शनि के उदय और अस्त होने का ज्योतिष अनुसार प्रभाव

शनि का उदय और अस्त होना शनि चाल में सबसे महत्वपूर्ण समय की स्थिति होती है. ज्योतिष में सभी ग्रहों का अस्त होना सूर्य की स्थिति से देखा जाता है. अब जब शनि सूर्य से अस्त होता है तो यहां इसकी स्थिति अन्य ग्रहों से बहुत अधिक भिन्न होती है. इस के पीछे कई कारण जिसमें से एक पौराणिक कथा का होना भी विशेष होता है. पौराणिक तथ्यों के अनुसार भगवान सूर्य और शनि देव का गहरा संबंध रहा है. सूर्य के पुत्र शनि देव हैं, इस कारण शनि का सूर्य से अस्त होना कई अर्थों को दृष्टिगोचर करता है. 

छाया के पुत्र शनि सबसे बड़ा शिक्षक माना जाता है जो अच्छे कार्यों और खराब कार्यों दोनों में ही व्यक्ति को फल प्रदान करते हैं. अच्छे के लिए पुरस्कार देते हैं और बुराई या विश्वासघात के मार्ग पर चलने वालों को दंडित करते हैं. शनि देव को कर्म और न्याय के रूप में भी जाना जाता है. भगवान शनि को सबसे घातक ग्रह माना जाता है जो जीवन में अटकाव रोक और दुर्भाग्य लाता है. यह व्यक्तिगत और कर्म क्षेत्र के जीवन में अंतर लाने की शक्ति रखता है. इसलिए यह शनि के प्रभाव को समझ लेना जरुरी होता है. 

शनि का काल अवधि और प्रभाव 

इस ग्रह को सूर्य के चारों ओर एक परिक्रमा करने में लगभग 30 वर्ष लगते हैं, इसलिए यह प्रत्येक राशि में लगभग 2.5 वर्ष तक रहता है. यह अवधि 5 या 7.5 साल तक बढ़ सकती है. राशि में शनि की यह उपस्थिति जीवन में समस्याओं का कारण बनती है, चाहे वह आपके रिश्ते, पैसा, करियर या अन्य कुछ भी हो सकता है. मनुष्य पर शनि का प्रभाव कई गुना अधिक होता है. शनि बाधा, संकट, अवसाद, दुख, बीमारी का ग्रह है और जीवन में प्रतिकूलता लाने में सक्षम है. इसके चरण के दौरान व्यक्ति को यह बहुत कठिन लगता है. इसके कारण व्यक्ति खुद को असहाय, बेचैन और उदास पा सकते हैं. चीजों को संतुलित करने का शनि का अपना तरीका होता है. 

यह आगे बढ़ने, विकसित करने और जीवन की बाधाओं को दूर करने में मदद कर सकता है. शनि काल व्यक्ति के जीवन में दो बार या तीन बार आता है, ज्यादा से ज्यादा दो बार तो अवश्य आता है. दूसरा शनि काल बहुत ही गंभीर है और आपके व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में भारी परेशानी पैदा करता है. शनि सभी के लिए खराब नहीं हैं. यदि कुंडली में यह उचित स्थिति में हो या कर्मों में हम शुभ हों तो शनि जीवन को उन्नत करता है. यदि सांसारिक इच्छाओं में जकड़े हुए हैं, तो वह परेशान करेगा ताकि सही रास्ते पर आ सकें और अपने अंतर्मन को पा सकें. इस तरह शनि या शनि व्यक्ति के जीवन में संतुलन बनाए रखता है.

शनि अस्त उदय का साढ़ेसाती-ढैया प्रभाव 

यह शनि की साढ़ेसाती का प्रारंभ काल है. इस अवधि में शनि चंद्र से बारहवें भाव में गोचर करता है. यह मुख्य्त रुप से वित्तीय हानि, छिपे हुए शत्रुओं द्वारा समस्या देना, लक्ष्यहीन यात्रा, विवाद और गरीबी को दर्शाता है. इस अवधि में व्यक्ति को अपने गुप्त शत्रुओं द्वारा पैदा की हुई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. सहकर्मियों से संबंध अच्छे नहीं रह पाते हैं. कार्यक्षेत्र में बाधाएँ खड़ी करने वाले गुप्त शत्रु हो सकते हैं. घरेलू क्षेत्रों पर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. इससे दबाव और तनाव पैदा हो सकता है. आपको अपने ख़र्चों पर क़ाबू रखने की ज़रूरत होती है, नहीं तो बड़ी आर्थिक समस्याएं खड़ी हो सकती हैं. इस अवधि के दौरान लंबी दूरी की यात्राएँ फलदायी नहीं हो सकती हैं. शनि का स्वभाव विलंब और निराशा का है,  आपको अंततः परिणाम मिलेंगे, इसलिए धैर्य रखना जरुरी होता है उदय या अस्त होने पर दोनों ही समय व्यक्ति को सब्र से काम लेने की जरुरत होगी. शनि के उदय या अस्त दोनों ही समय पर इस अवधि में अधिक जोखिम न उठाने से बचना चाहिए.

यह शनि की साढ़ेसाती का चरम है. तब शनि की यह उदय और अस्त अवस्था सबसे कठिन होती है. जन्मकालीन चंद्रमा पर शनि का गोचर स्वास्थ्य समस्याओं, चरित्र पर लांछन, संबंधों में समस्याओं, मानसिक कष्टों और दुखों को दर्शाता है. इस अवधि में सफलता मिलने में कठिनाई महसूस होती है. अपनी मेहनत का फल नहीं मिल पाता है व्यक्ति खुद को बंधा हुआ महसूस करता है. सेहत और प्रतिरक्षा-तन्त्र पर्याप्त सशक्त नहीं होता है.  इसलिए व्यायाम और अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना शुरू कर देना चाहिए, अन्यथा पुरानी बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं. मानसिक अवसाद, अज्ञात भय या फ़ोबिया आदि का शिकार हो सकते हैं. संभव है कि आपके काल-खण्ड में सोच, कार्य और निर्णय करने की क्षमता में स्पष्टता का अभाव रहता है.  आध्यात्मिक रूप से प्रवृत्त होते हैं, प्रकृति से आकर्षित हो सकते हैं. स्वीकार करना और मूलभूत काम ठीक तरह से करना इस संकट की घड़ी से बाहर निकालने वाला होता है. 

शनि एक बहुत धीमी गति से चलने वाला ग्रह है, जो एक राशि में लगभग ढाई से तीन साल बिताता है. इस लिए शनि की अवस्था जब उदय या अस्त वाली होती है तब चीजें अधिक सहयोग नहीं कर पाती हैं.  शनि जब कुंडली में सूर्य के साथ जब किसी भाव में एक साथ होता है तो वह अंशात्मक नजदीकी के कारण ही अस्त होता है और दूर होने पर उदय की स्थिति में होगा.  

इस्न दोनों ही चीजों में शनि जब सूर्य के नजदीक होगा तो अस्त होए वाले परिणामों से प्रभावित रहेगा. यह महत्वपूर्ण है कि कुंडली की जांच कर ली जाए ताकि यह पता चल सके कि जब आपका जन्म हुआ था तब वह कहां स्थित था उस भाव की स्थिति ही अधिक प्रभावित होगी ओर व्यक्ति के कर्म भी अस्त होंगे. यदि अस्त न होकर शनि उदय की स्थिति में है तो इसके चलते कई मामलों में चीजें काफी गहरे रुप से मजबूत होती हैं. शनि उदय का संकेत आपको दिखाएगा कि आप अपने डर का सामना कैसे करते हैं, आप कैसे सीमाएं निर्धारित करते हैं. आप किस प्रकार की सीमाओं का सामना करते हैं, और जीवन में अनुशासित होने की मांग अधिक प्रबल होती है.