जन्म कुंडली से कैसे जाने पुनर्जन्म का संबंध
वैदिक ज्योतिष कर्म और पुनर्जन्म के दर्शन पर आधारित है. जन्म कुंडली द्वारा व्यक्ति अपने जीवन और कर्म सिद्धांत की स्थिति को काफी गहराई के द्वारा जांच सकता है. जन्मों की इस यात्रा को समझने में ज्योतिष हमारी बहुत मदद कर सकता है. इसके ज्ञान के द्वारा कर्मों के सिद्धांत को शुभता प्रदान कर लेना भी बहुत बेहतर है. हम वह हैं जो आप अपने पिछले कई जन्मों के कारण हैं, और अभी के द्वारा किए गए काम आने वाले कर्मों का निर्धारण करते चले जाते हैं. इस जन्म में हमारे सुख दुख पुर्व में किए गए हमारे वो कृत्य हैं जिनके फल का निर्धारण इस जन्म में हमें प्राप्त होता है. जन्म कुण्डली में कर्म के निर्धारण के लिए कुंडली के कुछ भाव विशेष रुप से देखे जाते हैं. इन में से विशेष रुप से पंचम भाव, नवम भाव को मुख्य स्थान प्राप्त होता है. इसके अतिरिक्त छठा भाव और द्वादश भाव भी इसके अन्य पहलुओं के लिए विशेष होता है. कर्म एक व्यक्ति के कार्यों से उत्पन्न बल है. कर्म के नियम के दौरान, न्याय की अभिव्यक्ति स्पष्ट रुप से देखने को मिलती है. अपने अच्छे कार्यों के लिए अच्छा मिलता है लेकिन अपने पिछले जन्मों में इन अच्छे कर्मों को करने के द्वारा अर्जित गुणों के माध्यम से अपना अच्छा बुरा प्राप्त करते हैं.
अच्छे फलों एवं मोक्ष को प्राप्त करने के लिए, एक व्यक्ति को तब तक कई जन्म लेने पड़ते हैं जब तक कि वे अपने बुरे कर्मों से मुक्त नहीं हो जाते. इस जन्म में हम जो भी कुछ हैं वो अपने पिछले जन्मों के इन अनुभवों के कारण हैं. हमारी आत्मा की चेतना विभिन्न जीवन काल में हमारे अनुभवों से ढाली जाती है.संचित कर्म पिछले जन्मों के संचित अच्छे और बुरे कर्मों का प्रतिनिधित्व करता है जो पहले से ही परिपक्व हो चुके हैं और उन परिस्थितियों में उनका प्रभाव है जिनमें एक का जन्म हुआ है. यह कर्म हमारे जन्म के समय के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है और इसलिए इस जीवनकाल में हमें जिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है वह सभी उन्हीं संचित कर्मों का प्रभाव होता है. कुछ लोग मानसिक या शारीरिक अक्षमताओं के साथ पैदा होते हैं जिन पर उनका कोई नियंत्रण नहीं होता और कुछ महान प्रतिभाओं के साथ पैदा होते हैं जो बहुत कम उम्र में चमक जाते हैं.
जन्म कुण्डली में संचित कर्म को चौथे भाव, छठे भाव, आठवें भाव और बारहवें भाव द्वारा दर्शाया गया है, यह भाव गहरे और छिपे हुए अर्थों और प्रभावों का प्रतिनिधित्व करते हैं. जीवन के आराम, मृत्यु और से संबंधित इन भावों के द्वारा व्यक्ति के कर्मों को जाना जा सकता है.
जन्म कुंडली में कर्म भाव और उसकी स्थिति
जन्म कुण्डली में संचित कर्म को चौथे भाव, छठे भाव, आठवें भाव और बारहवें भाव द्वारा दर्शाया गया है, यह भाव गहरे और छिपे हुए अर्थों और प्रभावों का प्रतिनिधित्व करते हैं. जीवन के आराम, मृत्यु और से संबंधित इन भावों के द्वारा व्यक्ति के कर्मों को जाना जा सकता है.
जन्म कुडली में दूसरे भाव, छठे भाव, दशम भाव को धन, दैनिक कार्य, स्वास्थ्य, लेनदारों, करियर और व्यक्तिगत स्थिति का प्रतिनिधित्व करता है. इन भावों को देखना होता है ताकि व्यक्ति पर इस कर्म के भौतिक और सांसारिक प्रभावों का विश्लेषण किया जा सके. जन्म और परिस्थितियों की स्पष्ट असमानताओं का कारण तब स्पष्ट हो जाता है जब यह स्वीकार कर लिया जाता है कि आज की हमारी परिस्थितियाँ पूर्व में लिए गए निर्णयों और कार्यों का परिणाम हैं. प्रारब्ध कर्म पिछले जन्मों से लाए गए अधूरे लेन-देन का प्रतिनिधित्व करता है जिसे इस जीवन काल में निपटाने की आवश्यकता है. यह कर्म पंचम भाव पूर्व पुण्य के फलों को दिखाता है. यह लग्न भाव, पंचम और नवम भाव कर्मों के लिए काफी विशेष होता है.
इस कर्म पर व्यक्ति का एक निश्चित मात्रा में नियंत्रण होता है क्योंकि यह अभी पूरी तरह से गठित नहीं हुआ है. राहु और केतु दो कर्म ग्रह हैं जो इस कर्म को उकसाते हैं. केतु आगे लाए गए कर्म ऋण का प्रतिनिधित्व करता है और राहु दर्शाता है कि यह कैसे पूरा होने की संभावना है. राहु कुछ लोगों को अचानक ऊपर उठाने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है.
शनि और पुनर्जन्म का संबंध
प्रथम भाव में शनि का कार्य बहुत विशिष्ट है, इनकी लग्न राशि में सबसे नीच दिग्बल होता है. तो यहां शनि हमें अपने कर्म को बहुत अधिक प्रभावित प्रभावित करते हैं यहां शनि जीवन को पूर्ण रुप से बदल देने के लिए काफी महत्व रखता है. शनि का आप अपने आप को अभिव्यक्त करने से डर सकते हैं बाधित हो सकते हैं, नई चीजें सीखना मुश्किल है, मित्रतापूर्ण, आत्मविश्वास की कमी, सामान्य ज्ञान की कमी आदि. यह असर पिछले जन्मों में शक्ति के दुरुपयोग को अधिक दिखाता है. इसमें जरुरी है कि अब इस कर्म में जीवन को संतुलन करना सीखना होगा. जब आप इसे समझ जाते हैं, तो आप जीवन में अपने लक्ष्यों के लिए व्यवस्थित रूप से काम कर पाते हैं. अपने आप को एकांत में रहने से बचना चाहिए क्योंकि इससे नकारात्मकता अधिक असर डाल सकती है. समस्याएं लगभग हमेशा मौजूद रहती हैं लेकिन उन्हें हल करने का प्रयास करना और विनम्र होकर सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए.
चतुर्थ भाव और शनि का पुनर्जन्म संबंध
चतुर्थ भाव में शनि का होना अपने घर से संबंधित अधिक कर्तव्यों को दिखाता है. ऎसा इसलिए करने की आवश्यकता है क्योंकि पिछले जन्म में परिवार की उपेक्षा या परित्याग के कारण इस जीवन में उनके सुख को पाने में कमजोर हो जाते हैं. ऎसे में भावनात्मक सुख, आराम, सुरक्षा आदि के मामलों में हमें अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है. अकेलेपन की भावना बहुत ज्यादा तनाव देगी. इन चीजों से बचाव के लिए ही जिम्मेदार होना होगा. नियमित आध्यात्मिक चीजों के प्रति आस्था रखनी होगी. नैतिकता का सख्ती से पालन करना होगा जिससे शनि कर्म की शुभता को प्रदान करें.
छठे भाव और शनि का पुनर्जन्म संबंध
छठे भाव में शनि, का होना व्यक्ति को बहुत सी चुनौतियों से प्रभावित करता है. शनि मुख्य रूप से बीमार, कर्ज, शत्रु के द्वारा इस घर में होकर प्रभावित करने वाला होता है. शनि का प्रभाव छठे घर में उथल-पुथल से डरता है. इनसे बचने के लिए सक्रिय सावधानी बरतनी चाहिए.
जब शनि की स्थिति इन घरों में होती है तो कर्म का सिद्धांत विशेष रुप से काम करता है. शनि की स्थिति जब यहां हो तो अपने कर्मों में अब बदलाव की आवश्यकता होती है.