क्या होता है केन्द्राधिपति दोष ?

ज्योतिष में अनेकों योगों का उल्लेख मिलता है जिनके आधार पर कुंडली की शुभता या निर्बलता को समझ पाना संभव होता है. इन्हीं में से एक योग है केन्द्राधिपति दोष. यह यह ऎसा दोष है जब शुभ ग्रह गुरु, शुक्र, बुध और शुभ चन्द्रमा केन्द्र प्रथम, चतुर्थ, सप्तम और दशम के स्वामी हो तो केन्द्राधिपति दोष से दूषित होते है. शुभ ग्रहों के द्वारा बनने वाला य्ह दोष बहुत ही विशेष होता है. 

केन्द्राधिपति दोष योग में होने वाले ग्रह अपने प्रभाव में कमी देते हैं लेकिन यह बहुत कष्टप्रद नहीं होता है. इसमें शुभ फल के बहुत अच्छे फल कुछ कम रुप में मिलते हैं. 

शुभ ग्रह बनाते हैं केन्द्राधिपति दोष 

कुंडली में जब शुभ ग्रहों की बत आती है तो इनमें गुरु चंद्रमा जैसे शुभ ग्रहों का मुख्य स्थान होता है वहीं पाप ग्रह में मंगल शनि का स्थान दिखाई देता है. लेकिन इस क्रम में जब केन्द्राधिपति दोष को देखा जाए तो इसका प्रभाव शुभ ग्रहों के होने से बनना महत्वपूर्ण घटना होती है जो कुंडली में कई तरह से अपना असर भी डालती है. 

कुंडली में जब यह दोष बनता है तो इसके कारण कई दूरगामी प्रभाव देखने को मिलते हैं. जब यह बनता है दोष तो व्यक्ति को किसी अशुभ बात का भय बना रहता है. केन्द्राधिपति दोष में इन शुभ ग्रहों की शुभता थोड़ी कम हो जाती है. ऎसे में इनसे भय का कोई अर्थ इतना गहरा नहीं है. 

केन्द्राधिपति दोष और केन्द्र में ग्रहों का प्रभाव 

केवल मिथुन, कन्या, धनु, मीन राशि में ही चारों केन्द्र पहला भाव, चतुर्थ भाव, सातवां भाव, दसवें भाव के स्वामी बुध और बृहस्पति दोषग्रस्त होते हैं. दोनों शुभ ग्रह द्विस्वभाव राशियों के स्वामी भी हैं.

केन्द्राधिपति दोष के कारण द्विस्वभाव राशि मिथुन, कन्या, धनु और मीन में बुध और बृहस्पति दोनों ही इस दोष से प्रभावित हो सकते हैं. 

दोनों ग्रह केन्द्र में हों तो तब केन्द्राधिपति दोष अपना असर डाल सकता है लेकिन इस प्रभाव की स्थिति कई मायनों में विशेष बन जाती है. 

दोनों ग्रह अपने ही भाव में हों या उच्च या नीच के हों तब भी वे केन्द्राधिपति दोष से प्रभावित होते हैं. 

दोनों ग्रहों का राशि परिवर्तन योग यानि परस्पर आश्रय योग केंद्र में ही हो, तब भी वे केंद्राधिपति दोष से प्रभावित होते हैं.

इस दोष को लेकर कई तरह की अवधारणाएं मिलती हैं जिसके आधार पर इस दोष की स्थिति को अलग अलग तरह से देखा जाता है. केंद्राधिपति दोष ज्योतिष का विवादास्पद विषय है. अलग-अलग ग्रंथों ने अलग-अलग परिणाम दिए हैं. विद्वानों में भी इस पर मतभेद है. कुछ विद्वान केवल बुध और बृहस्पति को ही केंद्राधिपति दोष मानते हैं. यदि राशि स्वामी भी केंद्र में हो, तो केंद्राधिपति दोष होगा. 

पराशर के अनुसार, यदि नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रहों की राशि केंद्र में हो और नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रह भी केंद्र में हों, तो दोष होता है. ऐसा माना जाता है कि बृहस्पति सबसे अधिक प्रभावित होता है. बृहस्पति के बाद शुक्र, बुध और चंद्रमा में दोष की तीव्रता धीरे-धीरे कम होती जाती है. शुभ ग्रह की शुभता कम होती जाती है.

केंद्राधिपति दोष से मिलने वाले प्रभाव 

व्यक्ति व्यक्तिगत और व्यावसायिक आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने में देरी, बाधाओं या निराशा का अनुभव कर सकते हैं. परिवार, दोस्ती और रोमांटिक साझेदारी सहित व्यक्तिगत संबंधों को आगे बढ़ाने में अप्रत्याशित बाधाओं या जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है. धन का प्रबंधन, धन संचय करना या वित्तीय सुरक्षा प्राप्त करना चुनौतियों का सामना कर सकता है. बार-बार होने वाली स्वास्थ्य समस्याएँ या कमज़ोरी और सुस्ती की सामान्य भावना कभी-कभी दोष से जुड़ी होती हैं. नकारात्मकता के कारण चिंता, हताशा या असहायता की भावना पैदा हो सकती है।

केंद्राधिपति दोष कैसे भंग होता 

पाप ग्रहों में केंद्राधिपति दोष नहीं होता. जब कृष्ण पक्ष, कमजोर चंद्रमा पापी हो जाता है, तो उसे केंद्राधिपति दोष नहीं होता.

जब कोई भी ग्रह केंद्र में होता है तो वह अपना स्वाभाविक स्वभाव त्याग देता है. जैसे पापी ग्रह अपना पाप त्याग देता है, क्रूर ग्रह अपनी क्रूरता त्याग देता है और शुभ ग्रह अपनी शुभता त्याग देता है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे ग्रह विपरीत परिणाम देने लगेंगे.

यदि चंद्रमा अपनी राशि में, उच्च केंद्र में हो तो केंद्राधिपति दोष नहीं होगा. इसी प्रकार यदि बुध, बृहस्पति और शुक्र स्वगृही केंद्र में हों तो पंचमहापुरुष योग बनने से केंद्राधिपति दोष भंग हो जाता है.

जब कोई भी ग्रह अपनी राशि में होता है तो उस भाव के लिए प्रबल शुभता देता है. तब केंद्र सरकार को दोष नहीं लगेगा.

जब ग्रह की एक राशि केंद्र में और दूसरी राशि त्रिकोण में हो तो केंद्राधिपति दोष भंग हो जाता है. ऐसा केवल मकर लग्न और कुंभ लग्न में ही होगा. ऐसा केवल शुक्र के साथ होगा. मकर लग्न में पंचम व दशम भाव में तथा कुम्भ लग्न में चतुर्थ व नवम भाव में शुक्र होने से शुक्र दोष मुक्त होगा.

अगर लग्न में शुभ ग्रह हो तो केन्द्राधिपति दोष भंग हो जाता है, क्योंकि लग्न केन्द्र व त्रिकोण दोनों है.

केन्द्राधिपति दोष में अगर ग्रहों का राशि परिवर्तन हो यानि अनन्या आश्रय योग हो तो केन्द्राधिपति दोष नहीं होगा.

केन्द्राधिपति दोष के प्रतिकूल प्रभाव उसके भंग होने पर अपना असर नहीं देते हैं.

केन्द्राधिपति दोष का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता.

अगर ग्रह केन्द्राधिपति दोष से दूषित हो जाए तो उसके शुभ फलों में थोड़ी कमी आ जाती है लेकिन इसका अर्थ ये नहीं की कोई शुभ फल प्राप्त ही नहीं होगा.

केन्द्राधिपति दोष से डरने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि शुभ ग्रह शुभ ही रहेगा. केवल शुभ फलों में थोड़ी कमी आएगी.

केन्द्र भाव के स्वामी भगवान विष्णु हैं. जब केन्द्राधिपति दूषित ग्रह की महादशा या अन्तर्दशा आये तो विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें, पूजन करें. उस ग्रह से सम्बंधित बीज मंत्र का जप करें. उस ग्रह से सम्बंधित मंत्रों का जाप अनुकूल होता है.