जानिए चंद्रमा से बनने वाले दुर्धरा योग का प्रभाव
जन्म कुण्डली में दुर्धरा (दुरुधरा) योग का निर्माण चंद्रमा की स्थिति के आधार पर तय होता है. जब कुण्डली में सूर्य के सिवाय, चन्द्र के दोनो और अथवा द्वितीय व द्वादश भाव में ग्रह हों, तो इससे दुरुधरा योग बनता है. यह योग चंद्रमा की स्थिति को विभिन्न ग्रहों के प्रभाव के साथ जोड़कर देखा जाता है. चंद्रमा जो सबसे अधिक गतिशील ग्रह है उस पर जब अन्य ग्रहों का प्रभाव पड़ता है तो वह किस प्रकार व्यक्ति को प्रभावित करता है इसे समझ पाना कठिन नहीं होता है.
चंद्रमा एक अति चंचल ग्रह माना गया है. हमारे मन को भी इस चंद्रमा के प्रभाव से देखा जाता है. मन का दुख और सुख चंद्रमा की कलाओं से प्रभावित होता है. इस योग वाले व्यक्ति को जन्म से ही सब सुख-सुविधाएं, प्राप्त होती है. उसके पास धन-संपति वाहन और नौकर चाकर होते है. वह स्वभाव से उदार चित्त, स्पष्ट बात कहने वाला, दान-पुण्य करने वाला और धर्मात्मा होता है.
दुर्धरा योग को एक शुभ योग की श्रेणी में रखा गया है. इसके फल भी व्यक्ति को शांति और शुभता देने में सक्षम होते हैं. दुरुधरा योग में सूर्य को छोड़ कर अन्य सभी ग्रहों का प्रभाव पड़ता है और ग्रहों के गुणों के आधार पर ही प्रभाव भी देता है.
मंगल-बुध दुरुधरा योग
दुरुधरा योग जब कुण्डली में मंगल-बुध से बनता है तो यह स्थिति व्यक्ति को इन दोनों की युति स्वरुप फल देती है. मंगल और बुध का संबंध एक अनुकूल संबंध नही होता है. यह एक प्रकार के विरोधाभास की स्थिति को भी दर्शाता है. इन दोनों के प्रभाव से दुरुधरा योग बना हो तो, जातक प्रपंच करने वाला हो सकता है, वह छोटी-छोटी चीजों को भी कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढा़ कर प्रस्तुत कर सकता है. असत्यवादी और व्यर्थ के झूठ बोलने का आदि भी हो सकता है, जिस झूठ को बोलने की आवश्यकता भी नहीं होगी पर अपनी आदत स्वरुप वह ऎसा नहीं कर पाएगा, पूर्ण धनी होता है पर आर्थिक क्षेत्र में लाभ नहीं उठा पाएगा. चतुर होगा और अपने काम को निकलवाने की योजनाएं बनाने में लगा रहेगा. हठी, गुणवान, लोभी व अपने कुल का नाम रोशन करने वाला.
मंगल-गुरु दुर्धरा योग
मंगल-गुरु से दुरुधरा योग हो तो व्यक्ति अपने कार्यो के कारण विख्यात रहता है. यह स्थिति जातक को अपने संघर्ष से ही आगे बढ़ने देती है. जातक खुद के बल पर ही सफल हो पाता है उसे दूसरों का सहयोग अधिक नहीं मिल पाता है. उसमें कपट भावना पाई जा सकती है. धन के प्रति महत्वकांक्षी होते हैं और इसके लिए हर संभव प्रयास भी करते हैं. उनकी सफलता को पाने की भूख उसके शत्रुओं में बढोतरी कर सकती है. इसके साथ ही वह क्रोधी होता है. जातक में जिद्द भी होती है और अपनी बात को मनवाने की हर तरह से कोशिश भी करता है. धन संचय में उसे विशेष रुचि होती है.
मंगल-शुक्र दुर्धरा योग
किसी व्यक्ति की कुण्डली में मंगल-शुक्र से दुरुधरा योग बन रहा हो तो व्यक्ति का जीवन साथी सुन्दर होता है. इस योग में व्यक्ति की इच्छाओं में वृद्धि रहती है. व्यक्ति विपरितलिंगी पर भी बहुत अधिक आकर्षित होता है. जातक अपने काम में कलात्मकता लाने की कोशिश करता है. उसे विवादों में रहना पसन्द होता है. साथ ही वह और लडाई आदि विषयों के प्रति उत्साही रहता है. वह लोगों के मध्य आकर्षण का केन्द्र भी बनता है.
मंगल -शनि दुर्धरा योग
मंगल और शनि के प्रभाव से बना यह योग व्यक्ति को आद्यात्मिक दृष्टिकोण देता है. ऎसा व्यक्ति कामी हो सकता है तो काम के प्रति अनिच्छा भी रख सकता है. धन इकठा करने वाला, व्यवहारिक अधिक होता है. किसी गलत चीजों के प्रति जल्द ही आकर्षित हो सकता है. व्यसनों से घिर सकता है, क्रोधी व अनेक शत्रुओं वाला होता है.
बुध-गुरु दुर्धरा योग
बुध-गुरु दुरुधरा योग एक शुभता प्रदान करने वाला होता है पर जातक की विचारधारा में स्थिति के कारण बदलाव भी होता है. व्यक्ति धार्मिक होता है, शास्त्रों का जानकार भी होता है. यह दोनों ही ग्रह बौद्धिकता और ज्ञान को प्रभावित करती है इसी कारण जातक के भीतर एक बेहतर वक्ता होने के गुण भी मौजूद होते हैं, सभी वस्तुओं से सुखी, त्यागी और विख्यात होता है.
बुध-शनि दुर्धरा योग्
इस योग का व्यक्ति प्रियवक्ता, सुन्दर, तेजस्वी, पुण्यवान, सुखी, तथा राजनीति में काम करने के लिए उत्साहित होता है. व्यक्ति अपने काम को निकलवाने की योग्यता रखता है. जातक चालबाजियों को करता है और ऎसी योजनाओं को बनाने में आगे रहता है जिससे उसे लाभ मिले. आध्यात्मिक ऊर्जा भी जातक को प्राप्त होती है.
बुध-शुक्र दुरुधरा योग
बुध और शुक्र से बनने वाला यह योग व्यक्ति देश-विदेश घूमने वाला, निर्लोभी, विद्वान, दूसरों से पूज्य, कई बार जातक स्वजन विरोधी भी होता है. व्यक्ति में कला और रचनात्मक चीजों के प्रति लगाव होता है. इस योग के प्रभाव से व्यक्ति अपनी नितियों और कार्यशैली से दूसरों को प्रभावित कर सकता है.
गुरु-शुक्र दुरुधरा योग
गुरु और शुक्र से दुरुधरा योग हो तो वह व्यक्ति धैर्यवान, मेधावी, स्थिर स्वभाव, नीति जानने वाला होता है. उसकी ख्याती अपने प्रदेश में होती है. इसके अतिरिक्त उसके सरकारी क्षेत्र में कार्य करने के योग बनते है. इस दोनों के प्रभाव से जातक के भीतर महत्वकांक्षाओं की भी अधिकता हो सकती है. अपने मन के कार्यों को करने की आदत दूसरों को उसके विरुद्ध भी बना सकती है.
गुरु-शनि दुरुधरा योग
इस के प्रभाव से जातक के भीतर ऎसा ज्ञान होता जिससे वह अपने साथ-साथ दूसरों का भी मार्गदर्शन कर सकता है. व्यक्ति सुखी, नीतिज्ञ, विज्ञानी, विद्वान, कार्यो को करने में समर्थ, पुत्रवान, धनवान और रुपवान होता है. जातक सामाजिक स्तर पर प्रभावशाली व्यक्ति बन सकता है. मानसिक रुप से अधिक सोच विचार करने वाला हो सकता है.
शुक्र-शनि दुरुधरा योग
ऎसे व्यक्ति का जीवन साथी व्यसनी होता है. कुलीन, सब कार्यो में निपुण होता है. विपरीत लिंग का प्रिय, धनवान, सरकारी क्षेत्रों से सम्मान प्राप्त करने वाला होता है. इस स्थिति के प्रभाव के कारण जातक के भीतर अंतरविरोध अधिक होता है. व्यक्ति के भीतर शुभता और सौम्यता मौजूद होती है.