गोवर्धन पूजा | Govardhan Puja | Govardhan Puja 2024 | Annakut Puja

गोवर्धन पूजा जिसे अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है. कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है. इस वर्ष  02 नवंबर 2024 को गोवर्धन पूजा की जाएगी. यह पर्व उत्तर भारत में विशेषकर मथुरा क्षेत्र में बहुत ही धूम-धाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है. दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है.

कृष्ण भक्ति है गोवर्धन पूजा | Govardhan Puja in Devotion on Lord Krishna

यह उत्सव कृष्ण की भक्ति व प्रकृत्ति के प्रति उपासना व सम्मान को दर्शाता है. भारत के लोकजीवन इस त्यौहार का महत्व प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है. अनेक मान्यताओं और लोककथा से जुडा़ यह पर्व जीवन के हर क्षेत्र में प्रेम व समर्पण का भाव दर्शाता है.

गोवर्धन पूजन | Govardhan Pujan

गाय के गोबर से गोवर्धननाथ जी की बनाकर उनका पूजन किया जाता है तथा अन्नकूट का भोग लगाया जाता है. यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है  श्रीमद्भागवत में इस बारे में कई स्थानों पर उल्लेख प्राप्त होते हैं जिसके अनुसार भगवान कृष्ण ने ब्रज में इंद्र की पूजा के स्थान पर कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा आरंभ करवाई थी. इसलिए आज भी दीपावली के दूसरे दिन सायंकाल ब्रज में गोवर्धन पूजा का विशेष आयोजन होता है.

भगवान श्रीकृष्ण इसी दिन इन्द्र का अहंकार धवस्त करके पर्वतराज गोवर्धन जी का पूजन करने का आहवान किया था. इस विशेष दिन मन्दिरों में अन्नकूट किया जाता है तथा संध्या समय गोबर के गोवर्धन बनाकर पूजा की जाती है. इस दिन अग्नि देव, वरुण, इन्द्र, इत्यादि देवताओं की पूजा का भी विधान है. इस दिन गाय की पूजा की जाती है फूल माला, धूप, चंदन आदि से इनका पूजन किया जाता है. गोवर्धन पूजा ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है.

प्रकृति की उपासना है गोवर्धन पूजा | Govardhan Puja – Worshipping The Nature

यह पर्व विशेष रुप से प्रकृति को उसकी कृपा के लिये धन्यवाद करने का दिन है. गोवर्धन पूजा की परंपरा प्रारंभ द्वारा कृष्ण ने लोगों को प्रकृत्ति की सुरक्षा व उसके महत्व को समझाया. गोवर्धन पूजा के मौके पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु मथुरा में गोवर्धन पर्वत कि परिक्रमा के लिए आते है, जिनमें विदेशी भक्तों की संख्या भी बडी तादाद में रहती है.

गोवर्धन पूजा महत्व | Significance of Worshipping Govardhan

अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई मानी जाती है. गोवर्धन पूजा के विषय में एक कथा प्रसिद्ध है. जिसके अनुसार ब्रजवासी देवराज इन्द्र की पूजा किया करते थे क्योंकि देवराज इन्द्र प्रसन्न होने पर वर्षा का आशिर्वाद देते जिससे अन्न पैदा होता. किंतु इस पर भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासीयों को समझाया कि इससे अच्छे तो हमारे पर्वत है, जो हमारी गायों को भोजन देते है.

ब्रज के लोगों ने श्री कृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी प्रारम्भ कर दी. जब इन्द्र देव ने देखा कि सभी लोग मेरी पूजा करने के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे है, तो उनके अंह को ठेस पहुँची क्रोधित होकर उन्होने ने मेघों को गोकुल में जाकर खूब बरसने का आदेश दिया आदेश पाकर मेघ ब्रजभूमि में मूसलाधार बारिश करने लगें. ऎसी बारिश देख कर सभी भयभीत हो गये तथा श्री कृष्ण की शरण में पहुंचें, श्री कृ्ष्ण से सभी को गोवर्धन पर्व की शरण में चलने को कहा.

जब सब गोवर्धन पर्वत के निकट पहुंचे तो श्री कृ्ष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्का अंगूली पर उठा लिया. सभी ब्रजवासी भाग कर गोवर्धन पर्वत की नीचे चले गये.  ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं गिरा. यह चमत्कार देखकर इन्द्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे श्री कृ्ष्ण से क्षमा मांगी सात दिन बाद श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और ब्रजबादियों को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पर्व मनाने को कहा. तभी से यह पर्व इस दिन से मनाया जाता है.

गोवर्धन पूजा सुख समृद्धि का आगमन | Govardhan Puja – Beginning Of Prosperity and Happiness

गोवर्धन पूजा करने से धन, धान्य, संतान और गोरस की प्राप्ति होती है. इस दिन घर के आँगन में गोवर्धन पर्वत की रचना की जाती है. गोवर्धन देव से प्रार्थना कि जाती है कि पृथ्वी को धारण करने वाले भगवन आप हमारे रक्षक है, मुझे भी धन-संपदा प्रदान करें. यह दिन गौ दिवस के रुप में भी मनाया जाता है. एक मान्यता के अनुसार इस दिन गायों की सेवा करने से कल्याण होता है.

जिन क्षेत्रों में गाय होती है, उन क्षेत्रों में गायों को प्रात: स्नान करा कर, उन्हें कुमकुम, अक्षत, फूल-मालाओं से सजाया जाता है. गोवर्धन पर्व पर विशेष रुप से गाय-बैलों को सजाने के बाद गोबर का पर्वत बनाकर इसकी पूजा की जाती है. गोबर से बने, श्री कृ्ष्ण पर रुई और करवे की सीके लगाकर पूजा की जाती है. गोबर पर खील, बताशे ओर शक्कर के खिलौने चढाये जाते हैं तथा सायंकाल में भगवान को छप्पन भोग का नैवैद्ध चढाया जाता है.

अन्नकूट पर्व | Annakut Festival

अन्नकूट पर्व भी गोवर्धन पर्व से ही संबन्धित है. इस दिन भगवान विष्णु जी को 56 भोग लगाए जाते हैं. की संज्ञा दी जाती है. इस महोत्सव के विषय में कहा जाता है कि इस पर्व का आयोजन व दर्शन करने मात्र से व्यक्ति को अन्न की कमी नहीं होती है. उसपर अन्नपूर्णा की कृपा सदैव बनी रहती है. अन्नकूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का दिन होता है. इस दिन परिवार के सदस्य एक जगह बनाई गई रसोई को भगवान को अर्पण करने के बाद प्रसाद स्वरुप ग्रहण करते हैं.

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दिवाली पर करें कुबेर पूजा | Worshipping Lord Kuber on Diwali | Kuber Puja on Diwali

कुबेर देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं. कुबेर जी की पूजा धन धान्य से पूर्ण बना देती है. सुख समृद्धि के मार्ग खुलते हैं. उन्नति, विकास व धन सम्पन्नता के लिए कुबेर यन्त्र पूजन अत्यंत लाभकारी होता है. यह यन्त्र मन्त्र वेदों से प्रमाणित है, प्रत्येक गृहस्थ के लिये उपयोगी है, इसका अनुसरण प्रत्येक व्यक्ति के लिए फलदायक है.

कुबेर जी भगवान शिव के भक्त थे इन्हें ने भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु बहुत कठिन तप किया. एक कथा अनुसार जब पार्वती जी के तेज के प्रभाव से इनका एक नेत्र नष्ट हो जाता है तो भगवान शिव इन्हें एकाक्षीपिंगल नाम प्रदान करते हैं. भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर उन्हें धनाध्यक्ष बनाया शिवाराधना फलस्वरूप उन्हें  धनपाल का स्थान प्राप्त हुआ.

कुबेर पूजा विधान | Rituals To Worship Lord Kuber

कुबेर पूजन के लिए सर्वप्रथम  स्वच्छ स्थान का चयन करें या पूजा स्थान में कुबेर व लक्ष्मी माता का चित्र स्थापित कर लेना चाहिये, देवी लक्ष्मी का सुगंधित द्रव्य लेकर षोडशोपचार से पूजन आवहान करना चाहिये इसके साथ ही कुबेर जी के मंत्र जाप व पाठ को श्रवण-मनन करते हुए उनका स्मरण करना चाहिए.

विनियोग | Viniyoga

“ऊँ अस्य कुबेर मंत्रस्य विश्रवा ऋषि: बृहती छंद: शिवमित्र धनेश्वर देवता,दारिद्रय विनाशने पूर्णसमृद्धि सिद्धयर्थे जपे विनियोग:”।

ध्यान | Meditation

“ऊँ मनुजबाहुविमान वर स्थितं गरुडरत्नाभिं निधिनायकम।
विवसखं मुकुटादिभूषितं वरगदे दधतं भज तुन्दिलम॥

कुबेर मंत्र | Kuber Mantra

ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रणवाय धनधान्यादिपतये धनधान्यसमृद्धि में देहि देहि दापय दापय स्वाहा।
या
ऊँ श्रीं ऊँ ह्रीं श्री ह्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नम: स्वाहा।

ध्यान के पश्चात पंचोपचार द्वारा कुबेर भगवान के श्रीविग्रह का पूजन करना चाहिए. पुष्पों से इस मंत्र के जाप के साथ पुष्पांजलि देनी चाहिये. कुबेर मंत्र के एक लाख जाप करना चाहिए. इसके उपरांत घी, तिल, अक्षत, पंचमेवा, शहद, लौंग इत्यादि सात अनाज मिलाकर हवन करना चाहिये, ऎसा करने से कुबेर मंत्र सिद्ध हो जाता है.

सभी यज्ञ अनुष्ठानों इत्यादि में दश दिक्पालों के पूजन क्रम में उत्तर दिशा के अधिपति के रुप में कुबेर जी की पूजा की जाती है. पौराणिक आख्यानों के अनुसार कुबेर जी धनाध्यक्ष्य यक्षाधिपति हैं. गंन्धर्व व किन्नरों के भी स्वामी हैं. इन्हें कोष, नवनिधियों और उत्तर दिशा का स्वामी माना जाता है. कुबेर जी ब्रह्माण के धनपति है तथा देवों एवं अन्य सभी द्वारा पूज्य हैं. गुप्त निधि व अनन्त ऎश्वर्य की प्राप्ति हेतु कुबेर जी की उपासना विशेष फलदायी मानी गई है.

कुबेर जी के साथ राज्यश्री के रुप में साक्षात महालक्ष्मी जी विराजित रहती हैं. इसलिए दीपावली जैसे महापर्व के समय कुबेर जी का विधिवत पूजन व उपासना मंत्र या तंत्र इत्यादि की अभिष्ट सिद्धि, वैभव के लिए अत्यंत आवश्यक होती है.

कुबेर(वैश्रवण) के पास सभी विलक्षण तथा अलौकिक शक्तियां मौजुद हैं धनपति कुबेर जी अपने भक्तों को वैभव प्रदान करते हैं. धन संपदा चाहने वालों को और दरिद्रता व ऋण से मुक्ति चाहने वालों को धनत्रयोदशी व दीवाली के दिन कुबेर जी का पूजन करना चाहिए.

कुबेर महाराज का यंत्र और मंत्र जीवन में सभी श्रेष्ठता को प्रदान करने वाला होता है. कुबेर पूजा ऐश्वर्य, दिव्यता, संपन्नता, पद सुख, सौभाग्य, व्यवसाय वृद्धि, आर्थिक विकास, सन्तान सुख उत्तम आयु वृद्धि और समस्त भौतिक सुखों को देने में सहायक होती है.

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दिवाली का त्यौहार | Diwali Festival | Deepavali Festival Puja 2024

दिवाली का पर्व भारतीय संस्कृत्ति में अत्यधिक लोकप्रिय व महत्वपूर्ण त्यौहारों के रुप में स्थान पाता है. यह धन, वैभव एवं उल्लास की कामना एवं पूर्णता का पर्व है. कार्तिक मास की अमावस्या को मनाए जाने वाले इस पंच दिवसीय पर्व को सभी वर्गों के लोग किसी न किसी प्रकार से अत्यंत हर्ष व उत्साह के साथ मनाते हैं.

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक चलने वाला दीपावली का त्यौहार सुख समृद्धि की वृद्धि, दरिद्रता का निवारण, स्वास्थ्य की प्राप्ति, व्यापार वृद्धि तथा लौकिक व परालौकिक सुखों की प्राप्ति के उद्देश्यों की पूर्णता प्राप्ति के लिए मनाया जाता है. दीवाली के आने से चारों और रोशनी का संसार बस जाता है अंधेरों को दूर करते हुए आशा व उत्साह का संचार सभी के हृदय में उजागर होता है.

दीपावली प्रकाशमय पर्व है भारत का अत्यंत प्राचीन सांस्कृति एवं राष्ट्रीय पर्व है. वेदों में प्रकाश व इस ज्योति की महिमा का वर्णन मिलता है. पौराणिक काल की अनुभूतियां दीपावली पर पूजे जाने वाले देवता इस पर्व की प्राचीनता के द्योतक हैं. यह पावन पर्व भारतीय संस्कृति की लौकिक एवं सांस्कृतिक धरोहर के रुप में मनाया जाता रहा है.

लक्ष्मी स्वरूपा दीवाली | Goddess Lakshmi

लक्ष्मी आदिशक्ति का वह रूप हैं जो विश्व को भौतिक सुख समृद्धि प्रदान करती हैं. लक्ष्मी धन की अधिष्ठात्री देवी हैं इनक अप्रभव क्षेत्र व्यापक व विश्वव्यापी है. लक्ष्मी जी को सत्वरुपा, श्रुतिरूपा एवं आनंदस्वरुपा माना जाता है.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की मावस्या को ही लक्ष्मी जी का समुद्र मंथन के समय प्रादुर्भाव हुआ था. इसलिए दीपावली के दिन लक्ष्मी जी की पूज अक अविधान है. इनके साथ गणेश जी की पूजा भी की जाती है क्योंकि धन के महत्व को समझा जाए और उसे सत्कर्मों में व्यय किया जाए.

सरस्वती पूजन | Worshipping Goddess Saraswati

माँ लक्ष्मी के साथ-साथ दीपावली के दिन माँ सरस्वती की भी पूजा की जाती है. इसी के साथ इंद्र देव की पूजा अभी विधान होता है. बहीखातों व तुला पूजन का दिवस यह पर्व व्यापारियों एवं गृहस्थों सभी के लिए महत्वपूर्ण होता है. व्यापारी वर्ग के लिए दीपावली का दिन बही खातों एवं तुला आदि के पूजन का दिवस होता है. इसके लिए व्यापारियों को अपने कार्यस्थल के मुख्य द्वार पर शुभ लाभ और स्वस्तिक का चिन्ह बनाना चाहिए. इस शुभ चिन्हों की रोली पुष्प इत्यादि से “ॐ देहलीविनायकाय नम:” मंत्र का जाप करते हुए पूजा करनी चाहिए. तदुपरांत दवात, बहीखातों एवं तुला इत्यादि का पूजन करना चाहिए.

लेखनी पूजन | Worshipping The Pen On Diwali

दीपावली के दिन नय़ी लेखनी अथवा पेन को शुद्ध जल से धोकर उस पर मौली बांधकर लक्ष्मीपूजन के स्थान पर स्थापित कर देना चाहिए. इसके पश्चात रोली व फूलों से “ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नम:” मंत्र का उच्चारण करते हुए पूजन  करना चाहिए.

बही-खाता पूजन | Rituals To Worship The Account Book

व्यपारियों को दीवाली के दिन नए बही खातों का आरंभ करना चाहिए. पूजन करने के लिए बही खातों को शुद्ध करके उन्हें लाल वस्त्र के उपर स्थापित करें. नवीन बही- खाता पुस्तकों पर केसर युक्त चंदन से अथवा लाल कुमकुम से स्वास्तिक का चिन्ह बनाना चाहिए. ॐ श्री गणेशाय नम: लिखकर एक थाल में हल्दी की गांठ, कमलगट्टे की माला, अक्षत व दक्षिणा रखकर तथा थैली में भी स्वास्तिक का चिन्ह लगाकर सरस्वती मां ऊँ श्री सरस्वत्यै नम:। का जाप करना चाहिए.

दीपदान | Worshipping Gods And Goddesses on Diwali

दीपावली के दिन सम्सत देवी देवताओं के प्रति पूर्ण श्रद्धा भाव दर्शाते हुए अंधकार को परास्त करके उजाले के आगमन की विजय के लिए दीपों को प्रज्जवलित किया जाता है. दीपावली के दिन लक्ष्मी जी पृथ्वी पर विचरण करती हैं, इसीलिए लक्ष्मी के स्वागत हेतु दीपदान द्वारा रोशनी का मार्गप्रश्स्त करते हैं. हर कोने में दीपक रखे जाते हैं, ताकि किसी भी जगह अंधेरा न हो. इस दीन दीपदान विशेष महत्व रखता है. इस दिन को महानिशीथ काल भी कहा जाता है अत: इस अंधेरे को हटाते हुए प्रकाश का आगमन जीवन में स्थायित्व सुख एवं समृद्धि को लाता है दीपदान शुभ फलों में वृद्धि करने वाला होता है.

लक्ष्मी तथा गणेश पूजन | Worshipping Goddess Lakshmi and Lord Ganesha

दीपोत्सव पर पारदेश्वरी महालक्ष्मी जी व गणेश जी की पूजा आराधना का बहुत महत्व होता है. पूजन की तैयारी शाम से शुरू हो जाती है शुभ मुहूर्त के समय लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां स्थापित करके विधि-विधान से लक्ष्मी तथा गणेश भगवान की पूजा की जाती हैं  श्री सूक्त, लक्ष्मी सूक्त का पाठ किया जाता है. पूजन पश्चात भगवान को भोग लगाकर लोग आस-पडौ़स में व रिश्तेदारों तथा मित्रों को मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं  रात में बच्चे तथा बडे़ मिलकर पटाखे तथा आतिशबाजी जलाते हैं.

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दिवाली पूजन मुहूर्त 2024 | Diwali Puja Muhurat 2024 | Diwali Puja Muhurat

दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन शुभ समय मुहूर्त्त समय पर ही किया जाना चाहिए. पूजा को सांयकाल अथवा अर्द्धरात्रि को अपने शहर व स्थान के मुहुर्त्त के अनुसार ही करना चाहिए. इस वर्ष 01 नवंबर, 2024 के दिन दिवाली मनाई जाएगी.  दीपावली में अमावस्या तिथि, प्रदोष काल, शुभ लग्न व चौघाडिया मुहूर्त विशेष महत्व रखते है.

वर्ष 2024 में दिपावली, 012 नवंबर, के दिन की रहेगी. इस दिन स्वाती नक्षत्र रहेगा. इस दिनी प्रीति और आयु योग तथा चन्दमा  तुला राशि में गोचर करेगा. दीपावली में अमावस्या तिथि, प्रदोष काल, शुभ लग्न व चौघाडिया मुहूर्त विशेष महत्व रखते है. दिपावली व्यापारियों, क्रय-विक्रय करने वालों के लिये विशेष रुप से शुभ मानी जाती है.

लक्ष्मी पूजन सामग्री | Material For Lakshmi Worship

इस पूजन में रोली, मौली, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, धूप, कपूर, अगरबत्ती, गुड़, धनिया, अक्षत, फल-फूल, जौं, गेहुँ, दूर्वा, श्वेतार्क के फूल, चंदन, सिंदूर, दीपक, घृत, पंचामृत, गंगाजल, नारियल, एकाक्षी नारियल, पंचरत्न, यज्ञोपवित, मजीठ, श्वेत वस्त्र, इत्र, फुलेल, पान का पत्ता, चौकी, कलश, कमल गट्टे की माला, शंख, कुबेर यंत्र, श्री यंत्र, लक्ष्मी व गणेश जी का चित्र या प्रतिमा, आसन, थाली, चांदी का सिक्का, मिष्ठान इत्यादि वस्तुओं को पूजन समय रखना चाहिए.

लक्ष्मी पूजन विधि व नियम | Rituals To Worship Goddess Lakshmi

लक्ष्मी पूजन घर के पूजा स्थल या तिजोरी रखने वाले स्थान पर करना चाहिए, व्यापारियों को अपनी तिजोरी के स्थान पर पूजन करना चाहिए. उक्त स्थान को गंगा जल से पवित्र करके शुद्ध कर लेना चाहिए, द्वारा व कक्ष में रंगोली को बनाना चाहिए, देवी लक्ष्मी को रंगोली अत्यंत प्रिय है. सांयकल में लक्ष्मी पूजन समय स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्रों को धारण करना चाहिए विनियोग द्वारा पूजन क्रम आरंभ करें.

अपसर्पन्त्विति मन्त्रस्य वामदेव ऋषि:, शिवो देवता, अनुष्टुप छन्द:, भूतादिविघ्नोत्सादने विनियोग:।

मंत्र :- अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूतले स्थिता:।
ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ||

लक्ष्मी व गणेश के चित्र, श्री यंत्र को लाल वस्त्र बिछाकर चौकी पर स्थापित करें.  आसन पर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर बैठे तथा यह मंत्र बोल कर अपने उपर व पूजन सामग्री पर जल छिड़कना चाहिए.

मंत्र:- ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याभंतर: शुचि:।।

उसके बाद जल-अक्षत लेकर पूजन का संकल्प करें- ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरूषस्य विष्णोराज्ञप्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोSह्नि द्वितीयपराधें श्रीश्वेतवाराहकल्पे वीवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे अद्य मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावास्यायां तिथि, वार और गोत्र के नाम का उच्चारण करना चाहिए,

अहंश्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिकवाचिकमानसिक सकलपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये। तदड्त्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये।

अब संकल्प का जल भूमि पर छोड़ दें. सर्वप्रथम भगवान गणेश का पूजन करना चाहिए. इसके बाद गंध, अक्षत, पुष्प इत्यादि से कलश पूजन तथा उसमें स्थित देवों का षोडशपूजन करें. तत्पश्चात प्रधान पूजा में मंत्रों द्वारा भगवती महालक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करें. पूजन पूर्व श्री यंत्र, शंख, सिक्कों आदि की मंत्र द्वारा पूजा करनी चाहिए. लाल कमल पुष्प लेकर मंत्र से देवी का ध्यान करना चाहिए,

न्यास | Nyas

श्रीआनन्द कर्दम चिक्लीतेन्दिरा सुता ऋषिभ्यो नमः शिरसि। अनुष्टुप् वृहति प्रस्तार पंक्ति छन्दोभ्यो नमः मुखे। श्रीमहालक्ष्मी देवताय नमः हृदि। श्रीमहा लक्ष्मी प्रसाद सिद्धयर्थे राज वश्यार्थे सर्व स्त्री पुरुष वश्यार्थे महा मन्त्र जपे विनियोगाय नमः।

कर-न्यास | Kar – Nyas

ॐ हिरण्मय्यै अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ चन्द्रायै तर्जनीभ्यां स्वाहा। ॐ रजत-स्त्रजायै मध्यमाभ्यां वषट्। ॐ हिरण्य-स्त्रजायै अनामिकाभ्यां हुं। ॐ हिरण्य-स्त्रक्षायै कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्। ॐ हिरण्य-वर्णायै कर-तल-करपृष्ठाभ्यां फट्।

अंग-न्यास | Ang – Nyas

ॐ हिरण्मय्यै नमः हृदयाय नमः। ॐ चन्द्रायै नमः शिरसे स्वाहा। ॐ रजत-स्त्रजायै नमः शिखायै वषट्। ॐ हिरण्य-स्त्रजायै नमः कवचाय हुं। ॐ हिरण्य-स्त्रक्षायै नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्। ॐ हिरण्य-वर्णायै नमः अस्त्राय फट्।

ध्यान | Meditation

ॐ अरुण-कमल-संस्था, तद्रजः पुञ्ज-वर्णा,
कर-कमल-धृतेष्टा, भीति-युग्माम्बुजा च।
मणि-मुकुट-विचित्रालंकृता कल्प-जालैर्भवतु-
भुवन-माता सततं श्रीः श्रियै नः।।

महामन्त्र | Maha Mantra

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।

विधिवत रुप से श्रीमहालक्ष्मी का पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करनी चाहिए. इस दिन की विशेषता लक्ष्मी जी के पूजन से संबन्धित है. इस दिन हर घर, परिवार, कार्यालय में लक्ष्मी जी के पूजन के रुप में उनका स्वागत किया जाता है.

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रमा एकादशी व्रत | Rama Ekadashi 2024 | Rama Ekadashi Vrat

एकादशी के व्रत को व्रतों में श्र्ष्ठ माना गया है. एकादशी व्रत का उपवास व्यक्ति को अर्थ-काम से ऊपर उठकर मोक्ष और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है. इसी श्रेणी में रमा एकादशी व्रत भी आता है. यह व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है. वर्ष 2024 में 28 नवंबर के दिन रमा एकादशी व्रत किया जायेगा. इस दिन भगवान श्री विष्णु जी का पूजन एवं भागवत गीता का पाठ इत्यादि कार्य उत्तम होते हैं.

रमा एकादशी पौराणिक महत्व | Mythological Significance of Rama Ekadashi

रमा एकादशी का पौराणिक महत्व रहा है पुराणों के अनुसार मुचुकुन्द नाम का राजा था वह दयालु व श्री विष्णु का परम भक्त था. इन्द्र, वरूण, कुबेर और विभीषण आदि उसके मित्र थे. उसके राज्य में सभी प्रसन्न व सुख पूर्वक रहते थे. एक समय राजा के घर में एक कन्या ने जन्म लिया. कन्या का नाम चन्द्रभागा रखा गया. पुत्री के युवा होने पर राजा ने उसका विवाह राजा चन्द्रसेन के पुत्र साभन के साथ कर दिया.

जब चन्द्रभागा अपने ससुराल में थी, तो एक एकादशी पडी तो वह भी एकादशी का व्रत करने की कामना करती है. परंतु उसका पति शोभन इस व्रत को करने में शारीरिक रुप से अक्षम था वह अत्यन्त कमजोर था इस कारण वह अपनी पत्नी को व्रत न कर सकने के बारे में कहता है  व्रत न करने की बात जब चन्द्रभागा को पता चली तो वह बहुत परेशान होती है. वह अपने पति को उस दिन के लिए किसी अन्य स्थान पर चले जाने को कहती है क्योंकि यदि वह घर पर रहेगा तो उसे व्रत अवश्य ही करना पडेगा. पत्नी की यह बात सुनकर शोभन कहता है कि तब तो मैं यही रहूंगा और व्रत अवश्य ही करूंगा. इस प्रकार दोनो पति पत्नी एकादशी का व्रत करते हैं. व्रत में वह भूख प्यास से पीडित होने लगा और उसकी मृत्यु हो गई.

रमा एकादशी के प्रभाव से सोभन को एक उतम नगर प्राप्त हुआ, परन्तु यह राज्य अदृश्य था. एक बार उसकी पत्नी के राज्य का एक ब्राह्माण भ्रमण के लिए निकला, उसने मार्ग में सोभन का नगर देखा और सोभन ने उसे बताया कि उसे रमा एकादशी के प्रभाव से यह नगर प्राप्त हुआ है. सोभन ने ब्राह्माण से कहा की मेरी पत्नी चन्द्र भागा से इस नगर के बारे में और मेरे बारे में कहना. वह सब ठिक कर देगी. ब्राह्माण ने वहां आकर चन्द्रभागा को सारा वृ्तान्त सुनाया. चन्द्रभागा बचपन से ही एकादशी व्रत करती चली आ रही थी. उसने अपनी सभी एकादशियों के प्रभाव से अपने पति और उसके राज्य को यथार्थ का कर दिया. और अन्त में अपने पति के साथ दिव्यरुप धारण करके तथा दिव्य वस्त्र अंलकारों से युक्त होकर आनन्द पूर्वक अपने पति के साथ रहने लगी.

रमा एकादशी व्रत फल | Rama Ekadashi Fast Benefits

कार्तिक मास के कृ्ष्णपक्ष की एकादशी का नाम रमा एकादशी है. इस एकादशी को रम्भा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इसका व्रत करने से समस्त पाप नष्ट होते है. एकादशी के सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है. जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से,  दान करने से वह भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है.

संसाररूपी भंवर में फंसे मनुष्यों के लिए इस एकादशी का व्रत और भगवान विष्णु का पूजन अत्यंत आवश्यक है. स्वयं भगवान ने यही कहा है कि रमा व्रत से जीव कुयोनि को प्राप्त नहीं होता. एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पण करने से इस संसार के समस्त पापों से निजात मिलती है. विष्णु भगवान रत्न, मोती, मणि तथा आभूषण आदि से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने तुलसी दल से प्रसन्न होते हैं. रमा एकादशी का व्रत करने से ब्रह्माहत्या आदि के पाप नष्ट होते हैं.

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रूप चतुर्दशी 2024 | Roop Chaturdashi 2024 | Roop Chaturdashi

रूप चतुर्दशी को नर्क चतुर्दशी, नरक चौदस, रुप चौदस अथवा नरका पूजा के नामों से जाना जाता है. इस दिन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी पर मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान होता है. इस वर्ष 2024 को रूप चतुर्दशी 31 अक्टूबर के दिन मनाई जाएगी. इसे छोटी दीपावली के रुप में मनाया जाता है इस दिन संध्या के पश्चात दीपक जलाए जाते हैं और चारों ओर रोशनी की जाती है. रूप चौदस के दिन तिल का भोजन और तेल मालिश, दन्तधावन, उबटन व स्नान आवश्यक होता है.

नर्क चतुर्दशी | Narak Chaturdashi

नरक चतुर्दशी का पूजन अकाल मृत्यु से मुक्ति तथा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए किया जाता है. एक पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक माह को कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध करके, देवताओं व ऋषियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलवाई थी.

रूप चतुर्दशी पौराणिक आधार | Roop Chaturdashi Mythological Basis

नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की भी पूजा का विधान है. भगवान श्री कृष्ण का पूजन करने से व्यक्ति को सौंदर्य की प्राप्ति होती है. रूप चतुर्दशी से संबंधित एक कथा भी प्रचलित है मान्यता है कि प्राचीन समय पहले हिरण्यगर्भ नामक राज्य में एक योगी रहा करते थे. एक बार योगीराज ने प्रभु को पाने की इच्छा से समाधि धारण करने का प्रयास किया. अपनी इस तपस्या के दौरान उन्हें अनेक कष्टों का सामना करना पडा़.

अपनी इतनी विभत्स दशा के कारण वह बहुत दुखी होते हैं. तभी विचरण करते हुए नारद जी उन योगी राज जी के पास आते हैं और उन योगीराज से उनके दुख का कारण पूछते हैं. योगीराज उनसे कहते हैं कि, हे मुनिवर मैं प्रभु को पाने के लिए उनकी भक्ति में लीन रहा परंतु मुझे इस कारण अनेक कष्ट हुए हैं ऎसा क्यों हुआ? योगी के करूणा भरे वचन सुनकर नारदजी उनसे कहते हैं, हे योगीराज तुमने मार्ग तो उचित अपनाया किंतु देह आचार का पालन नहीं जान पाए इस कारण तुम्हारी यह दशा हुई है.

नारदजी उन्हें कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा अराधना करने को कहते हैं,  क्योंकि ऎसा करने से योगी का शरीर पुन: पहले जैसा स्वस्थ और रूपवान हो जाएगा. अत: नारद के कथनों अनुसार योगी ने व्रत किया और  व्रत के प्रभाव स्वरूप उनका शरीर पहले जैसा स्वस्थ एवं सुंदर हो गया. इसलिए इस चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी के नाम से जाना जाने लगा.

रूप या नरक चतुर्दशी महत्व | Roop Chaturdashi Importance

इस दिन प्रात: काल शरीर पर उबटन लगाकर स्नान करना चाहिए.  अपामार्ग अर्थात चिचड़ी की पत्तियों को जल में डालकर स्नान करने से स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है. पूजन हेतु एक थाल को सजाकर उसमें एक चौमुख दिया जलाते हैं तथा सोलह छोटे दीप और जलाएं तत्पश्चात रोली खीर, गुड़, अबीर, गुलाल, तथा फूल इत्यादि से ईष्ट देव की पूजा करें.

पूजा के पश्चात सभी दीयों को घर के अलग अलग स्थानों पर रख दें तथा गणेश एवं लक्ष्मी के आगे धूप दीप जलाएं. इसके पश्चात संध्या समय दीपदान करते हैं दक्षिण दिशा की ओर चौदह दिये जलाए जाते हैं जो यम देवता के लिए होते हैं. विधि-विधान से पूजा करने पर व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो प्रभु को पाता है.

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हनुमान जयंती | Hanuman Jayanti | Hanuman Jayanti 2024 | Hanuman Birthday

निशीथव्यापिनी कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हनुमान जयंती का महोत्सव मनाया जाता है. इस वर्ष 30 अक्टूबर 2024 के दिन हनुमान जयंती मनाई जाएगी. इस दिन भक्तों को चाहिए की वह प्रात: स्नानादि से निवृत होकर संकल्प लेकर भगवान हनुमान जी का षोडशोपचार पूजन करें पूजन पश्चात सुगंधित तेल में सिन्दूर मिलाकर उसे भगवान हनुमान जी को अर्पित करना चाहिए.

लाल पुष्पों से पूजन करें, नवैद्य के लिए घी युक्त आटे का चूरमा, लड्डू, फलों का उपयोग करें. रात्रि समय चमेली के तेल का दीया जलाएं और सुंदरकाण्ड का पाठ करें. यह जयंती उत्तर भारतीय परंपरा के अनुसार है परंतु दक्षिण भारत में यह चैत्र पूर्णिमा को मनाई जाती है.

श्री हनुमान जयंन्ती पौराणिक महत्व भी बहुत है जिसके अनुसार शिवजी के अवतार रुप में भगवान श्री हनुमान जी का जन्म अंजना माँ के गर्भ से हुआ था. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान करने से पूरे मास की शुभता बनी रहती है.  इस तिथि में भगवान लक्ष्मी नारायण को प्रसन्न करने के लिये व्रत भी किया जाता है. उदय काल पूर्णिमा में सत्यनारायण देव के लिये भी व्रत किया जाता है. वायु-पुराण के अनुसार कार्तिक मास की नरक चौदस के दिन हनुमान जी का जन्म हुआ था.

हनुमान जयंती व्रत | Hanuman Jayanti Vrat

हनुमान जी का जन्म दिवस होने के कारण इस दिन भगवान श्री हनुमान जी का मंत्र का पाठ और मंत्र जाप करना इस दिन विशेष कल्याणकारी कहा गया है. हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिये हनुमान चालीसा का पाठ करना भी शुभ रहता है. इस दिन ये सभी कार्य करने से व्यक्ति के समस्त कष्टों का निवारण होता है. मान्यता है कि लंका का दहन भी इसी दिन हुआ था.

हनुमान जयंती के दिन श्रद्वालु जन अपने- अपने सामर्थ्य के अनुसार, सिंदुर का चोला, लाल वस्त्र, ध्वजा आदि चढाते है. केशर मिला हुआ चंदन, फूलों में कनेर के फूल, धूप, अगरबती, शुद्ध घी का दीपक, कसार का भोग लगाते हैं.

नारियल और पेडों का भोग भी लगाने से भगवान श्री हनुमान जी शीघ्र प्रसन्न होते है. इसके अतिरिक्त दाख-चूरमे का प्रयोग भोग में किया जा सकता है. केला आदि फल भी चढायें, जाते है. कपूर से श्री राम भक्त की आरती की जाती है. प्रदक्षिणा करके, नमस्कार किया जाता है. भजन कीर्तन और जागरण कराने का विशेष महत्व है.

हनुमान जयंती महत्व | Significance of Hanuman Jayanti

श्री हनुमान जयंती तिथि में कई जगहों, पर मेला भी लगता है. जिन स्थानों पर मेला लगता है, उन स्थानों में सालासर, मेंहदीपुर, चांदपोल स्थान प्रमुख है. इस व्रत को सभी द्वारा किया जा सकता है. इस व्रत को करने से सभी भक्तों कि मनोकामनाएं पूरी होती है. भगवान श्री हनुमान जी प्रत्यक्ष देव है वह सभी के संकट दूर करते है. हनुमान जयंती के उपलक्ष्य पर सब ओर उत्साह का माहौल रहता है. मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना कराई जाती है तथा भक्तों को प्रसाद बांटा जाता है.

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नवरात्रों में गृह शांति के उपाय | Remedies For Planet Pacification in Navratras

नवरात्रों के समय गृह शांति  पूजा सभी बाधाऔम को दूर करने का योग्य समय होता है. अध्यात्मिक साधना के लिए जो लोग इच्छुक होते हैं वह लोग इन दिनों साधना रत रहते है. ग्रहों से पीड़ित व्यक्ति इन दस दिनों में ग्रह शांति भी कर सकते हैं यह इसके लिए उत्तम समय होता है.

दुर्गा पूजा के साथ ग्रह शांति | Planet Pacification Rituals with Durga Puja

माता दुर्गा ही सभी तंत्र और मंत्र की आधार हैं.यह देवी कालरात्रि हैं, काली और कपालिनी हैं.सभी तंत्र और मंत्र, यंत्र इन्हीं से जन्म लेते हैं और इन्हीं में मिल जाते हैं.बिना मंत्र के इनकी साधना अपूर्ण मानी जाती है.ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पृथ्वी पर जो भी मनुष्य हैं वे किसी न किसी ग्रह से पीड़ित हैं, ग्रहों की पीड़ा से बचने का एक मात्र उपाय उनकी शांति हैं.ग्रहों की शांति के लिए भी यंत्र और मंत्र प्रभवकारी हैं.दुर्गा पूजा के दस दिनों में अगर इनकी सहायता से ग्रह शांति करें तो इसका लाभ जल्दी मिलता है.इन दिनों हम लोग माता दुर्गा के लिए कलश स्थापित करके नियमित मां की पूजा करते हैं.मां की पूजा के बाद अगर प्रत्येक दिन एक एक ग्रह की शांति करें तो न दिनों में न ग्रहों की शांति हो जाएगी और ग्रहों के अशुभ प्रभाव के कारण जो भी परेशानी आ रही है उनसे आपको राहत मिल सकती है।

नवग्रह शांति विधि | Rituals For Pacification of Nine Planets

नवरात्रों के न दिनों में नवग्रह शांति की विधि यह है कि प्रतिपदा के दिन आप मंगल ग्रह की शांति करें, द्वितीय के दिन राहु की, तृतीया के दिन बृहस्पति की, चतुर्थी के दिन शनि ग्रह की, पंचमी के दिन बुध ग्रह की, षष्ठी के दिन केतु की, सप्तमी के दिन शुक्र की, अष्टमी के दिन सूर्य की एवं नवमी के दिन चन्द्रमा की.ग्रह शांति की प्रक्रिया शुरू करने से पहले कलश स्थापन और दुर्गा मां की पूजा करनी चाहिए.माता की पूजा के बाद लाल रंग के वस्त्र पर एक यंत्र बनायें.इस यंत्र में तीन खाने बनाकर      ৠपर के तीन खानो में बुध, शुक्र, चन्मा स्थापित करें बीच में गुरू, सूर्य, मंगल और नीचे के तीन खाने में केतु, शनि, राहु को स्थान दें.यंत्र बनने के बाद नवग्रह बीज मंत्र से इस यंत्र की पूजा करे फिर नवग्रह शांति का संकल्प करें.

प्रतिपदा के दिन मंगल ग्रह की शांति होती है इसलिए मंगल ग्रह की फिर से पूजा करनी चाहिए.पूजा के बाद पंचमुखी रूद्राक्ष, मूंगा अथवा लाल अकीक की माला से 108 मंगल बीज मंत्र का जप करना चाहिए.जप के बाद मंगल कवच एवं अष्टोत्तरशतनाम का पाठ करना चाहिए.इसी प्रकार से राहु की शांति के लिए द्वितीया तिथि को राहु की पूजा के बाद राहु के बीज मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए फिर अष्टोत्तरशतनाम व कवच पाठ करना चाहिए.नवग्रह की शांति के लिए सभी ग्रह का विधान इसी प्रकार से रहेगा यानी सम्बन्धित ग्रह के बीज मंत्र से जप के बाद अष्टोत्तरशतनाम व कवच पाठ करें. दसवीं के दिन नवग्रह यंत्र की पूजा के बाद इसे घर में पूजा स्थल पर स्थापित कर देना चाहिए और नियमित इसकी पूजा करनी चाहिए.

ग्रह शांति माला | Rosary For Planet Pacification

जप माला सभी ग्रह के लिए अलग प्रयोग करना चाहिए जैसे राहु के लिए पंचमुखी रूद्राक्ष, पीले अकीक या सुनहले की माला.शनि के लिए पंचमुखी रूद्राक्ष या काले अकीक की माला, बुध के लिए हरे अकीक की माला या चारमुखी रूद्राक्ष की माला.केतु के लिए  न मुखी रूद्राक्ष की माला.अगर नमुखी रूद्राक्ष न मिले तो पंचमुखी रूद्राक्ष से भी जप किया जा सकता है.शुक्र के लिए स्फटिक, चन्दन, सफेद अकीक की माला.सूर्य की शांति के लिए लाल अकीक की माला, पंचमुखी रूद्राक्ष या रक्त चंदन की माला.चन्द्रमा की शांति के लिए मोती अथवा सफेद अकीक की माला का प्रयोग करना चाहिए.

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अहोई अष्टमी व्रत पूजन 2024 | Ahoi Ashtami Vrat Puja 2024 | Ahoi Ashtami Vrat | Ahoi Aathe 2024

कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष कि अष्टमी को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है. यह व्रत पूजन संतान व पति के कल्याण हेतु किया जाता है. अहोई अष्टमी व्रत उदयकालिक एवं प्रदोषव्यापिनी अष्टमी को ही किया जाता है. यह व्रत मुख्यत: स्त्रियों द्वारा किया जाता है. सन्तान की रक्षा और उसकी लंबी उम्र की कामना के लिए यह व्रत मुख्य है. वर्ष 2024 को अहोई अष्टमी 24 अक्टूबर के दिन मनाई जानी है.

अहोई अष्टमी महत्व | Ahoi Ashtami Importance

संतान की शुभता को बनाये रखने के लिये क्योकि यह उपवास किया जाता है. इसलिये इसे केवल माताएं ही करती है. एक मान्यता के अनुसार इस दिन से दीपावली का प्रारम्भ समझा जाता है. अहोई अष्टमी के उपवास को करने वाली माताएं इस दिन प्रात:काल में उठकर, एक कोरे करवे (मिट्टी का बर्तन) में पानी भर कर. माता अहोई की पूजा करती है. पूरे दिन बिना कुछ खाये व्रत किया जाता है. सांय काल में माता को फलों का भोग लगाकर, फिर से पूजन किया जाता है.

तथा सांयकाल में तारे दिखाई देने के समय अहोई का पूजन किया जाता है. तारों को करवे से अर्ध्य दिया जाता है. और गेरूवे रंग से दीवार पर अहोई मनाई जाती है. जिसका सांयकाल में पूजन किया जाता है. कुछ मीठा बनाकर, माता को भोग लगा कर संतान के हाथ से पानी पीकर व्रत का समापन किया जाता है. अहोई अष्टमी का महत्व इसकी कथा द्वारा प्रलक्षित होता है.

कथा अनुसार, प्राचीन काल में दतिया नगर में चंद्रभान नाम का एक साहूकार रहता था. उसकी बहुत सी संताने थी, परंतु उसकी संताने अल्प आयु में ही अकाल मृत्यु को प्राप्त होने लगती हैं. अपने बच्चों की अकाल मृत्यु से पति पत्नी दुखी रहने लगते हैं. कोई संतान न होने के कारण वह पति पत्नी अपनी धन दौलत का त्याग करके वन की ओर चले जाते हैं और बद्रिकाश्रम के समीप बने जल के कुंड के पास पहुँचते हैं तथा वहीं अपने प्राणों का त्याग करने के लिए अन्न जल का त्याग करके बैठ जाते हैं.

इस तरह छह दिन बीत जाते हैं तब सातवें दिन एक आकाशवाणी होती है कि, हे साहूकार तुम्हें यह दुख तुम्हारे पूर्व जन्म के पाप से मिल रह है अत: इन पापों से मुक्ति के लिए तुम्हें अहोई अष्टमी के दिन व्रत का पालन करके अहोई माता की पूजा अर्चना करना जिससे प्रसन्न हो अहोई मां तुम्हें पुत्र की दीर्घ आयु का वरदान देंगी. इस प्रकार दोनो पति पत्नी अहोई अष्टमी के दिन व्रत करते हैं और अपने पापों की क्षमा मांगते हैं. अहोई माँ प्रसन्न हो उन्हें संतान की दीर्घायु का वरदान देतीं हैं.

अहोई अष्टमी व्रत पूजा विधि | Ahoi Ashtami Vrat Puja Vidhi

अहोई अष्टमी के दिन पूजा पाठ करके अपनी संतान की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन हेतु कामना करते हुए व्रत करना चाहिए. अहोई अष्टमी उत्साह से मनाया जाता है अहोई अष्टमी व्रत की तैयारियों से जुड़ी समस्त सामग्री जैसे गन्ना, सिंघाड़ा, कच्ची हल्दी, मटकी, अहोई अष्टमी का विशेष व्रत कथा कैलेंडर को इकट्ठा किया जाता है. महिलाएं विधि विधान से व्रत से संबंधित अनुष्ठान पूरे करने का संकल्प लेती हैं. अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाते हैं तथा साथ ही सेह और उसके बच्चों का चित्र भी बनाते हैं.

सन्ध्या समय माँ का पूजन करने के उपरांत अहोई माता की कथा सुनते हैं. पूजा के बाद सास के पैर छू कर आर्शीवाद प्राप्त कर तारों की पूजा करके जल चढ़ाते हैं. इसके पश्चात व्रती जल ग्रहण करके व्रत का समापन करता है,  आसमान में तारों के दर्शन के बाद व्रत को तोडा़ जाता है. जहां एक ओर करवाचौथ महिला अपने पति की दीर्घायु की कामना से मनाती हैं, वहीं अहोई अष्टमी संतान के दीर्घायु के लिए मनाया जाता है. करवाचौथ में चांद को देखने के बाद लोग व्रत तोड़ते हैं, वहीं अहोई अष्टमी का व्रत तारा देखने के बाद तोड़ा जाता है.

संतान प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी | Ahoi Ashtami Fast and Children

जिन्हें संतान का सुख प्राप्त नहीं हो पा रहा हो उन्हें अहोई अष्टमी व्रत अवश्य करना चाहिए. संतान प्राप्ति हेतु अहोई अष्टमी व्रत अमोघफल दायक होता है.  इसके लिए, एक थाल मे सात जगह चार-चार पूरियां एवं हलवा रखना चाहिए. इसके साथ ही पीत वर्ण की पोशाक-साडी एवं रूपये आदि रखकर श्रद्धा पूर्वक अपनी सास को उपहार स्वरूप देना चाहिए. शेष सामग्री हलवा-पूरी आदि को अपने पास-पडोस में वितरित कर देना चाहिए सच्ची श्रद्धा के साथ किया गया यह व्रत शुभ फलों को प्रदान करने वाला होता है.

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करवा चौथ व्रत 2024 | Karwa Chauth Vrat 2024 | Karva Chauth 2024

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत किया जाता है, पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन चंद्रमा की पूजा अर्चना की जाती है. करवा चौथ व्रत को करक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है. इस वर्ष करवा चौथ का त्योहार 20 अक्टूबर 2024 को मनाया जाएगा. करवा चौथ का व्रत अपने पति के स्वास्थय और दीर्घायु के लिये किया जाने वाला व्रत है.

उत्तरी भारत में यह व्रत आज श्रद्धा व विश्वास की सीमाओं से आगे निकलकर, नये रंग में रंग गया है. करवा चौथ आज अपने प्रेमी, होने वाले पति और जीवन साथी के प्रति स्नेह व्यक्त करने का प्रर्याय बन गया है. आज यह केवल सुहागिनों का व्रत ही न रहकर, पतियों के द्वारा अपनी पत्नियों के लिये रखा जाने वाला पहला व्रत बन गया है.

करवा चौथ के व्रत ने बाजारीकरण को कितना लाभ पहुंचाया है, यह तो स्पष्ट है, परन्तु यह व्रत वैवाहिक जीवन को सफल और खुशहाल बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. क्योकि करवा़चौथ अब केवल लोक परम्परा न रहकर, भावनाओं के आदान-प्रदान का पर्व बन गया है.

करवा चौथ का पौराणिक महत्व | Mythological Importance of Karva Chauth

करवा चौथ पर्व का पौराणिक महत्व धर्म ग्रंथों में प्रतीत होता है. महाभारत से संबंधित कथानुसा अपने वनवास काल के दौरान अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं तथा दूसरी ओर पांडवों पर कई  संकट आन पड़ते हैं यह सब देख द्रौपदी चिंता में पड़ जाती है और वह भगवान श्री श्रीकृष्ण से इन समस्याओं से मुक्ति पाने का उपाय जानने की प्रार्थना करती है. उनकी विनय सुन कृष्ण द्रौपदी से कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत रहे तो उन्हें अपने संकटों से मुक्ति मिल सकती है. कृष्ण के कथन अनुसार द्रौपदी ने पूर्ण निष्ठा भव के सतह करवा चौथ का व्रत किया. व्रत के फल स्वरुप पांडवों को पने कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है.  अटूट बंधन व सौभाग्य का प्रतीक करवाचौथ व्रत आज के संदर्भ में भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना की प्राचीन काल में रहा.

सरगी | Sargi

करवा चौथ में सरगी का काफी महत्व है. सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाती है. इसका सेवन महिलाएं करवाचौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले तारों की छांव में करती हैं. सरगी के रूप में सास अपनी बहू को विभिन्न खाद्य पदार्थ एवं वस्त्र इत्यादि देती हैं. सरगी, सौभाग्य और समृद्धि का रूप होती है. सरगी के रूप में खाने की वस्तुओं को जैसे फल, मीठाई आदि को व्रती महिलाएं व्रत वाले दिन सूर्योदय से पूर्व प्रात: काल में तारों की छांव में ग्रहण करती हैं. तत्पश्चात व्रत आरंभ होता है. अपने व्रत को पूर्ण करती हैं.

करवा चौथ व्रत पूजन विधि | Karwa Chauth Vrat Pujan Vidhi

व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प करके करवा चौथ व्रत का आरंभ करना चाहिए. गेरू और पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित बनाया जाता है. पीली मिट्टी से माँ गौरी और उनकी गोद में गणेशजी को चित्रित किया जाता है. गौरी मां की मूर्ति के साथ शिव भगवान व गणेशजी की को लकड़ी के आसन पर बिठाते हैं. माँ गौरी को चुनरी बिंदी आदि सुहाग सामग्री से सजाया जाता है. जल से भरा हुआ लोटा रखा जाता है. रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाते हैं. गौरी-गणेश जी की श्रद्धा अनुसार पूजा की जाती है और कथा का श्रवण किया जाता है. पति की दीर्घायु की कामना करते हुए कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं और उन्हें करवा भेंट करते हैं. रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देते हैं इसके बाद पति से आशीर्वाद पाकर व्रत पूर्ण होता है.

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