माघ स्नान 2025: माघ स्नान महत्व

कहा गया है कि त्रिदेव माघ मास में प्रयागराज के लिए यमुना के संगम पर गमन करते हैं तथा इलाहबाद के प्रयाग में माघ मास के दौरान स्नान करने दस हज़ार अश्वमेध यज्ञ करने के समान फल प्राप्त होता है. माघ मास में ब्रह्म मूहुर्त्त समय गंगाजी अथवा पवित्र नदियों में स्नान करना उत्तम होता है. माघ मास का स्नान पौष शुक्ल एकादशी अथवा पूर्णिमा से आरम्भ कर माघ शुक्ल द्वादशी या पूर्णिमा को समाप्त हो जाता है. जब सूर्य माघ मास में मकर राशि पर स्थित होता है तब समस्त व्यक्तियों को इस समय व्रत व दान तप का  आचरण करना चाहिए. सबसे महान पुण्य प्रदाता माघ स्नान गंगा तथा यमुना के संगम स्थल का माना जाता है.

माघ स्नान और कल्पवास | Magh Snan and Kalpvas

माघ स्नान दिन सूर्य तथा चन्द्रमा गोचरवश मकर राशि में आते हैं. मकर राशि, सूर्य तथा चन्द्रमा का योग इसी दिन होता है. इस माह के दौरान हरिद्वार, नासिक, उज्जैन व इलाहाबाद इत्यादि के संगम पर स्नान करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. माघ मास में ‘कल्पवास’ का विशेष महत्त्व माना गया है. माघ माह समय में संगम के तट पर निवास को ‘कल्पवास’ कहा जाता है.

वेद, मंत्र व यज्ञ आदि कर्म ही ‘कल्प’ कहे जाते हैं. पौराणिक ग्रंथों में माघ माह समय, संगम के तट पर निवास कल्पवास के नाम से जाना जाता है. यह कल्पवास पौष शुक्ल एकादशी से आरम्भ होकर माघ शुक्ल द्वादशी पर्यन्त तक रहता है, संयम, अहिंसा एवं श्रद्धा ही कल्पवास का मूल आधार होता है.

माघ स्नान मेला | Magh Snan Fair

माघ माह में माघ स्नान के उपलक्ष्य पर मेलों का आयोजन होता है. भारत के विभिन्न धर्म नगरियों जैसे कि प्रयाग, उत्तरकाशी, हरिद्वार इत्यादि स्थलों में माघ मेला बहुत प्रसिद्ध होता है. कहते हैं, माघ के धार्मिक अनुष्ठान के फलस्वरूप प्रतिष्ठानपुरी के नरेश पुरुरवा को अपनी कुरूपता से मुक्ति मिली थी तथा गौतम ऋषि द्वारा अभिशप्त इंद्र को भी माघ स्नान के महाम्त्य से ही श्राप से मुक्ति मिली थी.

यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण धार्मिक एवं सांस्कृतिक मेला होता है. मकर संक्रांति के दिन माघ महीने में यह मेला आयोजित होता है. भारत के सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों में इसे बहुत श्रद्धा भाव के साथ मनाया जाता है. धार्मिक गतिविधियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का समायोजन इस मेले के दौरान देखने को मिलता है.

त्रिवेणी के संगम पर स्नान करने से व्यक्ति के अंदर स्थित पापों का नाश होता है, व्यक्ति को इस दिन मौन व्रत धारण करके ही स्नान करना चाहिए क्योंकि यह समय वाणी को नियंत्रित करने के लिए यह शुभ दिन होता है.

व्यक्ति को स्नान तथा जप आदि के पश्चात हवन, दान आदि करना चाहिए ऎसा करने से पापों का नाश होता है.  त्रिवेणी के संगम में माघ स्नान करने से सौ हजार राजसूय यज्ञ के बराबर फल की प्राप्ति होती है. माघ माह की अमावस्या तिथि और पूर्णिमा तिथि दोनों का ही महत्व माना गया है. यह दो तिथियाँ पर्व के समान मानी जाती हैं.

इन दिनों व्यक्ति को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान, पुण्य तथा जाप करने चाहिए. यदि किसी व्यक्ति की सामर्थ्य त्रिवेणी के संगम अथवा अन्य किसी तीर्थ स्थान पर जाने की नहीं है तब उसे अपने घर में ही प्रात: काल उठकर दैनिक कर्मों से निवृत होकर स्नान आदि करना चाहिए अथवा घर के समीप किसी भी नदी या नहर में स्नान कर सकते हैं. पुराणों के अनुसार इस दिन सभी नदियों का जल गंगाजल के समान हो जाता है.

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संकष्टी चतुर्थी व्रत : सकट चौथ 2025

श्री गणेश चतुर्थी के दिन श्री विध्नहर्ता की पूजा-अर्चना और व्रत करने से व्यक्ति के समस्त संकट दूर होते है. यह व्रत इस वर्ष 17 जनवरी, 2025  को रखा जाना है. माघ माह के कृष्ण पक्ष चतुर्थी के दिन को संकट चौथ के नाम से भी जाना जाता है. इस तिथि समय रात्री को चंद्र उदय होने के पश्च्यात चंद्र उदित होने के बाद भोजन करे तो अति उत्तम रहता है. तथा रात में चन्द्र को अर्ध्य देते हैं.

हिन्दू धर्म शास्त्रों में के अनुसार भगवान श्री गणेश कई रुपों में अवतार लेकर प्राणीजनों के दुखों को दूर करते हैं. श्री गणेश मंगलमूर्ति है, सभी देवों में सबसे पहले श्री गणेश का पूजन किया जाता है. श्री गणेश क्योकि शुभता के प्रतीक है. पंचतत्वों में श्री गणेश को जल का स्थान दिया गया है. बिना गणेश का पूजन किए बिना कोई भी इच्छा पूरी नहीं होती है. विनायक भगवान का ही एक नाम अष्टविनायक भी है.

इनका पूजन व दर्शन का विशेष महत्व है.  इनके अस्त्रों में अंकुश एवं पाश है, चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएँ हैं, उनका लंबोदर रूप “समस्त सृष्टि उनके उदर में विचरती है” का भाव है बड़े-बडे़ कान अधिक ग्राह्यशक्ति का तथा आँखें सूक्ष्म तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं, उनकी लंबी सूंड महाबुद्धित्व का प्रतीक है.

गणेश संकट चौथ व्रत का महत्व | Importance of Ganesha Sankat Chauth Fast

श्री गणेश चतुर्थी का उपवास जो भी भक्त संपूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ करता है, उसकी बुद्धि और ऋषि-सिद्धि की प्राप्ति होने के साथ-साथ जीवन में आने वाली विध्न बाधाओं का भी नाश होता है. सभी तिथियों में चतुर्थी तिथि श्री गणेश को सबसे अधिक प्रिय होती है.

श्री गणेश संकट चतुर्थी पूजन | Sri Ganesha Sankat Chaturthi Worship

संतान की कुशलता की कामना व लंबी आयु हेतु भगवान गणेश और माता पार्वती की विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए, व्रत का आरंभ तारों की छांव में करना चाहिए व्रतधारी को पूरा दिन अन्न, जल ग्रहण किए बिना मंदिरों में पूजा अर्चना करनी चाहिए और बच्चों की दीर्घायु के लिए कामना करनी चाहिए. इसके बाद संध्या समय पूजा की तैयारी के लिए गुड़, तिल, गन्ने और मूली को उपयोग करना चाहिए. व्रत में यह सामग्री विशेष महत्व रखती है, देर शाम चंद्रोदय के समय व्रतधारी को तिल, गुड़ आदि का अ‌र्घ्य देकर भगवान चंद्र देव से व्रत की सफलता की कामना करनी चाहिए.

माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का व्रत लोक प्रचलित भाषा में इसे सकट चौथ कहा जाता है. इस दिन संकट हरण गणेशजी तथा चंद्रमा का पूजन किया जाता है, यह व्रत संकटों तथा दुखों को दूर करने वाला तथा सभी इच्छाएं व मनोकामनाएं पूरी करने वाला है. इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत करती हैं गणेशजी की पूजा की जाती है और कथा सुनने के बाद चंद्रमा को अर्ध्य देकर ही व्रत खोला जाता है.

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पुत्रदा एकादशी व्रत कथा और महत्व 2025

पुत्रदा एकादशी व्रत वर्ष 2025 में पुत्रदा एकादशी व्रत 10 जनवरी को मनाया जाएगा. हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष पुत्रदा एकादशी का व्रत पौष माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है. इस दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है. सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पश्चात श्रीहरि का ध्यान करना चाहिए.

पुत्रदा एकादशी पूजन | Putrada Ekadashi Pujan

पुत्रदा एकादशी के दिन बाल गोपाल की पूजा करनी चाहिए, बाल गोपाल की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराना चाहिए. धूप-दीप आदि से भगवान नारायण की अर्चना की जाती है, उसके बाद  फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि व्यक्ति अपनी सामर्थ्य अनुसार भगवान नारायण को अर्पित करते हैं. पूरे दिन निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनने के पश्चात फलाहार किया जाता है. इस दिन दीप दान करने का महत्व है.

पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा | Putrada Ekadashi Vrat Story

प्राचीन काल में भद्रावतीपुरी नगर में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे. परंतु कई वर्ष बीत जाने पर भी उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं हुई. राजा और उसकी रानी दोनों इस बात को लेकर चिन्ताग्रस्त रहते थे. निसंतान होने के दुख से वह शोकाकुल रहने लगे. राजा के पितर भी यह सोचकर चिन्ताग्रस्त थे कि राजा का वंश आगे न चलने पर उन्हें तर्पण कौन करेगा औन उनका पिण्ड दान करेगा.

राजा भी इसी चिन्ता से अधिक दु:खी थे कि उनके मरने के बद उन्हें कौन अग्नि देगा. एक दिन इसी चिन्ता से ग्रस्त राजा सुकेतुमान अपने घोडे पर सवार होकर वन की ओर चल दिए. वन में चलते हुए वह अत्यन्त घने वन में पहुँच गए.


चलते-चलते राजा को बहुत प्यास लगने लगी. वह पानी की तलाश में वन में और अंदर की ओर चले गए जहाँ उन्हें एक सरोवर दिखाई दिया. राजा ने देखा कि सरोवर के पास ऋषियों के आश्रम भी बने हुए है और बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे हैं. राजा अपने घोडे़ से उतरा उसने सरोवर से पानी पीया. प्यास बुझाकर राजा ने सभी मुनियों को प्रणाम किया.


ऋषियों ने राजा को आशीर्वाद दिया और बोले कि राजन हम आपसे प्रसन्न हैं. तब राजा ने ऋषियों से उनके एकत्रित होने का कारण पूछा. मुनि ने कहा कि वह विश्वेदेव हैं और सरोवर के निकट स्नान के लिए आये हैं. आज से पाँचवें दिन माघ मास का स्नान आरम्भ हो जाएगा और आज पुत्रदा एकादशी है. जो मनुष्य इस दिन व्रत करता है उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है.


राजा ने मुनि के कहे अनुसार पुत्रदा एकादशी का व्रत आरंभ किया और अगले दिन द्वादशी को पारण किया. व्रत के प्रभाव स्वरूप कुछ समय के पश्चात रानी गर्भवती हो गई और रानी ने एक सुकुमार पुत्र को जन्म दिया, इस प्रकार जो व्यक्ति इस व्रत को रखते हैं उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. संतान होने में यदि बाधाएं आती हैं तो इस व्रत के रखने से वह दूर हो जाती हैं. जो मनुष्य इस व्रत के महात्म्य को सुनता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.


पुत्रदा एकादशी महत्व | Significance of Putrada Ekadashi Fast

इस व्रत के नाम के अनुसार ही इसका फल है. जिन व्यक्तियों को संतान होने में बाधाएं आती है अथवा जो व्यक्ति पुत्र प्राप्ति की कामना करते हैं उनके लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत बहुत ही शुभफलदायक होता है. इसलिए संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को व्यक्ति विशेष को अवश्य रखना चाहिए, जिससे उसे मनोवांछित फलों की प्राप्ति हो सके.

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मार्तण्ड सप्तमी 2025

सूर्य भगवान आदि देव हैं अत: इन्हें आदित्य कहते हैं, इसके अलावा अदिति के पुत्र के रूप में जन्म लेने के कारण भी इन्हें इस नाम से जाना जाता है. सूर्य के कई नाम हैं जिनमें मार्तण्ड भी एक है जिनकी पूजा पौष मास में शुक्ल सप्तमी को होती है. 04 फरवरी 2025 को मार्तण्ड सप्तमी मनाई जाएगी. सूर्य देव का यह रूप बहुत ही तेजस्वी है यह अशुभता और पाप का नाश कर उत्तम फल प्रदान करने वाला है. इस दिन सूर्य की पूजा करने से सुख सभाग्य एवं स्वास्थ्य लाभ मिलता है.

मार्तण्ड सप्तमी कथा | Martand Saptami Katha

दक्ष प्रजापति की पुत्री अदिति का विवाह महर्षि कश्यप से हुआ. अदिति ने कई पुत्रों को जन्म दिया. अदिति के पुत्र देव कहलाए और अदिति की बहन दिति के भी कई पुत्र हुए जो असुर कहलाए. परंतु असुर देवताओं के प्रति वैर भाव रखते थे. वह देवताओं को समाप्त करके स्वर्ग पर अधिकार प्राप्त करना चाहते थे. असुरों ने अपनी ताकत से देवों को पराजित कर दिया और स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमा लिया.

 

अपने पुत्रों को संकट में देखकर देवी अदिति बहुत ही दु:खी थी. उस समय उन्होंने सर्वशक्तिमान सूर्य देव की उपासना का प्रण किया और कठोर तपस्या में लीन हो गयी. देव माता अदिति की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें दर्शन दिया और वरदान मांगने के लिए कहा. सूर्य देव के ऐसा कहने पर देव माता ने कहा कि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरे पुत्रों की रक्षा हेतु आप मेरे पुत्र के रूप में जन्म लेकर अपने भाईयों के प्राणों की रक्षा करें.

 

सूर्य के वरदान के फलस्वरूप भगवान सूर्य का अंश अदिति के गर्भ में पलने लगा. सूर्य जब गर्भ में थे उस समय देवी अदिति सदा तप और व्रत में लगी रहती थी. तप और व्रत से देवी का शरीर कमज़ोर होता जा रहा था. महर्षि कश्यप के काफी समझाने पर भी देवी ने तप व्रत जारी रखा तो क्रोध वश महर्षि ने कह दिया कि तुम इस गर्भ को मार डालोगी क्या? महर्षि के ऐसे अपवाक्य को सुनकर अदिति को बहुत दुख होता है परंतु वह उन्हें समझाते हुए कहती हैं कि यह सामान्य गर्भ नहीं है अपितु प्रभु का अंश है अत: आप चिंता न करें.

 

ऋषि को यह जानकर उन्होंनें सूर्य देव की वंदना की. वंदना से प्रसन्न होकर सूर्य ने महर्षि को क्षमा दान दिया और तत्काल उस अण्ड से अत्यंत तेजस्वी पुरूष का जन्म हुआ जो मार्तण्ड कहलाया. सूर्य के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है मार्तण्ड सप्तमी तिथि को. सूर्य अदिति के गर्भ से जन्म लिये थे अत: इन्हें आदित्य भी कहा जाता है.

मार्तण्ड सप्तमी पूजा व्रत विधि | Martand Saptami Worship

मार्तण्ड सप्तमी का व्रत रखते हुए व्यक्ति को सात्विक स्वरुप को अपनाना चाहिए. नित्य क्रिया से निवृत होकर सूर्योदय के समय स्नान करें. स्नान के पश्चात संकल्प करके अदिति पुत्र सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए. इस समय सूर्य भगवान को ओम श्री सूर्याय नम:, ओम दिवाकराय नम:, ओम प्रभाकराय नम: नाम से आर्घ्य देना चाहिए तथा साथ ही साथ परिवार के स्वास्थ्य व कल्याण हेतु उनसे प्रार्थना करनी चाहिए. पूजा पश्चात सप्तमी कथा का पठन करना चाहिए. सूर्य के इस रूप की पूजा से रोग का शमन होता है और व्यक्ति स्वस्थ एवं कांतिमय हो जाता है. शास्त्रों में इस व्रत को आरोग्य दायक कहा गया है.

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मकर संक्रांति 2025 : क्‍यों मनाते हैं मकर संक्रांति ?

सूर्य का मकर राशि में प्रवेश मकर संक्रान्ति रुप में जाना जाता है. 14 जनवरी 2025 के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते है. इस पर्व को दक्षिण भारत में तमिल वर्ष की शुरूआत इसी दिन से होती है. वहाँ यह पर्व ‘थई पोंगल’ के नाम से जाना जाता है. सिंधी लोग इस पर्व को ‘तिरमौरी’ कहते है. उत्तर भारत में यह पर्व ‘मकर सक्रान्ति के नाम से और गुजरात में ‘उत्तरायण’ नाम से जाना जाता है. मकर संक्रान्ति को पंजाब में लोहडी पर्व, उतराखंड में उतरायणी, गुजरात में उत्तरायण, केरल में पोंगल, गढवाल में खिचडी संक्रान्ति के नाम से मनाया जाता है.

मकर संक्रान्ति के शुभ समय पर हरिद्वार, काशी आदि तीर्थों पर स्नानादि का विशेष महत्व माना गया है. इस दिन सूर्य देव की पूजा – उपासना भी की जाती है. शास्त्रीय सिद्धांतानुसार सूर्य पूजा करते समय श्वेतार्क तथा रक्त रंग के पुष्पों का विशेष महत्व है इस दिन सूर्य की पूजा करने के साथ साथ सूर्य को अर्ध्य देना चाहिए.

मकर संक्रान्ति दान महत्व | Significance of Donation on Makar Sankranti

मकर संक्रान्ति के दिन दान करने का महत्व अन्य दिनों की तुलना में बढ जाता है. इस दिन व्यक्ति को यथासंभव किसी गरीब को अन्नदान, तिल व गुड का दान करना चाहिए. तिल या फिर तिल से बने लड्डू या फिर तिल के अन्य खाद्ध पदार्थ भी दान करना शुभ रहता है. धर्म शास्त्रों के अनुसार कोई भी धर्म कार्य तभी फल देता है, जब वह पूर्ण आस्था व विश्वास के साथ किया जाता है. जितना सहजता से दान कर सकते है, उतना दान अवश्य करना चाहिए.

मकर संक्रान्ति पौराणिक तथ्य | Historical Significance of Makar Sankranti

मकर संक्रान्ति के साथ अनेक पौराणिक तथ्य जुडे़ हुए हैं जिसमें से कुछ के अनुसार भगवान आशुतोष ने इस दिन भगवान विष्णु जी को आत्मज्ञान का दान दिया था. इसके अतिरिक्त देवताओं के दिनों की गणना इस दिन से ही प्रारम्भ होती है. सूर्य जब दक्षिणायन में रहते है तो उस अवधि को देवताओं की रात्री व उतरायण के छ: माह को दिन कहा जाता है. महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का दिन ही चुना था.

कहा जाता है कि आज ही के दिन गंगा जी ने भगीरथ के पीछे- पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी. इसीलिये आज के दिन गंगा स्नान व तीर्थ स्थलों पर स्नान दान का विशेष महत्व माना गया है. मकर संक्रान्ति के दिन से मौसम में बदलाव आना आरम्भ होता है. यही कारण है कि रातें छोटी व दिन बडे होने लगते है. सूर्य के उतरी गोलार्ध की ओर जाने बढने के कारण ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ होता है. सूर्य के प्रकाश में गर्मी और तपन बढने लगती है. इसके फलस्वरुप प्राणियों में चेतना और कार्यशक्ति का विकास होता है.

सूर्य उत्तरायण पर्व | Sun Uttarayan Festival

सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना “संक्रान्ति” कहलाता है अत: इसी प्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को “मकर संक्रान्ति” के नाम से जाना जाता है. मकर–संक्रान्ति के दिन देव भी धरती पर अवतरित होते हैं, आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है, अंधकार का नाश व प्रकाश का आगमन होता है. इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्त्व है.  इस दिन गंगा स्नान व सूर्योपासना पश्चात गुड़, चावल और तिल का दान श्रेष्ठ माना गया है

मकर संक्रान्ति के दिन खाई जाने वाली वस्तुओं में जी भर कर तिलों का प्रयोग किया जाता है. तिल से बने व्यंजनों की खुशबू मकर संक्रान्ति के दिन हर घर से आती महसूस की जा सकती है. इस दिन तिल का सेवन और साथ ही दान करना शुभ होता है. तिल का उबटन, तिल के तेल का प्रयोग, तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल मिश्रित जल का पान, तिल- हवन, तिल की वस्तुओं का सेवन व दान करना व्यक्ति के पापों में कमी करता है.

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सफला एकादशी 2025 | Saphla Ekadashi 2025 | Saphala Ekadasi Vrat

सफला एकादशी व्रत पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन किया जाता है. 15 दिसंबर वर्ष 2025 में यह व्रत मनाया जायेगा. इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को व्रत के दिन प्राता: स्नान करके, भगवान कि आरती करनी चाहिए और भगवान को भोग लगाना चाहिए. इस दिन भगवान नारायण की पूजा का विशेष महत्व होता है. ब्राह्मणों तथा गरीबों, को भोजन अथवा दान देना चाहिए. जागरण करते हुए कीर्तन पाठ आदि करना अत्यन्त फलदायी रहता है. इस व्रत को करने से समस्त कार्यो में सफलता मिलती है. यह एकादशी व्यक्ति को सभी कार्यों में सफलता प्रदान कराती है.

सफला एकादशी व्रत | Saphla Ekadashi Fast

सफला एकादशी के विषय में कहा गया है, कि यह एकादशी व्यक्ति को सहस्त्र वर्ष तपस्या करने से जिस पुण्य की प्रप्ति होती है. वह पुण्य भक्ति पूर्वक रात्रि जागरण सहित सफला एकादशी का व्रत करने से मिलता है. एकादशी का व्रत करने से कई पीढियों के पाप दूर होते है. एकादशी व्रत व्यक्ति के ह्रदय को शुद्ध करता है और जब यह व्रत श्रद्वा और भक्ति के साथ किया जाता है तो मोक्ष देता है.

सफला एकादशी व्रत पूजन | Saphla Ekadashi Fast Pujan

सफला एकादशी के व्रत में देव श्री विष्णु का पूजन किया जाता है. जिस व्यक्ति को सफला एकाद्शी का व्रत करना हो व इस व्रत का संकल्प करके इस व्रत का आरंभ नियम दशमी तिथि से ही प्रारम्भ करे. व्रत के दिन व्रत के सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए. इसके साथ ही साथ जहां तक हो सके व्रत के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए. भोजन में उसे नमक का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए.

दशमी तिथि कि रात्रि में एक बार ही भोजन करना चाहिए. एकादशी के दिन उपवासक को शीघ्र उठकर, स्नान आदि कार्यो से निवृत होने के बाद व्रत का संकल्प भगवान श्री विष्णु के सामने लेना चाहिए. संकल्प लेने के बाद धूप, दीप, फल आदि से भगवान श्री विष्णु और नारायण देव का पंचामृ्त से पूजन करना चाहिए. रात्रि में भी विष्णु नाम का पाठ करते हुए जागरण करना चाहिए. द्वादशी तिथि के दिन स्नान करने के बाद ब्राह्माणों को अन्न और धन की दक्षिणा देकर इस व्रत का समापन किया जाता है.

सफला एकादशी महत्व | Significance of Saphla Ekadashi

चम्पावती नगरी में एक महिष्मान नाम का राजा राज्य करता था. उस राजा के चार पुत्र थे उन पुत्रों में सबसे बडा लुम्पक, नाम का पुत्र महापापी था. वह हमेशा बुरे कार्यो में लगा रहता था और पिता का धन व्यर्थ करने से भी पीछे नहीं हटता था. वह सदैव देवता, ब्राह्माण, वैष्णव आदि की निन्दा किया करता था. जब उसके पिता को अपने बडे पुत्र के बारे में ऎसे समाचार प्राप्त हुए, तो उसने उसे अपने राज्य से निकाल दिया. तब लुम्पक ने रात्रि को पिता की नगरी में चोरी करने की ठानी.

वह दिन में बाहर रहने लगा और रात को अपने पिता कि नगरी में जाकर चोरी तथा अन्य बुरे कार्य करने लगा. रात्रि में जाकर निवासियों को मारने और कष्ट देने लगा. पहरेदान उसे पकडते और राजा का पुत्र मानकर छोड देते थे. जिस वन में वह रहता था उस वन में एक बहुत पुराना पीपल का वृक्ष था जिसके नीचे, लुम्पक रहता था. पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वह शीत के कारण मूर्छित हो गया. अगले दिन दोपहर में गर्मी होने पर उसे होश आया.

शरीर में कमजोरी होने के कारण वह कुछ खा भी न सकें, आसपास उसे जो फल मिलें, उसने वह सब फल पीपल कि जड के पास रख दिये. इस प्रकार अनजाने में उससे एकादशी का व्रत पूर्ण हो जाता है जब रात्रि में उसकी मूर्छा दूर होती है तो उस महापापी के इस व्रत से तथा रात्रि जागरण से भगवान अत्यन्त प्रसन्न होते हैं और उसके समस्त पाप का नाश कर देते हैं.

लुम्पक ने जब अपने सभी पाप नष्ट होने का पता चलता है तो वह उस व्रत की महिमा से परिचित होता है और बहुत प्रसन्न होता है ओर अपने आचरण में सुधार लाता है व शुभ कामों को करने का प्रण लेता है. अपने पिता के पास जाकर अपनी गलितियों के लिए क्षमा याचना करता है तब उसके पिता उसे क्षमा कर अपने राज्य का भागीदार बनाते हैं.

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लोहड़ी 2025 में कब है? क्या है इसका महत्व

लोहड़ी का त्यौहार खुद में अनेक सौगातों को लिए होता है. फसल पकने पर किसान खुशी को जाहिर करता है जो  लोहड़ी पर्व, जोश व उल्लास को दर्शाते हुए सांस्कृत्तिक जुड़ाव को दर्शाता है , पंजाब और हरियाणा में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है. लोहडी केवल पंजाब तक ही सीमित नहीं है बल्कि संपूर्ण भारत में मनाया जाता है अलग-अलग नामों से फसल पकने की खुशी यहां पूरे जोश के साथ लोहड़ी के रुप में मनाई जाती है.

हिन्दू पंचांग के अनुसार लोहड़ी मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाई जाती है और इस बार लोहड़ी का पर्व 13 जनवरी, 2025 को मनाया जाएगा. लोहडी त्यौहार है, प्रकृति को धन्यवाद कहने का,यह मकर संक्रान्ति के आगमन की दस्तक भी कहा जाता है.

लोहड़ी से जुड़ी मान्यताएं | Beliefs Related To Lohri Festival

लोहडी़ के पर्व के संदर्भ में अनेकों मान्यताएं हैं जैसे कि लोगों के घर जा कर लोहड़ी मांगी जाती हैं और दुल्ला भट्टी के गीत गाए जाते हैं, कहते हैं कि  दुल्ला भट्टी एक लुटेरा हुआ करता था लेकिन वह हिंदू लड़कियों को बेचे जाने का विरोधी था और उन्हें बचा कर वह उनकी हिंदू लड़कों से शादी करा देता था इस कारण लोग उसे पसंद करते थे और आज भी लोहड़ी गीतों में उसके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है.

हिन्दु धर्म में यह मान्यता है कि आग में जो भी समर्पित किया जाता है वह सीधे हमारे देवों-पितरों को जाता है.इसलिए जब लोहड़ी जलाई जाती है तो उसकी पूजा गेहूं की नयी फसल की बालियों से की जाती है. लोहडी के दिन अग्नि को प्रजव्व्लित कर उसके चारों ओर नाच- गाकर शुक्रिया अदा किया जाता है.

यूं तो लोहडी उतरी भारत में प्रत्येक वर्ग, हर आयु के जन के लिये खुशियां लेकर आती है. परन्तु नवविवाहित दम्पतियों और नवजात शिशुओं के लिये यह दिन विशेष होता है. युवक -युवतियां सज-धज, सुन्दर वस्त्रों में एक-दूसरे से गीत-संगीत की प्रतियोगिताएं रखते है. लोहडी की संध्यां में जलती लकडियों के सामने नवविवाहित जोडे अपनी वैवाहिक जीवन को सुखमय व शान्ति पूर्ण बनाये रखने की कामना करते है. सांस्कृतिक स्थलों में लोहडी त्यौहार की तैयारियां समय से कुछ दिन पूर्व ही आरम्भ हो जाती है.

लोहड़ी पर भंगड़ा और गिद्दा की धूम | Celebration of Lohri

लोहडी़ के पर्व पर लोकगीतों की धूम मची रहती है, चारों और ढोल की थाप पर भंगड़ा-गिद्दा करते हुए लोग आनंद से नाचते नज़र आते हैं. स्कूल व कालेजों में विशेष तौर पर इस दिन को मनाते हैं बच्चे नाच गा कर मजे कर्ते नज़र आते हैं. मन को मोह लेने वाले गीतों कुछ इस प्रकार के होते है कि एक बार को जाता हुआ बैरागी भी अपनी राह भूल जाए.

लोहडी के दिन में भंगडे की गूंज और शाम होते ही लकडियां की आग और आग में डाले जाने वाली चीजों की महक एक गांव को दूसरे गांव व एक घर को दूसरे घर से बांधे रखती है. यह सिलसिला देर रात तक यूं ही चलता रहता है. बडे-बडे ढोलों की थाप, जिसमें बजाने वाले थक जायें, पर पैरों की थिरकन में कमी न हों, रेवडी और मूंगफली का स्वाद सब एक साथ रात भर चलता रहता है.

माघ का आगमन | Commencement of Magh

लोहडी पर्व क्योकि मकर-संक्रान्ति से ठिक पहले कि संध्या में मनाया जाता है तथा इस त्यौहार का सीधा संबन्ध सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से होता है. लोहड़ी पौष की आख़िरी रात को मनायी जाती है जो माघ महीने के शुभारम्भ व उत्तरायण काल का शुभ समय के आगमन को दर्शाता है और साथ ही साथ ठंड को दूर करता हुआ मौसम में बदलाव का संकेत बनता है.

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मित्र सप्तमी 2025 | Mitra Saptami 2025 | Mitra Saptami

मित्र सप्तमी का त्यौहार मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन मनाया जाता है. सूर्य देव की पूजा का पर्व सूर्य सप्तमी एक प्रमुख हिन्दू पर्व है. सूर्योपासना का यह पर्व संपूर्ण भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता रहा है. सूर्य भगवान ने अनेक नाम हैं जिनमें से उन्हें मित्र नाम से भी संबोधित किया जाता है, अत: इस दिन सप्तमी को मित्र सप्तमी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भास्कर भगवान की पूजा-उपासना की जाती है. भगवान सूर्य की आराधना करते हुए लोग गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनारे सूर्य देव को जल देते हैं.

मित्र सप्तमी पौराणिक महत्व | Methodological Importance of Mitra Saptami

सूर्य देव को महर्षि कश्यप और अदिति का पुत्र कहा गया है. इनके जन्म के विषय में कहा जाता है कि एक समय दैत्यों का प्रभुत्व खूब बढ़ने के कारण स्वर्ग पर दैत्यों का अधिपत्य स्थापित हो जाता है. देवों के दुर्दशा देखकर देव-माता अदिति भगवान सूर्य की उपासना करती हैं. आदिति की तपस्या से प्रसन्न हो भगवान सूर्य उन्हें वरदान देते हैं कि वह उनके पुत्र रूप में जन्म लेंगे तथा उनके देवों की रक्षा करेंगे. इस प्रकार भगवान के कथन अनुसार कुछ देवी अदिति के गर्भ से भगवान सूर्य का जन्म होता है. वह देवताओं के नायक बनते हैं और असुरों को परास्त कर देवों का प्रभुत्व कायम करते हैं. नारद जी के कथन अनुसार जो व्यक्ति मित्र सप्तमी का व्रत करता है तथा अपने पापों की क्षमा मांगता है सूर्य भगवान उससे प्रसन्न हो उसे पुन: नेत्र ज्योति प्रदान करते हैं. इस प्रकार यह मित्र सप्तमी पर्व सभी सुखों को प्रदान करने वाला व्रत है.

मित्र सप्तमी पूजन | Mitra Saptami Pujan

मित्र सप्तमी व्रत भगवान सूर्य की उपासना का पर्व है. सप्तमी के दिन इस पर्व का आयोजन मार्गशीर्ष माह के आरंभ के साथ ही शुरू हो जाता है इस पर्व के उपलक्ष में भगवान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व होता है. मित्र सप्तमी व्रत में भगवान सूर्य की पूजा उपासना की जाती है, इस दिन व्रती अपने सभी कार्यों को पूर्ण कर भगवान आदित्य का पूजन करता है व उन्हें जल द्वरा अर्घ्य दिया जाता है.

सूर्य भगवान का षोडशोपचार पजन करते हैं. पूजा में फल, विभिन्न प्रकार के पकवान एवं मिष्ठान को शामिल किया जाता है. सप्तमी को फलाहार करके अष्टमी को मिष्ठान ग्रहण करते हुए व्रत पारण करें. इस व्रत को करने से आरोग्य व आयु की प्राप्ति होती है. इस दिन सूर्य की किरणों को अवश्य ग्रहण करना चाहिए. पूजन और अर्घ्य देने के समय सूर्य की किरणें अवश्य देखनी चाहिए.

मित्र सप्तमी महत्व | Mitra Saptami Importance

मित्र सप्तमी पर्व के अवसर पर परिवार के सभी सदस्य स्वच्छता का विशेष ध्यान रखते हैं. मित्र सप्तमी पर्व के दिन पूजा का सामान तैयार किया जाता है जिसमें सभी प्रकार के फल, दूध. केसर, कुमकुम बादाम इत्यादि को रखा जाता है. इस व्रत का बहुत महत्व रहा है इसे करने से घर में धन धान्य की वृद्धि होती है और परिवार में सुख समृद्धि आती है. इस व्रत को करने से चर्म तथा नेत्र रोगों से मुक्ति मिलती है.

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अखण्ड द्वादशी व्रत 2025 | Akhand Dwadashi Vrat 2025| Akhand Dwadashi Fast

मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी अखण्ड द्वादशी के रुप में मनाई जाती है. इस दिन विष्णु पूजा एवं व्रत का संकल्प किया जाता है, जिसमें  शुद्ध आचरण व सदाचार पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है. अखण्ड द्वादशी तिथि के दिन किया गया व्रत पूजन धन, धान्य व सुख-समृद्धि देने वाला होता है. समस्त व्याधियों को नष्ट कर आरोग्य को बढ़ाने वाला होता है. इस वर्ष 15 दिसंबर 2025 दिन के दिन अखण्ड द्वादशी व्रत का पालन किया जाएगा. इसके प्रभाव स्वरूप से समस्त पापों का नाश होता है व सौभाग्य की प्राप्ति होती है.इस व्रत की विधि एकादशी के समान ही होती है इसे करने से बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है.

यह व्रत मार्गशीर्ष मास की द्वादको शी परम पूजनीय कल्याणकारी होता है. इस तिथि पितृ तर्पण आदि क्रियाएँ की जाती है तथा श्रद्धा व भक्ति पूर्ण ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है तथा विभिन्न प्रकार के दान हवन यज्ञादि क्रियाएँ भी की जाती हैं. ॐ नमो नारायणाय नमः आदि मंत्र जाप द्वारा भगवान विष्णु की पूजा आराधना की जाती है. यह व्रत पवित्रता व शांत चित से श्रद्धा पूर्ण किया जाता है, यह व्रत मनोवांछित फलों को देने वाला और भक्तों के कार्य सिद्ध करने वाला होता है, इस व्रत को नित्यादि क्रियाओं से निवृत्त होकर श्रद्धा विश्वास पूर्ण करना चाहिए. व्रत पूजा के सारे नियम श्रद्धा पुर्ण करने पर यह व्रत पुत्र-पौत्र धन-धान्य देने वाला है.

अखण्ड द्वादशी पूजन विधि | Akhand Dwadashi Pujan Vidhi

अखण्ड द्वादशी पूजन के लिए प्रातःकाल स्नान पश्चात षोड़शोपचार विधि से लक्ष्मीनारायण भगवान की पूजा अर्चना करनी चाहिए और कथा श्रवण करते हुए भगवान का भजन किर्तन करना चाहिए. भोग लगाकर सभी को सदस्यों को प्रसाद ग्रहण करना चाहिए. परिवार के कल्याण धर्म, अर्थ, मोक्ष की कामना करनी चाहिए. ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात स्वयं भी भोजन ग्रहण करना चाहिए. द्वादशी का व्रत संतान प्राप्ति एवं े सुखी जीवन की कामाना के लिए भी बहुत शुभ माना जाता है. मार्ग शीर्ष शुक्ल पक्ष द्वादशी व्रत में भगवान नारायण की पूजा श्वेत वस्त्र धारण करके, गंध, पुष्प, अक्षत आदि से करनी शुभदायक होती है.

अखण्ड द्वादशी महत्व | Akhand Dwadashi Importance

नारदजी विष्णु द्वादशी के विषय में ब्रह्माजी से पुछते हैं, नारद के वचन सुनकर ब्रह्माजी ने कहा कि हे नारद लोकों के हित के लिए तुमने बहुत सुंदर प्रश्न किया है. द्वादशी पूजन एवं कथा श्रवण मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है. इस दिन शंख, चक्र, गदाधारी विष्णु भगवान का पूजन होता है, जिनके नाम श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव, मधुसूदन हैं. उनकी पूजा करने से जो फल मिलता है सो फल गंगा, काशी, नैमिषारण्य और पुष्कर स्नान से मिलता है, वह विष्णु भगवान के पूजन से मिलता है.

जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से, समुद्र, वन सहित पृथ्वी दान करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोदावरी और गंडकी नदी में स्नान से भी प्राप्त नहीं होता वह भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है. जो मार्गशीर्ष माह में भगवान का पूजन करते हैं, उनसे देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित हो जाते हैं, विष्णु भगवान का पूजन संसाररूपी भव सागर में डूबे मनुष्यों को पार लगाता है.

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मार्गशीर्ष पूर्णिमा पूजन 2025 | Margashirsha Purnima Puja| Margashirsha Purnima Puja

मार्गशीर्ष पूर्णिमा के पावन पर्व पर गंगा समेत अनेक पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है. हरिद्वार समेत अनेक स्थानों पर लोग आस्था की डुबकी लगाते हैं और पापों से मुक्त होते हैं. पूर्णिमा के स्नान पर पुण्य की कामना से स्नान का बहुत महत्व होता है इस अवसर पर किए गए दान का अमोघ फल प्राप्त होता है, यह एक बहुत पवित्र अवसर माना जाता है जो सभी संकटों को दूर करके मनोकामनाओं की पूर्ति करता है.

मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन व्रत एवं पूजन करने सभी सुखों की प्राप्ति होती है. 4 दिसम्बर 2025 के दिन मार्गशीर्ष पूर्णिमा का पूजन होना है. इस दिन भगवान विष्णु नारायण की पूजा कि जाती है. नियमपूर्वक पवित्र होकर स्नान करके व्रत रखते हुए ऊँ नमो नारायण मंत्र का उच्चारण करना चाहिए. मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को चन्द्रमा की पूजा अवश्य की जानी चाहिए, क्योंकि इसी दिन चन्द्रमा को अमृत से सिंचित किया गया था. इस दिन कन्या और परिवार की अन्य स्त्रियों को वस्त्र प्रदान करने चाहिए.

मार्गशीर्ष पूर्णिमा महत्व | Margashirsha Purnima Importance

मार्गशीर्ष का महीना श्रद्धा एवं भक्ति से पूर्ण होता है. मार्गशीर्ष माह में पूरे महीने प्रात:काल समय में भजन कीर्तन हुआ करते हैं, भक्तों की मंडलियां सुबह के समय भजन व भक्ती गीत गाते हुए निकलती हैं. इस माह में श्रीकृष्ण भक्ति का विशेष महत्व होता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सत युग में देवों ने मार्ग-शीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष का प्रारम्भ किया था. मार्गशीर्ष में नदी स्नान के लिए तुलसी की जड़ की मिट्टी व तुलसी के पत्तों से स्नान करना चाहिए, स्नान के समय नमो नारायणाय या गायत्री मंत्र का उच्चारण करना फलदायी होता है.

जब यह पूर्णिमा ‘उदयातिथि’ के रूप में सूर्योदय से विद्यमान हो, उस दिन नदियों या सरोवरों में स्नान करने तथा साम‌र्थ्य के अनुसार दान करने से सभी पाप क्षय हो जाते हैं तथा पुण्य कि प्राप्ति होती है. मान्यता है कि इस दिन दान-पुण्य करने से वह बत्तीस गुना फल प्राप्त होता है अत: इसी कारण मार्गशीर्ष पूर्णिमा को बत्तीसी पूनम भी कहा जाता है.

मार्गशीर्ष पूर्णिमा पूजा | Margashirsha Purnima Worship

चाकोर वेदी बनाकर हवन किया जाता है, हवन की समाप्ति के पश्चात के बाद भगवान का पूजन करना चाहिए तथा प्रसाद को सभी जनों में बांट कर स्वयं भी ग्रहण करें ब्राह्यणों को भोजन कराये और सामर्थ्य अनुसार दान भी देना चाहिए. पूजा पश्चात सभी लोगों में प्रसाद वितरित करना चाहिए व भगवान विष्णु जी से मंगल व सुख कि कामना करनी चाहिए.

मार्गशीर्ष माह के संदर्भ में कहा गया है कि इस महीने में स्नान एवं दान का विशेष महत्व होता है. इस माह में नदी स्नान का विशेष महत्व माना गया है.जिस प्रकार कार्तिक ,माघ, वैशाख आदि महीने गंगा स्नान के लिए अति शुभ एवं उत्तम माने गए हैं. उसी प्रकार मार्गशीर्ष माह में भी गंगा स्नान का विशेष फल प्राप्त होता है. मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व खूब रहा है. जिस दिन मार्गशिर्ष माह में पूर्णिमा तिथि हो, उस दिन मार्गशिर्ष पूर्णिमा का व्रत करते हुए श्रीसत्यनारायण भगवान की पूजा और कथा की जाती है जो अमोघ फलदायी होती है.

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