ज्योतिष से जाने आंखों से संबंधित रोग का कारण

नेत्र संबंधित रोग के लिए कौन से ग्रह और योग बनते हैं कारक 

चिकित्सा ज्योतिष में नेत्र रोग से संबंधित कई तरह के योग मिलते हैं जो आंखों की बीमारियों के होने का संकेत देते दिखाई देते हैं. ग्रह इस तथ्य को उजागर कर सकते हैं कि कोई व्यक्ति किसी नेत्र रोग से पीड़ित है या नहीं. जन्म कुंडली में निर्मित विभिन्न प्रकार के योगों से आंखों की रोशनी के प्रभावित होने की स्थिति का निर्माण होता है. इसमें दो ग्रहों का उल्लेख हमें काफी विशेष रुप से पौराणिक ग्रंथों में भी प्राप्त होता है जिन्हें नेत्र ज्योति का आधार माना गया है. इन ग्रहों में सूर्य एवं शुक्र को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. आंखों की रोशनी के लिए इन ग्रहों की शुभता काफी सकारात्मक होती है. यदि यह जन्म कुंडली में कमजोर होते हैं पाप प्रभाव में होते हैम तब नेत्र रोग होने की संभावना भी बढ़ जाती है. 

ग्रहों का नेत्र रोग पर प्रभाव 

सूर्य और चंद्रमा दोनों ग्रह प्रकाश उत्सर्जक ग्रह हैं. दायीं आंख के लिए सूर्य ग्रह की स्थिति को देखा जाता है और बायीं आंख के लिए चंद्रमा को देखा जाता है. यह दो ग्रह आंखों पर गहरा असर डालते हैं. सूर्य को नेत्र और शुक्र को दृष्टि से संबंधित माना गया है. इन दोनों का प्रभाव आंखों की रोशनी को तेज या कमजोर करने वाला माना गया है. इन ग्रहों की शुभता एवं अशुभता के बल को देख कर आंखों की रोशनी ओर आंखों के रोग का पता चला पाना संभव होता है. 

जन्म कुंडली में नेत्र संबंधित भाव 

जन्म कुंडली में दूसरा भाव और बारहवां भाव आंखों को दर्शाता है. इस भाव और इस भाव के अधिपति का नेत्र ज्योति पर काफी नजदीकी संबंध होता है. इन भावों की शुभता व्यक्ति को अच्छी रोशनी प्रदान करने वाली होती है. अगर ये भाव पाप प्रभावित होते हैं तो नेत्र रोग होने की आशंका भी बढ़ सकती है. जो भाव जितना प्रभावित होता है उस आंख का कमजोर होना उतना ही प्रबल भी होता चला जाता है. यदि द्वितीय भाव में सूर्य और द्वादश भाव में चंद्रमा स्थित हो तो जातक को आंखों से संबंधित कोई परेशानी होने की प्रबल संभावना होती है. शुभ शुक्र ग्रह अच्छी स्थित है तो ऐसे जातक की आंखें बेहद खूबसूरत होंगी और उसे कभी भी आंखों से संबंधित कोई रोग नहीं होगा. 

आंखों से संबंधित ज्योतिषीय योग 

आंखों के होने वाले रोगों के लिए कई प्रकार के ज्योतिष सुत्र अपना असर दिखाते हैं. अगर हम कुंडली के दूसरे भाव का योग देखें तो वहां यदि मंगल केतु का प्रभव हो सिंह राशि हो तो उसके कारण व्यक्ति को आंखों में चोट लगने के कारण नेत्र का रोग परेशान कर सकता है. 

यदि द्वितीय भाव का स्वामी कमजोर स्थिति में है या यदि वह त्रिक भाव छठे भाव, आठवें भाव अथवा व्यय भाव के साथ स्थित है तो शुक्र अपना शुभ फल देने में सक्षम नहीं होगा.

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के दूसरे भाव में शनि ग्रह स्थित है तो ऐसे व्यक्ति को आंखों से संबंधित गंभीर समस्या हो सकती है. ऐसे व्यक्ति की नजर वाकई कमजोर होती है.

दूसरे भाव में स्थित ग्रह राहु और केतु भी किसी की दृष्टि को कमजोर कर सकते हैं और दुर्घटनाएं कर सकते हैं जिससे व्यक्ति की आंखें प्रभावित हो सकती हैं.

यदि मंगल ग्रह दूसरे भाव में स्थित है तो यह अशुभ है क्योंकि यह आंखों से संबंधित गंभीर समस्या दे सकता है. दूसरे भाव में मंगल की स्थिति से जातक को आंखों से संबंधित सर्जरी भी हो सकती है या उसे जीवन भर के लिए चश्मा लग सकता है.

सूर्य और बुध की स्थिति द्वादश भाव में हो और बुध वक्री अवस्था में हो तो उसके कारण भैंगापन की शिकायत हो सकती है. 

शुक्र और सूर्य का योग मकर राशि में और यहां केतु का प्रभाव भी हो तो इसके कारण व्यक्ति अंधेपन का शिकार हो सकता है.

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, यदि चंद्रमा, शनि, शुक्र, मंगल या सूर्य ग्रह दूसरे और बारहवें भाव में बुरी तरह से स्थित हों, तो यह आंखों की समस्याओं को जन्म देता है.सूर्य की कमजोर स्थिति से आंखों से संबंधित विकार देने वाली होती है.कुंडली में चंद्रमा की कमजोर स्थिति कमजोर दृष्टि जैसी समस्याओं के लिए जिम्मेदार होती है. 

यदि दूसरा और 12वां भाव पाप भावों से प्रभावित है तो इसका मतलब है कि आपकी नजर कमजोर है. राहु और केतु की दूसरे भाव में स्थिति भी आंखों की समस्याओं का एक प्रमुख कारण बनती है. 

दूसरे भाव में सूर्य का होना खरब स्थिति में हो तो यह आंखों के रोग दे सकता है. सूर्य को पित्त ग्रह के रूप में जाना जाता है यदि यह दूसरे भाव में खराब स्थिति में है, तो जातक को आंखों की गंभीर समस्या और यहां तक कि अंधापन भी महसूस होता है.

बारहवें भाव में सूर्य भी आंखों की कमजोरी को दिखाता है. यदि सूर्य पाप भावों के साथ हो तो निश्चित रूप से आपको नेत्र संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा.

दूसरे भाव में मंगल एक अशुभ घटना है जहां जातक को आंखों की गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है. पाप भाव में मंगल की स्थिति का अर्थ है कि जातक को आजीवन चश्मा पहनना पड़ता है.

बारहवें भाव में पीड़त मंगल भी आंखों की समस्याओं का संकेत देता है व्यक्ति को आंखों में किसी प्रकार की कमजोरी महसूस हो सकती है या उस की आंख पर किसी प्रकार के चोट का निशान भी हो सकता है. 

दूसरे भाव में शनि अर्थात आंखों की कुछ गंभीर समस्याओं को जन्म देता है. शनि के साथ केतु, या मंगल का होना नेत्र ज्योति के लिए अनुकूलता की कमी को दर्शाने वाला होता है. यह किसी दुर्घटना के कारण आंखों की परेशानी की ओर भी इशारा करता है, व्यक्ति को चश्मा पहनना पड़ता है.

बारहवें भाव में स्थित शनि फिर से इसी बात का संकेत देता है कि व्यक्ति की आंखों की रोशनी पर कोई गंभीर प्रभाव देखने को मिल सकता है

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