केतु क्यों है मोक्ष का कारक ? जाने सभी 12 भावों में इसके होने का फल
वैदिक ज्योतिष में केतु को अलगाव, ज्ञान, रहस्य, ध्यान और सबसे महत्वपूर्ण वैराग्य के कारक के लिए माना जाता है. केतु कर्म का प्रतिनिधित्व करता है, यह हमारे पिछले जन्मों के कर्मों के फल को दर्शाता है. कुंडली में केतु जहां बैठता है वह उस क्षेत्र को प्रभावित करता है जहां अपने पिछले कार्यों के बारे में फल प्राप्त करते हैं. केतु मोक्ष या ज्ञान की ओर भी झुकाव का प्रतिनिधित्व करता है. लेकिन मोक्ष तभी प्राप्त किया जा सकता है जब आप पश्चाताप कर चुके हों और पिछले कर्मों के कारण हुए दुखों का सामना कर चुके हों. कुंडली में केतु भाव जीवन का वह क्षेत्र है जहां आपको अपने प्रकाश के अंतिम लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए पीड़ा और कष्ट से गुजरना पड़ता है. यह वह जगह है जहां आपको भ्रमपूर्ण संतुष्टि को त्यागने की जरूरत है और भाव द्वारा प्रतिनिधित्व की जाने वाली भौतिक सुख-सुविधाओं से खुद को अलग करना होता है.
केतु व्यक्ति को उस स्थान से अलग कर देता है जो उसके भाव स्थान से मिलने वालों फलों को दिखाता है. अगर केतु दूसरे या ग्यारहवें भाव में स्थित है, तो व्यक्ति धन से संबंधित मामलों में बहुत कम या कोई दिलचस्पी नहीं लेता है. किसी तरह, व्यक्ति जीवन के इस क्षेत्र को नियंत्रित नहीं कर पाता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि व्यक्ति धन से वंचित हो जाएगा. वह एक धनी व्यक्ति हो सकता है, लेकिन हो सकता है कि उसका अपनी संपत्ति पर नियंत्रण या आसानी से धन का लाभ न उठा पाए. ऐसा व्यक्ति अपने संसाधनों को बुद्धिमानी से निवेश करने के लिए इच्छुक नहीं हो पाता है. इस प्रकार केतु का जो भी भाव होता है वह जहां भी बैठा होता है उस स्थान में मौजूद फलों को पाने में आत्मिक रुप से संतुष्ट नही हो पाता है. व्यक्ति की कुंडली में केतु जिस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है उस क्षेत्र में व्यक्ति को सबसे अधिक अनिच्छा और वैराग्य का सामना करना पड़ता है. व्यक्ति उस भाव के प्रभावों से घिरा हुआ महसूस कर सकता है लेकिन फिर भी अलग नहीं हो सकता है. इस तरह से भ्रम, मानसिक अशांति और संघर्ष का सामना करना पड़ता है, जिस भाव से केतु ज्यादातर जुड़ा हुआ है वहां व्याकुलता और हताशा व्यक्ति को उस भाव के मामले से अलग कर देती है. उचित रुप से फल नहीं मिल पाते हैं.
वैदिक ज्योतिष में केतु का महत्व
एक पुरानी कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप की पुत्री सिंहिका का विवाह विप्रचिति से हुआ था. उसने स्वरभानु नाम के एक राक्षस को जन्म दिया. स्वरभानु देवों की तरह अमर होना चाहते थे. उन्होंने देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध के दौरान खुद को देव के रूप में छिपा लिया. फिर छल द्वारा अमृत पिया. भगवान विष्णु ने उन्हें पहचान लिया और उन्होंने अपने चक्र से स्वरभानु का सिर उनके शरीर से अलग कर दिया.लेकिन, तब तक अमृत स्वरभानु के गले तक पहुंच गया. इसलिए, सिर वाला हिस्सा राहु के रूप में जाना जाने लगा, जबकि दूसरे आधे हिस्से को केतु कहा गया. इसी कारण केतु को मोक्ष का कारक ग्रह कहा जाता है. केतु को कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे ध्वज, शिखी और राहु पुंछ
जन्म कुंडली में केतु का प्रभाव
प्रत्येक ग्रह अलग-अलग राशियों में अलग-अलग फल देता है. यदि आपकी कुण्डली में केतु मीन राशि में है तो वह अपनी ही राशि या स्वराशी में माना जाता है. यह अपनी मूल त्रिकोण राशि में है, यदि यह मकर राशि में है. केतु यदि वृश्चिक राशि में होगा तो मजबूत होता है केतु धनु राशि में भी उच्च का होता है. केतु वृष राशि में नीच का है. मिथुन राशि में होने पर भी यह नीच का होता है. केतु की यह स्थिति उच्च अवस्था के ठीक विपरीत होती है. नीच का केतु व्यक्ति को असहाय और अलग महसूस कराता है.
विभिन्न भावों में केतु का प्रभाव
व्यक्ति पर केतु का प्रभाव कुंडली या जन्म कुंडली के बारह अलग-अलग भाव घर में स्थिति पर निर्भर करता है. आईये जाने इनके कुछ महत्वपूर्ण फलों के बारे में विस्तार से.
प्रथम भाव में केतु
प्रथम भाव में केतु होने पर व्यक्ति धनवान और मेहनती होता है लेकिन उसे हमेशा अपने परिवार की चिंता रहती है. केतु प्रथम भाव में होने पर जातक के पारिवारिक संबंध के लिए शुभ या लाभकारी माना जाता है. लेकिन जब पहले घर में केतु अशुभ हो, तो सिरदर्द हो सकता है. यदि प्रथम भाव में केतु अशुभ हो तो जीवन साथी और संतान को स्वास्थ्य को लेकर परेशानी हो सकती है.
दूसरे भाव में केतु
दूसरे भाव का कारक चंद्रमा होता है जिसे केतु का शत्रु माना जाता है. यदि दूसरे भाव में केतु शुभ हो तो माता-पिता से लाभ दिला सकता है. व्यक्ति को कई अलग-अलग स्थानों की यात्रा करने का अवसर मिल सकता है और उसकी यात्रा फलदायी हो सकती है. यदि दूसरे भाव में केतु अशुभ हो तो यात्रा का अच्छा सुख नहीं मिल सकता है. यदि अष्टम भाव में चंद्रमा या मंगल हो तो जातक का जीवन कष्टमय हो सकता है या कम उम्र में ही गंभीर स्वास्थ्य समस्या होती है.
तीसरे भाव में केतु
तीसरा घर बुध और मंगल से प्रभावित होता है, दोनों केतु के साथ ठीक नहीं हैं. यदि तीसरे भाव में केतु शुभ है तो यह व्यक्ति की संतान के लिए अच्छा होता है. यदि केतु तीसरे भाव में हो और मंगल बारहवें भाव में हो तो जातक की कम उमे में संतान हो सकती है. तीसरे भाव में केतु के साथ व्यक्ति को नौकरी या काम के कारण यात्रा करवाता है. तीसरे भाव में केतु अशुभ हो तो जातक को मुकदमेबाजी में धन की हानि हो सकती है. वह अपने परिवार के सदस्य से अलग हो जाता है. उसे अपने भाइयों से परेशानी हो सकती है अथवा व्यर्थ की यात्राएं अधिक करनी पड़ सकती है.
चतुर्थ भाव में केतु
कुंडली के चौथे भव का कारक चंद्रमा होता है, यदि केतु चतुर्थ भाव में शुभ हो तो व्यक्ति को अपने पिता और गुरु के लिए भाग्यशाली माना जाता है. ऐसा व्यक्ति अपने सारे निर्णय भगवान पर छोड़ देता है. यदि चन्द्रमा तीसरे या चौथे भाव में हो तो फल शुभ होता है. चौथे भाव में केतु के साथ जातक एक अच्छा सलाहकार और आर्थिक रूप से मजबूत होता है. यदि केतु चतुर्थ भाव में खराब अवस्था में हो तो व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्या हो सकती है, इससे वह दुखी हो सकता है. व्यक्ति मधुमेह, जल जनित रोगों से पीड़ित हो सकता है.
पंचम भाव में केतु
पंचम भाव का कारक सूर्य का होता है और उस पर बृहस्पति भी प्रभाव डालता है ऎसे में केतु का यहां प्रभाव बौधिकता को प्रभावित करता है. केतु 24 वर्ष की आयु के बाद अपने आप लाभकारी हो जाता है. यदि पंचम भाव में केतु अशुभ हो तो जातक को स्वास्थ्य संबंधी कोई परेशानी होती है. संतान होने में विलंब या परेशानी हो सकती है. केतु पांच वर्ष की आयु तक अशुभ फल देता है.
छठे भाव में केतु
छठा भाव बुध ग्रह का है. छठे भाव में केतु नीच का माना जाता है. यह व्यक्ति की संतान के संबंध में अच्छे फल दे सकता है. छठे भाव में केतु के कारण व्यक्ति एक अच्छा सलाहकार होता है. पारिवारिक जीवन सामान्य रह सकता है. विद्रोह को दबा सकता है. यदि केतु छठे भाव में खराब स्थिति में हो तो नाना पक्ष के लिए कष्ट कारक हो सकता है. व्यर्थ की यात्राओं के कारण परेशानी हो सकती है. व्यक्ति को लोग गलत समझ सकते हैं. रोग या दुर्घटना का भय रह सकता है.
केतु सप्तम भाव में
कुंडली में सातवें भाव का कारक शुक्र होता है. यदि केतु सप्तम भाव में हो तो व्यक्ति को कम उम्र में ही आर्थिक लाभ हो सकता है. यदि सप्तम भाव में केतु अशुभ हो तो व्यक्ति विवाह संबंधों से निराश हो सकता है. बीमार होता है, झूठे वादे करता है और शत्रुओं से परेशान रह सकता है.
आठवें भाव में केतु
जन्म कुंडली के आठ भाव का कारक शनि- मंगल हैं, यदि केतु अष्टम भाव में शुभ हो तो व्यक्ति के परिवार में नए सदस्य का अगमन होता है. अचानक धन लाभ मिल सकता है. यदि केतु अष्टम भाव में अशुभ हो तो जातक के साथी को स्वास्थ्य संबंधी कोई परेशानी होती है. रक्त विकार विष प्रभाव शरीर को खराब कर सकते हैं.
केतु नौवें भाव में
नवम भाव का कारक बृहस्पति होता है, नौवें भाव में केतु को बहुत शक्तिशाली माना जाता है. इस भाव में केतु वाले लोग आज्ञाकारी, भाग्यशाली और धनवान होते हैं. यदि चंद्रमा शुभ हो तो व्यक्ति को अपने मायके वालों की मदद मिल सकती है.यदि नवम भाव में केतु अशुभ हो तो व्यक्ति को धर्म से कुछ अलग विचारधारावाला बना सकता है. पीठ में दर्द, पैरों में समस्या हो सकती है.
दसवें भाव में केतु
दसवां भाव शनि का होता है. यदि केतु यहाँ शुभ हो तो व्यक्ति अत्यंत भाग्यशाली लेकिन अवसरवादी हो सकता है. व्यक्ति प्रसिद्ध व्यक्ति हो सकता है.यदि दसवें भाव में केतु अशुभ हो तो व्यक्ति को सुनने की समस्या और हड्डियों में दर्द से परेशान हो सकता है. पारिवारिक जीवन चिंताओं और कष्टों से भरा हो सकता है.
ग्यारहवें भाव में केतु
ग्यारहवें भाव में केतु बहुत अच्छा माना जाता है. यह घर बृहस्पति और शनि से प्रभावित होता है. यदि यहां केतु शुभ हो तो यह अपार धन देता है. एकादश भाव में केतु के साथ व्यक्ति आमतौर पर स्व-निर्मित व्यवसायी या उद्यमी होता है. यह राजयोग होता है. यदि यहां केतु अशुभ है तो जातक को पाचन तंत्र और पेट के क्षेत्र में समस्या हो सकती है. वह जितना भविष्य की चिंता करता है, उतना ही परेशान होता जाता है.
बारहवें भाव में केतु
बारहवें भाव में केतु को उच्च का माना जाता है. बारहवें भाव में केतु व्यक्ति को संपन्न बना सकता है. धन देता है. व्यक्ति जीवन में सफल पद प्राप्त करता है. सामाजिक कार्यों और सामुदायिक योगदान में भी अच्छा होता है. व्यक्ति के पास जीवन के सभी लाभ और विलासिताएं होती हैं. यदि बारहवें भाव में केतु अशुभ हो तो भूमि और मकान का अधिग्रहण करते समय गलत निर्णय ले सकते हैं.