आर्यभट्ट का ज्योतिष के इतिहास में योगदान
ज्योतिष का वर्तमान में उपलब्ध इतिहास आर्यभट्ट प्रथम के द्वारा लिखे गए शास्त्र से मिलता है. आर्यभट्ट ज्योतिषी ने अपने समय से पूर्व के सभी ज्योतिषियों का वर्णन विस्तार से किया था. उस समय के द्वारा लिखे गये, सभी शास्त्रों के नाम उनके सिद्धान्तों की रुपरेखा सहित, इन्होने अपने शास्त्र में बताए. आर्यभट्ट गणित, खगोल विज्ञान, ज्योतिष जैसे विषयों में प्रतिभासंपन्न व्यक्ति थे.
आर्यभट का काल समय 473 से 550 के मध्य का बताया जाता है. इन्होंने जिन ग्रंथों की रचना की उनसे इनके जन्म विषय के बारे में पता चल पाता है. इन्होंने गणित और ज्योतिष के अनेक सिद्धांतों को लोगों के सामने रखा. आर्यभट्टीय ग्रंथ में ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया. इस ग्रंथ से इनके विषय में भी जानकारी मिलती है की इनका जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है. कुछ अन्य विचारों के अनुसार इनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था.
आर्यभट्टी शास्त्र विशेषता
इनके द्वारा लिखे गये शास्त्र में संख्याओं के स्थान पर क, ख, ग, का प्रयोग किया गया है. कुछ शास्त्रियों का यह मानना है, कि उनके द्वारा लिखे गए ये हिन्दी वर्ण ग्रीक के शास्त्रियों से लिए गये थे. इसके साथ ही आर्यभट्ट गणित शास्त्री भी रहे, इन्होने वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल आदि निकालना और इनके प्रयोग का सुन्दर वर्णन किया है. आर्यभट्टीयम ग्रंथ में लगभग 121 श्लोक हैं. इसे चार भागों में बांटा गया है जिन्हें - गीतिकापाद, गणितपाद, कालक्रियापाद और गोलापाद नामक चार भागों में बांटा गया है.
गीतिकापाद -इस भाग में युग का विभाजन, ग्रहों की गति का समय, राशि और उसके भेद बताए गए हैं. इस भाग को भी दो भाग में बांटा गया है जिसमें से एक भाग दशगितिका और दूसरे को आर्य अष्ट शत नाम दिया गया है.
गणितपाद -इस भाग के अन्तर्गत वर्गमूल, घनमूल, त्रिकोण इत्यादि, क्षेत्रफल, त्रैराशिक व्यवहार, कुक्कुट इत्यादि समीकरण दिए गए हैं. इस में वृत्त के व्यास और उसकी परिधि वर्णन किया गया है.
कालक्रियापाद -इसमें सभी माह के विषय में बताया गया है, अधिक मास, तिथियों की स्थिति जिनमें क्षयतिथि अधिक तिथि. ग्रहों की गति, सप्ताह के प्रत्येक वार का महत्व इत्यादि बताया गया है.
गोलपाद -यह मुख्य रुप से खगोल विज्ञान. सूर्य, चंद्र, राहु-केतु इत्यादि ग्रहों की स्थित, पृथ्वी की आकृति, सूर्य उदय का देशों के अनुरुप उदय ओर अस्त, राशियों का उदय होना ओर अस्त होना इत्यादि, ग्रहण कए विषय में चर्चा मुख्य विषय रहे हैं.
आर्यभट्ट द्वारा रचित ग्रंथ
इनके द्वारा लिखे गये शास्त्र का नाम आर्यभट्टीय नाम से है. इसके अतिरिक्त इन्होने बीज गणित, त्रिकोणमिति और खगोल से संबंधित अनेक सूत्रों की व्याख्या करी थी. इसमें सूर्य, और तारों के स्थिर होने तथा पृथ्वी की गति के कारण दिन-रात का जन्म होने के विषय में कहा गया है. इनके शास्त्र में पृथ्वी की कुल धूरी 4967 बताई गई है. इसके अतिरिक्त इन्होने सूर्य और चन्द्र ग्रहणों की वैज्ञानिक कारणों की व्याख्या भी आर्यभट्टीय शास्त्र में की गई है. उनके अनुसार सूर्य के प्रकाश से ही अन्य ग्रह उपग्रह प्रकाशित होते हैं. आर्यभट्ट ने छाया (परछाई) को नापने के सूत्र भी बताए. ब्रह्म सिद्धांत इनके द्वारा दिया गया अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है.
आर्यभट्टी शास्त्र व्याख्या
इस ग्रन्थ में कुल 60 अध्याय है. तथा इनके द्वारा लिखे गये शास्त्र में कुल 9 हजार श्लोक है. इतने बडे ग्रन्थ में इन्होने रहन-सहन, चर्चा, चाल और व्यक्ति की सहज स्वभाव के आधार पर ज्योतिष करने के नियम बताये है. शरीर के अंगों के आधार पर फलादेश किया गया है.
शारीरिक अंगों के आधार पर प्रश्न कर्ता के प्रश्नों का समाधान बताने में आर्यभट्ट कुशल थे. अपनी समस्या को लेकर आये प्रश्नकर्ता की समस्या का समाधान उसके द्वारा छूए गये अंग के आधार पर किया जाता है. वर्तमान में प्रयोग होने वाला शकुन शास्त्र इसी से प्रभावित है.