लग्नभाग्यधिपति-राजयोग योग क्या है. | Dharmakarmadhipati Yoga | Lagnakarkadhipati Yoga | Lagnabhagyadhipati Yoga | How to Formed Rajyoga | Kalpdruma Yoga | Mridanga Yoga

धर्माकर्माधिपति योग में नवमेश और दशमेश का आपस में राशि परिवर्तन हो रहा होता है. दोनों का एक -दूसरे से दृ्ष्टि , युति संबन्ध बन रहा होता है, कुण्डली में यह योग होने पर व्यक्ति धर्म कर्म के कार्यो में आगे बढकर भाग लेता है. तथा वह धार्मिक आस्था युक्त होता है. धर्म क्रियाओं में भाग लेने से उसके भाग्य में भी वृ्द्धि होती है. 

लग्नकर्माधिपति योग क्या है. । What is Lagna Karmadhipati Yoga 

लग्नकर्माधिपति योग में लग्नेश व दशमेश की एक -दूसरे पर दृ्ष्टि या आपस में राशि परिवर्तन या दोनों की लग्न या दसवें भाव में युति हो रही होती है. यह योग व्यक्ति के स्वास्थय सुख में वृ्द्धि कर, उसे आजीविका क्षेत्र में सफलता दिलाने में सहयोग करता है.  ऎसे व्यक्ति के स्वभाव में सकारात्मक दृ्ष्टिकोण पाया जाता है. जीवन के उतार-चढावों से वह व्यक्ति शीघ्र विचलित नहीं होता है.  

लग्नभाग्यधिपति योग कैसे बनता है. | What is Lagna Bhagyadhipati Yoga

लग्नभाग्यधिपति योग में लग्नेश और नवमेश की एक-दूसरे से दृ्ष्टि सम्बन्ध या आपस में राशि परिवर्तन, या दोनों की लग्न या नवें भाव में युति हो रही हो तो लग्नभाग्यधिपति योग बनता है. इस योग से व्यक्ति के शरीर में आरोग्य शक्ति में वृ्द्धि होती है. यह योग व्यक्ति के भाग्य में वृ्द्धि करता है. व्यक्ति के अनेक कार्य भाग्य के सहयोग से पूरे होते है.  

राजयोग कब और कैसे फल देते है. | How are Rajayogas Formed

जब ग्रहों में आपस में राशि परिवर्तन या एक -दूसरे पर दृ्ष्टि संबन्ध हों, केन्द्र या त्रिकोण के स्वामियों के मध्य सम्बध बन रहा हो तो राजयोग बनता है. 

राजयोग में ग्रह शुभ ग्रहों से सम्बन्ध बनाये और अशुभ ग्रहों से संबन्ध न बना रहे हों, तो राजयोग के फलों में शुभता की वृ्द्धि होती है.  

राजयोग में शामिल होने वाले ग्रह अगर अशुभ ग्रह हों तो ग्रहों के अशुभता भाव में कमी होती है.  

एक वक्री ग्रह राजयोग में शुभ फल दे सकता है. परन्तु उसका नक्षत्र स्वामी वक्री अवस्था में नहीं होना चाहिए. इस तरह से एक वक्री ग्रह जिस भाव में बैठता है या दृष्ट होता है. या जिसका स्वामी होता है. उसको अपनी दशा या उसके नक्षत्र में बैठे ग्रह की दशा में अच्छा फल देती है.

जब संबन्धित ग्रह या लग्नेश इन स्थानों में गोचर करता है. तो राजयोग महायोग बनता है. 

जब योग बनाने वाले ग्रह की दशा चलती है और यह ग्रह लग्न या लग्नेश से अनुकुल स्थिति में बैठा हों तभी पूर्ण रुप से फल देते है.  

जब सम्बन्धित ग्रह शत्रु भाव में हो या नीच के हों, जब अष्टमेश या एकादशेश इन ग्रहों से संबन्धित हो, तो राजयोग भंग जो जाता है. 

एक योगकारक ग्रह को तीसरे, छठे और बारहवें भाव का स्वामी भी नहीं होना चाहिए. या तृ्तीयेश, अष्टमेश और एकादशेश या द्वादशेश के साथ युति में नहीं होना चाहिए. 

जब एक योगकारक ग्रह के पास आंठवें और ग्यारहवें भाव का स्वामित्व भी होता है. तो राजयोग फल में कमी हो जाता है. 

एक ग्रह तृ्तीयेश,एकादशेश षष्टेश होने के कारण या किन्हीं अन्य कारणों से अशुभ होने पर योगकारक ग्रह से संबन्धित होता है. तो इसकी अन्तर्दशा में यह व्यक्ति को राजयोग के पूरे परिणाम प्रदान नहीं करता है. (Alprazolam) लेकिन तृ्तीयेश दशमेश भी होता है. और तीसरे या दसवें भाव में स्थित हों, तो राजयोग सुरक्षित रहता है. 

कल्पद्रुम योग कैसे बनता है. | How to Formed Kalpdruma Yoga 

जब कुण्डली में लग्नेश, उसका राशिश, इस राशिश का राशिश और उसका नवांशेश ये चारों राशि कुण्डली में स्वराशि या उच्च के होकर केन्द्र या त्रिकोण में बैठे हों.  

मृ्दंग योग कैसे बनता है | How to Formed Mridanga Yoga 

जब कुण्डली में उच्च ग्रह का नवांशेश राशि कुण्डली में केन्द्र या त्रिकोण में एक स्वक्षेत्री या उच्च के ग्रह के साथ बैठा हों, और लग्न बली हो तो मृ्दंग योग बनता है.  यह योग भी राजयोगों के समान फल देता है.