भकूट कैसे देता है सफल विवाह की गारंटी ?

विवाह मिलान से जुड़े ज्योतिषीय नियमों में एक नियम भकूट भी है. भकूट का उपयोग वैवाहिक सुख को देखने हेतु विशेष रुप से किया जाता है. विवाह मिलान में भकूट मिलान का बेहद महत्व होता है. भकूट की स्थिति पर ध्यान देते हुए दोनों व्यक्तियों की विचारधार एवं उनकी अनुकूलता को देखा जाता है. विवाह पश्चात आपसी संबंध के साथ सतह घरेलू स्थिति, आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य विचार इत्यादि बातें भकूट के द्वारा बेहतर रुप से समझी जा सकती हैं. कहा जाता है कि जोड़ियां स्वर्ग में बनती हैं. भारतीय ज्योतिष कहता है कि जब विवाह पर विचार किया जाता है, तो सुखी और समृद्ध वैवाहिक जीवन के लिए वर और वधू की कुंडली का गहन मूल्यांकन किया जाना चाहिए.

भारतीय विवाह में कुंडली मिलान बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पति-पत्नी के गुणों का पता लगाया जाता है. 36 गुणों में से 18 गुणों को एक मानक माना जाता है जो शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन की गारंटी भी देता है. ज्योतिषी अष्टकूट के माध्यम से विवाह के भविष्य की भविष्यवाणी करते हैं. भकूट अष्टकूट में सातवें स्थान पर है.

इसी सात अंकों का आधार भकूट के महत्व को दर्शाता है. भकूट का सीधा संबंध पति-पत्नी के मानसिक गुणों से होता है. भकूट 6 प्रकार के होते हैं जिन्हें कहा जाता है. इनमें से कुछ सामान्य तो कुछ घातक रुप से अपना असर दिखाने वाले होते हैं. यह जिस रुप में बनते हैं वैसा ही अपना प्रभाव भी व्यक्ति पर डालते हैं. 

भकूट के प्रकार 

भकूट को निम्न रुप से जाना जाता है इसमें से प्रथम-सप्तम भकूट, द्वितीया-द्वादश भकूट, तृतीया-एकादश भकूट, 

चतुर्थ-दशम भकूट और नव-पंचम भकूट मुख्य होते हैं. इन भकूट में षडाष्टक भकूट काफी खराब माना गया है इसके अलावा ज्योतिष शास्त्र कहता है कि द्वितीया-द्वादश और पंचम-नवम अशुभ भकूट होते हैं जबकि बाकी सामान्य रुप से ग्राह्य हो सकते हैं. ज्योतिष अनुसार एक की जन्म राशि से दूसरे की राशि की गणना करके और इसके विपरीत भकूट का निर्धारण करते हैं. यदि जोड़े की राशियां एक दूसरे से 5वें और 9वें स्थान पर हों तो पंचम-नवम बनता है. इसी प्रकार यदि इनकी राशियां एक दूसरे से छठे और आठवें स्थान पर हों तो षडष्टक भकूट बनता है इन को काफी अशुभ रुप से अपना असर देने वाला माना गया है. .

भकूट की शुभता एवं अशुभता कैसे जानें

द्वितीया-दादश भकूट 

दो-बारह भकूट को द्वि द्वादश भकुट के नाम से जाना जाता है. इसे एक खराब भकूट के रुप में स्थान प्राप्त है. दूसरा भाव धन का स्थान है और मारक स्थन भी है वहीं 12वां भाव व्यय का. यदि कुंडली में इस स्थिति के साथ विवाह होता है तो दंपत्ति के वैवाहिक जीवन में अत्यधिक खर्च हो सकता है. इस के चलते जीवन में व्यक्ति धन के मामलों के कारण अधिक परेशानी झेलता है. जीवन साथी की ओर से उसे अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है. आवश्यकताओं की पूर्ति सहजता से नहीं हो पाती है. खर्च की स्थिति किसी भी रुप से असर डाल सकती है कभी स्वास्थ्य मसलों पर अधिक धन खर्च हो सकता है , तो कभी व्यर्थ के खर्चों के कारण संबंधों पर असर पड़ सकता है. व्यक्ति अपने जीवन में परिवार से दूरी की स्थिति को अधिक झेल सकता है.

नव पंचक भकूट

मिलान में नवपंचम भकूट को वैवाहिक जीवन में नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करने वाला मान अजाता है. वैसे नौवां और पंचम भाव शुभ स्थान होता है किंतु यहां पर वैचारिक मतभेदों के चलते स्थिति अलगाव को अधिक दिखाने वाली होती है.  यह आध्यात्मिक, धार्मिक सोच को जन्म देता है जो दंपत्ति के दिमाग को प्रभावित कर सकता है और यहां तक कि बच्चे की उनकी इच्छा में भी बाधा उत्पन्न कर सकता है. यह स्थान शुभ होकर काम सुख को कमजोर कर देने वाला होता है. इसमें व्यक्ति को अपने साथी के साथ प्रेम एवं संसर्ग के सुख की कमी का अनुभव हो सकता है. विवाह की आधारशीला में आपसी संबंध का सुख बेहद अहम होता है इसी के द्वारा परिवार की नींव को बल मिलता है और संसार बनता है. पर नव पंचम की स्थिति अरुचि ओर अनिच्छा को उपन्न कर सकती है. इसका असर व्यक्ति अपने परिवार को बढ़ाने से अधिक स्वयं के आध्यात्मिक विकास को लेकर उत्साहित दिखाई देता है. इस स्थिति में जीवन का अहम पहलू उपेक्षा का शिकार हो सकता है. इस कारण से आपसी रिश्तों में खटास भी उत्पन्न हो सकती है. 

षडाष्टक भकूट 

षडाष्टक भकूट छठे और आठवें भाव के द्वारा निर्मित होता है. यह एक अशुभ भकूट है जो सब से अधिक खराब फल देने वाला भकूट माना गया है. सबसे अधिक कठोर खतरनाक होने के कारण ही इसे पूर्ण रुप से ध्यान देने की जरुरत होती है. इससे शादी के बाद जोड़े में से किसी एक की मृत्यु हो सकती है. षष्टक दंपत्ति के बीच कई समस्याओं और भ्रम को जन्म देता है और विवाह को नष्ट कर सकता है. यदि कुंडली षष्टक भकूट से पीड़ित है तो अलगाव आम बात है और आत्महत्या का प्रयास भी हो सकता है.

शुभ भकूट 

भकूट की स्थिति में कुछ भकूट ग्राह्य रुप से देखे जाते हैं. इसमें से प्रथम-सप्तम, तृतीया-एकादश और चतुर्थ-दशम भकूट को वर और वधू के लिए शुभ माना जाता है यह भकूट अपनाए जा सकते हैं. ज्योतिष शास्त्र कहता है कि गणना करते समय यदि जोड़े की राशियां एक-दूसरे से पहले और सातवें स्थान पर हों तो उन्हें अच्छे बच्चों के साथ सुखी वैवाहिक जीवन मिलता है.

इसी प्रकार यदि उनकी जन्म राशि एक दूसरे से तीसरे और ग्यारहवें स्थान पर होती हैं तो उन्हें शादी के बाद आर्थिक रूप से स्थिर जीवन मिलता है. शादी के बाद यह जोड़ा समृद्ध होता है. इस प्रकार जब उनकी जन्म राशि चौथे और दसवें स्थान पर होती है तो उनके बीच हमेशा प्यार और देखभाल का रिश्ता बना रहता है.

भकूट की शुभता को ध्यान में रखते हुए यदि काम किया जाए तो यह बेहतर फलों को देने में सक्षम होता है. भकूत के प्रभाव से वैवाहिक जीवन के सुख दुख की स्थिति को काफी उचित रुप से देख पाना संभव होता है.