नवरात्रि में किस दिन माता के किस रुप की पूजा करें (Worshiping Different Avatars(incarnation) of Mata on Navratri)

nine_avatar भारत त्यौहारों का देश है. हमारे यहां व्रत - उपवासों की अनन्त महिमा कही गई है. व्रत -उपवासों की श्रेणी में शारदीय नवरात्रे उपवास विशेष महत्व रखते है. इन उपवासों को सम्पूर्ण भारतवर्ष में परम्परागत रुप से बडे उत्साह और धार्मिक निष्ठा से मनाया जता है. शारदीय उपवासों का धार्मिक, आध्यात्मिक, नैतिक व सांसारिक महत्व है. माता के भक्त इन नौ दिनों में माता के नौ रुपों की पूजा करते है. इसलिये इन्हें नवरात्रा के नाम से भी जाना जाता है. आईये माता के इन नौ रुपों से परिचय करने का प्रयास करते है.


प्रतिपदा तिथि कलश स्थापना दिवस (Establishment Day of 'Pratipada Tithi Kalash')

2022 के शारदीय नवरात्रों का प्रारम्भ 26 सितंबर के दिन आश्विन मास, शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होगें. नवरात्रि के प्रथम दिन उपवास कर, कलश की स्थापना की जाती है. शास्त्रों के अनुसार उपवासों का प्रारम्भ करने के लिये कलश स्थापना करने का औचित्य उपवास अवधि में शुभता बनाये रखना है. कलश को श्री गणेश का रुप माना गया है. जिस प्रकार सभी देवों में सबसे पहले श्री गणेश की पूजा की जाती है. उसी परम्परा को आगे बढाते हुए, उपवास प्रारम्भ में सबसे पहले कलश स्थापना की जाती है.शारदीय नवरात्रि कलश स्थापना के लिए 26 सितंबर को प्रात:काल 05:49 से 07:24 तक का समय अनुकूल रहेगा. घट स्थापना के लिए अभिजित मुहूर्त समय 11:27 से 12:31 तक का होगा.


कलश स्थापना विधि (Method of Kalash Establishment)

प्रतिपदा तिथि के दिन कलश स्थापना करने के लिये सबसे पहले भूमि को गंगाजल डालकर शुद्ध किया जाता है. भूमि शुद्ध करने के गाय के गोबर और गंगाजल को भी प्रयोग किया जा सकता है. शुद्ध किये गये स्थान पर सात रंग की मिट्टी मिलाकर एक पीठ तैयार किया जाता है. इस पर कलश स्थापित किया जाता है. पूजा प्रारम्भ की जाती है. जिसमें नवग्रहों, दिशाओं, देवताओ सभी योगिनियो को आमंत्रित किया जाता है.


और कलश में उन्हें विराजने के लिये आंमत्रित किया जाता है. कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, मुद्रा रखी जाती है. और पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है. इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बौये जाते है. जिन्हें दशमी तिथि को काटा जाता है. इन नवरात्रों में नौ दिनों तक सभी देवी - देवताओं कि पूजा होती है. माता दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल के मध्य में स्थापित की जाती है. दायीं और महालक्ष्मी, श्री गणेश की प्रतिमा लगाई जाती है. बाईं ओर कार्तिकेय, देवी सरस्वती की पूजा की जाती है.


इस प्रकार प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना का कार्य पूरा होता है.


द्वितीया तिथि माता के ब्रह्माचारिणी रुप की पूजा (Worshiping Brahmacharini Avatar(incarnation) of Mata on Second Day's Puja)

द्वितीया तिथि के उपवास के दिन माता के दूसरे रुप देवी ब्रह्मचारिणी के रुप की उपासना की जाती है. माता ब्रह्माचारिणी का रुप उनके नाम के अनुसार ही तपस्विनी जैसा है. एक मान्यता के अनुसार दुर्गा पूजा में नवरात्रे के नौ दिनों तक देवी धरती पर रहती है. इन दिनों में साधना करन अत्यन्त उतम रहता है. माता ब्रह्माचारिणी को अरुहूल का फू और कमल बेहद प्रिय है. इन फूलों की माला माता को इस दिन पहनाई जाती है.


तृतीया तिथि माता के चन्द्राघंटा रुप की पूजा (Worshiping Chandraghanda Avatar of Mata on Third Day's Puja)

दूर्गा पूजा के तीसरे दिन माता के तीसरे रुप चन्द्रघंटा रुप की पूजा की जाती है. देवी चन्द्रघंटा सभी की बाधाओं, संकटों को दुर करने वाली माता है. सभी देवीयों में देवी चन्द्रघंटा को आध्यात्मिक और आत्मिक शक्तियों की देवी कहा गया है. जो व्यक्ति इस देवी की श्रद्धा व भक्ति भाव सहित पूजा करता है. उसे माता का आशिर्वाद प्राप्त होता है.


तृतीया तिथि के दिन माता चन्द्राघंटा की पूजा जिस स्थान पर की जाती है. वहां का वातावरण पवित्र ओर शुद्ध हो जाता है. वहां से सभी बाधाएं दुर होती है.


चतुर्थी तिथि माता के कुष्मांडा रुप की पूजा (Worshiping S Avatar of Mata on Fourth Day's Puja)

देवी कुष्मांडा माता का चौथा रुप है. आश्चिन मास की चतुर्थी तिथि को माता के इसी रुप की पूजा की जाती है. देवी कुष्मांडा आंठ भुजाओं वाली है. इसलिये इन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है. मता कुष्माण्डा के आंठवें हाथ में कमल फूल के बीजों की माला होती है. यह माला भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाली कही गई है. पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ जो जन माता के इस रुप की पूजा करते है. उन जनों के सभी प्रकार के कष्ट, रोग, शोक का नाश होता है.


पंचमी तिथि माता के स्कन्द देवी रुप की पूजा (Worshiping Skanda Avatar of Mata on Fifth Day's Puja)

पंचमी तिथि को माता स्कन्द देवी की पूजा की जाती है. नवरात्रे के पांचवे दिन कुमार कार्तिकेय की माता की पूजा भी की जाती है. कुमार कार्तिकेय को ही स्कन्द कुमार के नाम से भी जाना जाता है. इसलिये इस दिन कुमार कार्तिकेय की माता की पूजा आराधना करना शुभ कहा गया है. जो भक्त माता के इस स्वरुप की पूजा करते है, मां उसे अपने पुत्र के समान स्नेह करती है. देवी की कृ्पा से भक्तों की मुराद पूरी होती है. और घर में सुख, शान्ति व समृ्द्धि वृद्धि होती है.


षष्ठी तिथि माता के कात्यायनी देवी रुप की पूजा (Worshiping Katyayani Avatar of Mata on Sixth Day's Puja)

माता का छठा रुप माता कात्यायनी के नाम से जाना जाता है. ऋषि कात्यायन के घर जन्म लेने के कारण इनका नाम कात्यायनी पडा. माता कात्ययानी ने ही देवी अंबा के रुप में महिषासुर का वध किया था. नवरात्रे के छठे दिन इन्हीं की पूजा कि जाती है. इनकी पूजा करने से भक्तों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है.


निस्वार्थ भाव से माता की इस दिन पूजा करने से निर्बल भी बलवान बनता है. व भक्तजन को अपने शत्रुओ पर विजय प्राप्त होती है. इस माता की पूजा गोधूली बेला में की जाती है.


सप्तमी तिथि माता के कालरात्रि रुप की पूजा (Worshiping Kalratri Avatar of Mata on Seventh Day's Puja)

तापसी गुणों स्वरुपा वाली मां कालरात्रि की पूजा की जाती है. माता के सांतवें रुप को माता कालरात्रि के नाम से जाना जाता है. देवी का यह रुप ऋद्धि व सिद्धि प्रदान करने वाला कहा गया है. यह तांत्रिक क्रियाएं करने वाले भक्तों के लिये विशेष कहा गया है. दुर्गा पूजा मे सप्तमी तिथि को काफी महत्व दिया गया है. इस दिन से भक्त जनों के लिये देवी मां का दरवाजे खुल जाते है. और भक्तों की भीड देवी के दर्शनों हेतू जुटने लगती है.

अष्टमी तिथि माता के महागौरी रुप की पूजा (Worshiping Mahagauri Avatar of Mata on Eightth Day's Puja)

माता का आठवां रुप माता महागौरी का है. एक पौराणिक कथा के अनुसार शुभ निशुम्भ से पराजित होने के बाद गंगा के तट पर देवता माता महागौरी की पूजा कर रहे थे, और राक्षसों से रक्षा करने की प्रार्थना कर रहे थे, इसके बाद ही माता का यह रुप प्रकट हुआ और देवताओं की रक्षा हुई. इस माता के विषय में यह मान्यता है कि जो स्त्री माता के इस रुप की पूजा करती है, उस स्त्री का सुहाग सदैव बना रहता है. कुंवारी कन्या पूजा करें, तो उसे योग्य वर की प्राप्ति होती है. साथ ही जो पुरुष माता के इस रुप की पूजा करता है, उसका जीवन सुखमय रहता है. माता महागौरी अपने भक्तों को अक्षय आनन्द ओर तेज प्रदान करती है.


नवमी तिथि माता के सिद्धिदात्री रुप की पूजा (Worshiping Sidhidatri Avatar of Mata on Ninth Day's Puja)

भक्तों का कल्याण करने के लिये माता नौ रुपों में प्रकट हुई. इन नौ रुपों में से नवम रुप माता सिद्धिदात्री का है. यह देवी अपने भक्तोम को सारे जगत की रिद्धि सिद्धि प्रदान करती है. माता के इन नौ रुपों की न केवल मनुष्य बल्कि देवता, ऋषि, मुनि, सुर, असुर, नाग सभी उनके आराधक है. माता सिद्धिदात्री अपने भक्तों के रोग, संताप व ग्रह बधाओं को दुर करने वाली कही गई है.


इस प्रकार नवरात्रों के नौ दिनों में माता के अलग अलग रुपों की पूजा की जाती है.