदः ।।४ ।।
कटिं मे विकटः पातु ऊरु मे सुरपूजितः ।
स्वर्भानुर्जानुनी पातु जंघे मे पातु जाड्यहा ।।५ ।।
गुल्फ़ौ ग्रहपतिः पातु पादौ मे भीषणाकृतिः ।
सर्वाणि अंगानि मे पातु निलश्चंदनभूषण: ।।६ ।।
राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो।
भक्ता पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः सन् ।
प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायु
रारोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात् ।।७ ।।
।।इति श्रीमहाभारते धृतराष्ट्रसंजयसंवादे द्रोणपर्वणि राहुकवचं संपूर्णं ।।
कवच पाठ के लाभ