विष योग - शनि और चंद्र का संगम क्यों होता है इतना घातक ?
जन्म कुंडली में शनि और चंद्र का एक साथ एक भाव में होना विष योग का निर्माण करता है. यह एक घातक योग होता है. इस योग के खराब असर अधिक देखने को मिलते हैं. जिस भाव में इस योग का निर्माण होता है उस भाव से जुड़े शुभ फल कमजोर हो जाते हैं.
कुंडली में विष योग कैसे चेक करें
ज्योतिष शास्त्र में ग्रह नक्षत्र इत्यादि के द्वारा कई तरह के योग बनते हैं. इन योग में एक योग शनि और चंद्रमा के साथ मिलने से बनने वाला होता है. इस योग को परेशानी, चिंता और कष्ट देने वाला होता है. अब इन दोनों ग्रहों की स्थिति और भाव स्थान तथा अन्य कुंडली कारकों के द्वारा इसके फल को समझा जा सकता है. शनि और चंद्रमा दोनों ही एक शक्तिशाली कारक ग्रह हैं. एक बहुत तेज है तो एक बहुत धीमा है, अब जब दोनों एक साथ होते हैं तो इनके मध्य तालमेल की कमी का असर व्यक्ति पर भी अवश्य पड़ता है. इसका असर मानसिक शारीरिक रुप से अधिक देखने को मिलता है. यह एक ऐसा योग होता है जो मानसिक रुप से अधिक कष्ट दिखाता है. गोचर में यह विष योग 27 दिनों में एक बार बनता है क्योंकि चंद्रमा काफी तेज होता है चलने में ओर वह बारह राशियों के भ्रमण काल के दौरान एक बार शनि के साथ युति योग अवश्य बनाता है.
विष योग का प्रभाव कैसे पड़ता है ?
जन्म कुंडली में इस योग के असर को समझन के लिए कई सारी बातों पर ध्यान देने कि आवश्यकता होती है. इस योग में ग्रहों की आपस में डिग्री का अंतर, किस भाव में यह योग बन रहा है, भावेश की स्थिति अन्य ग्रहों का इन पर प्रभाव इत्यादि बातें असर डालती हैं. इस दोष के कारण व्यक्ति में अवसाद और उदासी की स्थिति पैदा होती है. इसके खराब जगह बनने पर यह कुछ सकारात्मक प्रभाव दे सकता है क्योंकि दु:स्थानों पर बना खरब योग अधिक परेशान नहीं करता है.
विष योग की स्थिति ऎसी होती है जैसे व्यक्ति स्वयं को किसी बंधन में होने का अनुभव करता है. खुद के विचारों से जूझता हुआ मन छोटी-छोटी त्रुटियों के लिए खुद को कष्ट देता देखा जा सकता है. भय और पीड़ा की स्थिति का अनुभव करते हुए देखा जा सकता है. यह संघर्ष व्यक्ति के दिमाग के अंदर अधिक होता है. जीवन को निराशा की अंतहीन रास्ते के रूप में महसूस कर सकते हैं. यह योग दिमाग और भावनाओं के क्षेत्र में अधिक परेशानी देता है.
विष योग का जन्म कुंडली पर असर
विष योग के प्रभाव वाले कई लोग सफल जीवन व्यतीत करते हुए मिल सकते हैं. समाज के लिए बहुमूल्य योगदान भी देते हैं. महत्वपूर्ण प्रयासों के लिए बहुत अधिक सराहना नहीं मिल पाती है. इसके अलावा जीवन में किसी भी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत करनी ही होती है.
शनि ठंडा, वायु कारक बुजुर्ग, धीमा ग्रह है. चंद्रमा जल निर्मित कारक है. उतार-चढ़ाव से भरपूर होता है. ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन के कारक रूप में दर्शाया जाता है. शनि अपने असर से मन को भटकाव और धीमापन देता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ये एक दुर्जेय योग हैं. शनि ग्रह अभाव को उत्पीड़न को, भय, गरीबी और कड़ी मेहनत का कारक होता है. चंद्रमा प्रेम और भावनाओं का कारक है. ये दोनों ग्रह ज्योतिष में एक दूसरे की शक्तियों का विरोध करते हैं. इनके लक्षण विपरीत होते हैं, इसलिए जीवन में अशांति और निराशा की स्थिति पैदा अवश्य होती है.
विष योग दोष एक जहरीला योग है जो अपने भाग्य के लिए कठिन होता है. प्राचीन ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार, राजाओं ने इस दोष वाली कन्याओं को विष कन्या की उपाधी भी दी है. लेकिन यह योग इसके अतिरिक्त चीजों पर भी आधारित होता है. इस दोष की नकारात्मक शक्ति अधिक देखने को मिलती है. जब जन्म कुंडली के कुछ घरों में विशिष्ट योग में शुभ और अशुभ ग्रह एक साथ स्थित होते हैं तब काफी परेशानी देखने को मिलती है. यह दोष उदासी, बुरी आदतों और यहां तक कि जीवनसाथी से कष्ट की स्थिति को दर्शाता है.
विष योग कब तक रहता है?
उदास शनि जब मन के कारक चंद्रमा के साथ संबंध बनाता है तब विचार में अलग धाराओं का टकराव होता है. मन, भावनाओं और कार्यों के बीच संघर्ष सदैव बना रह सकता है. व्यक्ति के मन में अवसाद की अधिक स्थिति बनी रहती है. विष दोष विश्वास की कमी भी दर्शाता है. प्रेम कमजोर रहता है. तनाव चिंता महसूस कर सकता है. विष दोष आत्मघाती विचार भी पैदा कर सकता है, मन क्रूर हो सकता है और उत्पीड़क बन जाता है. कई मानसिक रोग वाले व्यक्तियों या तानाशाहों की कुंडली में विष दोष हो सकता है. भावनाओं का दर्द, दिमाग पर हावी हो जाता है. साथ ही अगर कोई पाप ग्रह भी यहां हो तो स्थिति और भी अधिक कष्टदायक हो सकती है. यदि कोई शुभ ग्रह हो तो कुछ मामलों में संवेदनशील और दयालु भावनाएं होती हैं. अन्य ग्रहों का शुभ या अशुभ प्रभाव स्थिति के अनुसार फल दिखाता है. यह योग पूर्व जन्मों के खराब कर्मों का परिणाम माना जाता है.
विष दोष उपाय
विष योग की शांति हेतु कई उपाय कारगर हो सकते हैं. भगवान शिव की पूजा को विष दोष की समाप्ति हेतु महत्वपूर्ण कारक माना जाता है. भगवान शिव पूजा, रुद्राभिषेक, मंत्र जाप इत्यादि कार्य करने से दोष शांत होता है. हनुमान जी की पूजा द्वारा इस योग के बुरे प्रभावों को कम किया जा सकता है.विष योग की शांति हेतु नव ग्रहों में चंद्र एवं शनि पूजन अत्यंत उपयोगी होता है. (Clubdeportestolima)