बालारिष्ट योग और संतान पर उसका प्रभाव
ज्योतिष में कई तरह के शुभ एवं अशुभ योगों का वर्णन प्राप्त होता है. इन योगों के प्रभाव स्वरुप किसी व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के फलों की प्राप्ति होती है. एक विशेष योग बालारिष्ट भी ज्योतिष शास्त्र में अत्यंत महत्वपूर्ण योग रहा है. इस योग का प्रभाव विशेष रुप से बच्चे की कुंडली को देखते समय ध्यान में रखा जाता है. बालारिष्ट जो संतान के स्वास्थ्य एवं उनके जीवन पर पड़ने वाले फलों को दिखाता है. यह योग पूर्वजन्म के कर्मों का प्रभाव भी दर्शाता है. इस योग के फलस्वरुप किसी बच्चे को कैसे अनुभव प्राप्त होंगे उसकी आयु पर ग्रहों का प्रभाव किस प्रकार का होगा. उसका स्वास्थ्य कैसे प्रभावित हो सकता है इन सभी बातों को जानने एवं समझने के लिए बच्चे की कुंडली में विशेष रुप से इस योग को देखते हैं.
जन्म समय संतान की कुंडली
संतान जन्म एवं संतान के भाग्य की स्थिति कई योगों पर निर्भर करती है. किसी बच्चे की कुंडली में माता-पिता का सुख शुभदायक होता है तो कइसी बच्चे को जन्म समय ही माता-पिता से दूरी का दंश झेलना पड़ सकता है. इसी प्रकार से संतान जन्म के बाद परिवार में स्थिति ओर माता-पिता अथवा स्वयं बच्चे पर इस स्थिति का असर किस प्रकार का होगा ये बातें उस बच्चे की जन्म कुंडली को देख कर स्पष्ट रुप से जानी जा सकती है. इसी प्रकार बच्चे का जन्म कुटुम्ब पर कैसा असर डाल सकता है इन बातों को समझने के लिए हमें इन रिष्ट एवं अरिष्ट योग की अवधारणा को देखर फलित कर पाना संभव होता है.
ज्योतिष ग्रंथों में किसी बच्चे की कुंडली देखने हेतु नियमों का निर्धारण भी किया गया है. माना जाता है की संतान के जन्म के कुछ वर्ष संतान अपने माता-पिता के कर्मों को भोगता है. इस के अतिरिक्त बच्चे के जन्म के आरंभिक 3 साल काफी महत्वपूर्ण हो सकते हैं क्योंकि रोग या अन्य प्रकार के खराब प्रभाव इसी समय पर प्रभावित करते हैं
"जिवेत्क्वापि विभंगरिष्टज-शिशूरिष्टम् विनामीयतेऽथाधोब्दः शिशुदुस्तरोऽपि च परौ कार्यैषु नो पत्रिका।।"
आचार्य वैद्यनाथ के अनुसार - जन्म के पहले चार साल माता के कर्म और उसके बाद चार साल पिता के कर्म बच्चे पर असर डालते हैं और इसके बाद बच्चा अपने कर्मों को भोगता है.
"आद्ये चतुष्के जननी कृताद्यैः मध्ये तु पित्रार्जितपापसंचयैः बालस्तदन्यासु चतुःशरत्सु स्वकीय दौषैः समुपैतिनाशये।। "
बालारिष्ट कब ओर कैसे डालता है असर ?
बालारिष्ट का प्रभाव चंद्रमा की स्थिति द्वारा समझा जाता है. जन्म कुंडली में चंद्रमा की स्थिति बहुत अधिक असर डालने वाली होती है. बच्चे की कुंड्ली में चंद्रमा की शुभ एवं मजबूत स्थिति परेशानियों से बचाने वाली होती है. दूसरी ओर चंद्रमा का कमजोर पाप प्रभाव में होना अरिष्ट की स्थिति को दिखाता है. चंद्रमा की पीड़ा बच्चे की स्थिति को भी गंभीर बना सकती है. इसी के साथ लग्न सूर्य और अन्य योग भी यहां अपना असर डालते हैं.
बालारिष्ट को समझने के ज्योतिष सूत्र
चंद्रमा की दशा
जन्म के समय चंद्रमा का सबसे ज्यादा महत्व होता है. चंद्रमा ही माता का प्रतिनिधित्व करता है. अत: चन्द्रमा की स्थिति से अरिष्ट को संतान या उसकी माता का कष्ट होता है. कुंडली में चंद्रमा जहां भी होगा और जिस भी प्रकार के ग्रह के साथ होगा या किसी भी तरह से उसका असर कुंडली में घटित होगा वही फल बच्चे को भी मिलेगा. बच्चे की मन की स्थिति बच्चे की आंतरिक प्रणाली चंद्रमा के द्वारा ही देखने को मिल सकती है.
लग्न और लग्न स्वामी
जन्म कुंडली मे लग्न का महत्व बहुत अधिक होता है. यदि लग्न और लग्न के स्वामी बलवान हैं तो वे कष्ट सह सकते हैं, लेकिन यदि वे कमजोर हैं तो वे इसके आगे झुक जाते हैं. लग्न देह होती है संपूर्ण शरीर होता है. जब ग्रहों के योग के साथ इसका योग प्रभावित होता है तो ये फल देता है.लग्न अगर कमजोर हुआ तो चीजें जरुर अपना असर डालने वाली होंगी लग्न का स्वामी भी अगर कमजोर होगा तो स्थिति अधिक चिंता को दिखाएगी.
अष्टम भाव और अष्टमेश का असर
आठवां घर आयु का और मृत्यु का घर है इसलिए इसे आयु और सेहत के दृष्टिकोण से देखा जाता है. आठवां घर लग्न , चंद्र या सूर्य से किसी प्रकार का संबंध बनाते हुए खराब हो रहा है तो स्थिति चिंता को दिखाती है. अष्टम भाव पर पाप का प्रभाव दीर्घायु को कम करता है, लेकिन अष्टम भाव में स्थित शनि दीर्घायु को बढ़ावा देता है, बशर्ते वह वक्री न हो या फिर पाप प्रभावित न हो.
अरिष्ट की स्थिति वर्ग कुंडलियों में
अगर संतान जन्म समय बिमार हो या अन्य प्रकार के कष्ट घटित होते हैं तो ये समय अरिष्ट का निर्माण करता है. अरिष्ट को बच्चे की कुंडली में देखा जाता है, तो उस बच्चे नवमांश (डी 9 चार्ट), द्रेक्कन, द्वादशांश कुंडली त्रिशांश कुंडली को भी देखना जरुरी होता है. कुंडली में बनते वक्त यह योग अगर अन्य वर्ग कुंडलियों में नही दिखाई देता है तो स्थिति संतोषजन होती है ओर बचाव भी प्राप्त होता है. वर्ग कुंडली में सुधार होता है तो यह अरिष्ट के खतरे को कम करता है, लेकिन अगर अरिष्ट का प्रभाव को बार-बार वर्गाओं में देखा जाता है तो चिंता का कारण है बन सकता है.
बालारिष्ट कब डालता है अपना असर
बालारिष्ट का प्रभाव तब अपना असर डालने वाला होता है जब लग्न, लग्न स्वामी या चंद्रमा को दशा-अंतर्दशा समय और गोचर के अनुसार पाप प्रभाव मिल रहा हो हो. अरिष्ट सामान्य रूप से छठे आठवें या बारहवें भाव या उनके स्वामी की दशा में अपना असर दिखाने वाली होती है. यदि दशा और गोचर में लग्न या चंद्रमा कमजोर न हो तो अरिष्ट प्रभाव नहीं डालता है. इसी तरह यदि नवांश कुंडली में स्थिति में सुधार होता है तो अरिष्ट अपना असर नहीं डालता है, यदि अरिष्ट भंग मजबूत है और जातक का दशा क्रम अनुकूल है, तो अरिष्ट असर डालने में कमजोर ही रहता है. कुंडली में यदि अरिष्ट की स्थ्ति बहुत मजबूत है और अरिष्टभंग कमजोर है, और दशा क्रम और गोचर प्रतिकूल हैं तो अरिष्ट से बचाव कमजोर होता है ओर उस स्थिति में इसका तनाव जेलना पड़ता है. इस स्थिति में ग्रह जाप, दान एवं अन्य कार्यों को करने से सकारात्मक लाभ प्राप्त होते हैं.