जैमिनी स्थिर दशा | Jaimini Sthir Dasha

जैमिनी ज्योतिष में अनेक दशाओं का प्रयोग किया जाता है. उनमें से एक प्रमुख दशा स्थिर दशा भी है. इस दशा का विश्लेषण अप्रिय घटनाओं, स्वास्थ्य तथा जीवन की नकारात्मक जानकारियों के लिए किया जाता है. यह जैमिनी की बहुत ही सरल दशा है. इस दशा से भी जीवन के सभी पहलुओं का आंकलन किया जा सकता है. चर दशा की भाँति स्थिर दशा में भी सभी जैमिनी कारकों का उपयोग किया जाता है. 

स्थिर दशा में दशाक्रम समझने से पहले सर्वप्रथम ब्रह्मा, रुद्र तथा महेश्वर का निर्धारण करना आवश्यक होता है. इन तीनों का निर्धारण करने के लिए गणितीय गणना की आवश्यकता होती है. इस गणना के आधार पर ही ब्रह्मा, रुद्र तथा महेश्वर का निर्धारण किया जाता है. अगले अध्यायों में आपको स्थिर दशा की गणना विस्तार से और सरल शब्दों में समझाने का प्रयास किया जाएगा. आशा है कि आपको इस दशा को समझने में कोई परेशानी नहीं होगी. 

ब्रह्मा का निर्धारण | Determination of Brahma

जैमिनी ज्योतिष में स्थिर दशा की गणना करने के लिए सर्वप्रथम ब्रह्मा का निर्धारण करना होता है. इसके लिए कुण्डली के अनुसार यह तय करना होगा कि लग्न तथा सप्तम भाव में सबसे अधिक बलशाली कौन-सा ग्रह है. लग्न तथा सप्तम भाव का बल जानने के लिए राशि बल की गणना की जाती है. राशि बल की गणना के आधार पर दोनों भावों में से जिस भाव की राशि अधिक बली होगी, तब उस भाव से छठे, आठवें तथा बारहवें भाव के स्वामियों को देखा जाएगा. इन तीनों भावों की राशी स्वामी में से जो ग्रह सबसे अधिक शक्तिशाली होगा उस ग्रह को ब्रह्मा की उपाधि प्राप्त होगी. 

ब्रह्मा बनने वाले ग्रहों में शनि को ब्रह्मा नहीं बनाया जाता है. यदि छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव में शनि की राशि पड़ती है तब शनि को ब्रह्मा नहीं बनाया जाएगा. 

रुद्र का निर्धारण | Determination of Rudra

स्थिर दशा में रुद्र की गणना करने के लिए लग्न से दूसरे तथा अष्टम भाव के स्वामियों के बल का आंकलन किया जाता है. दोनों में जो बली है वह कुण्डली के रुद्र कहलाते हैं. रुद्र बनने के लिए शनि को भी लिया जाता है. 

महेश्वर का निर्धारण | Determination of Maheshwar

स्थिर दशा में महेश्वर का निर्धारण करने के लिए आत्मकारक से अष्टमेश का आंकलन किया जाता है. महेश्वर का आंकलन करने के लिए किसी भी प्रकार की गणितीय गणना की आवश्यकता नहीं होती है. इसमें कोई भी ग्रह महेश्वर बन सकता है. कुण्डली में आत्मकारक से अष्टम भाव में जो राशि आती है उस राशि का अधिपति ग्रह महेश्वर बनता है. 

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