चंद्रमा का कुंडली प्रभाव और उसके दूरगामी परिणाम

कुंडली में एक ग्रह के रूप में चंद्रमा सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ऎसा इस कारण होता है क्योंकि इसके गोचर की अवधी ओर इसका मानसिकता के साथ संबंध होना. जीवन के रोजमर्रा में होने वाले बदलावों को चंद्रमा की स्थिति से बहुत अधिक गहराई से जोड़ा जा सकता है. उदाहरण के लिए किसी का काम अचानक से छूट जाना,  व्यापार में हानि हुई है, रिश्ते में समस्या है, या कोई बीमारी हो जाना, इसी तरह सकारात्मक पक्ष के रुप में जीवन में कुछ प्राप्ति होना, लाभ होना इत्यादि बातें चंद्रमा के गोचर द्वारा अधिक संवेदनशील हो जाती हैं. चंद्रमा मन, स्वभाव और आंतरिक शक्ति को दर्शाता है. इस स्थिति में, अपने रोज के स्वभाव में आने वाले बदलाव, दिशाहीन होने की स्थिति जैसी बातें चंद्रमा से अधिक तारतम्य दिखाती हैं. 

चंद्रमा मन एवं दिमाग को नियंत्रित करने वाला ग्रह है, हमारी विचार प्रक्रिया, आंतरिक प्रवृत्ति को नियंत्रण में रखता है, तोअगर यह चंद्रमा मजबूत होगा तब हम सबसे खराब परिस्थितियों को भी संभाल सकते हैं लेकिन यदि  चंद्रमा कमजोर है, तो व्यक्ति दूसरों की कही बातों परिअधिक निर्भर हो जाता है. निर्णय और कार्य करने में अपने ज्ञान का उपयोग करने के बजाय व्यक्ति दूसरों से प्रभावित होने की संभावना अधिक रखता है. चंद्रमा स्त्रियों के साथ आपका संबंध, खाने की आदतें, सोने की आदतें, नियमित काम और इसी तरह के कई व्यक्तिगत छोटे छोटे फैसलों पर भी अपना असर डालता है. कुंडली में चंद्रमा की खराब स्थिति के साथ यह सबसे बड़ा मुद्दा है. यदि सूर्य शक्ति और अधिकार प्रदान करता है, तो चंद्रमा इस शक्ति और अधिकार का सर्वोत्तम उपयोग करने के लिए मन और विचार प्रक्रिया को नियंत्रित करता है. चंद्रमा दर्शाता है कि हम आंतरिक रूप से क्या हैं 

चंद्रमा का जन्म और पूनर्जन्म महत्व 

जन्म कुंडली में चंद्रमा के महत्व को प्राचीन काल से अच्छी तरह से समझा जाता रहा है. मुख्य रुप से जन्म कुंडली में सूर्य कुंडली और चंद्र कुंडली पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है. अधिकार, शक्ति, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की आवश्यकता है, लेकिन इसके साथ एक उचित मनोवैज्ञान की भी और यही चंद्रमा व्यक्ति को प्रदान करता है. कुंडली में चंद्रमा की भूमिका  जीवन में आने से शुरू हो जाती है. जन्म कुंडली में चंद्रमा जीवन में देखभाल करने वाली बुद्धि, रोग, सामान्य खुशी, दिल और स्त्रियों कई चीजों को दर्शाता है. जन्म कुंडली में चंद्रमा का महत्व  जीवन की शुरुआत में मिलने वाले पोषण को दर्शाने के लिए भी है. जन्म कुंडली में चंद्रमा की भूमिका और इसकी स्थिति पिछले जन्मों के सभी अच्छे और बुरे कर्मों का प्रभाव भी है.

ज्योतिष में चंद्रमा की भूमिका

ज्योतिष में चंद्रमा सूर्य के बाद मानव जीवन को सीधे प्रभावित करने वाला दूसरा सबसे महत्वपूर्ण ग्रह है. सभी ग्रहों में चंद्रमा पृथ्वी को सबसे निकट रुप से प्रभावित करता है. चंद्रमा का नकारात्मक एवं सकारात्मक प्रभाव जीवन पर तत्काल पड़ता है. ज्योतिष में चंद्रमा की भूमिका कई तरह से देखी जाती है. ज्योतिष में चंद्रमा की समग्र भूमिका काफी गहरे रुप से प्रभावित करने वाली है. चिकित्सा विज्ञान ने भी मानव जीवन में चंद्रमा की भूमिका की पहचान की है. किसी व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य, विशेष रूप से मंदबुद्धि लोगों या पागलखानों में रहने वाले लोगों को देखने के लिए इसे सबसे महत्वपूर्ण ग्रह के रूप में लिया जाता है. ज्योतिष में चंद्रमा की भूमिका को तब समझा जा सकता है जब  चंद्र कुंडली पर ध्यान केंद्रित करते हैं. चंद्र नक्षत्र का उपयोग अच्छे मुहूर्त और नामकरण को जानने के लिए किया जाता है, और जन्म के चंद्रमा से सभी मुख्य ग्रहों की स्थिति को विभिन्न ज्योतिषीय विश्लेषण और भविष्यवाणियों के लिए देखा जाता है.

अलग-अलग भावों में चंद्रमा की स्थिति से चंद्रमा की भूमिका देखी जाती है. तो, आइए हम कुंडली में अलग-अलग घरों में चंद्रमा की भूमिका पर एक नजर डालते हैं.

चंद्रमा व्यक्ति के व्यक्तित्व को दर्शाता है. चंद्रमा गर्भाधान, बच्चे के जन्म और पशु प्रवृत्ति पर असर डालता है. वह माता, माता के परिवार, दादी, बूढ़ी महिलाओं, नौवाहन, कृषि भूमि, प्रेम, दया, मानसिक शांति, हृदय, दूसरों के कल्याण के लिए दी गई सेवाओं और चौथे भाव का प्रतिनिधित्व करती है. चंद्रमा का प्रभाव जीवन के कई पड़ावों पर असर डालता है.  इसी प्रकार इसका पहला चक्र चौबीसवें वर्ष में, दूसरा चक्र उनिचासवें वर्ष में और तीसरा चक्र जातक के चौरानवें वर्ष में पड़ता है. बृहस्पति, सूर्य और मंगल चंद्रमा के मित्र हैं, जबकि शनि, राहु और केतु उसके शत्रु हैं. वृष राशि के द्वितीय भाव में उच्च का होता है और वृश्चिक राशि में अष्टम भाव में नीच का हो जाता है.

विभिन्न घरों में चंद्रमा का प्रभाव

चंद्रमा कुंडली के बारह घरों पर अपना असर डालता है यह प्रभाव उसके गोचर के दोरान होता है. इसके अलग जन्म कुंडली में चंद्रमा की स्थिति कौन से स्थान भाव पर होती है राशि पर होती है यह सब बातें कुंडली के अनुरुप चंद्रमा के प्रभावों को दिखाने वाली होती हैं. जन्म कुंडली में जब चंद्रमा पहले भाव स्थान पर होता है तो यह उसकी काफी विशेष स्थिति होती है, इसके उलट चंद्रमा जब अष्टम में होता है तो अपने प्रभाव में अलग असर दिखाता है. लग्न आपके शारीरिक व्यक्तित्व, जीवन शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है. चंद्रमा भावनात्मक जुड़ाव और प्रतिक्रिया दिखाता है. पहले भाव में चंद्रमा स्वास्थ्य-चेतना, एक सुंदर और युवा रूप, और गोल-मटोल गोल चेहरे के साथ  साफ रंग देता है. प्रथम भाव में चंद्रमा का प्रभाव व्यक्ति को देखभाल करने वाला और मातृ भाव को प्रदान करता है. 

पहले भाव, दूसरे भाव, तीसरे भाव, चतुर्थ भाव, पंचम भाव, सप्तम भाव और नवम भाव में स्थित होने पर चंद्रमा बहुत अच्छे परिणाम देता है जबकि छठे भाव, आठवें भाव, एकादश भाव और द्वादश भाव में चंद्रमा को खराब परिणाम वाला माना जाता है. दुधारू पशु या घोड़े की मृत्यु, तालाब का सूखना, छूने और महसूस करने की इंद्रियों का खो जाना चंद्रमा के अशुभ होने के लक्षण होते हैं. चतुर्थ भाव में केतु की स्थिति मातृ ऋण का कारण बनता है. 

इसी प्रकार अलग अलग भावों में चंद्रमा का होना तथा कुंडली में बनने वाले ग्रहों के साथ उसका गठ जोड़ कैसा रहेगा यह सभी बातें कुंडली पर चंद्रमा के असर के लिए विशेष महत्व रखने वाली होती हैं.