लग्न पर साढे़साती का प्रभाव | Effects of Sadhesati on Lagna | Sadhesati and Murti Nirnay

पराशर ऋषि ने कारकाध्याय में त्रिकोण तथा केन्द्र स्वामियों को शुभ माना है. लग्न को केन्द्र तथा त्रिकोण का स्वामी होने से अधिक शुभफल प्रदान करने वाला माना गया है. जिन जातकों की कुण्डली में चन्द्रमा तथा शनि किसी भी एक त्रिकोण भाव के स्वामी होते हैं यह दोनों ग्रह विशेष रुप से शुभ फल देते हैं और शनि की साढे़साती उन व्यक्तियों के लिए अधिक खराब नहीं होती है. इन दोनों ग्रहों में से किसी एक ग्रह के लग्नेश या त्रिकोणेश होने से भी साढे़साती का प्रभाव कम ही पड़ता है. इनकी दशाओं में इन ग्रहों का गोचर भी कष्टकारी नहीं होता है.

* मेष लग्न में चन्द्रमा तथा शनि लग्न या त्रिकोण भाव के स्वामी नहीं है. इसलिए साढे़साती कष्टकारी रह सकती है. 

* वृष लग्न में शनि एक त्रिकोण भाव का स्वामी है. शनि नवमेश है. अत: शनि की साढे़साती कष्टकारी नहीं होगी.

* मिथुन लग्न में शनि त्रिकोण भाव अर्थात नवम भाव का स्वामी है. 

* कर्क लग्न में शनि त्रिकोणेश नहीं है लेकिन चन्द्रमा लग्नेश है. 

* सिंह लग्न में शनि तथा चन्द्रमा त्रिकोण भाव के स्वामी नहीं हैं. 

* कन्या लग्न में शनि एक त्रिकोण भाव का स्वामी है. 

* तुला लग्न में शनि त्रिकोण भाव का स्वामी है. 

* वृश्चिक लग्न में चन्द्रमा त्रिकोण भाव का स्वामी है. 

* धनु लग्न में शनि या चन्द्रमा किसी भी त्रिकोण भाव के स्वामी नहीं है. 

* मकर लग्न में शनि लग्न भाव के स्वामी है. 

* कुम्भ लग्न में शनि लग्न भाव के स्वामी हैं. 

* मीन लग्न में चन्द्रमा त्रिकोण भाव का स्वामी है. 

उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर मेष, सिंह तथा धनु राशियों में शनि तथा चन्द्रमा किसी भी त्रिकोण भाव के स्वामी नहीं हैं. अन्य सभी लग्नों में शनि या चन्द्रम अकिसी ना किसी त्रिकोण भाव के स्वामी हैं. वृष तथा तुला लग्न के लिए शनि विशेष लाभदायक हैं. यदि कुण्डली में बुरी दशा चल रही है और साढे़साती का प्रभाव भी चल रहा है तब व्यक्ति के लिए साढे़साती हानिकारक होती है. यदि कुण्डली में चन्द्रमा बहुत ही बली अवस्था में स्थित है तब शनि की साढे़साती बुरे प्रभाव नहीं देती है. 

साढेसाती तथा मूर्ति निर्णय 

मूर्ति निर्णय का अर्थ है कि जब कोई ग्रह नई राशि में प्रवेश करता है तब उस समय गोचर के चन्द्रमा की स्थिति का जायजा जन्म कुण्डली में स्थित चन्द्रमा की स्थिति से लगाया जाता है. मूर्ति निर्णय करने के लिए जब शनि अथवा किसी अन्य ग्रह का राशि परिवर्तन हो रहा हो तब उस समय के चन्द्रमा को भी देखा जाता है कि वह किस राशि में स्थित है. फिर जन्म कालीन चन्द्रमा से गोचर के चन्द्रमा की स्थिति का पता लगाया जाता है कि वह किस भाव में आ रहा है. इसके आधार पर मृ्ति निर्णय किया जाता है. 

मूर्ति निर्णय

* जन्मकालीन चन्द्रमा से गोचर का चन्द्रमा यदि 1,6 या 11 भाव में आ रहा है तब साढे़साती श्रेष्ठ फल देने वाली होती है. यह स्वर्ण मूर्ति कहलाती है. 

* जन्मकालीन चन्द्रमा से गोचर का चन्द्रमा यदि 2,5 या 9वें भाव में आ रहा है तब यह रजत मूर्ति कहलाती है और साढे़साती उत्तम फल देने वाली होती है. 

* जन्मकालीन चन्द्रमा से गोचर का चन्द्रमा 3,7 या 10 वें भाव में आता है तब यह ताम्र मूर्ति कहलाती है और यह मध्यम फल देने वाली होती है. 

* जन्मकालीन चन्द्रमा से गोचर का चन्द्रमा 4,8 या 12 वें भाव में आ रहा है तब यह लौह मूर्ति कहलाती है और यह निकृष्ट फल प्रदान करने वाली होती है. ह्म

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