द्वितीया तिथि | Dwitiya Tithi

द्वितीया तिथि को कई नामों से जाना जाता है. यह तिथि दौज व दूज के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है. इस तिथि के देव ब्रहा जी है. इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति को ब्रह्मा जी पूजन करना चाहिए. इस तिथि का एक अन्य नाम सुमंगला है. अगर किसी माह में यह तिथि दोनों पक्षों में बुधवार के दिन पडती है, तो इसे ऎसे में इन्हें सिद्धिदा कहा जाता है, सिद्धा तिथि अपने नाम के अनुसार फल देने वाली मानी जाती है. अर्थात इस तिथि में किए गए सभी कार्य सिद्ध होते है.

द्वितीया तिथि से बनने वाले योग

तिथि से बनने वाले योगों में यह तिथि अनेक योग बनाती है. द्वितिया तिथि अगर सोमवार या शुक्रवार इन दोनों में से किसी भी वार को पडे, फिर चाहे कोई भी पक्ष हो तो यह मृत्युदा तिथि योग बनाती है. मृत्युदा तिथि में कोई भी शुभ कार्य करने पर मृत्यु होने की संभावना होती है. इस तिथि में किए गये सभी कार्यो की कार्यसिद्धि में कमी होती है.

यह माना जाता है, कि शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को शिव जी गौरी के समीप होते है. ऎसे में भगवान शिव को प्रसन्न करना बेहद सरल रहता है. इसके विपरीत कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि में भगवान शिव का पूजन करना शुभ नहीं होता है.

द्वितीया तिथि व्यक्ति विशेषताएं

जिस व्यक्ति का जन्म द्वितीया तिथि में होता है, उस व्यक्ति में विपरीत लिंग के प्रति अधिक आकर्षण होता है. इस कारण जातक गलत संगत में भी पड़ सकता है. जातक भावनात्मक रुप से कुछ कमजोर हो सकता है. जल्दी ही दूसरों की बातों पर आ सकता है. अपने काम को लेकर एकाग्र होता है और मेहनत से मुख नहीं मोड़ता. परिश्रम से भाग्य का निर्माता बनता है.

इस योग का व्यक्ति सत्य बोलने से बचता है. इस कारण उसे अपने निकट के लोगों से स्नेह की प्राप्ति नहीं होती है. मित्रों की अधिकता होती है. व्यक्ति को घूमने फिरने का शौकिन होता है. लम्बी यात्राओं पर जाता है. जातक अपने लोगों से अधिक दूसरों के प्रति अधिक प्रेम दिखाता है. अपनों के साथ मतभेद अधिक परेशान करते हैं.

मान-मर्यादा मे आगे कुल का नाम बढाने वाला होता है. जातक के काम समाज में उसे सम्मानित स्थान भी देते हैं. कानून का अच्छा जानकार हो सकता है. इस तिथि में जन्मे जातक को ब्रह्मा जी की उपासना करने से जीवन में मौजूद परेशानियों का नाश होता है.

द्वितीया तिथि पर्व

द्वितीया तिथि के दौरान भी पूजा-पाठ और पर्व मनाए जाते हैं. वर्ष भर के दौरान कुछ ऎसे त्यौहार और उत्सव आते हैं जो द्वितीया तिथि के अवसर पर आयोजित होते हैं.

भाई दूज -

द्वितीया तिथि में भाई दूज का पर्व विशेष रुप से उल्लेखनीय है. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भैया दूज का पर्व मनाया जाता है. इस पर्व को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है. भाई बहन के प्रेम का प्रतीक ये त्यौहार अकाल मृत्यु के भय से भी मुक्ति दिलाने वाला होता है.

जगन्नाथपुरी रथ यात्रा -

यह यात्रा का आयोजन प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है. आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को पुरी में भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा का पर्व मनाया जाता है. इस यात्रा में भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और उनकी बहन सुभद्रा जी पूजन होता है और इनकी रथ यात्रा निकाली जाती है.

अशून्य शयन व्रत -

श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया के दिन अशून्य शयन व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान श्री विष्णु एवं देवी लक्ष्मी की पूजा होती है. यह व्रत समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है. स्त्री को सौभाग्य का आशिर्वाद मिलता है और सुखी दांपत्य का सुख प्राप्त होता है.

नारद जयती -

ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को नारद जयंती का पर्व मनाया जाता है. नारद जी, ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं. इस दिन नारद जी की पूजा अर्चना की जाती है साथ ही भगवान विष्णु जी का पूजन भी होता है.