जानिए, लालडी़ अथवा सूर्यमणि उपरत्न कौन धारण करे?
ऋग्वेद के प्रथम श्लोक में ही रत्नों के बारे में जिक्र किया गया है. इसके अतिरिक्त रत्नों के महत्व के बारे में अग्नि पुराण, देवी भागवद, महाभारत आदि कई पुराणों में लिखा गया है. कुण्डली के दोषों को दूर करने के लिए हर व्यक्ति रत्नों का सहारा लेता है. आर्थिक तथा शारीरिक रुप से बली होने के लिए व्यक्ति विशेष के द्वारा रत्न धारण किए जाते हैं. रत्नों को धारण करने से व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास बढ़ता है.
नौ ग्रहों के मुख्य रत्न नौ ही हैं परन्तु सभी प्रमुख नौ रत्नों के कई उपरत्न हैं. इन उपरत्नों की संख्या बहुत अधिक है. सभी का अपना महत्व है. जो व्यक्ति आर्थिक परेशानी के कारण बहुमूल्य रत्नों को खरीदने में असमर्थ हैं वह उपरत्नों को धारण कर सकते हैं. इनका प्रभाव भी मुख्य रत्नों के अनुसार, लेकिन उनसे थोडा़ सा ही कम, मिलता है. परन्तु उपरत्नों से बल अवश्य मिलता है. जिनकी कुण्डलियों में सूर्य शुभ भावों का स्वामी है परन्तु अशुभ भावों में स्थित है, वह लालडी़ उपरत्न धारण कर सकते हैं. लालडी़ उपरत्न के अन्य नाम स्पाइनल, सूर्यमणि हैं.
सूर्य को इस सृष्टि की आत्मा रुप में जाना जाता है. सृष्टि के संचालन में सूर्य का महत्व सर्वोपरी है. इस संसार में सूर्य का प्रकाश जीवन ही नहीं प्रकृत्ति को भी संचार देता है. सूर्य के महत्व के विषय में हमें वेदों में बहुत विस्तार रुप में मिलता है. ऋगवेद में सूर्य की उपासना एवं उसके महत्व को दर्शाया गया है. सूर्य संचालक रुप में सभी को आगे बढ़ाता है. उपनिषदों में सूर्य को ब्रह्म का स्वरुप माना गया है. यदि हम बात करें चाक्षुउपनिषद के बारे में तो ये उपनिषद सिर्फ सूर्य पर आधारित है. इस उपनिषद में सूर्य के प्रभाव से नेत्रों की सुरक्षा का मंत्र प्राप्त होता है. 12 सूर्य जिन्हें 12 आदित्य भी कहा जाता है इनका वर्णन वेद और उपनिषद मिलता है.
ऎसे में जब जन्म कुन्डली में सूर्य की स्थिति कमजोर हो तो उस स्थिति में सूर्य को मजबूती देने के लिए सूर्य के रत्न का उपयोग उत्तम होता है. सूर्य की शुभ स्थिति और उसके ऊर्जा को पाने के लिए रत्न की भूमिका बहुत प्रभावशाली बनती है. सूर्य के लिए रुबी रत्न को उपयोग है. इसके अतिरिक्त सूर्य का उपरत्न सूर्यमणि भी है. जो रुबी धारण नहीं कर पाते उनके लिए सूर्यमणि का उपयोग बहुत उपयोगी होता है.
लालडी़ अथवा सूर्यमणि उपरत्न
लालडी़ इसे सूर्यमणि भी कहते हैं. यह माणिक्य का उपरत्न है. सूर्य के इस उपरत्न का रंग लाल होने के कारण यह लालडी़ कहलाता है. यह उपरत्न रक्त जैसा लाल तथा कृष्ण वर्ण जैसी आभा लिए होता है. देखने में कांतियुक्त तथा पारदर्शी होता है. इस रत्न की आभा बहुत सुंदर होने के कारण इसका उपयोग आभूषणों में भी किया जाता है. इस रत्न की आभा और रंगत के कारण इसका मूल्य कम या अधिक हो सकता है. ये रत्न सूर्य के मुख्य रत्न रुबी से सस्ता होने के कारण भी लोकप्रिय है.
लालडी़ कौन पहन सकता है
जिन व्यक्तियों की कुण्डली में सूर्य शुभ भावों का स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित है उन्हें माणिक्य रत्न पहनने का परामर्श दिया जाता है. लेकिन माणिक्य रत्न कीमती रत्न है. हर व्यक्ति इसे धारण करने में समर्थ नहीं है. जिन व्यक्तियों की आर्थिक स्थिति सूर्य का रत्न माणिक्य खरीदने की नहीं है वह माणिक्य के स्थान पर लालडी़ उपरत्न धारण कर सकते है. लालडी़ रत्न धारण करने से भी सूर्य को बल प्राप्त होता है. कुण्डली में सूर्य लग्न, चतुर्थ, पंचम, नवम तथा दशम भावों का स्वामी है और निर्बल अवस्था अथवा अशुभ भावों में स्थित है तब सूर्य का उपरत्न लालडी़ धारण किया जा सकता है.
लालडी़ के साथ कौन सा रत्न ना पहने
हीरा और नीलम रत्न अथवा इनके उपरत्नों के साथ लालडी़ उपरत्न को धारण नहीं करना चाहिए.
सूर्यमणि रत्न के फायदे
सूर्य ग्रह राजा अथवा सरकार से मिलने वाले लाभ देखे जाते हैं. सूर्य पिता है ऎसे में कुण्डली में भी सूर्य की स्थिति पिता के साथ संबंधों को दर्शाती है. व्यक्ति के भीतर कितनी पवित्रता है उसकी आत्मा की उज्जवलता है वह सिर्फ सूर्य से ही प्राप्त होती है. सूर्य का जन्म कुण्डली में उज्जवल स्वरुप जातक को सभी स्तरों पर बेहतर और मजबूत स्थान देने में मददगार बनता है. इन सभी बातों में शुभता और सफलता की प्राप्ति हमें सिर्फ सूर्य की जन्म कुण्डली में मजबूत स्थिति से ही प्राप्त हो सकती है.
यदि जातक रोगी है और उसे स्वास्थ्य लाभ चाहिए तो उसके लिए सूर्य का उपरत्न धारण कर लेना बहुत असरदार रह सकता है. ये रत्न सरकारी राजकीय क्षेत्र में सफलता पाने के लिए बहुत उपयोगी होता है. ये रत्न उच्चाधिकारियों के साथ आपके संबंधों को बेहतर बना कर रखने में भी सहायक बन सकता. शरीर में रक्तचाप की अनियमितता को दूर करता है, हड्डियों और दिल से जुड़ी बिमारियों में, किसी भी प्रकार के चर्म रोग को दूर करने में भी इसका उपयोग फायदेमंद होता है. इसके अतिरिक्त मानसिक बेचैनी और भ्रम को दूर करने में भी यह लाभकारी होता है.
सूर्यमणि उपरत्न धारण करने की विधि
यह सूर्य का रत्न है इस कारण इसे सूर्य के दिन में पहनने की सलाह दी जाती है. सूर्य का दिन अर्थात रविवार के दिन इसे पहनना चाहिए. रविवार के दिन शुक्ल पक्ष की तिथि के समय, प्रात:काल सूर्योदय के समय पर इसे उपयोग में लाएं.
इस रत्न को शुभ मुहूर्त में सोने की या पीतल की धातु में जड़वा कर इसे उपयोग में लाएं. इसे आप गले में चेन के रुप में, अंगूठी में जड़वा कर, या किसी भी रुप में पहन सकते हैं. इस रत्न को इस प्रकार पहने की यह आपके शरीर का स्पर्श अवश्य कर पाए.
इस रत्न को पहने से पहले इसे कच्चे दूध, गंगाजल में डूबोकर रखें और फिर इसे सूर्य मंत्र - ऊँ घृणिः सूर्याय नमः अथवा ऊँ सूर्याय नम: इत्यादि का जाप करते हुए पहनना चाहिए.
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