शनि और केतु की युति क्यों होती है खराब ?
ज्योतिष में शनि ओर केतु दोनों को ही पाप ग्रह की उपाधी प्राप्त है, ऎसे में जब दो पप ग्रह एक साथ होंगे तो इनका युति योग जातक के जीवन में कई तरह अपना असर डालेगा. शनि ग्रह को आदेश, कानून, अनुशासन, न्याय और रूढ़िवादी का प्रतीक है. वैदिक ज्योतिष में शनि न्याय के देवता हैं. दूसरी ओर, केतु छाया ग्रह है. यह एकांत, अलगाव, कारावास प्रतिबंध का प्रतीक है. ज्योतिष में यह विरक्ति से परिपूर्ण ग्रह है. शनि और केतु दोनों ही मंद गति से चलने वाले ग्रह हैं. कुंडली में शनि और केतु मिलकर सांसारिक इच्छाओं और आध्यात्मिक जीवन के बीच होने वाली उथल-पुथल का कारण बनते हैं.
शनि ग्रह कड़ी मेहनत, करियर, विकास और दृढ़ इच्छाशक्ति का कारक है. वहीं, केतु जातक को एकांतवास स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है. जब ये दो बिल्कुल विपरीत ग्रह एक साथ आते हैं, तो जातक निरंतर भ्रम का शिकार होता है. वे भौतिकवादी और आध्यात्मिक जीवन के बीच चयन करने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं. शनि और केतु की युति व्यक्ति में विवेक, जिम्मेदारी, मेहनती आचरण इत्यादि कुछ गुणों का प्रतिनिधित्व करती है.
शनि और केतु प्रथम भाव में
शनि एक सख्त, गंभीर और न्यायप्रिय स्वभाव का प्रतीक है. वहीं, केतु एकांत और कारावास का प्रतिनिधित्व करता है. कुंडली का पहला घर बाहरी रूप, अहंकार, स्वभाव, आत्मविश्वास और आत्म-अभिव्यक्ति को दर्शाता है. प्रथम भाव में शनि और केतु की युति के साथ, व्यक्ति एक वैरागी के व्यक्तित्व को धारण करता है. व्यक्ति गंभीर स्वभाव का हो सकता, एकांत पसंद करता है, और दूसरों को अपने जीवन में आसानी से शामिल करना पसंद नहीं करता है.
शनि और केतु दूसरे भाव में
ज्योतिष का दूसरा घर संपत्ति को दर्शाता है. इसे धन भाव या वित्त गृह भी कहा जाता है. यह भाव आय, संपत्ति, धन लाभ, वाहन इत्यादि को दर्शाता है, दो समान और मंद ग्रह एक साथ मिलकर दो अलग-अलग किनारों का निर्माण करते हैं जो अलग-अलग अर्थों का प्रतीक हैं. व्यक्ति को पैसा बनाने की तीव्र इच्छा नहीं होती है. उनका लक्ष्य पैसा कमाना और बनाना नहीं होता है. इसके साथ ही दूसरा भाव संचार और बोलने के तरीके का भी प्रतीक है. दूसरे भाव में शनि और केतु का असर वाणी में कठोरता दिशाता है. कटु वचन और दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले शब्द अधिक उपयोग कर सकते हैं
शनि और केतु तीसरे भाव में
ज्योतिष का तीसरा भाव मानसिक झुकाव को दर्शाता है. यह सीखने और अनुकूलन, कौशल की क्षमताओं पर असर डालता है. आदतों, रुचियों, भाई-बहनों, बुद्धि, संचार और संचार माध्यमों को भी नियंत्रित करता है.तीसरे भाव में शनि और केतु की युति जातक को अपने भाई-बहनों के सुख को समाप्त करने वाला होता है. अपने भाई-बहनों से दूरी रहती है और उनके साथ प्यार भरा रिश्ता बिल्कुल भी नहीं बन पाता है.
शनि और केतु चतुर्थ भाव में
ज्योतिष का चौथा घर संपत्ति, भूमि का प्रतीक है. माता, जमीन-जायदाद, वाहन और घरेलू सुख इसके द्वारा देखे जाते हैं इसे बंधु भाव भी कहते हैं. चतुर्थ भाव में शनि और केतु का मतलब जीवन के कई महत्वपूर्ण सुखों का अंत होना. सुख, संपत्ति और धन में रुचि से दूर हट सकता है. चतुर्थ भाव में शनि और केतु की युति व्यक्ति को घरेलू जीवन को पूरी तरह त्यागने के लिए प्रेरित करती है. भटकाव और अकेले रहने का ही प्रभाव ज्यादा जीवन पर पड़ता है.
शनि और केतु पंचम भाव में
पांचवां भाव आनंद, खुशी का प्रतीक है. यह प्रेम, रोमांस, रचनात्मकता और बुद्धिमत्ता को दर्शाता है. इस घर को पुत्र भाव भी कहा जाता है. प्रेम जीवन और परमानंद से जुड़े सभी पहलू पंचम भाव के दायरे में आते हैं.केतु आत्म-विनाश का भी प्रतीक है. इस प्रकार, पंचम भाव में शनि और केतु की युति एक बहुत ही नकारात्मक स्थिति है.यह घर संतान को भी दर्शाता है. इस प्रकार, इस स्थिति के कारण जातक को प्रसव के मामले में अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.
शनि और केतु छठे भाव में
छठा भाव स्वास्थ्य, दिनचर्या, ऋण, शत्रुओं को दर्शाता है. इस भाव को अरि भाव भी कहा जाता है. यह कठिनाइयों, बाधाओं को भी दर्शाता है. केतु छिपी हुई चीजों का प्रतीक है. जबकि शनि वृद्धि का कारक है. इसलिए छठे भाव में यह युति समय के साथ जातक के शत्रुओं की संख्या में वृद्धि करती है. ये कुछ भी कर लें बड़ी तेजी से दुश्मन बना लेते हैं.केतु संबंधों में वियोग और रोगों के सामने समर्पण का कारण बन सकता है.
शनि और केतु सातवें घर में
सभी प्रकार की साझेदारी, साहचर्य और संबंध सातवें भाव से देखे जाते हैं. यह वह घर है जो आपके साथी के साथ आपके रिश्ते और आपकी भावनाओं के प्रति इरादों को अभिव्यक्त करता है. यह शादी और अफेयर्स के बारे में भी बताता है. शनि धीमा ग्रह है. इसलिए यह विवाह में देरी का प्रमुख कारण है. एक अन्य मंद ग्रह केतु के साथ, ग्रहों की स्थिति व्यक्ति के विवाह में महत्वपूर्ण बाधा और बाधा उत्पन्न कर सकती है.
शनि और केतु आठवें घर में
आठवां भाव आयु, मृत्यु, लंबी उम्र और अचानक होने वाले घटनाओं को दर्शाता है. इसे रंध्र भाव भी कहते हैं. अचानक लाभ, लॉटरी, अचानक नुकसान जैसी तेज घटनाएँ भी आठवें घर का एक हिस्सा हैं. यह रहस्यों, खोजों और परिवर्तन का क्षेत्र भी है.आठवें घर में शनि और केतु की युति सबसे घातक स्थिति मानी जाती है. यह अचानक असाध्य रोग का प्रभाव लेने का कारण बन सकता है.इससे दुर्घटनाएं और चोट लगने का खतरा भी अधिक रहता है. इस प्रकार, यह स्वास्थ्य और जीवन काल के मामले में सबसे खराब स्थिति भी मानी जाती है.
शनि और केतु नौवें घर में
नवम भाव भाग्य, सिद्धांतों, अच्छे कर्मों की ओर झुकाव, दान का प्रतिनिधित्व करता है. इसे धर्म भाव के नाम से भी जाना जाता है. यह शिक्षा, नैतिकता, उच्च अध्ययन, आप्रवासन, धार्मिक झुकाव को प्रभावित करता है. इस प्रकार, इस घर में शनि का अच्छा प्रभाव दे सकता है. वहीं शनि और केतु के कारण पिता-गुरुजनों से संबंध बिगड़ सकते हैं. यह सांसारिकता, पिता को त्यागने और धार्मिक परंपराओं, पूजा करने के लिए प्रेरित करता है.
शनि और केतु दसवें भाव में
दसवें भाव से करियर, सफलता, असफलता को देखा जाता है. इस घर को कर्म भाव के नाम से भी जाना जाता है. यह प्रतिष्ठा, पद प्राप्ति, विजय, अधिकार, प्रतिष्ठा और व्यवसाय के क्षेत्र को दर्शाता है. दसवें भाव में शनि और केतु की युति करियर की ऊर्जा और शक्ति को कर कर देती है. दोनों बाधक और मंद ग्रह हैं इसलिए ये कर्म क्षेत्र में कई तरह की बाधाएं पैदा करते हैं.किसी भी प्रकार के व्यवसाय या उद्यम में सफलता के लिए लम्बा संघर्ष बना रहता है.
शनि और केतु एकादश भाव में
एकादश भाव को लाभ भाव कहा जाता है. यह घर लाभ, धन, आय, नाम, प्रसिद्धि को दर्शाता है. सामाजिक दायरे, मित्रों, शुभचिंतकों, बड़े भाई और परिचितों पर इसका अधिकार होता है. शनि केतु यह युति आर्थिक लाभ को कमजोर कर सकती है. शनि और केतु की युति आय के सभी स्रोतों को कम कर देती है. आय का उचित स्रोत प्राप्त करने और व्यवस्थित होने में कठिनाई होती है. धीरे-धीरे पैसों के अभाव में जीवन कठिन होता है.
शनि और केतु बारहवें भाव में
बारहवां भाव सांसारिक यात्रा के अंत और आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत का प्रतिनिधित्व करता है. यह भाव नींद, कारावास, हानि और अलगाव को भी दर्शाता है. इसलिए यहां शनि और केतु मित्रों और परिवार से अलग होने की संभावना को बढ़ा सकते हैं. व्यक्ति को अधिक नुकसान उठाना पड़ सकता है. यह युति खर्च को भी बढ़ावा देती है. बजट का प्रबंधन करने और अपने धन को संतुलित करने में कठिनाई हो सकती है.