चिकित्सा ज्योतिष में ग्रहों के कारक तत्व | Elements of the Planets in Medical Astrology
जैसे भचक्र की भिन्न-भिन्न राशियों तथा नक्षत्रों का अधिकार क्षेत्र शरीर के विभिन्न अंगों पर है, ठीक उसी प्रकार भिन्न-भिन्न ग्रह भी शरीर के विभिन अंगों से संबंधित है. इसके अतिरिक्त कुछ रोग, ग्रह अथवा नक्षत्र की स्वाभाविक प्रकृति के अनुसार जातक को कष्ट देते हैं.
अत: भावों, राशियों, नक्षत्रों तथा ग्रहों एवं विशिष्ट समय पर चल रही दशाओं के व्यापक विचार के बाद शरीर पर रोग का स्थान एवं प्रकृति, निदान तथा रोग का संभावित समय एवं परिणाम ज्ञात करना भी संभव है. चिकित्सा ज्योतिष में विभिन्न ग्रहों के कारक तत्व यहाँ पर संक्षिप्त रूप में दिये जा रहे है.
सूर्य | The Sun
यह पित्त प्रकृति का कारक ग्रह है. इसका बलाबल किसी व्यक्ति के सामान्य स्वास्थ्य को प्रतिबिंबित करता है. इनका अधिकार क्षेत्र ह्रदय, पेट, अस्थि तथा दाहिनी आँख है. चिकित्सीय क्षेत्र में सूर्य के अधिकार क्षेत्र में सिरदर्द, गंजापन,चि़डचिडापन, ज्वर, दर्द, जलना, पित की सूजन से होने वाले रोग, ह्रदय रोग , नेत्र रोग, पेट की बीमारियाँ आते हैं.
चन्द्र | The Moon
यह ग्रह वात तत्व, कफ प्रकृति का है. यह मन की स्थिरता तथा पुष्टता को प्रतिबिंबित करता है. मन के प्रतिनिधित्व के अतिरिक्त इसका अधिकार क्षेत्र शरीर में बहने वाले द्रव, रक्त तथा बायीं आँख है. यह मानसिक रोग संबंधी समस्याएं, मानसिक विचलन, भावात्मक अशांति, घबराना, अतिनिद्रा आदि भी दे सकता है.
चन्द्र के अधिकार क्षेत्र में क्षयरोग, रक्ताल्पता, अतिसार, रक्त विषाक्तता, पीलिया, जल और जलीय जंतुओं से होने वाले रोग आते हैं. चन्द्र तथा मंगल मिलकर स्त्रियों में माहवारी चक्र, प्रजनन प्रणाली आदि सम्बन्धी रोग देते है.
मंगल | The Mars
यह ग्रह पित्त प्रकृति का कारक है. उर्जा शक्ति, उत्साह और जोश का प्रतीक है. तेज व चेतना की प्रबलता को प्रतिबिंबित करता है. इसके अधिकार क्षेत्र है - सिर, अस्थि मज्जा, पित्त, हिमोग्लोबिन, कोशिकाएं, गर्भाशय की अंत: दीवार, दुर्घटना, चोट, शल्य क्रियाएँ, जल जाना, रक्त विकार, तन्तुओं की फटन, उच्च रक्त चाप, पित्त जनित सूजन तथा उसके कारण होने वाला ज्वर. अत्यधिक प्यास, नेत्र विकार, मिरगी, अस्थि टूटना, गर्भाशय के रोग, प्रसव तथा गर्भपात, सिर में चोट, लड़ाई में चोट आदि.
बुध | The Mercury
बुध वात, पित्त तथा कफ तीनों प्रकृति का कारक है. बुध बुद्धि, तर्क तथा विवेक देता है. प्रतिकूल बुध पापी चन्द्र के साथ मिलकर किसी की विचारधारा को व्यग्र कर सकता है. मानसिक विचलन का कारण बन सकता है. इसका अधिकार त्वचा, गला, नाक, फेफड़ा तथा धैर्य हीनता, मानसिक अस्थिरता, मानसिक जटिलता, अभद्र भाषा, दोषपूर्ण वाणी, चक्कर आना, श्वेत कुष्ठ रोग, नपुंसकता और बहरेपन पर है.
गुरु | The Jupiter
गुरु कफ प्रकृति के है. शुभ ग्रह होने के कारण रोगों से रक्षा करता है. इसका अधिकार क्षेत्र यकृत विकार, पित्त की थैली के रोग, तिल्ली के रोग, मोटापा, रक्ताल्पता, ज्वर, मूर्छा, कर्ण रोग, मधुमेह इत्यादि है. अग्नाशय का कुछ क्षेत्र तथा शरीर में चर्बी पर भी गुरु का अधिकार है. इसके अतिरिक्त गुरु आलस्य का भी कारक है.
शुक्र | The Venus
शुक्र वात तथा कफ प्रकृति का है. यह व्यक्ति की यौन क्रियाओं को नियंत्रित करता है. यदि अधिक पीड़ित हो अथवा अशुभ स्थान में हो तो जननांग सम्बन्धी रोग देता है. इसका अधिकार क्षेत्र चेहरा, दृष्टि, वीर्य, जननांग, मूत्र प्रणाली, अश्रुग्रंथी पर है. यह अग्नाशय के कुछ भाग का भी कारक है.इसके द्वारा शरीर की हारमोनल प्रणाली नियंत्रित होती है. शुक्र यौन विकार, नेत्र रोग, मोतिया बिन्द, श्वेत कुष्ठ, गुप्त रोग, मधुमेह आदि रोग दे सकता है.
शनि | The Saturn
यह ग्रह वात और कफ प्रकृति का है. यह असाध्य अथवा अतिदीर्घ कालिक रोग देते है. शनि के अधिकार क्षेत्र में टाँगे, नाडी, बड़ी आंत का अंतिम भाग, गुदा आते हैं. इसके प्रभाव के कारण व्यक्ति को पक्षाघात, पागलपन, कैंसर, अति परिश्रम, थकान, टांग तथा पैर के रोग, चोट, अवसाद तथा खिन्नता के कारण मानसिक अव्यवस्था, पेट के रोग, पेड़ से गिरने तथा पत्थर से चोट आदि लगने की संभावना बनती है.
राहु | The Rahu
राहु के अधिकार क्षेत्र में कार्य को मंदगति से करना, फूहड़पन, हिचकी, उन्माद, कुष्ठ रोग, शक्तिहीनता, असाध्य रोग, विषाक्ता, सर्प दंश, पैरों के रोग आदि आते है. यह शनि के समान होने के कारण शनि के रोग भी देता है.
केतु | The Ketu
राहु के सभी रोग केतु भी दे सकता है, इसके अतिरिक्त केतु अनिश्चित कारण वाले रोग, महामारी, छाले युक्त ज्वर, जहरीले संक्रमण से होने वाले संक्रामक रोग, बहरापन, दोषपूर्ण वाणी, शल्यक्रिया आदि भी दे सकता है.
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