बुधवार व्रत | How to Observe Budhvar Vrat? - Wednesday Fast Aarti (Wednesday Vrat Katha) | Wednesday Fasting in Hindi

बुधवार का व्रत करने की विधि | Wednesday Fast Method

जिस व्यक्ति को बुधवार का व्रत करना हों, उस व्यक्ति को व्रत के दिन प्रात: काल सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए. उठने के बाद प्रात: काल में उठकर पूरे घर की सफाई करनी चाहिए. इसके बाद नित्यक्रिया से निवृ्त होकर, स्नानादि कर शुद्ध हो जाना चाहिए. स्नान करने के बाद संपूर्ण घर को गंगा जल छिडकर शुद्ध करना चाहिए. गंगा जल ने मिलें, तो किसी पवित्र नदी का जल भी छिडका जा सकता है. 

इसके पश्चात घर के ईशान कोण में किसी एकांत स्थान में भगवान बुध या शंकर की मूर्ति अथवा चित्र किसी कांस्य के बर्तन में स्थापित करना चाहिए. मूर्ति या चित्र स्थापित करने के बाद धूप, बेल-पत्र, अक्षत और घी का दीपक जलाकर पूजन करना चाहिए. इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए बुधदेव की आराधना करनी चाहिए  

बुध त्वं बुद्धिजनको बोधद: सर्वदा नृणाम्।

तत्वावबोधं कुरुषे सोमपुत्र नमो नम:॥

पूरे दिन व्रत करने के बाद सायंकाल में भगवान बुध की एक बार फिर से पूजा करते हुए, व्रत कथा सुननी चाहिए. और आरती करनी चाहिए. सूर्यास्त होने के बाद भगवान को धूप, दीप व गुड, भात, दही का भोग लगाकर प्रसाद बांटना चाहिए, और सबसे अंत में स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करना चाहिए. 

बुधवार व्रत का महत्व | Importance of Wednesday Fast

बुधवार का व्रत करने से व्यक्ति की बुद्धि में वृ्द्धि होती है. इसके साथ ही व्यापार में सफलता प्राप्त करने के लिये भी इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है. व्यापारिक क्षेत्र की बाधाओं में कमी करने में भी यह व्रत लाभकारी रहता है. इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की कुण्डली में बुध अपने फल देने में असमर्थ हो, उन व्यक्तियों को यह व्रत विशेष रुप से करना चाहिए. इसके अलावा जब कुण्डली में बुध अशुभ भावों का स्वामी होकर अशुभ भावों में बैठा हो, उस अवस्था में भी इस व्रत को करना कल्याणकारी रहता है. 

बुधवार व्रत में ध्यान रखने योग्य बातें | Things to Remember for Wednesday Fast

इस दिन भगवान की पूजा करने के बाद देव की हरे रंग की वस्तुओं से पूजा करनी चाहिए. सायंकाल में व्रत का समापन करने के बाद यथा शक्ति ब्राह्माणों को भोजन कराकर उन्हें दान अवश्य देना चाहिए. और व्रत करने वाले व्यक्ति को एक ही समय भोजन करना चाहिए. व्रत को मध्य में कभी नहीं छोडना चाहिए. तथा व्रत की कथा के मध्य में उठकर नहीं जाना चाहे. साथ ही प्रसाद भी अवश्य ग्रहण करना चाहिए.  

बुधवार व्रतकथा | Wednesday Vrat Katha

समतापुर नगर में मधुसूदन नामक एक व्यक्ति रहता था. वह बहुत धनवान था. मधुसूदन का विवाह बलरामपुर नगर की सुंदर और गुणवंती लड़की संगीता से हुआ था. एक बार मधुसूदन अपनी पत्नी को लेने बुधवार के दिन बलरामपुर गया.

मधुसूदन ने पत्नी के माता-पिता से संगीता को विदा कराने के लिए कहा. माता-पिता बोले- ‘बेटा, आज बुधवार है. बुधवार को किसी भी शुभ कार्य के लिए यात्रा नहीं करते.´ लेकिन मधुसूदन नहीं माना. उसने ऐसी शुभ-अशुभ की बातों को नहीं मानने की बात कही. बहुत आग्रह करने पर संगीता के माता-पिता ने विवश होकर दोनों को विदा कर दिया.

दोनों ने बैलगाड़ी से यात्रा प्रारंभ की. दो कोस की यात्रा के बाद उसकी गाड़ी का एक पहिया टूट गया. वहाँ से दोनों ने पैदल ही यात्रा शुरू की. रास्ते में संगीता को प्यास लगी. मधुसूदन उसे एक पेड़ के नीचे बैठाकर जल लेने चला गया.

थोड़ी देर बाद जब मधुसूदन कहीं से जल लेकर वापस आया तो वह बुरी तरह हैरान हो उठा क्योंकि उसकी पत्नी के पास उसकी ही शक्ल-सूरत का एक दूसरा व्यक्ति बैठा था. संगीता भी मधुसूदन को देखकर हैरान रह गई. वह दोनों में कोई अंतर नहीं कर पाई.

मधुसूदन ने उस व्यक्ति से पूछा- ‘तुम कौन हो और मेरी पत्नी के पास क्यों बैठे हो?´ मधुसूदन की बात सुनकर उस व्यक्ति ने कहा- ‘अरे भाई, यह मेरी पत्नी संगीता है. मैं अपनी पत्नी को ससुराल से विदा करा कर लाया हूँ. लेकिन तुम कौन हो जो मुझसे ऐसा प्रश्न कर रहे हो?´

मधुसूदन ने लगभग चीखते हुए कहा- ‘तुम जरूर कोई चोर या ठग हो. यह मेरी पत्नी संगीता है. मैं इसे पेड़ के नीचे बैठाकर जल लेने गया था.´ इस पर उस व्यक्ति ने कहा- ‘अरे भाई! झूठ तो तुम बोल रहे हो. संगीता को प्यास लगने पर जल लेने तो मैं गया था. मैंने तो जल लाकर अपनी पत्नी को पिला भी दिया है. अब तुम चुपचाप यहाँ से चलते बनो. नहीं तो किसी सिपाही को बुलाकर तुम्हें पकड़वा दूँगा.´

दोनों एक-दूसरे से लड़ने लगे. उन्हें लड़ते देख बहुत से लोग वहाँ एकत्र हो गए. नगर के कुछ सिपाही भी वहाँ आ गए. सिपाही उन दोनों को पकड़कर राजा के पास ले गए. सारी कहानी सुनकर राजा भी कोई निर्णय नहीं कर पाया. संगीता भी उन दोनों में से अपने वास्तविक पति को नहीं पहचान पा रही थी.

राजा ने दोनों को कारागार में डाल देने के लिए कहा. राजा के फैसले पर असली मधुसूदन भयभीत हो उठा. तभी आकाशवाणी हुई- ‘मधुसूदन! तूने संगीता के माता-पिता की बात नहीं मानी और बुधवार के दिन अपनी ससुराल से प्रस्थान किया. यह सब भगवान बुधदेव के प्रकोप से हो रहा है.´

मधुसूदन ने भगवान बुधदेव से प्रार्थना की कि ‘हे भगवान बुधदेव मुझे क्षमा कर दीजिए. मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई, भविष्य में अब कभी बुधवार के दिन यात्रा नहीं करूँगा और सदैव बुधवार को आपका व्रत किया करूँगा.´

मधुसूदन के प्रार्थना करने से भगवान बुधदेव ने उसे क्षमा कर दिया. तभी दूसरा व्यक्ति राजा के सामने से गायब हो गया. राजा और दूसरे लोग इस चमत्कार को देख हैरान हो गए, भगवान बुधदेव की इस अनुकम्पा से राजा ने मधुसूदन और उसकी पत्नी को सम्मानपूर्वक विदा किया.

कुछ दूर चलने पर रास्ते में उन्हें बैलगाड़ी मिल गई. बैलगाड़ी का टूटा हुआ पहिया भी जुड़ा हुआ था. दोनों उसमें बैठकर समतापुर की ओर चल दिए. मधुसूदन और उसकी पत्नी संगीता दोनों बुधवार को व्रत करते हुए आनंदपूर्वक जीवन-यापन करने लगे.

भगवान बुधदेव की अनुकम्पा से उनके घर में धन-संपत्ति की वर्षा होने लगी. जल्दी ही उनके जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ भर गईं. बुधवार का व्रत करने से स्त्री-पुरुषों के जीवन में सभी मंगलकामनाएँ पूरी होती हैं. और व्रत करने वाले को बुधवार के दिन किसी आवश्यक काम से यात्रा करने पर कोई कष्ट भी नहीं होता है.

बुधवार व्रत की आरती | Wednesday Fast Aarti : 

आरती युगलकिशोर की कीजै। तन मन धन न्योछावर कीजै॥
गौरश्याम मुख निरखन लीजै। हरि का रूप नयन भरि पीजै॥

रवि शशि कोटि बदन की शोभा। ताहि निरखि मेरो मन लोभा॥
ओढ़े नील पीत पट सारी। कुंजबिहारी गिरिवरधारी॥

फूलन सेज फूल की माला। रत्न सिंहासन बैठे नंदलाला॥
कंचन थार कपूर की बाती। हरि आए निर्मल भई छाती॥

श्री पुरुषोत्तम गिरिवरधारी। आरती करें सकल नर नारी॥
नंदनंदन बृजभान किशोरी। परमानंद स्वामी अविचल जोरी॥