उत्तराखण्ड के चमोली क्षेत्र में गोपेश्वर में स्थित एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है. भगवान शिव को समर्पित यह धाम भारत के प्रमुख रमणीय स्थलों मे से एक है. इस पवित्र स्थल के दर्शन मात्र से ही समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं. गोपेश्वर धाम केदारनाथ मंदिर के बाद सबसे प्राचीन स्थलों की श्रेणी में आता है.
उत्तराखण्ड का यह स्थल चार धाम की यात्रा के दौरान देखा जा सकता है. इसके निर्माण और वास्तु का स्वरूप सभी को आकर्षित करता है. पौराणिक महत्व लिए गोपीनाथ मंदिर शैव मत के साधकों का प्रमुख तीर्थ स्थल है. गोपेश्वर आने वाले तीर्थ यात्री गोपीनाथ मंदिर के दर्शन करना नहीं भूलते.
गोपेश्वर धाम का पौराणिक स्वरुप | Mythological form of Gopeshwar Dham
गोपेश्वर में स्थित भोले नाथ के मंदिर को लेकर विभिन्न धार्मिक पौराणिक महत्व भी जुडे हुए हैं. पुराणों मे इस जगह के बारे में ज्ञात होता है कि यह स्थल भगवान शिव की तपोस्थली बना था. यहां पर भगवान शिव ने अनेक वर्षों तक तपस्या की तथा भगवान शिव द्वारा कामदेव को इसी स्थान पर भस्म किया गया था. कहा जाता है कि सती के देह त्याग के पश्चात जब भगवान शिव तप में लीन हो गए थे.
तब ताड़कासुर नामक राक्षस ने तीनो लोकों में आतंक मचा रखा था. तथा कोई भी उसे हरा नहीं पाया तब ब्रह्मा के कथन अनुसार शिव का पुत्र ही इसे मार सकता है. सभी देवों ने भगवान शिव की आराधना करनी शुरू कर दी परंतु शिव अपनी तपस्या से नहीं जागे इस पर इंद्र ने कामदेव को यह कार्य सौंपा ताकी भगवान शिव तपस्या को समाप्त करके देवी पार्वती से विवाह कर लें और उनसे उत्पन्न पुत्र ताड़कासुर का वध कर सके.
इसी वजह से इंद्र ने कामदेव को शिव की तपस्या भंग करने भेजा और जब कामदेव ने भगवान शिव पर अपने काम तीरों से प्रहार किया तो भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई तथा शिव ने क्रोधित हो कामदेव को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका तो वह त्रिशूल इस स्थान पर गढ़ गया जहां पर वर्तमान में गोपीनाथ जी का मंदिर स्थापित है. इसके अतिरिक्त एक अन्य कथा अनुसार यहां पर राजा सगर का शासन था.
कहते हैं कि उस समय एक विचित्र घटना घटी एक गाय जो प्रतिदिन इस स्थान पर आया करती थी तथा उसके स्तनों का दूध स्वत: ही यहां पर गिरने लगता जब राजा को इस बात का पता चला तो राजा ने सिपाहियों समेत उस गाय का पीछा किया संपूर्ण घटनाक्रम को देखकर राजा के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जहां गाय के दूध की धारा स्वतः ही बह रही थी वहां पर एक शिव लिंग स्थापित था. इस पर राजा ने उस पवित्र स्थल पर मंदिर का निर्माण किया.
कुछ लोगों का कथन है कि जब राजा ने यहां मंदिर का निर्माण कार्य शुरू करवाया तो भूमि धँसने लगी तब राजा ने यहां पर भैरव की स्थापना की जिसके फलस्वरूप मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण हो सका इस कथन के सत्यता का प्रमाण मन्दिर के आस पास की धंसी हुई ज़मीन से ज्ञात होता है साथ ही मान्यता है की यहां आने वाले व्यक्ति को भैरव जी के दर्शन अवश्य करने चाहिए तभी भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
गोपेश्वर धाम महत्व | Significance of Gopeshwar Dham
चमोली के गोपेश्वर में स्थित य्ह स्थल लोगों कि आस्था एवं विश्वास का प्रमुख केन्द्र है इसमें एक बहुत बडा़ त्रिशुल स्थापित है. इस त्रिशूल की धातु का सही ज्ञान तो नहीं हो पाया है परंतु इतना अवश्य है कि यह अष्ट धातु का बना होगा. त्रिशुल आज भी सही सलामत खड़ा हुआ है इस त्रिशुल पर वहां के मौसम का तनिक भी प्रभाव नहीं पडा. और न ही इस त्रिशुल को उसके स्थान से हिलाया जा सका अभी भी वह उसी अवस्था स्थित में गढा़ हुआ है.
इस मंदिर में शिवलिंग, परशुराम, भैरव जी की प्रतिमाएं विराजमान हैं. मंदिर के निर्माण में भव्यता का अंदाजा लगाया जा सकता है. मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है मंदिर से कुछ दूरी पर वैतरणी नामक कुंड स्थापित है जिसके पवित्र जल में स्नान करने का विशेष महत्व है. सभी तीर्थ यात्री इस पवित्र स्थल के दर्शन प्राप्त करके परम सुख को पाते हैं.