वैशाखी अंखण्ड भारत की संस्कृ्ति की पहचान (Vaisakhi 2023, 14th April)

vaisakhi festivalभारत की संस्कृ्ति में अनेक राज्य, अनेक धर्म, अनेक भाषाएं, अनेक रीति-रिवाजों को मानने वाले लोग एक साथ रहते है. अनेक संस्कृ्तियों का एक साथ रहना, हमें विश्व में एक नई पहचान देता है. साथ ही यह हमारी देश की अंखण्डता को ठिक उसी प्रकार सौन्दर्य प्रधान करता है, जिस प्रकार एक गुलदस्ते में कई रंग के फूल हों, तो उसकी सुन्दरता स्वयं ही दोगुनी हो जाती है.वैशाखी का पर्व भी भारत के लोगों को आपस में बांधे रखने में सहयोग करता है. क्योकि इस पर्व को भारत के प्रत्येक भाग में किसी न किसी रुप में मनाया जाता है. कई धर्म इसे अपने ढंग से मनाते है. ऎसे में इस पर्व का महत्व बढ जाता है.


उडिसा में वैशाखी पर्व एक नये रुप में

उडिसा समाज वैशाखी के दिन को पोणा संक्रान्ति पर्व के नाम से मनाता है. इस दिन यहां महिलाओं द्वारा शिवजी की पूजा कर दही-गुड से बनाया गया पोणा अर्पित किया जाता है. मंदिरों में अन्न और वस्त्र दान किये जाते है. इस दिन बनने वाले व्यंजनों में चावल की खीर विशेष रुप से मनाई जाती है. बैंगन, केला, आलू, कद्दू का डालमा बनाया जाता है. तथा अपने ईष्ट देव की पूजा कर पूरे वर्ष बारिश की कामना के साथ ही सुख-समृ्द्धि की प्रार्थना भगवान से की जाती है.


बंगाल में नववर्ष प्रारम्भ

बंगाल का नया वर्ष वैशाख महीने के पहले दिन से प्रारम्भ होता है. इस दिन को यहां शुभो नाँबो बाँरसो के नाम से जाना जाता है. बंगाल में इस दिन से ही फसल की कटाई शुरु होती है. यहां के लोग इस दिन नया काम करन शुरु करते है. महिलाएं इस दिन घर आई नई फसल के धान से पकवान बनाती है.


केरल का नववर्ष प्रारम्भ

भारत के दक्षिणी प्रदेश केरल में इस दिन धान की बुआई का काम शुरु होता है. इस दिन को यहां मलयाली न्यू ईयर विशु के नाम से पुकारा जाता है. इस दिन हल और बैलों को रंगोली से सजा कर, इनकी इस दिन पूजा की जाती है. और बच्चों को उपहार दिये जाते है.


असम का नववर्ष प्रारम्भ

बैसाखी के दिन असम के लोग नये वर्ष के दिन "बिहू" के रुप में मनाते है. बिहू अवसर पर यहां लोक नृ्त्य के साथ-साथ सार्वजनिक रुप से खुशी मनाई जाती है. वैशाखी क्षेत्रिय पर्व न होकर पूरे भारत में किसी न किसी रुप में मनाया जाता है.


तमिल का नववर्ष प्रारम्भ

तमिल के लोग इस दिन से नये साल का प्रारम्भ मानते है. इस दिन को तमिल लोग पुथांदु पर्व के नाम से मनाते है.


कश्मीर में नववर्ष का प्रारम्भ

शास्त्रों में उल्लेखित सप्तऋषियों के अनुसार इस दिन नवरेह नाम से, नववर्ष के महोत्सव के रुप में मनाया जाता है. यहां इस दिन लोग एक -दुसरे को बधाई देते है, तथा हर्ष और खुशी के साथ एक -दूसरे के घर मिलते आते है. कोई नया कार्य प्रारम्भ करने के लिये इस दिन को यहां विशेष रुप से प्रयोग किया जाता है.


आंघ्रप्रदेश का नववर्ष प्रारम्भ

भारत के अधिकतर त्यौहार कृ्षि आधारित है. भारत के जिन प्रदेशों में आजीविका का मुख्य साधन कृ्षि है, उन सभी प्रदेशो में फसल के पकने या घर आने पर उस दिन को एक पर्व के रुप में मनाया जाता है. आंध्रप्रदेश भी क्योकि एक कृ्षि क्षेत्र है. इसलिये इस दिन का किसानो के लिये यहां विशेष महत्व हो जाता है. इसे उगादि तिथि अर्थात युग के प्रारम्भ के रुप में मनाया जाता है.


महाराष्ट्र का नववर्ष प्रारम्भ

महाराष्ट् प्रदेश में इस दिन को सृ्ष्टि के प्रारम्भ का दिन मानकर हर्षोउल्लास से मनाया जाता है. इस दिन से जुडी मान्यता के अनुसार इस दिन से समय ने चलाना शुरु किया था. महाराष्ट में नववर्ष के अवसर पर श्रीखंड और पूरी बनाकर इस पर्व को मनाया जाता है. नवर्ष के दिन यहां गरीबों को भोजन व दान आदि किया जाता है. और घरों में बच्चे नये वस्त्र धारण करते है.


इस प्रकार भारत के कोने-कोने में यह पर्व किसी न किसी रुप में मनाया जाता है. वैशाखी जैसे पर्व भारत कि संस्कृ्ति को अखंड बनाये रखने में सहयोग करते है. यह पर्व भारतियों को एकता, भाईचारे और उन्नति के सूत्र में बांधे रखने में सहायता करता है.


वैशाखी पर्व देश के अन्य राज्यों में

वैशाखी पर्व केवल सिक्ख समाज का पर्व नहीं है. अपितु इस दिन केरल, उडिसा, आसाम राज्यों में यह दिन नये वर्ष के आगमन का दिन होता है. इस दिन समाज में नये साल के आने की खुशी में संकल्प और नये कार्य प्रारम्भ किये जाते है.


मलयालम समाज के लिये "विशु" पूजन का दिवस

वैशाखी के दिन को मलयालम समाज नये साल के रुप में मनाता है. इस दिन मंदिरों में विशुक्कणी के दर्शन कर समाज के लिये नव वर्ष का स्वागत करते है. इस दिन केरल में पारंपरिक नृ्त्य गान के साथ आतिशबाजी का आनन्द लिया जाता है. विशेष कर अय्यापा मंदिर में इस दिन विशेष पूजा अर्चना की जाती है. विशु यानी भगवान "श्री कृ्ष्ण" और कणी यानी "टोकरी"


विशुक्कणी पर्व के नाम से जाना जाने वाले इस पर्व पर भगवान श्री कृ्ष्ण को टोकरी में रखकर उसमें कटहल, कद्दू, पीले फूल, कांच, नारियल और अन्य चीजों से सजाया जाता है. सबसे पहले घर का मुखिया इस दिन आंखें बंद कर विशुक्कणी के दर्शन करता है. कई जगहों पर घर के मुखिया से पहले बच्चों को देव विशुक्कणी के दर्शन कराये जाते है. नव वर्ष पर सबसे पहले देव के दर्शन करने का उद्देश्य, शुभ दर्शन कर अपने पूरे वर्ष को शुभ करने से जुडा हुआ है.


असम में वैशाखी पर्व का एक नया रुप "बिहू"

वैशाखी पर्व को असमिया समाज एक नये रुप में मनाता हे. यहां यह पर्व दो दिन का होत है. वैशाखी से एक दिन पहले असम के लोग बिहू के रुप में इस पर्व को मनाते है. जिसमें मवेशियों कि पूजा की जाती है. तथा ठिक वैशाखी के दिन यहां जो पर्व मनाया जाता है, उसे रंगीली बिहू के नाम से जाना जाता है.


इस दिन असम में कई सांस्कृतिक आयोजन किये जाते है. क्योकि कोई भी पर्व बिना व्यंजनों के पूरा नहीं होता है. इसलिये खाने में इस दिन यहां "पोहे" के साथ दही का आनन्द लिया जाता है. असम का जीवन कृ्षि से जुडा हुआ होने के कारण लोग यह कामना करते है कि पूरे वर्ष अच्छी बारिश होती रहे.