दशहरा पर्व दक्षिण भारत में खिलौनों की पूजा (Worshiping Dolls on Dussehra in South India)
दशहरा पर्व भारत के दक्षिण राज्यों में एक अलग तरीके से मनाया जाता है. दशहरे के मौके पर दक्षिण भारत के प्रत्येक घर में गुडियां और खिलौने सजाये जाते है. प्राचीन काल में इस परम्परा का प्रारम्भ राजघरानों के समय से हो गया था. इसे यहां गोम्बे हब्बा के नाम से जाना जाता है. सरल शब्दों में कहे तो यह दक्षिण भारत का "दशहरा उत्सव" है. पहले पहल दशहरे का यह उत्सव राज परिवार के लोगों तक ही सीमित था. लेकिन समय के साथ लोकप्रिय होकर यह आम लोगों में भी प्रचलित हो गया.
राजघरानों से निकल कर आम लोगों में लोकप्रियता हासिल करना (Stepping out of Palaces to gain in popularity between Ordinary people)
उस समय जब यह उत्सव राजपरिवार में ही मनाया जाता था, तो चन्द्र लोग ही इसका आनन्द ले पाते थें. इस उत्सव के दौरान बनाई गई गुडियों को बेटी के विवाह के समय बेटी के साथ विदा कर दिया जाता था. उन दिनों में लडकियों का विवाह किशोरावस्था प्रारम्भ होने के साथ ही कर दिया जाता था. किशोरावस्था में विवाहित होने के बाद भी ये लडकियां गुडियों के साथ खेलना पसन्द करती थी.
समय के साथ इस पर्व के अत्यधिक लोकप्रिय होने के कारण इसमें घरों के बच्चे बहुत ही जोश के साथ भाग लिया करते थें, गुडियों की सजावट के लिये वे अपने बुजुर्गों का सहयोग लिया करते थें. यह पर्व विशेष कर कन्याओं का पसन्दीदा पर्व होता था.
प्राचीन राजघरानों की परम्पराओं और जीवन शैली को समझने में इस प्रकार के पर्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे है. नवरात्रों की नौ देवियों के प्रतीक के रुप में कुल मिलाकर नौ गुडियों को सजाया जाता है. ये नौ गुडियां माता दुर्गा के नौ रुपों का प्रतिनिधित्व करती है. प्राचीन समय में सजाई गई गुडियों में उस समय की हस्तकला की जानकारी भी प्राप्त होती है.
नौ गुडियां-नौ देवियों का प्रतिनिधित्व (Representation of Nine Dolls - Nine Ladies)
वर्तमान समय में भी गुडियों को नौ स्तरों पर सजाया जाता है. प्रतिदिन के हिसाब से एक गुडिया सजाई जाती है, सजाने के बाद इसे अन्य गुडियों में शामिल कर दिया जाता है. नवें दिन नौ देवियां अर्थात शैलपुत्री, ब्रह्माचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्रि के नामों से पुकारा जाता है. गुडियों के रुप में ये देवियां परिवार से अशुभ शक्तियों का नाश करती है.
दशहरे पर गुडियों का प्रदर्शन (Display of Dolls on Dussehra)
दशहरे पर्व पर गुडियों को सजाने की परम्परा आज भी भारत के कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडू, केरल, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में इस पर्व को पारम्परिक ढंग से मनाया जाता है. इन गुडियों की सजावट में इन प्रदेशों की संस्कृ्ति की छाप होती है. आज समय बदल चुका है. गुडियों की सजावट केवल परिवार तक ही सीमित नहीं रह गई है.
वह आज भारत के बडे बडे कला उत्सवों की प्रदर्शियों का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है. अलग-अलग राज्यों की बेजोड कला के नमुने इन उत्सवों में देखे जा सकते है. इन कला प्रदर्शिनियों में यहां के कलाकार प्रत्येक गुडियां को एक नये रुप में सजाते है.
तमिलनाडू शहर का दशहरा पर्व (Dussehra Festival in Tamilnadu)
तमिलनाडू में दशहरे से पूर्व अर्थात नवरात्रों के प्रारम्भ से पहले ही घरों में रखे सभी गुड्डे - गुडिया, मूर्तियां निकाल कर, बाहर कर लिये जाते है. खिलौनों की साफ सफाई कर ली जाती है. इन खिलौनों को सजाने के लिये एक सीढीनुमा रेक मनाया जाता है. इनमें 5, 7, 11 सीढियां बनाने का रिवाज है. सबसे ऊपर की सीढी पर दुर्गाजी, लक्ष्मी जी और सरस्वती जी को स्थान दिया जाता है.
इसके बाद की अन्य सीढियों पर अन्य देवी देवताओं को बिठाया जाता है. संक्षेप में ये खिलौने छोटी छोटी झांकियों के रुप में होते है. इसकी अंतिम सीढियों क घर के बच्चे अपने खिलौनों से सजाते है. और उन्हें भी इन झांकियों में प्रदर्शित किया जाता है. इस परम्परा से जुडी एक मान्यता के अनुसार यह रीति ब्रह्मा के द्वारा सृष्टि की परिचायक है.
इन खिलौनों की पूजा क्योकि नवरात्रि से शुरु होकर दशहरे पर्व तक रहती है. नवरात्रि के पहले तीन दिन इसमें मां दुर्गा की आराधना होती है. अगले तीन दिन लक्ष्मी जी की और अंतिम तीन दिन माता सरस्वती की पूजा की जाती है. प्रतिदिन दीप जलाया जाता है. कलश पूजन किया जाता है. स्त्रियां एकत्रित होकर गायन करती है. बच्चों को उपहार भी दिये जाते है. बच्चों के लिये यह पर्व विशेष महत्व रखता है. इस दिन बच्चों को अनेक घरों से प्रसाद खाने को मिलता है.