मकर संक्रान्ति खगोलीय आधार (The Zodiacal Basis of Makar Sankranti)
मकर सक्रान्ति प्राकृतिक पर्व है. प्रकृ्ति के बिना हमारा जीवन एक पल भी नहीं चलेगा. मकर संक्रान्ति उसकी कृपा दृष्टि का धन्यवाद करने का एक पर्याय मात्र है. सूर्य जीवन, प्रकाश व उन्नति का कारक है. हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है. सूर्य के आगमन से मनुष्य ही नहीं अपितु जीव-जन्तुओं की दिनचर्या भी आरम्भ होती है.
सूर्य का उत्तरायन में प्रवेश (Entry of Sun into its Northern Solistice)
सूर्य देव अपनी छ: माह की यात्रा को छोड कर इस दिन उत्तरायन में प्रवेश करते है. सूर्य के उत्तरायन में प्रवेश से देवताओं का दिन प्रारम्भ होने की मान्यता है. मकर सक्रान्ति से देवों की कृ्पा आरम्भ होती है. इससे पहले के छ: महिनों के देव विश्राम अवस्था में होते है. खगोळ विज्ञान के ज्ञाताओं ने यह तय किया है. कि प्रत्येक वर्ष 14/15 जनवरी के दिन ही मकर संक्रान्ति के दिन निर्धारित किया है. हमारी प्राचीन परम्पराओं में भी इसकी झलक देखने को मिलती है.
आईये इसे सरल रुप में समझने का प्रयास करते है.
खोगोल शास्त्र पर नजर डाले तो, विषुवत रेखा, पृथ्वी को उतरी और दक्षिणी गोलार्ध दो भागों में बांटती है. इससे पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध अर्थात मकर रेखा पर होता है. लेकिन इसके बाद वह उतरी गोलार्ध की ओर बढने लगता है. जिसे सूर्य का उतरायण में प्रवेश के नाम से जाना जाता है.
मकर संक्रान्ति- ज्योतिष आधार (Significance of Makar Sankranti in Vedic Jyotish)
मकर संक्रान्ति को तिल संक्रान्ति के नाम से भी जाना जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य अपने परम शत्रु शनि की राशि में प्रवेश करते है, तो सूर्य के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिये इस दिन शनि की वस्तुओं का दान किया जाता है. इन्हीं में से तिल भी शनि की मुख्य कारक वस्तु है
जिसे इस दिन दान कर, सूर्य की शुभता प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है. मकर संक्रांति पर सूर्य का राशि परिवर्तन, अंधकार से प्रकाश में प्रवेश का प्रतीक माना जाता है. यही कारण है कि इस दिन देश के विभिन्न प्रान्तों में अलग-अलग तरीके से सूर्यदेव की उपासना, आराधना व पूजन किया जाता है.
मकर संक्रान्ति - चिकित्सीय आधार (Medical Importance of Makar Sankranti)
आज के दिन तिल, गुड के बने पदार्थो का दान, सेवन किया जाता है. आयुर्वेद के अनुसार व्यक्तियों को वात जन्य विकारों से बचाने के लिये ही मकर संक्रान्ति पर तिल सेवन किया जाता है. अगर मकर संक्रान्ति समय में गुड व तिल का सेवन नहीं किया जाता है. तो बसन्त ऋतु में कफ और वर्षा ऋतु में वात रोग शीघ्र अपने प्रभाव में ले सकता है. एक विशेष वर्ग जो किन्हीं कारण वश इन वस्तुओं को क्रय नहीं कर सकता है. उन व्यक्तियों को ये वस्तुएं दान में प्राप्त होती है, इससे वे भी इन वस्तुओं का सेवन कर पाते है.
मकर संक्रान्ति का आध्यात्मिक आधार अपने चित को विषय विकारों से हटाकर, नारायण में लगाने का संकल्प ही मकर संक्रान्ति को आध्यात्मिकता से जोडता है. इस संकल्प के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन को परमात्मा का ध्यान, परमात्मा का ज्ञान और परमात्मा की प्राप्ति को लेकर संकल्प सहित आगे बढता है. परम शान्ति व सुख की तलाश में व्यक्ति को एक के बाद एक अनेक जन्मों में भटकना पडता है. इस संकल्प को लेना का मकर संक्रान्ति ही सबसे शुभ दिन है.