छठे भाव या बारहवें भाव में बना धन योग
ज्योतिष के अनुसार शुभ या अशुभ ग्रहों के विशेष योग से एक प्रकार की युति बनती है जिसे योग कहते हैं. यह योग कई तरह से देखने को मिलते हैं इसमें योग कई प्रकार के होते हैं. कुछ योग शुभ होते हैं तो कुछ अशुभ तो कई बार शुभ अशुभ योग भी एक ही साथ निर्मित हो रहे होते हैं. इन सभी में एक शुभ योग धन योग के रूप में जाना जाता है. धन योग जब भी कुंडली में धन मान सम्मान, शोहरत कुंडली में मौजूद इस धन योग पर निर्भर करता है.
धन योग का निर्माण कैसे होता है
वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली के दूसरे भाव को धन भाव माना जाता है, और एकादश भाव को लाभ भाव के रुप में जाना जाता है. इन दोनों घरों के बीच अनुकूल संबंध बहुत शुभ धन योग बनाता है. अब यदि यह योग एवं लग्न, पंचम, द्वितीय, पंचम, नवम और एकादश भाव या उनके स्वामी जातक की कुंडली में अनुकूल स्थिति में हैं, तो कुंडली में धन योग के अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं.
कुंडली में धन योग के लिए पांच भाव अत्यंत शुभ होते हैं. जो धन और समृद्धि प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. उदाहरण के लिए कई तरह से धन योग की प्राप्ति हो सकती है. लग्नेश और द्वितीयेश की युति धन योग बनाती है. एकादश भाव का स्वामी दूसरे भाव में स्थित है या दूसरे भाव का एकादश में है तो धन योग बनता है. यदि लग्नेश दशम भाव में स्थित हो तो व्यक्ति को माता-पिता से अधिक धन मिलने की संभावना होती है. यदि दूसरे और नवम भाव के स्वामी परस्पर योग करते हैं, तो जीवन में धन का संकेत मिलता है. दूसरे भाव का स्वामी यदि, नवम और ग्यारहवें भाव से संबंध बनाता है तो यह धन योग का अच्छा कारक बनता है.
धन योग में 6 भाव और 12वें भाव में बना धन योग
ज्योतिष शास्त्र में छठे भाव का कर्म संरचना से गहरा संबंध है. सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव, दोनों ही कर्म की श्रेणी में आते हैं. यह सब पूर्व एवं आगामी कर्मों के आधार पर बनते हैं जो वर्तमान जीवन में विभिन्न रूपों में प्रकट होते चले जाते हैं. रोग, शत्रु, ऋण, कष्ट आदि के रूप में नकारात्मक प्रभाव का अनुभव इसी भाव से किया जा सकता है. यह सब छठे भाव की स्थिति पर निर्भर करता है कि चुनौतियों और कठिनाइयों को कैसे हमारे सामने होंगी और इन पर कैसे नियंत्रण किया जा सकता है. एक कमजोर छठा भाव जीवन में बहुत सारी चुनौतियां पैदा कर सकता है.
छठा भाव स्वास्थ्य समस्याओं, परेशानियों - बाधाओं, रोजमर्रा की स्थिति, शत्रु, ऋण, मुकदमेबाजी को दर्शाती है. संघर्ष की स्थिति उत्तरदायित्व को भार पाचन शक्ति, दु:ख, निराशा, युद्ध, लड़ाई, युद्ध, चोट, प्रतियोगिता जैसी बातें जीवन पर असर डालती हैं. वैदिक ज्योतिष में छठे भाव को रोग-रिपु-ऋण का भाव कहा जाता है, जिसका अर्थ है रोग, ऋण और शत्रु. कर्म संरचना से इसका गहरा संबंध होता है. सकारात्मक प्रभाव विकास को बढ़ावा देगा और नकारात्मक प्रभाव रोग, शत्रु, ऋण और कष्टों के रूप में अनुभव देगा. किस तरह से प्रतिक्रिया करते हैं या चुनौतियों का सामना करते हैं, यह छठे भाव पर निर्भर करता है. आप या तो डर को चुनौती देते हैं और विजेता के रूप में सामने आते हैं या दबाव के आगे झुक जाते हैं.
अब जब धन योग इस भाव में बनता है तो इस धन योग की स्थिति तब बेहतर फल देती है जब उसका उचित रुप से उपयोग किया जाए. यदि छठे घर में धन योग बनता है तो अच्छे परिणाम कम हो जाते हैं. जब धन योग यहां बनता है तो धन का उपयोग इन समस्याओं में लग सकता है, या धन नकारात्मक रुप से अधिक प्राप्त होता है. जहां धन की स्थिति सकारात्मक रुप से कम होती है.
कुंडली का बारहवां भाव धन योग
जन्म कुंडली का द्वादश भाव खर्च की स्थिति को दर्शाता है. यह भाव मुक्ति, हानि, व्यय, अस्पताल, विदेश यात्रा, स्वतंत्रता पर प्रतिबंध, वैराग्य, व्यसन, परिवर्तन, दान, आश्रम, ध्यान, दंड, दुर्भाग्य, हीन भावना , कारावास, विदेश स्थिति को दर्शाता है. इस घर को संभालना थोड़ा मुश्किल होता है. अध्यात्म की राह पर चलने वालों को यह घर बेहद आकर्षक लग सकता है लेकिन भाव हर बार याद दिलाता है कि हम वास्तव में कौन हैं. शनि को 12वें घर के लिए कारक के रूप में माना गया है.
यह सांसारिक सुख और आध्यात्मिकता दोनों में अवसर प्रदान करता है. इन्द्रियों की तृप्ति के लिए या आध्यात्मिक ज्ञान के लिए इसका उपयोग कर सकते हैं. वैदिक ज्योतिष में बुरे घरों में से एक है.यह भाव हानि, पीड़ा, कष्ट, निराशा, कारावास, कारावास का प्रतिनिधित्व करता है. द्वादश भाव लग्न से बारहवां होता है, यह स्वयं के नुकसान को दर्शाता है. घाटे या हानि इस घर में ग्रह एवं राशि पर निर्भर करती है. अगर इसे धन प्रदान करने वाले भावों से जोड़ा जाए तो यह खर्चों को करवाता है आर्थिक तंगी देता है जेब पर भारी पड़ सकता है.
बारहवें भाव में स्थिति धन योग की स्थिति स्वाभाविक रुप से आर्थिक लाभ दिलाने में कमजोर होती है. यह कुछ इस प्रकार भी होती है कि धन आता है लेकिन इसका संचय कर पाना मुश्किल ही होता है. धन की प्राप्ति रोगों पर बाहरी खर्चों पर एवं व्यर्थ की बातों पर ही धन का खर्च अधिक रह सकता है.
धन योग तब बनता है जब लग्न और स्वामी मजबूत होते हैं. धन प्राप्ति के लिए अरिष्ट योग का अभाव होना चाहिए. अरिष्ट योग को धन योग के लिए अशुभ माना जाता है. धन के स्वामी की छठे या बारहवें भाव में अशुभ स्थिति धन हानि का कारण हो सकती है. धन योग आपके पिछले अच्छे कर्मों का भी परिणाम है. बुरे कर्म धन योग के प्रभाव को वापस ले लेते हैं. इस प्रकार योग एवं भावों की स्थिति धन योग पर असर डालती है, इसलिए छठे या बारहवें भाव में बना धन योग धन तो देता है लेकिन उसकी स्थिरता कमजोर होती है.