चिकित्सा ज्योतिष में मानसिक विकार का कारण
ज्योतिष शास्त्र में मानसिक विकार से संबंधित योगों का वर्णन मिलता है. ज्योतिष अनुसार मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाले विकार एवं नकारात्मक सोच के पीछे ज्योतिषिय कारण बहुत असर डालते हैं. मानसिक रुप से चंद्रमा का प्रभाव बहुत विशेष माना गया है. इस कारण से सभी प्रकार के मनोविकारों के लिए चंद्रमा का प्रभाव बहुत होता है. इसके अलावा अन्य ग्रहों का योग अलग- अलग रुप से अपना प्रभाव दिखाता है.
ज्योतिष के माध्यम से मानसिक विसंगतियों को समझना आसान है, इसका विश्लेषण करके इससे बचाव का मार्ग भी सुलभ रुप से प्राप्त होता है. मानसिक विकारों के विभिन्न कारण होते हैं. मानसिक विकारों की संभावना का निर्धारण करने में ज्योतिषीय महत्व के बारे में बात करेंगे. चिकित्सा ज्योतिष में कुछ ऐसे योग हैं जो हमें यह निर्धारित करने में मदद करते हैं कि एक व्यक्ति अपने जीवन में किन स्वास्थ्य जटिलताओं से पीड़ित होगा. इस तरह के गंभीर विश्लेषण के लिए हमेशा सूक्ष्म रुप से ग्रह नक्षत्रों का चयन जरुरी होता है.
मानसिक विकारों को कैसे जाने कुंडली से
कुंडली में मानसिक विकारों के लिए चंद्रमा, बुध, चतुर्थ भाव और पंचम भाव का विश्लेषण किया जाता है. चंद्रमा हृदय-मन है और बुध मस्तिष्क-बुद्धि है. इसी प्रकार चतुर्थ भाव हृदय और पंचम भाव मस्तिष्क को दर्शाता है. चंद्रमा और पंचम भाव ऐसी स्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. जब व्यक्ति भावनाओं से परेशान होता है वह उन्हें संभाल नहीं पाता है, भावनात्मक उथल-पुथल के कारण अपनी मानसिक स्थिरता खो देता है तो ये स्थिति उसे दिमागी रोगों की ओर ले जाने लगती है. इसी प्रकार चतुर्थ भाव सिजोफ्रेनिया जैसे मानसिक विकार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. वहीं शनि और चंद्र की युति भी मानसिक स्वास्थ्य के लिए शुभ नहीं मानी जाती है. किसी भी प्रकार के मानसिक विकार की घटना के लिए कुंडली में चंद्रमा पीड़ित होना चाहिए.
मानसिक विकार को प्रभावित करने वाले योग
किसी व्यक्ति में मानसिक विकार उत्पन्न होने की प्रवृत्ति तब दिखाई देती है, जब वह अपनी इच्छाओं एवं विचारों को नियंत्रित नहीं कर पाता है. इसका कारण जन्म कुंडली में बनने वाले खराब योगों के कारण ही अधिक लक्षित होता है. जन्म कुंडली में जब चन्द्रमा एक ही भाव में राहु के साथ स्थित होता है तो ऎसे में यह एक ग्रहण योग होता है. इसके कारण जातक को शुभ फल नहीं मिल पाते हैं ऐसा इसलिए है क्योंकि राहु चंद्रमा को हमारे मन को इच्छाओं को भ्रमित कर देता है. चंद्रमा मन का कारक है. ऐसी स्थिति में व्यक्ति अपने सपनों की दुनिया का निर्माण अधिक करता है और जब उसे इसमें सफलता नहीं मिलती है तो धीरे धीरे इसका प्रभाव उसे मानसिक रुप से कमजोर कर देता है.
जन्म कुंडली में बुध का पाप प्रभावित होना भी दिमागी रोग के लिए जिम्मेदार होता है. पीड़ित बुध, केतु और चतुर्थ भाव का आपस में संबंध बनाना जातक को अत्यधिक जिद्दी बनाता है. ऐसे लोग सिजोफ्रेनिया जैसे गंभीर मानसिक विकार से भी पीड़ित हो सकते हैं. बहुत से विद्वान ऐसी स्थितियों का विश्लेषण करने के लिए चतुर्थ भाव और बुध पर बल देते हैं. जब मन और बुद्धि एक समान रुप से किसी चीज पर एकाग्र होती है तो यह अच्छी है लेकिन यदि जब यह जबरदस्ती चीजों पर जोर लगाती है तो अनुकूल नहीं होती है. इस कारण से ही कई तरह की परेशानी दिमागी फितूर के रुप में देखी जा सकती हैं.
जन्म कुंडली में बृहस्पति या मंगल क्रमशः लग्न या सप्तम भाव में स्थित होते हैं तब जातक मानसिक समस्याओं से पीड़ित हो सकता है. मंगल ऊर्जा शक्ति है और बृहस्पति ज्ञान है. जब इन दोनों का संबंध इन भावों से बनता है तो यह विचारों को बहुत अधिक तेजी से प्रभावित करते हैं. लग्न का संबंध व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व से होता है, उसकी इच्छा शक्ति एवं विचारधारा इसी लग्न द्वारा प्रभावित होती है. इस कारण जब मंगल और बृहपति दोनों इस भाव से संबंध बनाते हैं तब व्यक्ति पर इन दोनों की जबरदस्त उर्जा का असर भी पड़ता है. अभिमान, अंहकार, क्रोध जिद जैसे गुण भी विकसित होते हैं, इन बातों का बढ़ जाना ही व्यक्ति को मानसिक विकार की ओर ले जाने वाला होता है. विशेष रुप से यदि ये दोनों ग्रह कुंडली के पाप भावों के साथ संबंध बना रहे हों उनके स्वामित्व को पाते हों अथवा पाप ग्रहों से पीड़त हो रहे हों तो उस स्थिति में इसका असर अधिक पड़ता है.
जन्म कुंडली में शनि लग्न में या कुंडली के पंचम, सप्तम या नवम भाव में मंगल के साथ हो, चंद्रमा केतु के साथ द्वादश भाव में स्थित हो तो व्यक्ति मानसिक विकारों से पीड़ित होता है. व्यक्ति अपने मनोभावों को सही प्रकार से दूसरों के सामने रख नहीं पाता है. वह किसी न किसी अंजाने भय से भी परेशान होता है. इसके अलावा यदि कृष्ण पक्ष के कमजोर चंद्रमा के साथ शनि बारहवें भाव में बैठा हो तो भी इस कारण मानसिक विकार होने की संभावना होती है. चंद्र और शनि की युति भी मानसिक अशांति का कारण बनती है. इसमें बुध का शामिल होना व्यक्ति को डर और भय का माहौल देने वाला होता है. उन्मांद से प्रभावित होकर जातक गलत चीजों को करने के लिए अधिक प्रेरित दिखाई देता है.
जन्म कुंडली में उपग्रहों का स्वरुप भी विशेश होता है. मांदी अगर सप्तम भाव में हो और पाप ग्रह से पीड़ित हो. राहु और चंद्रमा लग्न में स्थित हों तो व्यक्ति को मसिक विकार परेशानी देते हैं. जब किसी कुंडली के छठे या आठवें भाव में शनि और मंगल की युति होती है तो मानसिक विकार का कारण बनती है.