राम जीवन वर्णन संक्षेप में (Life of Rama in Brief)
दशहरा पर्व श्री रामचन्द्र की राक्षस राज रावण पर विजय प्राप्ति की खुशी में मनाया जाता है. दशहरे पर्व को हर्षोल्लास से मनाते समय हम सभी का एक बार भगवान राम के जीवन वृ्तान्त को याद कर लेना कल्याणकारी रहेगा. भगवान राम के जीवन गाथा को जितनी बार सुना जाता है, उतनी बार ही हमें कुछ नया सिखने को मिलता है. भगवान श्री राम आदर्श और धर्म की साक्षात प्रतिमा थें. आधुनिक काल में उन्हें सबसे पडा जीवन स्त्रोत कहा जा सकता है. आईये उनके जीवन से आज फिर कुछ सिखने का प्रयास करते है.
चैत्र माह, शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को श्री राम का जन्म हुआ. रामायण के अनुसार राजा दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुध्न थे. चारों पुत्रों ने ऋषि विश्वामित्र के आश्रम में शिक्षा ग्रहण की.
श्री राम स्वयंवर (Swayamvar of Rama)
इस समय राक्षसों का अत्याचार उत्तर भारत में भी कुछ क्षेत्रों में प्रारम्भ हो गया था, जिसके कारण मुनि विश्वामित्र यज्ञ नहीं कर पा रहे थे. उन्हें जब यह ज्ञात हुआ कि दशरथ के पुत्र राम के रूप में हरि अवतरित हुए हैं, वे अयोध्या आये और जब राम बालक ही थे, उन्होंने राक्षसों के दमन के लिए दशरथ से राम की याचना की.
राम तथा लक्ष्मण की सहायता से उन्होंने अपना यज्ञ पूरा किया. इन उपद्रवकारी राक्षसों में से एक सुबाहु था, जो मारा गया और दूसरा मारीच था, जो राम के बाणों से आहत होकर सौ यौजन के दूर पर समुद्र पार चला गया. जिस समय राम-लक्ष्मण विश्वामित्र के आश्रम में रह रहे थे, मिथिला में धनुर्यज्ञ का आयोजन किया गया था, जिसके लिए मुनि को निमन्त्रण प्राप्त हुआ था, अत: मुनि राम- लक्ष्मण को लिवा कर मिथिला गये.
मिथिला के राजा जनक ने देश-विदेश के समस्त राजाओं को अपनी पुत्री सीता के स्वयंवर हेतु आमन्त्रित किया था. रावण और बाणासुर जैसे बलशाली राक्षस नरेश भी इस आमन्त्रण पर वहाँ गये थे किन्तु अपने को इस कार्य के लिए असमर्थ मानकर लौट चुके थे.
दूसरे राजाओं ने सम्मिलित होकर भी इसे तोड़ने का प्रयत्न किया, किन्तु वे असफल रहें. राम ने इसे सहज में ही तोड़ दिया और सीता का वरण किया. विवाह के अवसर पर अयोध्या निमन्त्रण भेजा गया. दशरथ अपने शेष पुत्रों के साथ बारात लेकर मिथिला आये और विवाह के अनन्तर अपने चारों पुत्रों को लेकर अयोध्या लौटे.
राजा दशरथ से कैकयी का वर मांगना (Kaikryi's Promise from King Dasharatha)
दशरथ की अवस्था धीरे-धीरे ढलने लगी थी, इसलिए उन्होंने राम को अपना युवराज पद देना चाहा. संयोग से इस समय कैकेयी-पुत्र भरत सुमित्रा-पुत्र शत्रुघ्न के साथ ननिहाल गये हुए थे. कैकेयी की एक दासी मन्थरा को जब यह समाचार ज्ञात हुआ, उसने कैकेयी को सुनाया.
पहले तो कैकेयी ने यह कहकर उसका अनुमोदन किया कि पिता के अनेक पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र ही राज्य का अधिकारी होता है, यह उसके राजकुल की परम्परा है किन्तु मन्थरा के यह सुझाने पर कि भरत की अनुपस्थिति में जो यह आयोजन किया जा रहा है, उसमें कोई दुरभि-सन्धि है, कैकेयी ने उस आयोजन को विफल बनाने का निश्चय किया और कोप भवन में चली गयी। तदनन्तर उसने दशरथ से, उनके मनाने पर, दो वर देने के लिए वचन दिया.
राम वनवास (Exile of Rama)
दूसरे से भरत के लिए युवराज पद माँग लिये. इनमें से प्रथम वचन के अनुसार राम ने वन के लिए प्रस्थान किया तो उनके साथ सीता और लक्ष्मण ने भी वन के लिए प्रस्थान किया. कुछ ही दिनों बाद जब दशरथ ने राम के विरह में शरीर त्याग दिया, भरत ननिहाल से बुलाये गये और उन्हें अयोध्या का सिंहासन दिया गया, किन्तु भरत ने उसे स्वीकार नहीं किया और वे राम को वापस लाने के लिए चित्रकूट जा पहुँचे, जहाँ उस समय राम निवास कर रहे थे.
किन्तु राम ने लौटना स्वीकार न किया। भरत के अनुरोध पर उन्होंने अपनी चरण-पादुकाएँ उन्हें दे दीं, जिन्हें अयोध्या लाकर भरत ने सिंहासन पर रखा और वे राज्य का कार्य देखने लगे। चित्रकूट से चलकर राम दक्षिण के जंगलों की ओर बढ़े.
जब वे पंचवटी में निवास कर रहे थे रावण की एक भगिनी शूर्पणखा एक मनोहर रूप धारण कर वहाँ आयी और राम के सौन्दर्य पर मुग्ध होकर उनसे विवाह का प्रस्ताव किया. राम ने जब इसे अस्वीकार किया तो उसने अपना भयंकर रूप प्रकट किया. यह देखकर राम के संकेतों से लक्ष्मण ने उसके नाक-कान काट लिये. इस प्रकार कुरुप की हुई शूर्पणखा अपने भाइयों-खर और दूषण के पास गयी, और उन्हें राम से युद्ध करने को प्रेरित किया.
खर-दूषण ने अपनी सेना लेकर राम पर आक्रमण कर दिया किन्तु वे अपनी समस्त सेना के साथ युद्ध में मारे गये. तदनन्तर शूर्पणखा रावण के पास गयी और उसने उसे सारी घटना सुनायी. रावण ने मारीच की सहायता से, जिसे विश्वामित्र के आश्रम में राम ने युद्ध में आहत किया था, सीता का हरण किया, जिसके परिणामस्वरूप राम को रावण से युद्ध करना पड़ा.
राम-रावण युद्ध (Rama - Ravana War)
इस परिस्थिति में राम ने किष्किन्धा के वानरों की सहायता ली और रावण पर आक्रमण कर दिया. इस आक्रमण के साथ रावण का भाई विभीषण भी आकर राम के साथ हो गया. राम ने अंगद नाम के वानर को रावण के पास दूत के रूप में अन्तिम बार सावधान करने के लिए भेजा कि वह सीता को लौटा दे.
किन्तु रावण ने अपने अभिमान के बल से इसे स्वीकार नहीं किया और राम तथा रावण के दलों में युद्ध छिड़ गया. उस महायुद्ध में रावण तथा उसके बन्धु-बान्धव मारे गये. तदनन्तर लंका का राज्य उसके भाई विभीषण को देकर सीता को साथ लेकर राम और लक्ष्मण अयोध्या वापस आये। राम का राज्याभिषेक किया गया.