जानिए षष्टी तिथि का महत्व और इसकी विशेषता

चन्द्र मास के दोनों पक्षों की छठी तिथि, षष्टी तिथि कहलाती है. शुक्ल पक्ष में आने वाली तिथि शुक्ल पक्ष की षष्टी तथा कृष्ण पक्ष में आने वाली कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि कहलाती है. षष्ठी तिथि के स्वामी भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र स्कन्द कुमार है. जिन्हें कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है.

षष्ठी तिथि वार योग

षष्टी तिथि जिस पक्ष में रविवार व मंगलवार के दिन होती है. उस दिन यह मृत्युदा योग बनता है. इसके विपरीत षष्ठी तिथि शुक्रवार के दिन हो तो सिद्धिदा योग बनता है.

यह तिथि नन्दा तिथि है. तथा इस तिथि के शुक्ल पक्ष में शिव का पूजन करना अनुकुल होता है, पर कृष्ण पक्ष की षष्ठी को शिव का पूजन नहीं करना चाहिए.

षष्ठी तिथि में किए जाने वाले काम

षष्ठी तिथि को काम में सफलता दिलाने वाला कहा जाता है. इस तिथि में कठोर कर्म करने की बात भी कही जाती है. जो कठिन कार्य जैसे घर बनवाना, शिल्प के काम या युद्ध में उपयोग में लाए जाने वाले शस्त्र बनाना इत्यादि को इस तिथि में करना अच्छा माना गया है. कोई ऎसा कठोर कार्य करने वाले हैं जिसमें सफलता की इच्छा रखते है तो उसे इस तिथि के दौरान किया जा सकता है.

मेहनत के कामों को भी इसी दौरान करना अच्छा होता है. वास्तुकर्म, गृहारम्भ, नवीन वस्त्र पहनने जैसे काम भी इस तिथि में किए जा सकते हैं.

षष्ठी तिथि व्यक्ति स्वभाव

षष्ठी तिथि में व्यक्ति का जन्म होने पर व्यक्ति घूमने फिरने का शौक रखता है. अपने इसी शौक के कारण जातक को देश-विदेश में घूमने के मौके भी मिलते हैं. नए स्थानों पर जाने और उस माहौल को समझने कि कोशिश करता है. वह स्वभाव से झगडालू प्रकृति का होता है तथा उसे उदर रोग कष्ट दे सकते है.

इस तिथि में जन्मा जातक संघर्ष करने की हिम्मत रखता है. जातक में जोश और उत्साह रहता है. वह अपने कामों के लिए दूसरों पर निर्भर रहने की इच्छा कम ही रखता है. अपने काम को करने के लिए लगातार प्रयास करने से दूर नहीं हटता है. जातक में अपनी बात को मनवाने की प्रवृत्ति भी होती है. वह सामाजिक रुप में मेल-जोल अधिक न रखता हो पर उसकी पहचान सभी के साथ होती है.

जातक में अधिक गुस्सा हो सकता है. उसके स्वभाव में मेल-जोल की भावना कम हो सकती है. वह स्वयं में अधिक रहना पसंद कर सकता है. जातक दूसरों को समझता है तभी अपने मन की बात औरों के साथ शेयर करनी की कोशिश करता है. इन्हें मनाना आसान भी नहीं होता है.

बहुत जल्दी किसी को पसंद नही करता है, लेकिन जब पसंद करता है तो उसके प्रति निष्ठा भाव भी रखता है. कई बार अपनी जिद के कारण कुछ बातों पर असफल होने पर निराशावादी भी हो सकता है. कई बार आत्मघाती भी बन सकता है. गुस्से के कारण दूसरे इससे परेशान रहेंगे लेकिन अपने व्यवहार में माहौल के अनुरुप ढलने की कोशिश भी करता है.

षष्ठी तिथि मे मनाए जाने वाले मुख्य पर्व

षष्ठी तिथि के दौरान बहुत से उत्सवों का नाम आता है. जिसमें स्कंद षष्ठी, छठ पर्व, हल षष्ठ, चंदन षष्ठी, अरण्य षष्ठी नामक पर्व इस षष्ठी तिथि को मनाए जाते हैं. देश के विभिन्न भागों में किसी न किसी रुप में इस तिथि का संबंध प्रकृति और जीवन को प्रभवित अवश्य करता है.

हल षष्ठी

भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को हल षष्ठी के रुप में मनाया जाता है. षष्ठी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था जिस कारण इस तिथि को हल षष्ठी के रुप में भी मनाया जाता है. इस दिन उनके शस्त्र हल की पूजा का भी विधान है. इस दिन संतान की प्राप्ति एवं संतान सुख की कामना के लिए स्त्रियां व्रत भी रखती हैं.

स्कंद षष्ठी

स्कंद षष्ठी पर्व के बारे में उल्लेखनीय बात है की आषाढ़ शुक्ल पक्ष की षष्ठी और कार्तिक मास कृष्णपक्ष की षष्ठी तिथि को स्कन्द-षष्ठी के नाम से मनाया जाता है. इस तिथि को भगवान शिव के पुत्र स्कंद का जन्म हुआ था. स्कंद षष्ठी के दिन व्रत और भगवान स्कंद की पूजा का विधान बताया गया है.

चंद्र षष्ठी

आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को चंद्र षष्ठी के रुप में मनाया जाता है. इस समय पर चंद्र देव की पूजा की जाती है. रात्रि समय चंद्रमा को अर्ध्य देकर व्रत संपन्न होता है.

चम्पा षष्ठी

चम्पा षष्ठी मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है. मान्यता है की इस व्रत को करने से पापों से मुक्ति मिलती है और भगवान शिव का आशिर्वाद मिलता है.

सूर्य षष्ठी

सूर्य षष्ठी व्रत भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है. इस दिन भगवान सूर्य की पूजा का विधान है. भगवान सूर्य की पूजा के साथ गायत्री मंत्र का जाप करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है. इस दिन किए गया व्रत एवं पूजा पाठ सौभाग्य और संतान, आरोग्य को प्रदान करता है. सूर्योदय के समय भगवान सूर्य की पूजा स्तूती पाठ करना चाहिए.

विशेष :

षष्ठी तिथि संतान के सुख और जीवन में सौभाग्य को दर्शाती है. इस तिथि में आने वाले व्रत भी इस तिथि की सार्थकता को दर्शाते हैं. यह नंदा तिथि को शुभ तिथियों में स्थान प्राप्त है. इस तिथि में मौज मस्ती से भरे काम करना भी अच्छा होता है.