सिंह लग्न के लिए बाधक ग्रह और उसका प्रभाव

सिंह लग्न के लिए बाधक ग्रह और उसका प्रभाव
सूर्य सिंह लग्न को शक्ति प्रदान करता है, जो स्वयं में केन्द्रित होने से ही मिलती है. सिंह लग्न के लिए नवम भाव बाधक बनता है और नवम भाव का स्वामी बाधकेश बनता है. सिंह लग्न में बाधक मेष राशि होती है और मेष राशि का स्वामी मंगल बाधकेश की भूमिका को निभाता है. आइये जान लेते हैं बाधक मगल कैसे सभी भावों पर अपना असर डाल सकता है

प्रथम भाव में बाधक मंगल की स्थिति
सिंह लग्न में प्रथम भाव में बैठा मंगल बाधक होता है तथा व्यक्ति की मानसिकता को प्रभावित करता है. व्यक्ति का स्वाभिमान तथा मनोबल बहुत मजबूत होता है. हठ तथा अहंकार के कारण परेशानी होती है. मंगल सप्तम भाव को सप्तम दृष्टि से देखता है, अतः पत्नी से सुख भी प्रभावित होता है. संतान के क्षेत्र में कुछ परेशानियां हो सकती हैं, शिक्षा तथा बुद्धि के क्षेत्र में कुछ परेशानियां हो सकती हैं. भाग्य तथा धर्म के क्षेत्र में भी कुछ परिवर्तन होता है.

द्वितीय भाव में बाधक मंगल की स्थिति
सिंह लग्न के द्वितीय भाव में बाधक मंगल होने पर धन संग्रह में कठिनाई होती है. परिवार में सामंजस्य कम होता है. वाणी में ओज के साथ धैर्य तथा गंभीरता होती है. बाधक स्वामी देखता है तो बाधाओं के कारण चिंता होती है. बाधक मंगल दशम भाव से संबंधित सभी कमजोर फल देता है.

तीसरे भाव में बाधक मंगल की स्थिति
पराक्रम और भाई-बहन के तीसरे भाव में अपने शत्रु की राशि में बाधक मंगल के प्रभाव से साहस में कमी आती है और भाई-बहनों का सुख प्राप्त होता है. यहां से बाधक मंगल भाई बंधुओं का मित्रों का सुख कम मिलता है और व्यापार के क्षेत्र में परिवर्तन होते हैं. धन पर लगातार ध्यान रहता है.

चौथे भाव में बाधक मंगल की स्थिति
कन्या राशि में स्थित बाधक मंगल के प्रभाव से माता, भूमि, मकान आदि का पर्याप्त सुख मिलता है और सुख में कमी आती है. आयु और पैतृक संपत्ति में कुछ हानि और अशांति का सामना करना पड़ता है. पिता और राज्य से पर्याप्त सहयोग, सफलता और यश में कमी आती है. व्यय में वृद्धि होती है तथा बाहरी स्थानों से विशेष संबंध बनते हैं. बाधक मंगल बाह्य रूपों में ही सुख देता है.

पंचम भाव में बाधक मंगल की स्थिति
पंचम त्रिकोण तथा शिक्षा एवं संतान भाव में बाधक मंगल के प्रभाव से संतान के क्षेत्र में कुछ हानि होती है अथवा शिक्षा एवं बुद्धि के क्षेत्र में सफलता के लिए अधिक प्रयास करने पड़ सकते हैं. भाग्योन्नति में कुछ कठिनाइयों के साथ सफलता मिलती है. शारीरिक सौन्दर्य पर अभिमान, प्रभाव एवं स्वाभिमान में वृद्धि होती है.

छठे भाव में बाधक मंगल की स्थिति
छठे शत्रु एवं रोग भाव में बाधक मंगल के प्रभाव से शत्रुओं से अधिक परेशानी हो सकती है. साथ ही पत्नी से कुछ मतभेद के साथ सफलता मिलती है. बाधक मंगल मान-सम्मान एवं उन्नति के अवसर मिलते हैं. व्यय अधिक होता है तथा बाहरी स्थानों से संबंधों के माध्यम से कार्य प्राप्त होता है. परिश्रम से ही धन में वृद्धि होती है.

सप्तम भाव में बाधक मंगल की स्थिति
सप्तम भाव में बाधक मंगल के प्रभाव से विवाह में विलम्ब अथवा सुख में कमी आ सकती है. पिता तथा राज्य से सहयोग तथा सम्मान मिलता है, किन्तु सुख प्राप्त नहीं होता. कामनाओं में वृद्धि करता है. व्यक्ति अपने बारे में अधिक सोचता है. साहस तथा पराक्रम में वृद्धि होती है.

अष्टम भाव में बाधक मंगल की स्थिति
अष्टम भाव में बाधक मंगल का प्रभाव धर्म पालन में अरुचि लाता है. साथ ही पिता पक्ष की पत्नी तथा पशुओं में असंतोष रहता है. यहां से बाधक मंगल शारीरिक सौन्दर्य तथा सम्मान प्राप्ति के लिए संघर्ष करा सकता है. साहस में कमी आती है तथा भाई-बहनों से सहयोग कम मिलता है. संतान से कुछ असंतोष रहता है तथा शिक्षा के क्षेत्र में निपुणता होती है तथा गूढ़ विषयों में बुद्धि होती है.

बाधक मंगल की नवम भाव में स्थिति
बाधक मंगल की नवम भाव में स्थिति कुंडली के भाग्य भाव को कम कर सकती है. पिता से अच्छे संबंध होते हैं, लेकिन दूरी बनी रहती है. राजकीय कार्यों में सफलता के लिए संघर्ष करना पड़ता है. ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में उच्च प्रशासनिक पद प्राप्त करता है. मंगल व्यक्ति को धार्मिक कार्यों पर धन व्यय करवाता है. बाधक मंगल के प्रभाव से उन्नति कुछ कठिनाइयों के साथ कमजोर होती है.

दशम भाव में बाधक मंगल की स्थिति
दशम भाव में बाधक मंगल के प्रभाव से करियर में कठिनाइयां आती हैं. इसके साथ ही पत्नी, पिता और व्यापार से जुड़े मामलों में परेशानियां आती हैं. खर्च अधिक होते हैं और परिवार बाहरी स्थानों से छल-कपट के सहारे चलता है. अपने धन को बढ़ाने के प्रयास होते हैं. कार्य क्षेत्र में बदलाव अधिक होते हैं.

एकादश भाव में बाधक मंगल की स्थिति
लाभ भाव में बाधक मंगल इच्छाओं में वृद्धि करता है. आपको अपने आस-पास के लोगों से कम सहयोग मिलता है. व्यापार और पिता से भी आपको पर्याप्त लाभ नहीं मिलता है. बाधक मंगल पंचम मित्र दृष्टि को देखता है, मेहनत कम होती है, भाई-बहनों से सुख भी कम मिलता है. पंचम भाव पर सप्तम शत्रु दृष्टि के कारण संतान से कुछ असंतोष रहता है. आपको खूब ज्ञान और बुद्धि प्राप्त होती है. स्त्री एवं व्यापार के मामले में विशेष सुख की कमी रहती है.

बाधक मंगल की बारहवें भाव में स्थिति
बाधक मंगल के बारहवें भाव में होने से व्यक्ति अधिक खर्च करता है तथा बाहरी स्थानों से मान-सम्मान एवं लाभ प्राप्त करता है. परिवार के सुख में कुछ कमी रहती है तथा व्यापार में हानि उठानी पड़ती है. माता से बल मिलता है तथा घरेलू सुख, भूमि, मकान आदि से लाभ मिलता है. स्वास्थ्य प्रभावित रहता है. लाभ के सापेक्ष कुछ हानि उठानी पड़ती है.