वशिष्ठ सिद्धान्त- सिद्धान्त ज्योतिष - ज्योतिष इतिहास | Vashishtha Siddhanta ( Siddhanta Jyotish ) History of Astrology | Romaka Siddhanta
भारत में ज्योतिष का प्रारम्भ कब से हुआ, यह कहना अति कठिन है. इसे प्रारम्भ करने वाले शास्त्री कौन से है. उनका उल्लेख स्पष्ट रुप से मिलता है. उनमें सूर्य, पितामह, व्यास, वशिष्ठ, अत्रि, पराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमेश, पौलिश,च्यवन, यवन, भृ्ग, शौनक, भारद्वाज प्रमुख है.
इन सभी शास्त्रियों के द्वारा लिखे गए, शास्त्र पूर्ण रुप में उपलब्ध नहीं है. जो प्रमाण है, भी वे भी खण्डित भागों में है.
वशिष्ठ सिद्वान्त वर्णन | Vashishtha Siddhanta Description
वशिष्ठ सिद्धान्त शास्त्र सौर मण्डल में सूर्य और चन्द्रमा की गति का विवरण दिया गया है. वशिष्ठ सिद्धान्त में मंगल, बुध, गुरु, शनि की गतियों को वर्णय किया गया है. यह शास्त्र यह बताने में भी समर्थ है कि इससे पूर्व व्यतीत हो चुके वर्षों में ग्रहों की गतियां क्या रही थी. तथा इन ग्रहों ने पिछले युगों में किस प्रकार भ्रमण किया है.
वशिष्ठ सिद्धान्त शास्त्र महत्व | Vashishtha Siddhanta Importance
वशिष्ठ सिद्वान्त का पच्चसिद्वान्तिका में संक्षिप्त वर्णन किया गया है. इस सिद्वान्त शास्त्र में ग्रहों की गति के अलावा राशियों का उल्लेख भी किया गया है. यह सिद्वान्त शास्त्र पितामह सिद्धान्त के समान होने पर भी उससे कई स्तर में शुद्ध सिद्धान्त शास्त्र है. पितामह सिद्वान्त की तरह विशिष्ठ सिद्वान्त में भी माना गया है, कि जब दिन बढता है, तो प्रतिदिन बराबर वृ्द्धि होती है.
वशिष्ठ सिद्वान्त अन्य शास्त्रों से तुलना | Comparison of Vashishta Siddhanta with other Scriptures
इसके अलावा वशिष्ठ सिद्धान्त लग्न का भी वर्णन करता है. जिससे पता चलता है, कि सूर्य का कौन सा भाग पूर्वी क्षितिज में उदित हुआ है. लेकिन उस समय के शास्त्रियों को सूर्य व चन्द्र की मध्य व स्पष्ट गतियों का अन्तर का ज्ञान नहीं था. वर्तमान में प्रयोग में लाने जाने वाले वशिष्ठ सिद्धान्त का वराहमिहीर के समय में उपलब्ध वशिष्ठ सिद्वान्त से कोई सम्बन्ध नहीं है.
यह माना जाता है, कि वशिष्ठ सिद्वान्त, पितामह सिद्धान्त से अधिक विकसित था. किन्तु यह सूर्य सिद्वान्त से कम स्तर का था.
रोमक सिद्वान्त
प्राचीन काल में ज्योतिष अपने सर्वोत्तम स्तर पर था. मध्य काल में इस विद्या के शास्त्रों को न संभाल पाने के कारण उस समय के सही प्रमाण हमारे पास आज पूर्ण रुप से उपलब्ध नहीं है. उस समय के के शास्त्री ग्रहों कि गति, कालों आकलन आदि करना बखूबी जानते थे.
उस समय के गणित नियमों को सिद्धान्तों का नाम दिया गया. सिद्धान्त ज्योतिष में अनेका आचार्यों ने अनेक ग्रन्थ लिखें. इन्हीं में से कुछ शास्त्र सूर्य सिद्धान्त, पराशर सिद्धान्त, वशिष्ठ सिद्वान्त आदि है. इसी में से एक रोमक सिद्धान्त पर आज हम प्रकाश डालेंगें.
रोमक सिद्धान्त क्या है. | What is Romaka Siddhanta
यह प्राचीन् काल का गणितीय सिद्धान्त शास्त्र है. यह शास्त्र यमन ज्योतिष के नियमों पर आधारित है. यमन ज्योतिष मुख्यत: यूनान, मिश्र आदि देशों में विशेष रुप से प्रचलित था.
रोमक सिद्धान्त शास्त्र में क्या है. | Romaka Siddhanta Scripture
रोमक सिद्वान्त में सूर्य व चन्द्र के बारे में आंकडे दिए गये है. इसके अतिरिक्त यह शास्त्र अधिक मास, क्षय मास, तिथि और क्षय तिथि का विस्तार से वर्णन् किया गया है.
बेबीलोन के निवासी ग्रहों में पांच ग्रह देवताओं का पूजन करते थें. ये पांच ग्रह बुध, शुक्र, मंगल, गुरु व शनि ग्रह थे. इन्हीं सभी ग्रहों की पूजा का वर्णन रोमक सिद्धान्त में भी मिलता है.
रोमक सिद्धान्त लोमश सिद्धान्त का ही अपभ्रन्श रुप है, प्राचीन शास्त्रों में रोग देश के नागरिको के लिए रोमक शब्द प्रयुक्त किया गया है. यह शास्त्र ज्योतिष की गणना से जुडे प्रमुख सिद्धान्त शास्त्रों में से एक है. इस सिद्धान्त का जन्म रोमण से होने के कारण इसे रोमक सिद्धान्त का नाम दिया गया.