वैशाखी पर्व- फसलों का पर्व - नववर्ष के आगमन का पर्व (Vaisakhi- Festival of Agriculture and Coming of a New Year)
वैशाखी पर्व विशेष रुप से कृ्षि पर्व है. भारत के उत्तरी राज्यों में विशेष कर पंजाब में जब फसलों से हरे-भरे, झूमते- लहलाते खेत, रबी कि फसल के रुप में पककर तैयार हो जाती है, प्रकृ्ति की इस देन का धन्यवाद करने को किसान नाच- गाकर ऊपर वाले को धन्यवाद देता है. वैशाखी के दिन गीत और ढोल की थाप युवक-युवतियों के साथ प्रकृति को को नाचने पर मजबूर कर देती है.
वैशाखी पर्व पंजाब की लोक संस्कृ्ति का झलक
भारत देश एक कृ्षि प्रधान देश है. आज भी यहां लोग आजीविका के लिये कृ्षि पर आश्रित है. और जहां तक पंजाब की बात है, यहां कृ्षि जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुकी है. यहां की रीतियां, लोकगीत और जीवन शैली पूरी तरह से कृ्षि से प्रभावित है.
वैशाखी पर्व क्यों मनाया जाता है?
वैशाखी पर्व रबी की फसल के तैयार होने की खुशी में मनाया जाता है. गेहूं , दलहन, तिलहन और गन्ने की फसल किसान को रबी की फसल के रुप में किसान को प्राप्त होती है.
पंजाब में इस समय चारों और गेंहूं की फसल लहलहाती नजर आती है. फसल को देख किसानों में उंमग और उत्साह का माहौल होता है. पक्की हुई फसल का कुछ भाग अग्नि देव को अर्पित करने के बाद, इसका कुछ भाग प्रसाद स्वरुप सभी लोगों में बांट दिया जाता है. इस पर्व पर सभी लोकनृ्त्य भांगडा ओर गिद्धा करते है. साल भर की मेहनत करने के बाद धरती मां सोने से फसल देती है, उसकी कटाई के बाद सारी थकान मिटाकर आने वाला मौसम तन और मन को एक नई ऊर्जा शक्ति से भर देता है.
वैशाखी पर्व मूल रुप से नई फसल की कटाई का उत्सव है. वह भी रबी की फसल की कटाई का उत्सव. पंजाब में रबी की फसल में कई अन्य खाद्वानों भी उगाये जाते है. इसमें चना, मटर, मसूर, सरसों, अलसी, कुसुम, अंरंडी आदि की फसल इस मौसम में पककर तैयार होती है.
फसल के घर आने का पर्व
खेतों में जब फसल पक कर तैयार होने पर किसान खुशी से झूम उठता है. इसी खुशी में वैशाखी का पर्व मनाया जाता है. खुशहाली, हरियाली और अपने देश की समृ्द्धि की कामना करते हुए लोग इस दिन पूजा- अर्चना, दान -पुण्य़ व दीप जलाकर वैशाखी पर अपनी खुशी का इजहार करते है. वास्तव में इस दिन जो भांगडा -नृ्त्य होता है, उसके पीछे यही भाव होता है कि सालभर की कडी मेहनत के बाद अच्छी फसल के रुप में धरती मां से उन्हें प्राप्त हुआ है. उसका स्वागत यहां के लोग खुशी मना कर करते है. देखा जाये तो यह नई फसल की कटाई का उत्सव है.
एक ओर यह पर्व जहां कृ्षि और किसानों से जुडा हुआ है. वही दूसरी ओर यह "खालसा पंथ" की स्थापना का भी दिन होने के कारण इस पर्व की महत्वता ओर भी बढ जाती है. यह दिन एक साथ अनेक खुशियां लेकर आता है. वैशाखी नववर्ष के आगमन का दिन है. सिख पंथ की स्थापना का दिन होने के कारण इसका अपना एक गौरवशाली इतिहास है.
नये साल की शुरुआत का दिन वैशाखी पर्व
13 या 14 अप्रैल के दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते है. यह दिन नववर्ष के रुप में भी मनाया जाता है. बंगाली समाज में इस दिन वैशाख पर नया सल मनाया जाता है. नए सृ्जन के साथ इस दिन नई पीढी कई सांस्कृ्तिक कार्यक्रम आयोजित करती है. रंगारंग क्रार्यक्रमों के तहत इस दिन को नये साल के स्वागत के रुप में मनाया जाता है. नये वर्ष का स्वागत करते हुए मां दुर्गा और शिव की पूजा की जाती है.
सार्वजनिक स्थलों पर नृ्त्य-गान प्रस्तुत किये जाते है. देश कि प्रगति के लिये संकल्प लिये जाते और एकता से रहने का संकल्प लिये जाते है. नये वस्त्र पहनकर नये व्यापारी, बही-खाते प्रारम्भ किये जाते है. इस दिन घरों में विशेष रुप से मिठाईयां और पकवान बनाये जाते है.
वैशाख मास का ऎतिहासिक महत्व
वैशाख मास के पर्व न होकर, पर्वों का समूह है. सिक्खों के दूसरे गुरु श्री अंगद देव जी का जन्म इसी माह में हुआ था. पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी ने सृ्ष्टि की रचना इसी दिन की थी. महाराजा विक्रमादित्य के द्वारा श्री विक्रमी संवत का शुभारंभ इसी दिन से हुआ था. भगवान श्री राम का राज्यभिषेक इसी दिन हुआ था.
नवरात्रों का प्रारम्भ, सिंध प्रातं के समाज संत झूलेलाल का जन्म दिवस, महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्थापना, धर्मराज युधिष्ठर का राजतिलक, महावीर जयंती आदि कई महत्वपूर्ण घटनाएं इस माह से जुडी हुई है.