भद्र योग का महत्व
किसी जातक की जन्म कुण्डली में बनने वाला पंच महापुरुष योग एक बेहद ही प्रभावशाली और शुभ फलदायक योग माना गया है. इस योग के प्रभाव स्वरुप जातक को जीवन में सफलता और संघर्षों से आगे निकल कर जीवन में अपने लिए एक बेहतर स्थान भी पाता है.
जन्म कुण्डली में बनने वाले शुभ योग जातक के जीवन में संघर्ष से उसे बचाने का काम करते हैं. किसी भी जातक के जीवन में मौजूद संघर्ष उसके कर्मों का ही प्रभाव होते हैं ऎसे में जब कुण्डली में कुछ अच्छे शुभ योग बनते हैं तो उम्मीद की जा सकती है कि व्यक्ति अपने जीवन में सफलता भी पा सकता है.
कैसे बनता है पंच महा पुरुष योग
पंच महा पुरुष योग में - बुध, मंगल, बृहस्पति, शुक्र और शनि ग्रह आते हैं. इन पांच ग्रहों से योग के बनने के कारण ही इसे पंच महापुरुष योग कहा जाता है. यह योग कुण्डली में तब बनता है जब ये पांच ग्रह जन्म कुण्डली में केन्द्र भावों में अपनी-अपनी राशि में स्थित हों या अपनी उच्च राशि में बैठे हुए हों. तब जातक की कुण्डली में पंचमहापुरुष योग बनता है.
बुध ग्रह से बनने वाला योग भद्र नामक पंच महा पुरुष योग कहलाता है. बुध से बनने वाले इस योग में जातक बौद्धिक योग्यता और अच्छी ज्ञान शक्ति को पाता है. पांच महापुरुष योगों में से एक योग है भद्र योग, यह योग बहुत ही शुभ योगों की श्रेणी में आता है तथा इस योग से युक्त व्यक्ति धन, कीर्ति, सुख-सम्मान प्राप्त करता है.
भद्र योग कब बनता है
जन्म कुण्डली में जब बुध स्वराशि (मिथुन, कन्या) में हो तो यह योग बनता है. साथ ही बुध का केन्द्र में होना भी आवश्यक होता है. कुछ शास्त्र इसे चन्द्र से केन्द्र में भी लेते है. यहां केन्द्र से मतलब होगा कि जन्म कुण्डली का पहला भाव, चौथा भाव, सातवां भाव, दसवां भाव जिसमें बुध अपनी ही स्वराशि में अगर बैठा हुआ है तो कुण्डली में भद्र नामक योग बनता है. इसके अतिरिक्त कुछ ग्रंथों के अनुसार चंद्र कुडली से भी इसी प्रकार अगर बुध 1,4,7,10 भाव में अपनी राशि का बैठा हुआ हो तो भद्र नामक योग बनता है. भद्र योग अपने नाम के अनुसार व्यक्ति को फल देता है.
भद्र योग फल
भद्र योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति सिंह के समान फुर्तीला होता है. उसकी चाल हाथी के समान कही गई है. वक्षस्थल पुष्ट होता है. गोलाकारक सुडौल मजबूत बाहें होती हैं, कामी या कहें रसिक प्रवृति का हो सकता है, विद्वान, कमल के समान हाथ-पैर होते है. सत्वगुण, कान्तिमय त्वचा से युक्त होता है.
इसके अतिरिक्त जिसका जन्म भद्र नामक योग में हुआ हो, उसके हाथ-पैर में शंख, तलवार, हाथी, गदा, फूल, बाण, पताका, चक्र, कमल आदि चिन्ह हो सकते हैं. उसकी वाणी सुन्दर होती है. इस योग वाले व्यक्ति की दोनों भृकुटी सुन्दर, बुद्धिमान, शास्त्रवेता, मान-सम्मान सहित भोग भोगने वाला, बातों को छिपाने वाला, धार्मिक, सुन्दर ललाट, धैर्यवान, काले घुंघराले बाल युक्त होता है.
भद्र योग वाला व्यक्ति सब कार्य को स्वतन्त्र रुप से करने में समर्थ होता है. अपने लोगों को भी क्षमा करने वाला तथा उसकी संपति को अन्य भी भोगते है. जातक हंसमुख और लोगों के साथ मेल-जोल करने वाला होता है. उसका मन कोमल होता है और प्रेम की इच्छा उसके मन में सदैव बनी रहती है. व्यक्ति कोमल और सौम्य काम करने की इच्छा अधिक रखता है. मेहनत से अधिक वो अपनी बुद्धि से काम करना अधिक पसंद करता है.
भद्र योग का करियर के क्षेत्र में प्रभाव
भद्र योग का विशेष गुण व्यक्ति में कौशलता को उभारने का होता है. व्यक्ति अपनी भाषा शैली से दूसरों पर प्रभाव जमाने में सफल होता है. जातक काफी प्रभावशाली और अपनी जीवन शैली जीने में उन्मुक्तता चाहने वाला होता है. व्यक्ति अपने चातुर्य से काम निकलवाने में भी माहिर होता है. अपने जीवन में अपने इसी कौशल को अपना कर जिंदगी को जीता है. जातक एक प्रतिभाशाली शिक्षक हो सकता है या एक प्रभावशाली कथा वाचक भी बन सकता है.
मुख्य रुप से जातक संचार जैसे क्षेत्र में अपनी पैठ जमा सकता है. उसकी काबिलियत को इस स्थान पर ही पहचाना जा सकता है और वह निखर कर सामने आती भी है. एक प्रकार के सलाहकार के रुप में अथवा लेखन और बोलने में योग्य जैसे की पत्रकारिता के क्षेत्र में संवाद कर्मी के रुप में कानून के क्षेत्र में जज या वकालत के कार्य में आगे बढ़ सकता है. भद्र योग में जन्मा जातक व्यवहार कुशल और लोगों के मध्य प्रसिद्ध भी होता.
भद्र योग कब देता है शुभ फल
जन्म कुण्डली में कोई योग कितना शुभ होगा और किस तरह से फल देने में सक्षम होगा, ये जन्म कुण्डली की मजबूती पर भी निर्भर करता है. जन्म कुण्डली में अगर योग शुभता से युक्त हो और ग्रह भी मजबूत हो और किसी भी प्रकार के पाप अथवा खराब प्रभाव से मुक्त हो तो योग जातक को अपना शुभ फल प्रभावशाली रुप से देने वाला होता है.
दूसरी ओर अगर ग्रह किसी पाप प्रभाव में हो कमजोर हो तो ऎसी स्थिति में योग अपना शुभ फल देने में सक्षम होता है. इसलिए भद्र योग में जातक को इसी प्रभाव के कारण अच्छे फल मिलते हैं. बुध की कमजोर स्थिति के कारण भद्र योग अपने खराब न प्रभाव देने वाल बन सकता है. व्यक्ति की वाणी प्रभावित हो सकती है और वह छल-कपट से आगे बढ़ने वाला होता है.
कुण्डली में बनने वाला कोई भी योग अपनी शुभता को तब बेहतर रुप से पा सकता है. जब कुण्डली में कुछ अन्य शुभ योग भी बन रहे हों तो ऎसे में कुण्डली मजबूत बन जाती है और व्यक्ति को सकारात्मक फल भी मिलते हैं. इसी के साथ अगर जो योग कुण्डली में बन रहा हो उस योग के ग्रह की दशा मिल रही हो तो उस योग का फल भी जातक को अवश्य मिलता है.
कई बार कुण्डली में योग तो बनते हैं लेकिन ग्रह की दशा समय पर नहीं मिल पाने पर जातक उस योग का प्रभाव उचित रुप से भोग भी नही पाता है. इसलिए ग्रहों की दशा का प्रभाव भी जातक को योग की प्राप्ति कराने में सहायक बनता है.